किसी देश में लोकतंत्र की गुणवत्ता सीधे तौर पर उसके मीडिया को मिलने वाली स्वतंत्रता पर निर्भर करती है. इस पैमाने से अगस्त में हुए विद्रोह के समय बांग्लादेश में लोकतंत्र पहले से ही आईसीयू में था. 2009 से 2024 तक, यह विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 121 से 165 पर खिसक गया, पिछले पांच साल में ही 15 पायदान नीचे गिर गया. 2024 की रैंकिंग इस साल की शुरुआत में घोषित की गई थी, 5 अगस्त को शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किए जाने से बहुत पहले और तब से, मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा मीडिया पर की गई कार्रवाई इतनी कठोर रही है कि उस देश में चौथा स्तंभ वेंटिलेटर के लिए नियत लगता है. इसके ठीक होने की संभावनाओं पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लटका हुआ है.
अगस्त में प्रधानमंत्री हसीना को पद से हटाए जाने के तुरंत बाद, उनके समर्थक माने जाने वाले कई बांग्लादेशी पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, कई जेल में बंद हो गए — जिसमें एक प्रमुख टेलीविजन चैनल की महिला एंकर भी शामिल थी जिन्हें एककेटर या 71 कहा जाता है, उस वर्ष की याद में जब देश ने पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता छीनी थी. हालांकि, वह देश में चल रहे विद्रोह के चरम दिन थे, लेकिन अब, तीन महीने बाद, मीडिया पर कार्रवाई निर्मम है. पिछले 15 दिनों में अंतरिम सरकार के जन सूचना विभाग ने 167 पत्रकारों की प्रेस मान्यता रद्द कर दी है. इनमें से कई पत्रकार अनुभवी हैं. कुछ तो अपने-अपने प्रकाशनों या टेलीविजन चैनलों के संपादक भी हैं.
रिकॉर्ड के लिए बता दें कि एक पत्रकार की मान्यता डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन के जैसी नहीं है. रजिस्ट्रेशन न होने का मतलब है कि डॉक्टर मरीज का इलाज नहीं कर सकता. मान्यता न होने का मतलब यह नहीं है कि पत्रकार लिख या रिपोर्ट नहीं कर सकता, लेकिन मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकार के शीर्ष अधिकारियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस सहित शीर्ष सरकारी कार्यक्रमों तक पहुंच मिलती है.
पत्रकारों के लिए पहुंच लगभग सब कुछ है. इसलिए अंतरिम सरकार की कार्रवाई की दुनियाभर में पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करने वाले वैश्विक संगठनों जैसे कि रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति ने निंदा की. फिर आखिरकार मंगलवार को डेली स्टार के महफूज़ अनम और बोनिक बार्टा के दीवान हनीफ महमूद जैसे दिग्गजों के नेतृत्व में बांग्लादेश की संपादक परिषद ने भी पत्रकारों की सामूहिक बर्खास्तगी की कड़ी निंदा की.
मान्यता कार्ड रद्द करने के फैसले को वापस लेने के लिए सरकार से की गई अपील में एडिटर्स काउंसिल ने कहा कि यह कार्रवाई प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा है और लोकतांत्रिक माहौल बनाने में बाधा है जो “जुलाई-अगस्त” के आंदोलन की भावना से एकदम अलग है और पिछली सत्तावादी सरकारों की अलोकतांत्रिक प्रथाओं की पुनरावृत्ति है.
यह भी पढ़ें: बांग्लादेश में अशांति अभी समाप्त नहीं हुई, यह भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं
‘हमारे साथ या हमारे खिलाफ’
मीडिया पर कार्रवाई के बीच उम्मीद की किरण, सात नवंबर को अंतरिम सरकार ने साइबर सुरक्षा अधिनियम को खत्म करने के “सिद्धांत” के रूप में फैसले की घोषणा की, जिसका इस्तेमाल अवामी लीग सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता और राजनीतिक असहमति को रोकने के लिए किया था. सीएसए को पिछले साल सितंबर में ड्रैकोनियन डिजिटल सुरक्षा अधिनियम 2018 की जगह लागू किया गया था. इसे खत्म करने की अभी तक कोई स्पष्ट समय सीमा नहीं है, लेकिन जब साइबर अपराध से लोगों की सुरक्षा के लिए एक नया कानून बनाया जाएगा, तो मीडिया पर्यवेक्षकों को उम्मीद है कि मीडिया की स्वतंत्रता को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा.
इस बीच, अंतरिम सरकार ने मीडिया से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए एक मास मीडिया रिफॉर्म्स कमीशन (एमएमआरसी) का गठन किया है. 17 अक्टूबर को लंदन में रहने वाले स्तंभकार और कथित तौर पर बीएनपी समर्थक के रूप में जाने जाने वाले कमाल अहमद को आयोग का प्रमुख नियुक्त किया गया, लेकिन उसके बाद से इसके जनादेश के बारे में बहुत कम सुना गया है.
अंतरिम सरकार के सूचना और प्रसारण सलाहकार नाहिद इस्लाम ने सितंबर में आयोग के गठन की घोषणा की थी. सात अक्टूबर को ढाका में नेशनल प्रेस क्लब में आयोजित एक सेमिनार में दिए गए उनके बयान उल्लेखनीय हैं. इसका शीर्षक था ‘मीडिया में सुधार: कैसे? क्यों?’.
उनकी शिकायत थी कि “इस क्रांति में पत्रकारों का कोई संस्थागत प्रतिरोध नहीं था”. उन्होंने दावा किया कि भले ही पत्रकार खबरें इकट्ठा कर रहे थे, लेकिन कोई भी ऐसा आउटलेट नहीं था जो उन्हें छाप सके.
मीडिया के लिए लंबा और छोटा संदेश यह है कि आप या तो हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ.
कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू में एक लेख में यह लिखा गया है कि “क्या बांग्लादेश का मीडिया, जो पैसे के लिए व्यापारिक घरानों और लाइसेंस और विज्ञापनों के लिए सरकार पर निर्भर है, कभी सत्ता में बैठे लोगों के मुखपत्र के अलावा कुछ और हो सकता है?”
यह सवाल थोड़ा बदला हुआ और संक्षिप्त है और यह ऐसा सवाल है जिसे बांग्लादेश का पश्चिमी पड़ोसी भी खुद से पूछ सकता है.
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: भारतीय साड़ी को लेकर ‘इंडिया आउट’ अभियान से जूझ रहीं शेख हसीना, पर क्या उन्होंने इसे और भी बदतर बना दिया है?