एक शख्स है जो अपनी नौटंकीबाजी में आपकी मां से सवाल पूछने की बजाय उन्हें बदनाम करने पर आमादा है. राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी की मां, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मान-मर्यादा पर अर्णब गोस्वामी कीचड़ उछाल रहे हैं और वह भी इसलिए कि उनके टीवी शो की टीआरपी बढ़े. जाहिर है, वह वक़्त आ गया है जब एक पुत्र, एक पुत्री और राजनीतिक हत्याओं तथा अनावश्यक आलोचनाओं से त्रस्त एक परिवार की ये दो संतानें स्वाभाविक प्रतिक्रिया और पहल करें.
राहुल और प्रियंका के लिए यह सवाल आज मौजूं हो गया है कि उनके लिए ‘अब बहुत हो चुका!’ वाली घड़ी कब आएगी? अगर आपको इस बात के लिए कोई खेद नहीं है कि आपकी मां सोनिया गांधी इतालवी और ईसाई मूल की हैं, तो समय आ गया है कि आप अपनी मां पर बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने के लिए अर्णब को कानून के कठघरे में खड़ा करने की पहल करें.
लोग कह रहे हैं कि जिन्होंने अपने पिता के हत्यारों को माफ कर दिया, वे एक टीवी चैनेल पर बहस के आवेश में आकर उनकी मां का अपमान करने वाले शख्स से शायद ही लड़ेंगे. इसमें कुछ तर्कपूर्ण भी लग सकता है. लेकिन तथ्य यह है कि राजीव गांधी के हत्यारों को कानून ने दोषी ठहराकर सज़ा दी थी, यानी न्याय किया गया. लेकिन सोनिया गांधी का आज सबसे विद्वेषपूर्ण चरित्र हनन किया गया है और यह करने वाले को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है.
‘इटली वाली सोनिया गांधी’
अर्णब गोस्वामी ने अगर राजनीतिक हमला किया होता तो उसे मान भी लिया जाता, मगर जैसे ही आप उन्हें ‘इटली वाली सोनिया गांधी’ कहते हैं और यह आरोप लगाते हैं कि वे भारत में हिंदू साधुओं की हत्याओं के बारे में रिपोर्ट इटली भेजती हैं, वैसे ही आप मानहानि कर बैठते हैं. और यह तो दुष्टतापूर्ण किस्म की मानहानि है. वे सोनिया पर न केवल उनकी पूर्व नागरिकता के लिए बल्कि उनके धर्म—ईसाइयत के लिए भी हमला कर रहे हैं. वास्तव में, यह तो राजनयिक पहलू से भी खतरनाक है, क्योंकि अर्णब यह दावा करते दिख रहे हैं कि इटली इस बात के लिए सोनिया की तारीफ कर रहा है कि वे हिंदू साधुओं की हत्या करवा रही हैं.
यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी को तीन सप्ताह का संरक्षण दिया, एक को छोड़ कर सभी एफआईआर पर रोक
हां, कांग्रेस पार्टी और उसके गतिशील युवा नेता बेशक अर्णब की निंदा कर सकते हैं. या, जैसा कि अर्णब ने दावा किया, वे उन पर और उनकी कार पर स्याही पोत सकते हैं. लेकिन क्या आपको लगता है कि जिस शख्स ने पत्रकारिता का मखौल बना दिया है उस पर इन सबका कोई असर होने वाला है?
अगर अर्णब ने खुद को किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता घोषित किया होता और तब वे वह सब कहते जो उन्होंने कहा, तो हममें से अधिकतर को बुरा न लगता. राजनीति में विनम्रता नहीं होती. लेकिन एक टीवी चैनेल के एडिटर-इन-चीफ के रूप में किसी को भी खुले तौर पर बदनाम करने का जो खतरनाक चलन चल पड़ा है वह जल्दी ही देश में अराजकता फैला सकता है. मीडिया को मुकदमा चलाने जैसी कार्रवाई की छूट नहीं दी जा सकती जिसमें वह लोगों को फर्जी धारणाओं के आधार पर नाम लेकर शर्मसार करे. यह कानूनन दंडनीय है.
उन्हें कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए
इसका अंत कैसे हो? कानून का सहारा लेकर. और यह केवल डराने के लिए नहीं बल्कि उद्देश्यपरक हो. वास्तव में, लोकतान्त्रिक भारत में, सोनिया जिसकी नागरिक 1983 में ही बन गई थीं, यह कानूनी लड़ाई लड़ना उन लोगों के लिए एक सबक बन सकता है जो गांधी परिवार और खासकर सोनिया के खिलाफ आदतन जहर उगलते रहते हैं. यही नहीं, इससे उन लोगों में यह भरोसा जगेगा कि अगर उन्होंने भारत की नागरिकता ली है तो उनके साथ बराबरी का व्यवहार होगा और उन्हें भारत में जन्मे नागरिकों के समान अधिकार हासिल होंगे. उन्हें अपना सम्मान हासिल करने के लिए सरकार का कृपापात्र बनने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि उन्हें ये अधिकार भारतीय संविधान ने दिए हैं, न कि सत्ता की गद्दी पर बैठी सरकार ने.
राहुल और प्रियंका के लिए यह एक अच्छी लड़ाई होगी, जो उन्हें लड़नी चाहिए. यह उनके लिए केवल अपनी मां के लिए एक निजी लड़ाई नहीं होगी, बल्कि यह दुनिया और भारत के लोगों को साफ-साफ एक संदेश देगी कि जो भी भारत का नागरिक बनना चाहता है उसकी गरिमा अक्षुण्ण रहेगी.
सीएए को किया कलंकित
कई लोगों, खासकर अर्णब के समर्थकों को यह नहीं दिख रहा है कि अर्णब ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसियों, जैनों, बौद्धों को भारतीय नागरिकता देने के पूरे तर्क को ही कलंकित कर दिया है. कैसे? क्योंकि अगर इन समुदायों के लोग भारत के नागरिक बन जाएंगे तब अर्णब गला फाड़-फाड़ कर उन लोगों को उसी तरह पाकिस्तानी, अफगानी, बांग्लादेशी कह के उनकी निंदा करने लगेंगे जिस तरह वे ‘अंतोनिया मायनो’ को हमेशा ‘इटली वाली’ कह के अपमानित करते रहते हैं.
यह भी पढ़ें: उद्धव ठाकरे के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए सिर्फ एक महीने का समय, संविधान कुछ विकल्प जरूर देता है
क्या वे उन लोगों को जासूस और देशद्रोही नहीं कहेंगे? फिर, लोगों को भारतीय नागरिकता देने का मतलब क्या है, जब आप उनका मखौल उड़ाएं, उन पर यह आरोप लगाएं कि वे अपने मूल देश के प्रति ही वफादारी निभाते हैं? विडम्बना यह है कि सोनिया को उसी नागरिकता कानून 1955 के तहत नागरिकता मिली थी जिससे ‘सीएए’ का जन्म हुआ है. सोनिया बेशक अंतोनिया मायनो हैं, और उनकी पहचान के प्रति अवमानना के मामले को अदालत में ले ही जाना चाहिए.
अर्णब ‘टीआरपी’ की खातिर हमलावर रुख अपनाते हैं. उनकी यह चाल लंबे समय तक काम करती रही है. इस जहरीली होड़ को अड़ंगा उस कानूनी कार्रवाई से ही लगाया जा सकता है, जो उन्हें अपनी चालों के लिए जवाबदेह ठहराए. लेकिन हिंसक जवाब, जैसा कि अर्णब ने आरोप लगाया है, कांग्रेस को उस स्तर तक गिरा देगा जो न केवल नीचतापूर्ण होगा बल्कि इस पार्टी की उस अवधारणा को कमजोर करेगा जिसके तहत वह भारत को संविधान और कानून के शासन की रक्षा करने वाले देश के रूप में देखती है.
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखिका एक राजनीतिक विश्लेषक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
Yes, Mr Rahul is correct, there should not be gst on sanitizer, mask and other life protective goods
Tum print balo ko bura laga.sonia amma kay bara may kuch bola to.
100 % right
Kya likha print matlab tumari chatukarta lajavab hai
Sale bikau print media walo sharam kro tumhara hi bhai he wo gulami kab tak karoge congress ki
मेरे विचार से ये विचार एक पक्ष को समर्थित करने के लिए लिखे गए हो, काश विचारों में सार्थकता होती तो दोनों पक्षों की कमियां और अच्छाइयां बताई गई होती।
बाटला प्रकरण और एक पत्रकार पर हमले करने वालों को इसमें कुछ ना कहना कहां तक उचित।
मेरे विचार से ये लेख राग दराबरी की तरह लिखा गया है इसमें चाटुकारिता के अतरिक्त कुछ नहीं उम्मीद है अपनी इस गलती का आप सुधार करेंगे। क्युकी स्वतंत्र लेखनी और विचार लेखक और लेखिका की पहचान होती है।
लेखक या लेखिका को कभी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर विचार नहीं लिखना चाहिए। क्योंकि लेखन कला एक पवित्र साधना है अतः विचार राष्ट्र को समर्पित होने चाहिए ना की किसी व्यक्ति विशेष को खुश करने के लिए।