scorecardresearch
Wednesday, 18 September, 2024
होममत-विमतअरविंद केजरीवाल की ज़मानत उन्हें निर्दोष नहीं बनाती, नैतिक और राजनीतिक सवाल अब भी बरकरार

अरविंद केजरीवाल की ज़मानत उन्हें निर्दोष नहीं बनाती, नैतिक और राजनीतिक सवाल अब भी बरकरार

यहां असलियत यह है कि केजरीवाल की ज़मानत उतनी ही अस्थायी है, जितना उसके इर्द-गिर्द का जश्न.

Text Size:

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ज़मानत हासिल करने की कई असफल कोशिशों के बाद आखिरकार तिहाड़ जेल से बाहर आ गए हैं. दिल्ली शराब घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए 21 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए गए केजरीवाल की लंबी जेल की सज़ा ठीक उसी समय समाप्त हुई, जब उनकी पार्टी ने एक भव्य जश्न मनाया.

अब, केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि उन्हें आगामी दिल्ली चुनावों में “लोगों की अदालत से न्याय” मिलेगा. उन्होंने अपने स्थान पर आतिशी को AAP की कमान सौंपी है. कोई सोच सकता है कि क्या यह समय संयोगवश है, खासकर हरियाणा चुनावों के मद्देनज़र.

केजरीवाल की ज़मानत उन्हें निर्दोष नहीं बनाती; नैतिक और राजनीतिक सवाल अब भी वैसे ही बने हुए हैं.

यह आप को कुछ समय के लिए राहत दे सकता है, लेकिन यह उन भ्रष्टाचार के दागों को धोने में कोई मदद नहीं करता . शराब घोटाले के अलावा, केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार पर कई अन्य संदिग्ध सौदों में शामिल होने का आरोप लगाया गया और यह सूची लंबी और परेशान करने वाली है.

2,875 करोड़ रुपये के शराब घोटाले की साजिश किसने रची? 78,000 करोड़ रुपये के जल बोर्ड की आपदा को किसने अंजाम दिया? 5,000 करोड़ रुपये के क्लासरूम निर्माण की विफलता या 1,000 करोड़ रुपये के नकली दवा विवाद के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? और आइए 4,000 करोड़ रुपये के एक्स-रे घोटाले, 2,000 करोड़ रुपये के पैनिक बटन घोटाले, 1,000 करोड़ रुपये की बस खरीद में धांधली या दिल्ली के सीएम के आवास ‘शीश महल’ के 125 करोड़ रुपये के भव्य नवीनीकरण को क्या नज़रअंदाज़ करा जाना चाहिए । भ्रष्टाचार के इतने सारे आरोपों के साथ,और केजरीवाल का ज़मानत का जश्न ! AAP का जश्न और केजरीवाल का ‘इस्तीफा’ शासन और जवाबदेही के सवालों से ध्यान हटाने के लिए एक धुंआधार प्रयास प्रतीत होता है.

ऐसा प्रतीत होता है कि इन गंभीर आरोपों पर बात करने की बजाय केजरीवाल अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए उन्हें बस दबा देना चाहते हैं.

ज़मानत का मतलब निर्दोष होना नहीं

क्या केजरीवाल की ज़मानत का मतलब यह है कि उन्हें उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त कर दिया गया है? ऐसा लगता है कि इस घटनाक्रम का जश्न मनाने वालों में कुछ भ्रम हो सकता है. ज़मानत बरी होने या निर्दोष होने का संकेत नहीं है; यह केवल एक प्रक्रियात्मक कदम है जो किसी आरोपी को मुकदमे के ट्रायल के दौरान मुक्त रहने की अनुमति देता है. ज़मानत का जश्न मनाना मानो निर्दोष होने का फैसला हो, इस तथ्य को नज़रअंदाज करना है कि कानूनी प्रक्रिया जारी है और आरोप अभी भी जांच के दायरे में हैं. ज़मानत और बरी होने के बीच का अंतर सभी को स्पष्ट होना चाहिए क्योंकि बाद के लिए पूरी न्यायिक जांच और फैसले की ज़रूरत पड़ती है.

सबसे पहले, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह ज़मानत का फैसला केजरीवाल की निर्दोषता का सीधा-सीधा सबूत नहीं है. ईडी द्वारा उसी मामले में उन्हें ज़मानत दिए जाने के बाद सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर न्यायाधीश पूरी तरह सहमत नहीं हो सके. न्यायाधीश ने गिरफ्तारी को बरकरार रखा, जबकि दूसरे ने कानूनी कार्यवाही की जटिलता को उजागर करते हुए इस पर सवाल उठाया.

दूसरा, इस ज़मानत के साथ कड़ी शर्तें भी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय जाने से विशेष रूप से रोक दिया है, जो आरोपों की गंभीरता और उनके प्रभाव के बारे में चल रही चिंताओं को दर्शाता है. इसके अलावा, उन्हें मामले की योग्यता पर कोई भी सार्वजनिक टिप्पणी करने से प्रतिबंधित किया गया है, जो इस अवधि के दौरान उन पर लगाई गई सीमाओं को और भी रेखांकित करता है.

सलाहकारों के पीछे रहते हुए भी अरविंद केजरीवाल एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री थे जिनकी महत्वाकांक्षा और नियंत्रण ने उन्हें पार्टी के किसी सहयोगी को नेतृत्व की भूमिका सौंपने से रोका. क्या दिल्ली के लोगों का नेतृत्व किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा नहीं किया जाना चाहिए जो उनके मुद्दों से सक्रिय रूप से जुड़ने में सक्षम हो, न कि किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिस पर गंभीर आरोप लगे हों?

यहां असलियत यह है कि केजरीवाल की ज़मानत उतनी ही अस्थायी है जितनी कि उसके आसपास के जश्न. वे अभी तक आरोपों से मुक्त नहीं हुए हैं और उन्हें कानूनी कार्यवाही का सामना करना होगा जो उन्हें फिर से जेल ले जाएगी. जैसा कि कहावत है, तेंदुआ अपने रंग नहीं बदलता. यह कहावत यहां विशेष रूप से प्रासंगिक लगती है, यह सुझाव देते हुए कि केजरीवाल की मौलिक प्रकृति और शासन के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव की संभावना नहीं है, भले ही उनकी अस्थायी रिहाई सामान्यता का भ्रम पैदा कर सकती है.


यह भी पढ़ें: अरविंद केजरीवाल जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें हर पार्टी दोषी है, इसे अलग करके न देखें


जवाबदेही कहां है?

जब तक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आरोपों का निर्णायक समाधान नहीं हो जाता, तब तक पारदर्शिता, जवाबदेही और वास्तविक नेतृत्व के आवश्यक गुणों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. ज़मानत, एक प्रक्रियात्मक अधिकार होते हुए भी, उन गंभीर आरोपों में से किसी एक को दोषमुक्त नहीं करती है, जिनके कारण इसकी ज़रूरत पड़ी. केजरीवाल की अस्थायी रिहाई, महत्वपूर्ण शर्तों से विवश, को अंतिम फैसला या क्लीन स्लेट के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए.

इस मोड़ पर पारदर्शिता ज़रूरी है. जनता को चल रही कानूनी कार्यवाही और उनके शासन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में स्पष्ट समझ होनी चाहिए. ज़मानत का कोई भी जश्न आरोपों के बारे में खुलेपन की ज़रूरत और उन्हें संबोधित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों को अस्पष्ट नहीं करना चाहिए. जवाबदेही लोकतांत्रिक नेतृत्व की आधारशिला है. केजरीवाल को किसी भी सार्वजनिक अधिकारी की तरह, उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. इसका मतलब न केवल कानूनी आवश्यकताओं का पालन करना है, बल्कि नैतिक आचरण और जिम्मेदार शासन के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करना भी है. कानून की अदालत प्रक्रियात्मक आधार पर ज़मानत दे सकती है, लेकिन जनता की अदालत में फैसले का इंतज़ार है.

इसके अलावा, वास्तविक और अडिग नेतृत्व की आवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा सकता. दिल्ली के लोग ऐसे नेताओं के हकदार हैं जो अपनी जिम्मेदारियों में सक्रिय रूप से लगे हों और ऐसे विवादों में न उलझे हों जो प्रभावी ढंग से शासन करने की उनकी क्षमता को बाधित करते हों. केजरीवाल की ज़मानत की अस्थायी प्रकृति को याद दिलाना चाहिए कि सच्चे नेतृत्व में क्षणिक स्वतंत्रता से कहीं अधिक शामिल है — इसके लिए निरंतर उपस्थिति, ईमानदारी और गंभीर आरोपों की छाया के बिना शासन की जटिलताओं को नेविगेट करने की क्षमता की ज़रूरत होती है.

मीनाक्षी लेखी भाजपा की नैत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मोदी 3.0 के 100 दिनों का रिपोर्ट कार्ड — मणिपुर CM के इस्तीफे की संभावना को अमित शाह ने किया खारिज


 

share & View comments