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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतबाबरी फैसला बीजेपी के लिए सोने की मुर्ग़ी है. मथुरा, काशी से भारत का इस्लामिक इतिहास मिटाने के संकेत

बाबरी फैसला बीजेपी के लिए सोने की मुर्ग़ी है. मथुरा, काशी से भारत का इस्लामिक इतिहास मिटाने के संकेत

हिंदुत्व के दावे में मस्जिदों का विध्वंस, और मंदिरों को फिर से हासिल करना शामिल है. लेकिन इसका सिर्फ एक ही धर्म है- ताक़त.

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तीन सौ इक्यावन गवाह, 600 दस्तावेज़, बहुत से वीडियो कैसेट्स और अख़बारों की ख़बरें, बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियुक्तों को- जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास और शिव सेना लीडर सतीश प्रधान वग़ैरह शामिल थे- दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं थीं.

प्रतीकवाद की राजनीति में ऊंची जगह होती है, ख़ासकर भारत में. 28 साल पहले क्या हुआ था, वो तय करेगा कि अब भविष्य में क्या होगा. जैसा कि कहते हैं कारोबार में पहला मिलियन कमाना सबसे कठिन होता है. लेकिन एक बार आप वहां पहुंच गए, तो चीज़ें आसान हो जाती हैं- गुणक प्रभाव काम करने लगता है. अयोध्या और बाबरी तीन दशक पहले किए गए राजनीतिक निवेश थे. राजनीतिक निवेशकों के लिए अब समय आ गया है, अपना ब्याज कमाने और ताज़ा निवेश करने का- बुनियादी रूप से विस्तार का काम शुरू कर दीजिए, कारोबार को चालू रखने के लिए, उसमें ताज़ा ईंधन डालिए. और चूंकि किसी ने बाबरी को नहीं गिराया, इसलिए ताज़ा निवेश का रास्ता- काशी और मथुरा- साफ नज़र आता है. दो से 282, और 303- ऐसे बढ़ता है ये.


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यहां से ये आसान हो जाता है

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का ख़ात्मा, एक नई शुरूआत है- हिंदुत्व के प्रचारकों की बनाई एक मनहूस योजना की.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विनय कटियार, जो बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियुक्त भी थे, ने कहा है कि पार्टी का एजेंडा, काशी से ज्ञानवापी मस्जिद, और मथुरा से शाही ईदगाह को हटाना है. बीजेपी को सोने के अंडे देने वाली मुर्ग़ी मिल गई है- मस्जिदें तोड़कर मंदिरों को फिर से क़ब्ज़ाना- ताकि इस देश के हिंदू बहुसंख्यक, एक भावनात्मक मुद्दे पर उन्हें सत्ता में वापस लाते रहें, वो भावनात्मक मुद्दा जो आस्था और मुस्लिम आक्रमणकारियों से बदले की बुनियाद पर खड़ा है, जो अब ख़ामोशी से इतिहास की किताबों में सोए हैं.

इस कथानक को बहुत एहतियात से बुना गया है. चुने गए लक्ष्य बड़ी बारीकी से उत्तर भारत में भगवानों के अनुक्रम का पालन करते हैं, जो बीजेपी का प्रमुख चुनावी परिदृश्य है. ज़ाहिर है ये अनुक्रम उनकी लोकप्रियता पर आधारित है. राम, कृष्ण, शिव.

अगर सुप्रीम कोर्ट की मान्यता के प्रसंग में देखा जाए- कि मस्जिद का विध्वंस ‘कानून के शासन का घोर उल्लंघन’ था- तो 32 अभियुक्तों की रिहाई ने, न केवल विध्वंस को ‘वैध’ क़रार दे दिया है, बल्कि एक चेहरा विहीन भीड़ को भी सही साबित कर दिया, जो अब कुछ भी करके निकल सकती है.

1992, एक आदर्श

साल 1992 कुछ सबसे ख़ूनी दंगों का ही गवाह नहीं रहा (2,000 लोग मारे गए), जो भारत ने आज़ादी के बाद से देखे थे. ये वो साल भी था जिसमें हिंदू समुदाय के भीतर, पीड़ित मानसिकता ने घर करना शुरू किया, जो मुसलमान अल्पसंख्यकों के हाथों गलत सलूक का शिकार हुआ था, पहले मुग़लों द्वारा और अब कांग्रेस द्वारा, जिसने उनके तुष्टिकरण के लिए सब कुछ किया.

तीन दशक पहले मन में बिठाई गई ये पीड़ित मानसिकता, अब बहुसंख्यक समुदाय के बहुत से वर्गों में, श्रेष्ठता की भावना में बदल गई है, जो अब अपनी पहचान को जताना चाहते हैं. 2019 का अयोध्या फैसला, और अब बाबरी केस में सभी अभियुक्तों का छूटना, इस प्रोजेक्ट के लिए ईंधन बनकर आए हैं. हिंदुत्व के लिए उसके दावे का प्रतीक, मस्जिदों का विध्वंस और मंदिरों को ‘फिर से हासिल करना’ है. लेकिन इसका धर्म बस एक ही है- ताक़त.


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राम के बाद कृष्ण

बाल देवता भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दायर जनहित याचिका में, मथुरा से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है, ये दावा करते हुए कि ये मस्जिद, भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनी है. 1989 में राम लला विराजमान की ओर से, एक दीवानी मुक़दमा दायर किया गया था. हम सब जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ.

अब, जब बाबरी विध्वंस मामले में, सभी अभियुक्त बरी कर दिए गए हैं, तो संभव है कि एक और अयोध्या दोहराने की खुली छूट मिल जाए. अगस्त में, सांप्रदायिक और भड़काऊ भाषण देने के लिए, हाल ही में गठित श्री कृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष, आचार्य देव मुरारी बापू के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार बापू ने कहा था, ‘कृष्ण जन्मभूमि से लगी मस्जिद को गिरा दिया जाएगा, और जन्मभूमि स्थल को, उस जगह तक बढ़ा दिया जाएगा’.

ऐसा लगता है कि 1992 दोहराया जा रहा है. उस समय, जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया, तो सरकार ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर, भारी पुलिस बल तैनात किया था, ताकि अयोध्या न दोहराया जाए. आज वो मस्जिद उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के अंतर्गत आती है- इस क़ानून में किसी भी उपासना स्थल के धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध है. जो देखना चाहते हैं, उनके लिए दीवार पर लिखावट साफ है. बीजेपी का बदनाम नारा- अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाक़ी है- आज भी कानों में गूंजता है.

तब बाबर, अब औरंगज़ेब

मंदिर मस्जिद केवल प्रतीक हैं. ये सब भारत के इस्लामिक इतिहास को कमज़ोर करने के एक भव्य प्रयास का हिस्सा है. विश्व पर्यटन दिवस के मौक़े पर, उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक हालिया अख़बारी विज्ञापन में, इस भव्य प्रयास का एक छोटा सा सबूत नज़र आता है. विज्ञापन में, ‘ज़रूर देखने’ के लिए, राज्य की 20 जगहों की सूची दी गई थी. सूची में हिंदू और बौद्ध स्थलों का उल्लेख था, लेकिन ताजमहल को छोड़ दिया गया. वो स्मारक जिसने 2018-19 में, 1.3 करोड़ डॉलर का राजस्व कमाया, और जहां हर साल औसतन 60 लाख से अधिक सैलानी आते हैं. जब योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला, तो उन्होंने बड़े स्पष्ट रूप से, 2017 की अधिकारिक टूरिज़म बुकलेट से, ताज को हटवा दिया था.

उस वक़्त अगर बाबर था, तो नफ़रत के निशाने पर अब औरंगज़ेब है. मंशा साफ है. जो स्मारक भारत में मुसलमान शासकों की मौजूदगी की याद दिलाते हैं, उन्हें तबाह कर देना चाहिए. संदेश भी बड़ा है- मुसलमानों को शैतान की तरह पेश करना. आप उन्हें आतंकवादी कह सकते हैं, राष्ट्र-विरोधी कह सकते हैं, हमलावर या घुसपैठिए कह सकते हैं, इस्लाम और भारतीयों को एक दूसरे के अनुपयुक्त देखा जा रहा है.

हालांकि मुग़लों को आज के मुसलमानों से नहीं मिलाया जा सकता, लेकिन कृष्ण जन्मभूमि पर दायर पीआईएल दिखाती है, कि कैसे दोनों को अनिवार्य रूप से, एक ही समझा जाता है. मुक़दमे में आरोप लगाया गया, ‘ये एक हक़ीक़त और इतिहास है कि औरंगज़ेब ने, 31.07.1658 से 03.03.1707 ईसवीं तक, देश पर शासन किया, और इस्लाम का कट्टर अनुयायी होने के नाते, उसने बड़ी संख्या में हिंदू धर्म स्थलों, और मंदिरों को तोड़ने के आदेश जारी किए, जिनमें मथुरा के कटरा केशव देव में, भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर, 1669-70 में खड़ा मंदिर भी शामिल था’.

‘इस्लाम के कट्टर अनुयायी’ की अभिव्यक्ति, उन लोगों की मानसिकता के बारे में बहुत कुछ कहती है, जो मंदिरों को फिर से लेना चाह रहे हैं.

काशी और मथुरा अनिवार्य रूप से अयोध्या की पुनरावृति में तब्दील हो जाएंगे. देखना ये है कि क्या ये दावेदारी, भारत की अनेकता को पूरी तरह तबाह करने में, कामयाब होती है.


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ऑथर एक राजनीतिक पर्यवेक्षक और लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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