scorecardresearch
Tuesday, 30 April, 2024
होममत-विमतबांग्लादेश की तरक्की, अमित शाह के अवैध प्रवासियों के 'दीमक' वाले बयान का मुंहतोड़ जवाब है

बांग्लादेश की तरक्की, अमित शाह के अवैध प्रवासियों के ‘दीमक’ वाले बयान का मुंहतोड़ जवाब है

बांग्लादेशी घुसपैठ को बीजेपी अध्यक्ष देश की प्रमुख समस्या मानते हैं. लेकिन बांग्लादेश ने अगर इसी तरह भारत से दोगुनी रफ्तार से तरक्की करना जारी रखा, तो घुसपैठ अपने आप बंद हो जाएगी.

Text Size:

पड़ोसी की तरक्की खुशी और जलन दोनों तरह के भाव लेकर आ सकती है. तीसरा तरीका ये होता है कि पड़ोसी की तरक्की से आपमें स्वस्थ प्रतियोगिता का भाव आए और आप उससे भी तेजी से तरक्की करने की कोशिश करें. सबसे अच्छा रास्ता तीसरा वाला है, क्योंकि इसमें हर किसी का भला है.

इस दार्शनिक विचार के साथ अगर आप उन खबरों को पढ़ें, जिन्हें देसी और ग्लोबल मीडिया बार-बार छाप रहा है कि एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश ने आर्थिक विकास दर में भारत को काफी पीछे छोड़ दिया है, या कि भारत को बांग्लादेश से तरक्की करने का तरीका सीखना चाहिए या जब विश्व बैंक के हवाले से ये खबर छापी जाए कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश 2020 तक भारत को पीछे छोड़ देगा, तो हमारी यानी भारत की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए? या जब ये रिपोर्ट आती है कि मानव विकास के मापदंडों खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में बांग्लादेश ने भारत को पीछे छोड़ दिया है और बांग्लादेश का एक औसत आदमी 72 साल जीता है, जबकि भारत में ये आयु 68 साल और पाकिस्तान में यही उम्र 66 साल है तो हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए?

बांग्लादेश ने बुरा दौर देखा है

भारत के लोगों के दिमाग में बांग्लादेश की एक खास छवि है, जिसकी जड़ें समकालीन इतिहास में है. बांग्लादेश भारत के बाद बना हुआ राष्ट्र है और इसके बनने की कहानी काफी दर्दनाक है. पाकिस्तान के बांग्ला-भाषी इलाकों में जब अत्याचार बहुत बढ़ गया तो वहां मुक्ति संग्राम छिड़ गया, जिसमें भारत ने सहयोग दिया. बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग और हथियार भारत ने दिए. आखिरकार 1971 में पाकिस्तानी फौज ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश अस्तित्व में आया. ये सब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ. लेकिन इन सब के बीच कई लाख शरणार्थी बांग्लादेश से भारत आ गए.


यह भी पढ़ें: हिंदू नागरिकों ने हिंदू वोटर बनने से इनकार कर दिया


1971 में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह तबाह थी, जिसे संभलने में समय लगा. इसके परिणामस्वरूप शरणार्थियों का भारत आना आगे भी जारी रहा. इस वजह से हमारे दिमाग में बांग्लादेशियों की छवि गरीब, लाचार शरणार्थियों वाली बनी हुई है, जो अकारण भी नहीं है. इसके अलावा बांग्लादेशियों की एक छवि भाजपा ने भी बनाई है. भाजपा का मानना है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मुसलमान शरणार्थी भारत आए हैं और ये सिलसिला जारी है. भाजपा घुसपैठ को मुस्लिम समस्या के रूप में देखती है, इसलिए भाजपा सरकार ने जब नागरिकता संशोधन विधेयक तैयार किया तो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौध, जैन, पारसी, ईसाई मतावलंबियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया. इसमें इस्लाम धर्म का जिक्र नहीं है.

बांग्लादेशी शरणार्थी और बीजेपी की राजनीति   

भाजपा और आरएसएस का ये भी मानना है कि मुस्लिम शरणार्थियों, भाजपा उन्हें घुसपैठिए कहती हैं, के आने से भारत के कई इलाकों में आबादी की धार्मिक संरचना बदल रही है. शिवसेना को लगता है कि अवैध बांग्लादेशियों की वजह से मुंबई में मराठी लोग अल्पसंख्यक हो जाएंगे. लोक मानस में ये धारणा भी है कि ये शरणार्थी भारत पर बोझ हैं और कई तरह के अपराधों में भी ये लिप्त पाए जाते हैं. इनमें से कई धारणाएं सही भी हो सकती हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इसलिए जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बांग्लादेशी शरणार्थियों को घुसपैठिया और दीमक कहते हैं और उनको खदेड़ने की बात करते हैं तो जनता खूब तालियां बजाती हैं. असम में तो कई दशक तक असम आंदोलन इसी मांग को लेकर चला कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकाला जाए.

एनआरसी और बांग्लादेशी शरणार्थी

असम में बने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी एनआरसी का मकसद ऐसे ही लोगों की पहचान करना है, जो 1971 के बाद भारत चले आए और जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने का कोई प्रमाण नहीं है. एनआरसी की फाइनल लिस्ट में असम के 19 लाख लोगों के नाम नहीं हैं. हालांकि भाजपा इस लिस्ट से संतुष्ट नहीं है क्योंकि इस लिस्ट में काफी हिंदू भी शामिल हैं. ये समझ पाना मुश्किल है कि एनआरसी की नागरिकता-विहीन लिस्ट में इतने हिंदू कैसे हैं. क्या इसकी वजह ये हो सकती है कि बांग्लादेश से आने वालों में बड़ी संख्या हिंदू दलितों की है, जो आजादी के समय वहीं रह गए थे. इस बारे में और अध्ययन किए जाने की जरूरत है.


यह भी पढ़ें: असम में कुछ नहीं हासिल हुआ तो देश भर में एनआरसी से क्या हासिल होगा?


गरीब बांग्लादेश से शरणार्थियों के भारत आने का एक कारण ये बताया जात है कि दोनों देशों के लोगों की आर्थिक हैसियत में फर्क है और गरीबी और भुखमरी के कारण बांग्लादेश के गरीब लोग भारत आ जाते हैं.

लेकिन अगर ये तर्क ही खत्म हो जाए कि भारत की आर्थिक स्थिति बांग्लादेश से बेहतर है, तो भी क्या बांग्लादेश से शरणार्थियों का भारत आना जारी रहेगा? अगर भारत की तुलना में बांग्लादेश में रोजगार के मौके बेहतर हों और वहां प्रति व्यक्ति आय भी भारत से बेहतर हो, तो भी क्या कोई बांग्लादेशी नागरिक अवैध तरीके से सीमा लांघकर भारत में आ कर घुसपैठिये की तरह जीना चाहेगा? भारत की तुलना में अगर बांग्लादेश में स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थितियां बेहतर हों और स्त्री-पुरुष असमानता भी कम हो, तो भी क्या भारत के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या बनी रहेगी? इस बात को इस तरह से समझें कि क्या अमेरिका के लोग घुसपैठ करके मेक्सिको जाना चाहेंगे?

बांग्लादेश की तरक्की में है घुसपैठ की समस्या का समाधान

ऐसा लगता है कि हमें बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति पर नजर बनाए रखनी चाहिए. हो सकता है कि भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या का समाधान इसी रास्ते से होने वाला हो!  अमित शाह को ये कामना करनी चाहिए कि बांग्लादेश खूब तेजी से तरक्की करे. वहां लोगों को रोजगार के खूब मौके मिलें. वहां स्वास्थ्य और शिक्षा की बेहतरीन सुविधाएं हों. उसके बाद किसी बांग्लादेशी को भारत आने की जरूरत ही नहीं होगी. वह आएगा तो वीजा लेकर, कानूनी तरीके से. या तो वह वर्क परमिट लेकर यहां काम करेगा और लौट जाएगा या फिर ताजमहल, कुतुब मीनार और हवा महल देखने आएगा और अपनी सेल्फी खींच कर लौट जाएगा.

साथ ही हमें ये कोशिश करनी चाहिए कि भारत वर्तमान आर्थिक मंदी से छुटकारा पाए, तेज गति से विकास करे, रोजगार के ज्यादा से ज्यादा मौके सृजित करे और स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विकसित देशों की बराबरी करने की कोशिश करे. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर बांग्लादेशी भारत आ रहे हैं तो भारत के भी तीन करोड़ से ज्यादा लोग विदेशों में रह रहे हैं. उनमें से 44 लाख तो सिर्फ अमेरिका में हैं. वे सब अमेरिका इसलिए गए हैं क्योंकि वहां ज्यादा पैसा है, ज्यादा सुविधाएं हैं. दुनिया में आप्रवासन यानी एक देश से दूसरे देश में जाने और कई बार वहीं बस जाने की कहानियां इसी तरह चलती हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है.)

share & View comments