नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से भारत का रक्षा बजट उसकी जीडीपी के 2 प्रतिशत के बराबर रखा जाता रहा है. अर्थव्यवस्था की हालत और विकास की परस्पर विरोधी जरूरतों के मद्देनजर इस अनुपात में जल्दी कोई परिवर्तन होने की उम्मीद नहीं है. सेना के आधुनिकीकरण की तात्कालिक जरूरत को देखते हुए सैन्य योजनाकार इस बजट के बेहतर उपयोग पर विचार करते रहे हैं ताकि पूंजीगत खर्चों के लिए ज्यादा पैसा उपलब्ध हो सके. इसलिए पेंशन और वेतन के बिलों को, जिन पर रक्षा बजट का 50 फीसदी हिस्सा खर्च होता है, कम करना रक्षा सुधारों का जरूरी पहलू बन गया है.
एक स्पष्ट समाधान यह है कि सेना के आकार को कम या जरूरत भर का किया जाए, जिसका ताल्लुक अनुमानित खतरों और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से होता है. विस्तृत रणनीतिक समीक्षा के आधार पर तैयार राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अभाव में 2018 के बाद से पेंशन और वेतन के बिलों को कम करने और सेना के आकार को कम या जरूरत भर का करने के लिए क्रमिक सुधारों के तमाम तरह के प्रस्ताव सामने आते रहे हैं. ऐसे प्रस्तावों में ये भी शामिल हैं— सैनिकों के लिए ‘तीन साल की टूर ड्यूटी या शॉर्ट सर्विस अवधि, शॉर्ट सर्विस कमीशन वाले अफसरों की संख्या बढ़ाना, सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाना और समय से पहले रिटायर करने वालों की पेंशन कम करना. तीनों सेनाओं ने इन प्रस्तावों का विश्लेषण किया है और सैन्य मामलों का विभाग (डीएमए) उनमें और सुधार कर रहा है ताकि नये चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ उन पर अंतिम फैसला कर सकें.
इनमें से किसी प्रस्ताव को सार्वजनिक नहीं किया गया है. सेमीनारों या आपसी बातचीत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेनाओं के अध्यक्ष और दूसरे वरिष्ठ सेना अधिकारी जो कुछ कहते रहे हैं, मीडिया उन्हें ही पेश करता रहा है. डीएमए और सेनाओं के मुख्यालय कभी-कभी जानबूझकर सूचनाएं ‘लीक’ करके प्रतिक्रियाओं का जायजा लेते रहते हैं. इसके कारण विवादास्पद प्रस्तावों को लेकर कई तरह की अटकलों और विवादों को बढ़ावा मिलता है.
ऐसा ही एक विवादास्पद प्रस्ताव सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने और समय से पहले रिटायर करने वालों की पेंशन कम करने का है.
प्रस्ताव क्या था
यह प्रस्ताव सबसे पहले नवंबर 2020 में डीएमए की एक कथित आंतरिक ‘नोटिंग’ और सूत्रों के हवाले से मीडिया में दी गई खबरों के रूप में सार्वजनिक हुआ. इसमें कर्नलों, ब्रिगेडियरों, मेजर जनरलों, और इसी दर्जे के अधिकारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र क्रमशः 54 (नौसेना में 56), 56 और 58 से बढ़ाकर 57, 58, और 59 करने का प्रस्ताव था. लेफ्टिनेंट जनरलों की सेवानिवृत्ति उम्र (60 वर्ष) को बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं था. सभी जूनियर कमीशंड अफसरों और टेक्निकल, लॉजिस्टिक्स, तथा मेडिकल शाखाओं में इस रैंक के अफसरों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाकर 57 करने का प्रस्ताव था. अभी यह 42 से लेकर 57 वर्ष तक है.
अफसरों, खासकर टेक्निकल योग्यता वाले अफसरों को 20 साल की सेवा के बाद समय से पहले सेवानिवृत्ति लेने से हतोत्साहित करने के लिए उनकी पेंशन में निम्नलिखित तरह से कटौती करने का प्रस्ताव था—
- 20-25 साल की सेवा के बाद – अधिकृत पेंशन का 50 प्रतिशत
- 26-30 साल की सेवा के बाद– अधिकृत पेंशन का 60 प्रतिशत
- 31-35 साल की सेवा के बाद – अधिकृत पेंशन का 75 प्रतिशत
- 35 साल की सेवा के बाद – पूरी पेंशन.
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विफल प्रस्ताव
सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव कोई नया नहीं है. आज़ादी के बाद इसे दो बार पेश किया जा चुका है. दोनों बार सभी रैंक के लिए सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा दी गई. इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि औसत जीवन लंबा होने लगा है, सैनिकों का अधिकतम उपयोग किया जाए, और नौकरी तथा वित्तीय सुरक्षा बढ़ गई है. इसके चलते रक्षाकर्मियों और सिविल कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र में अंतर भी कम हो गया. उम्र बढ़ाने और ‘सेनाओं को युवा बनाए रखने’ की जरूरत के बीच संतुलन भी बिताने की जरूरत है ताकि वह लड़ाई और जंगे मैदान की प्रतिकूलताओं को झेल सके. युवावस्था में जो साहस और दुस्साहस होता है वह उम्र बढ़ने के साथ कम होता जाता है.
प्रस्तुत प्रस्ताव कर्नलों, ब्रिगेडियरों, और तीनों सेनाओं में इन रैंकों के अधिकारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र के बीच अनियमितता को भी दूर किया जा सकेगा, जैसा कि आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिबुनल और सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिया है. फिलहाल थलसेना में कर्नल और और वायुसेना में फ्लाइंग ब्रांच के ग्रुप कैप्टन 54 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं. नौसेना में कैप्टन 56 साल और वायुसेना में ग्राउंड ड्यूटी के ग्रुप कैप्टन 57 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं. ब्रिगेडियर और इस रैंक के अफसर 56 साल की उम्र में और वायुसेना में ग्राउंड ड्यूटी के एअर कमोडोर 57 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं.
सेवा में लगे अफसरों में यह प्रस्ताव लोकप्रिय हो गया क्योंकि इससे वित्तीय सुरक्षा बढ़ती थी और कुछ अपमानजनक पुनर्नियुक्ति की योजना से निजात मिलती थी, जिसके तहत कर्नल और ब्रिगेडियर दो रैंक नीचे के पद पर क्रमशः चार और दो साल के लिए पुनर्नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते थे. इससे अफसरों की कमी की समस्या भी कुछ हद तक कम होती थी क्योंकि सेवानिवृत्ति में एक से तीन साल तक की देरी होती. लेकिन इस प्रस्ताव के कारण पेंशन और सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभों के भुगतान में देरी होती और वित्तीय बोझ किसी तरह कम नहीं होता था. वास्तव में, वित्तीय बोझ तो सेवा विस्तार की अवधि में दिए जाने वाले इंक्रीमेंट के कारण बढ़ ही रहा था. इससे पेंशन में ही वृद्धि होती, जो कि अंतिम वेतन के 50 फीसदी के बराबर होती.
चूंकि प्रोमोशन खाली पदों के आधार पर होते हैं, सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने से ठहराव आता और जिन कमांडिंग अफसरों को खुद मोर्चे पर नेतृत्व करना होता है उनकी उम्र बढ़ती. विडंबना यह है कि सेनाओं ने अजय विक्रम सिंह कमिटी की 2005 की सिफ़ारिशों के आधार पर बटालियनों के युवा स्वरूप को हासिल करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. नया प्रस्ताव इन प्रयासों पर पानी फेर देगा.
वेतन, पेंशन, भत्ते जटिल मामले होते हैं. छठे, सातवें वेतन आयोगों के कारण पैदा हुई अनियमितताओं को ही अभी तक दूर नहीं किया जा सका है. इनमें से एक ब्रिगेडियर के रैंक तक को दिए जाने वाले मिलिटरी सर्विस पे देने और ऊपर के रैंक को तुलनात्मक मुआवजा ने देने से संबंधित है. इसके कारण कर्नलों और ब्रिगेडियरों को मेजर जनरलों और ले. जनरलों से ज्यादा वेतन मिलता है. सेवानिवृत्ति उम्र में वृद्धि और अधिक वेतन वृद्धि के कारण यह समस्या और बढ़ जाएगी और ऊपर के रैंक वाले वेतन वृद्धि के लिए अदालत के दरवाजे खटखटाएंगे. रैंकों को वेतन का संबंध सिविल सेवा में समान रैंक के वेतन से भी जुड़ा है.
सार यह कि कुछ रैंकों में ही सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और वेतन तथा पेंशन के भुगतान में सरकार को कोई बचत भी नहीं होगी. इसलिए मौजूदा स्वरूप में यह प्रस्ताव आगे बढ़ नहीं पाएगा.
प्रस्ताव का दूसरा हिस्सा उन लोगों की पेंशन घटाने से संबंधित है जो समय से पहले सेवानिवृत्ति लेना चाहते हैं. यह अटकलबाजी के सिवा कुछ नहीं है. कार्म्मिक, जन शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय के पेंशन एवं पेंशनभोगियों के कल्याण से संबंधित विभाग ने सिविल, डिफेंस और रेलवे के कर्मचारियों के लिए पेंशन की व्यापक नीति तय करता है. रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत पूर्व सैनिकों के कल्याण से संबंधित विभाग सिर्फ रक्षाकर्मियों की पेंशन के मामले देखता है. सेवा शर्तों और पेंशन की स्केल में संशोधन करना डीएमए के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. सुप्रीम कोर्ट और कई हाइकोर्टों ने बार-बार आदेश दिया है कि पेंशन संविधान के अनुच्छेद 300ए के मुताबिक संपत्ति का अधिकार है— “पेंशन और ग्रेच्युटी केवल इनाम नहीं हैं बल्कि उदारता के तहत डी जाती है. ये लंबी, निरंतर, बेदाग सेवा और वफादारी के लिए मिलने वाला लाभ हैं.”
जो भी हो, 20 साल की सेवा देने के बाद समय से पहले सेवानिवृत्ति को हतोत्साहित करना एक प्रतिगामी कदम है जो ठहराव को बढ़ावा देता है, सैनिकों की औसत उम्र में वृद्धि करता है और संगठन पर असंतुष्ट अधिकारियों का बोझ डालता है. सैन्य तकनीक में तेजी से हो रहे बदलावों के मद्देनजर नयी प्रतिभाओं को शामिल करना बेहतर होगा.
आगे का रास्ता
नये चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के लिए विवेकपूर्ण यही होगा कि वे वेतन तथा पेंशन पर खर्च को कम करने के मामले में समग्र रुख अपनाएं. वे सरकार पर दबाव डालें कि राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तय करने के लिए रणनीतिक समीक्षा करवाए ताकि 21वीं सदी के छोटे, सघन और उच्च तकनीक के बूते होने वाले युद्ध लड़ने की क्षमता बढ़े. इससे यह भी तय होगा कि सेनाओं के आकार क्या हों.
भारतीय सेनाओं, खासकर थलसेना का आकार विशाल है जिसमें गुणवत्ता से ज्यादा संख्या पर ज़ोर दिया गया है. हमारे संगठन आधुनिक सेनाओं के संगठनों के मुक़ाबले 25-30 फीसदी ज्यादा बड़े आकार के हैं. कुल मिलकर सेनाओं के आकार में 30-40 फीसदी कमी करने की गुंजाइश है.
पेंशन के बिल को कम करने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि अफसरों के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन हो, सैनिकों के लिए 5-10 साल की शॉर्ट सर्विस नियुक्ति हो और या उनके योगदान से चलने वाली पेंशन स्कीम, ग्रेच्युटी, पूर्व सैनिक की हैसियत, आदि के साथ सभी तरह के लाभ उन्हें उपलब्ध हों. यह तरीका आजमाया हुआ है और सभी विकसित सेनाओं में अपनाया गया है. हमें इसमें कोई नयी खोज नहीं करनी चाहिए.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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