scorecardresearch
Wednesday, 6 November, 2024
होममत-विमतबांग्लादेश में अशांति अभी समाप्त नहीं हुई, यह भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं

बांग्लादेश में अशांति अभी समाप्त नहीं हुई, यह भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं

जिन लोगों ने शेख हसीना को महज़ 80 दिन पहले सत्ता से बेदखल किया था, उनके लिए शेख हसीना पर राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन का बयान आखिरी बात थी जिसे वह सुनना चाहते थे.

Text Size:

इस हफ्ते की शुरुआत में ढाका 5 अगस्त की घटना के दोहराए जाने की कगार पर लग रहा था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन के आधिकारिक निवास बंगभवन के बाहर भारी भीड़ जमा थी जो उनके इस्तीफे की मांग कर रही थी. मंगलवार और बुधवार को कई तनावपूर्ण घंटों तक ऐसा लग रहा था कि वह राष्ट्रपति के घर में घुसकर तोड़फोड़ करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के घर गणभवन में उस दुर्भाग्यपूर्ण अगस्त की दोपहर को किया था, जब वह देश छोड़कर भाग गई थीं.

राष्ट्रपति के खिलाफ इतना गुस्सा क्यों? क्योंकि उन्होंने एक अखबार से कहा था कि उनके पास इस बात का कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं कि शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और उनके पास उनका त्यागपत्र भी नहीं है. यह बयान हसीना के बेटे सजीब वाजेद द्वारा 9 अगस्त को रॉयटर्स को दिए गए बयान से मिलता-जुलता है: “मेरी मां ने कभी आधिकारिक तौर पर इस्तीफा नहीं दिया. उन्हें समय ही नहीं मिला…जहां तक ​​संविधान की बात है, वे अभी भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं.”

जिन लोगों ने शेख हसीना को महज़ 80 दिन पहले ही सत्ता से बेदखल किया था, उनके लिए राष्ट्रपति का बयान आखिरी बात थी जिसे वह सुनना चाहते थे. बंगभवन में भीड़ को तितर-बितर करने और व्यवस्था बहाल करने के लिए काफी बल और समझाइश की ज़रूरत पड़ी. खबरें बताती हैं कि दो लोगों को गोली मारी गई, हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि गोलियां किसने चलाईं.

मंगलवार को जब बंगभवन का नाटक चल रहा था, तब बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने ढाका में राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में एक सभा को बताया कि भारत बांग्लादेश के साथ “स्थिर, सकारात्मक और रचनात्मक” संबंध बनाए रखेगा और ऐसा होना भी चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हमारा पड़ोसी देश एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रहा है और भारत को इसके परिणामों से बचने के लिए कदम उठाने चाहिए.


यह भी पढ़ें: ममता का बुलडोज़र वाला दांव उल्टा पड़ सकता है, कोलकाता की समस्या खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर है न कि हॉकर्स


आतंक के संक्षिप्त नाम: JMB, HuJI-B, HuT

भारत, खासकर पूर्वी राज्यों को जिस एक परिणाम से निपटना पड़ सकता है, वह है घुसपैठ. गरीबी और धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण 4000 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा पर अवैध प्रवासियों का प्रवेश — पहले भी और आज भी — कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन अब, ढाका में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों के उदय के साथ, आतंकी समूहों द्वारा घुसपैठ की संभावना एक स्पष्ट और मौजूदा खतरा है.

पश्चिम बंगाल में दो अक्टूबर 2014 को खगरागर में हुए विस्फोट को शायद ही कोई भूला हो, जिसके कारण एनएसए अजीत डोभाल को बर्धमान में जल्दबाजी में आना पड़ा था. इस विस्फोट में दो लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) द्वारा आतंकी गतिविधियों का एक नया दौर शुरू हो गया था, जिसके बारे में बाद में पता चला कि इसने बंगाल में आतंकी सेल फैला दिए हैं. एक और आतंकी संक्षिप्त नाम जो उस समय बंगाल में घर-घर में जाना जाने लगा था, वह था हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी बांग्लादेश (हुजी-बी).

इस सूची में नया नाम हिज्ब-उत-तहरीर (HuT) का है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी आंदोलन है जो दुनिया भर के मुसलमानों को खिलाफत के तहत एकजुट करने की कोशिश कर रहा है. 1953 में यरुशलम में स्थापित, इसकी कथित तौर पर 2019 तक 50 देशों में मौजूदगी थी, लेकिन लगभग 20 में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था. ब्रिटेन ने इस साल जनवरी में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया. पाकिस्तान ने 2003 में और बांग्लादेश ने 2009 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था.

भारत ने दो सप्ताह पहले ही HuT पर प्रतिबंध लगाया था, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 10 अक्टूबर को एक्स पर पोस्ट किया था, “आतंकवाद के प्रति नरेंद्र मोदी जी की शून्य सहिष्णुता की नीति का अनुसरण करते हुए, MHA ने आज हिज्ब-उत-तहरीर को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया है.”

प्रतिबंध लगाने के पीछे क्या कारण था, यह पता नहीं चल पाया है, लेकिन ऐसा ढाका में कॉलेज के छात्रों द्वारा ISIS के समान बैनर लेकर मार्च निकालने की रिपोर्ट से जुड़ा हो सकता है. बांग्लादेश के पुलिस प्रमुख, मोहम्मद मैनुल इस्लाम ने कथित तौर पर इन भड़काऊ मार्चों के लिए HuT को दोषी ठहराया और कहा कि 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. सितंबर में HuT ने बांग्लादेश की राजधानी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी जिसमें संगठन पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की गई थी. हालांकि, प्रतिबंध अभी तक नहीं हटाया गया है.


यह भी पढ़ें: भाजपा बंगाल को फिर से विभाजित करना चाहती है, यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हिंदू बंगाल का अलग रूप है


पाकिस्तान से आयात में आसानी

हालांकि, बांग्लादेश में पाकिस्तान से आयातित सभी वस्तुओं की भौतिक जांच की ज़रूरत वाली पुरानी प्रथा को हटा दिया गया है. अक्टूबर की शुरुआत में नेशनल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (NRB) ने सीमा शुल्क अधिकारियों को लिखा कि पाकिस्तान से आने वाले शिपमेंट की भौतिक जांच अब ज़रूरी नहीं है — यह फैसला कथित तौर पर न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच हाल ही में हुई बैठक के बाद लिया गया. यह आवश्यकता शेख हसीना के प्रधानमंत्रित्व काल में लागू की गई थी, जब दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक कारणों से संबंध तनावपूर्ण थे.

पाकिस्तान से आयातित वस्तुओं में अन्य नियमित वस्तुओं के अलावा फल और शिशु आहार शामिल हैं, लेकिन भारत में बांग्लादेश पर नज़र रखने वालों का ध्यान पाकिस्तान से बांग्लादेश में हथियारों और गोला-बारूद की शिपमेंट में वृद्धि पर गया है. कम से कम एक लेख के अनुसार, “भारत सरकार के अधिकारियों को पता चला है कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से रक्षा सामग्री की एक बड़ी खेप मिलने वाली है, जिसमें 40,000 राउंड गोला-बारूद, 2000 मात्रा में टैंक गोला-बारूद, मोम जैसी स्थिरता वाला 40 टन आरडीएक्स विस्फोटक और 2,900 उच्च तीव्रता वाले प्रोजेक्टाइल शामिल हैं. यह पिछले साल के ऑर्डर से काफी अधिक है, जिसमें 12,000 राउंड गोला-बारूद शामिल था.”

पाकिस्तान से बांग्लादेश को हथियारों की खेप भेजे जाने की खबरें अगस्त में आईं और 1 अक्टूबर को ढाका द्वारा भौतिक निरीक्षण समाप्त करने की घोषणा की गई, जिससे भारतीय पर्यवेक्षकों में कुछ चिंता पैदा हो गई. कौन जानता है कि पाकिस्तान बांग्लादेश को और क्या भेज सकता है जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो सकता है?

संवैधानिक राष्ट्रपति

इन परिस्थितियों में बांग्लादेश के राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों के अलावा, राष्ट्रपति शाहबुद्दीन शेख हसीना द्वारा की गई एकमात्र अन्य महत्वपूर्ण संवैधानिक नियुक्ति है. हालांकि, यह एक औपचारिक पद है, लेकिन उनके जाने से बांग्लादेश का 1971 में अपने गठन के बाद से ही एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व समाप्त हो सकता है. उन्हें हटाने की मांग करने वाले छात्र समूह — भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन — ने बांग्लादेश के 1972 के संविधान को खत्म करने की भी मांग की है. भारत के लिए जिसने राष्ट्र के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ढाका में माहौल अच्छा नहीं है.

(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: CM ममता का प्रदर्शनकारी डॉक्टरों के साथ टकराव एक सबक है — अब वे एक असफल मुख्यमंत्री हैं


 

share & View comments