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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतअनुच्छेद 370 से सीएए तक: 2019 के घरेलू घटनाक्रमों का असर 2020 में मोदी सरकार की विदेश नीति पर पड़ेगा

अनुच्छेद 370 से सीएए तक: 2019 के घरेलू घटनाक्रमों का असर 2020 में मोदी सरकार की विदेश नीति पर पड़ेगा

सीएए पर विरोध प्रदर्शनों को, जो नितांत घरेलू मामला है, दुनिया में भारत की छवि धूमिल करने और 2019 में हासिल उपलब्धियों को गंवाने की वजह नहीं बनने दिया जाना चाहिए.

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आम परिस्थिति में, किसी सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों पर दूसरे देशों की प्रतिक्रिया सामान्य किस्म की होती है: अपने नागरिकों को उस देश की यात्रा नहीं करने, या यात्रा करनी ही पड़े तो फिर अतिरिक्त सतर्कता बरतने की सलाह देना. लेकिन नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर हो रहे व्यापक विरोध प्रदर्शनों का उल्लेख करते हुए जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे की गुवाहाटी, असम यात्रा का रद्द किया जाना कोई सामान्य प्रतिक्रिया नहीं है.

भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक विकास में जापान की भागीदारी को संस्थागत रूप देने और मोदी सरकार की ‘लुक ईस्ट एक्ट ईस्ट’ नीति की महत्वपूर्ण कड़ी होने के साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के खिलाफ एक द्विपक्षीय प्रयास भी है, हालांकि ना तो भारत और ना ही जापान इस बात को स्वीकार करना चाहेगा.

पूर्वनिर्धारित भारत दौरे को रद्द करने वाले एक और गणमान्य विदेशी व्यक्ति थे बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन जिन्होंने इसकी एक वजह सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को बताया. हालांकि ये संभव है कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मुद्दे पर भारत का बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों को एक ही पेज पर रखना शेख हसीना सरकार को पसंद नहीं आया हो.

अमेरिका सरकार, ब्रिटेन का विदेश और राष्ट्रमंडल विभाग तथा कई अन्य देशों ने भी भारत की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए विशेष निर्देश जारी किए हैं और/या सरकारी दौरों को रद्द किया है.

आमतौर पर घरेलू नीतियों का विदेश नीति निर्माण पर गंभीर असर नहीं पड़ता है. लेकिन 2019 में मोदी सरकार के कई घरेलू फैसले ऐसे थे जिनका भारत की विदेश नीति के संचालन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है.

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भारत का संदेश

वर्ष 2019 के शुरुआती काल में ही 14 फरवरी के पुलवामा आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में भारतीय वायुसेना के विमानों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के खैबर पख्तूनख्वा स्थित बालाकोट आतंकवादी ठिकाने को निशाना बनाया था. इसके बाद भारत ने अपने राजनयिकों को विभिन्न देशों में भेजा और भारत के सीमा पार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करने के मुद्दे पर सबको भरोसे में लिया.

हालांकि भारतीय विदेश नीति के व्यापक उद्देश्यों और चीन को सामरिक रूप से संदेश देने को लेकर ज़्यादा चर्चा नहीं हुई. शायद जानबूझ कर इस बारे में अस्पष्टता रखी गई. खुद को चलाए रखने की बाध्यता के कारण पाकिस्तान पहले अमेरिका और फिर चीन पर आश्रित रहा है, और अब चीन को पीओके होकर रास्ता देकर उसने हिंद महासागर तक सालों भर पहुंच देने वाला मार्ग हासिल करने के चीन के सामरिक एजेंडे के लिए खुद का इस्तेमाल होने दिया है. चीन ने पीओके पर पाकिस्तान के दावे के आधार पर ही उस इलाके को सीमा वार्ताओं से अलग रखने की भी चाल चली है. बालाकोट हमले के जरिए दिया गया संदेश चीन में उचित स्तर पर पहुंच गया लगता है कि भारत पीओके में ऐसे किसी भी सैन्य जमावड़े या गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगा जोकि उसकी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता हो.


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संविधान के अनुच्छेद 370 के अस्थाई प्रावधान को अप्रभावी बनाने के घरेलू घटनाक्रम का भी भारत की विदेश नीति परिप्रेक्ष्य पर बड़ा असर पड़ा. भारत ने तत्काल अपने राजनयिकों को महत्वपूर्ण राजधानियों के लिए रवाना कर अपने विरुद्ध चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के मंसूबों को नाकाम करने में सफल रहा. संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन समर्थित प्रस्ताव को एकमत से खारिज किए जाने से ना सिर्फ भारत के रुख को मान्यता मिली बल्कि इसके कारण चीन को पाकिस्तान जैसे एक नाकाम राष्ट्र के साथ जोड़कर देखा जाने लगा.

चीन ने शीघ्रता से भारत के प्रति अपने रवैये में बदलाव किया और ये तक दिखाने की कोशिश की कि वह दोनों परमाणु संपन्न पड़ोसियों के बीच शांति स्थापना का प्रयास कर रहा है. हालांकि भारत ने भी दुनिया को आश्वस्त करने में कोई देरी नहीं की कि एक जिम्मेदार ताकत के रूप में वह तनाव को एक हद से आगे बढ़ने नहीं देगा.

लाभप्रद नया रवैया

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि में चीन ने वुहान शिखर सम्मेलन की अगली कड़ी के रूप में आयोजित चेन्नई शिखर सम्मेलन में भाग लिया. गत सप्ताह, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सीमा विवाद सुलझाने की एक रूपरेखा प्रस्तुत की. यह पेशकश टुकड़ों में अल्पकालिक समाधान की चीन की अब तक की नीति के उलट है. भारत हमेशा सीमा विवाद के एकमुश्त समाधान पर ज़ोर देता रहा है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा विदेश नीति के कुशल संचालन और दीर्घकाल में निर्मित व्यक्तिगत समीकरणों का प्रतिफल है. हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय शक्ति समीकरण में राष्ट्रों की आर्थिक हैसियत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है.

सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है, जो आखिरकार बहुपक्षीय संस्थाओं, विदेशी संस्थागत निवेशकों और शेष विश्व से भारत के संबंधों को प्रभावित करेगा.

इन आंदोलनों को, भले ही ये नितांत घरेलू मामले हों, दुनिया में भारत की छवि धूमिल करने और 2019 में हासिल उपलब्धियों को गंवाने की वजह नहीं बनने दिया जाना चाहिए.

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य और ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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