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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतअर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी फ्री स्पीच और राजनीतिक प्रतिशोध पर दक्षिणपंथी पाखंड को उजागर करती है

अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी फ्री स्पीच और राजनीतिक प्रतिशोध पर दक्षिणपंथी पाखंड को उजागर करती है

रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी की मांग करने और उस पर खुशी जताने वाले अब चाहते हैं कि हर कोई अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करे.

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बुधवार सुबह रिपब्लिक टीवी वाले अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी होते ही नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों, भाजपा नेताओं और बड़ी संख्या में समर्थकों की तरफ से तत्काल इसकी निंदा की जाने लगी. इसकी उम्मीद भी की जानी चाहिए थी.

हालांकि, ध्रुवीकरण के इस दौर में हम उदारवादियों से यह उम्मीद नहीं करते कि वे उदारवादियों के खिलाफ नफरत भड़काने वाले किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खड़े हों. फिर भी हमने तमाम उदारवादियों को अर्णब की गिरफ्तारी को भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के साथ-साथ स्पष्ट राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए इसकी निंदा करते देखा. कई उदारवादियों ने तो यहां तक कहा कि वे अर्णब की विच-हंट जर्नलिज्म से सहमत नहीं हैं, लेकिन उन्हें गिरफ्तार किया जाना उचित नहीं है.

जब राजनीतिक प्रतिशोध के लिए उदारवादी पत्रकारों या कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाता है तो हमें दक्षिणपंथियों की तरफ से ऐसी उदारता देखने को नहीं मिलती. कोई नहीं कहता, ‘मैं प्रशांत कनौजिया की राजनीति से असहमत हूं, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए.’ या ‘मेरी राजनीति सुधा भारद्वाज से अलग है लेकिन उन्हें जेल में रखना उचित नहीं है.’

भारत के विभिन्न हिस्सों में कितने सारे लोग सिर्फ इसलिए केस झेल रहे हैं या जेल में समय बिता रहे हैं, क्योंकि उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम या सीएए का विरोध करने की हिमाकत की थी, लेकिन हमें ऐसा कोई दक्षिणपंथी नजर नहीं आया जिसने इसे आजादी पर हमला बताते हुए इसकी निंदा की या सिर्फ राजनीतिक मतभिन्नता करार दिया.

इनमें से कितने लोगों ने कफील खान नाम के एक अच्छे-खासे डॉक्टर की बार-बार गिरफ्तारी और उत्पीड़न की सांकेतिक निंदा की? बल्कि, उन्होंने तो ऐसी गिरफ्तारियों पर खुशी ही जताई है. क्यों उमर खालिद के लिए जेल में सड़ना ठीक है जबकि अर्णब गोस्वामी को सिर्फ गिरफ्तार किए जाने पर निंदा के साथ-साथ इसे आपातकाल की याद दिलाने वाला और ‘फासीवादी’ तक करार दिया जाना लगा है?


यह भी पढ़ें: एडिटर्स गिल्ड ने अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा की, कहा- रिपोर्टिंग के खिलाफ राज्य शक्ति का उपयोग नहीं किया जाए


अन्वय नाइक के लिए न्याय?

कश्मीर में एक अखबार का कार्यालय बंद कर दिया गया है, लेकिन प्रेस की आजादी का उल्लंघन केवल तभी हुआ जब अर्णब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित आरोप में गिरफ्तार किया गया. अजब बात है जब कोई सबूत नहीं था तब अर्णब गोस्वामी की अगुआई में तमाम टीवी चैनलों ने सुशांत सिंह को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने और यहां तक की हत्या के आरोप में भी संदेह के आधार पर रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी की मांग को लेकर अभियान चला रखा था.

सुशांत सिंह राजपूत ने अपने पीछे कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था जबकि अन्वय नाइक ने ऐसा किया था. अन्वय नाइक ने अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी और दो अन्य लोगों पर बकाया भुगतान न किए जाने को अपनी जान देने की वजह बताया था. उनका परिवार उनके लिए न्याय की मांग कर रहा है. अगर राजपूत की तरफ से सुसाइड नोट न छोड़े के बाद भी #JusticeForSSR सही था, तो #JusticeForAnvayNaik क्यों नहीं?

कृपया ध्यान दें कि गोस्वामी को सोनिया गांधी या आदित्य ठाकरे के खिलाफ उनकी टिप्पणियों के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया है. उन्हें पालघर में साधुओं की हत्या की घटना पर अपने चैनल पर की गई टिप्पणियों के लिए भी गिरफ्तार नहीं किया गया जिसे उन्होंने बेवजह सांप्रदायिकता रूप देने की कोशिश की थी. उन्हें बॉलीवुड अभिनेताओं के खिलाफ ‘दुष्प्रचार अभियान’ के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया है. यदि उन्हें इनमें से किसी के लिए गिरफ्तार किया गया होता तो आप इसे बोलने की आजादी पर हमला कह सकते थे. लेकिन उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित आरोप में गिरफ्तार किया गया.

जब वाम-उदारवादियों को राजनीतिक कैदियों के रूप में जेल में डाला जाता है तो दक्षिणपंथी कहते हैं कि कानून अपना काम करेगा. फिर अर्णब गोस्वामी के मामले में ‘अपना काम’ करना कानून पर क्यों नहीं छोड़ देते?

वैसे अर्णब की गिरफ्तारी स्पष्ट रूप से राजनीतिक कारण से हुई है, कृपया यह भी ध्यान दें कि 2018 में जब आत्महत्या की यह घटना हुई तब वहां भाजपा की सरकार थी और मुंबई पुलिस ने उस समय मामले में ज्यादा कुछ नहीं किया था. यदि आत्महत्या के मामले में गोस्वामी की गिरफ्तारी आज राजनीतिक बदले की कार्रवाई हो सकती है तो 2018 में समान आरोपों पर उन्हें छोड़ दिए जाने को राजनीतिक संरक्षण कहा जा सकता है.

दूसरे शब्दों में कहें तो अर्णब गोस्वामी को जैसे को तैसा वाला जवाब मिल रहा है. भारत अब आधिकारिक रूप से राजनीतिक विचारधाराओं के दोनों पक्षों की तरफ से कानूनी उत्पीड़न और राजनीति प्रेरित मामलों पर उतर आया है. यह भयावह है, लेकिन पहले आग किसने लगाई?

स्वतंत्रता, दूसरे शब्दों में

मोदी सरकार के कितने मंत्रियों ने उत्तर प्रदेश में बच्चों के सरकारी स्कूलों में फर्श पर झाड़ू लगाने संबंधी रिपोर्ट दिखाने वाले पत्रकारों की गिरफ्तार की आलोचना की? योगी आदित्यनाथ के यूपी में जब सरकारी स्कूल में मिडडे मील के लिए रोटी और नमक परोसे जाने का खुलासा करने पर एक पत्रकार के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया तब कहां पर थे हमारे दक्षिणपंथी और प्रेस की आजादी के लिए उनकी चिंता? भाजपा को आपातकाल की याद उस समय क्यों नहीं आई जब जब भाजपा शासित यूपी में एक पत्रकार को भूमि विवाद पर रिपोर्टिंग के लिए मार डाला गया?

स्मृति ईरानी कहती हैं कि अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी ‘फासीवाद’ है, लेकिन हमने उनकी तरफ से तब कुछ भी नहीं सुना जब तमिलनाडु में एक पत्रकार को कोविड-19 की कवरेज के कारण गिरफ्तार किया गया. कोविड लॉकडाउन के दौरान कश्मीर में पत्रकारों को जब पुलिस ने हिरासत में लिया और कथित तौर पर उन्हें पीटा तब प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर प्रकाश जावड़ेकर की चिंता कहां थी? गुजरात में जब एक पत्रकार को केवल इसलिए गिरफ्तारी और देशद्रोह के आरोप का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने राज्य में मुख्यमंत्री बदले की संभावना पर एक स्टोरी की थी तब कितने लोगों ने व्यापक स्तर पर निंदा की थी?

मोदी सरकार कोर्ट में तर्क दे रही है कि पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के आरोप नहीं हटाए जाने चाहिए. उनका अपराध? क्या किसी को आत्महत्या के लिए उकसाया? क्या किसी सुसाइड नोट में उन्हें दोषी ठहराया गया? नहीं. केवल मोदी सरकार की आलोचना करना.

यह समझ से परे है कि अर्णब गोस्वामी क्यों त्रिपुरा के एक पत्रकार पाराशर बिस्वास की तुलना में अधिक स्वतंत्रता के हकदार हैं, जिन्हें कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर मीडिया को मुख्यमंत्री बिप्लब देब की धमकी की आलोचना के बाद पीटा गया था.

सिद्धांतों की बात

उदारवादियों की तरफ से अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा किए जाने की बात तो समझ में आती है क्योंकि वे लगातार राजनीतिक प्रतिशोध, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले और प्रेस की स्वतंत्रता के हनन के रूप में कानूनी कार्रवाई की निंदा करते रहे हैं.

उदारवादियों ने उन पत्रकारों के पक्ष में आवाज उठाई जो हाल में हाथरस गैंगरेप और हत्या की घटना को कवर करने की कोशिश के तौर पर अपना काम कर रहे थे. क्या आप जानते हैं कि उस समय कौन चुप था या उनकी गिरफ्तारी को सही ठहरा रहा था? ये वही लोग थे जो फर्जी आरोपों के आधार पर रिया चक्रवर्ती को ‘घेरने’ में अर्णब गोस्वामी को चैंपियन बना रहे थे.

जब दक्षिणपंथी अर्णब गोस्वामी की स्वतंत्रता की बात करते हैं तो ये उनका पाखंड है क्योंकि उनके लिए बोलने की आजादी व्यक्ति के राजनीतिक रुख पर निर्भर है. हालांकि, उदारवादी अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे राजनीतिक विरोधियों को जेल में डालने का विरोध करते हैं.

यदि दक्षिणपंथी इस सिद्धांत से सहमत हो पाएं और राजनीतिक विचारधारा की परवाह किए बिना राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग करना शुरू करें तो हम स्वतंत्र, बेहतर, पवित्र देश बन सकेंगे.

(लेखक दिप्रिंट में कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्या था 2018 का ‘आत्महत्या’ मामला जिस कारण मुंबई पुलिस ने अर्णब गोस्वामी को किया गिरफ्तार


 

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1 टिप्पणी

  1. Abhi Bharat main ek apavitra party or bhrasht morally currupt pm raaj kar raha hai…. wait for chacha nehru ya lbs

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