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Tuesday, 21 May, 2024
होमदेशउद्धव ठाकरे के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए सिर्फ एक महीने का समय, संविधान कुछ विकल्प जरूर देता है

उद्धव ठाकरे के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए सिर्फ एक महीने का समय, संविधान कुछ विकल्प जरूर देता है

दिप्रिंट से बातचीत में संवैधानिक विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति नहीं जताई कि क्या राज्यपाल को ठाकरे को नामित करना चाहिए. उन्होंने मुख्यमंत्री के पास उपलब्ध अन्य विकल्पों के बारे में भी बताया.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या पूरे देश में सबसे ज्यादा है लेकिन इस महामारी के बीच राज्य में संवैधानिक संकट भी गहराता जा रहा है. 28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे ने महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों पार्टियों के प्रतिनिधि के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन अब उनके पास अपनी कुर्सी बचाने के लिए सिर्फ एक महीने का ही समय है क्योंकि वो महाराष्ट्र के दोनों सदनों में से किसी के भी सदस्य नहीं हैं.

संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अंतर्गत किसी भी सदन से जुड़े न होने के बाद भी व्यक्ति छह महीने तक मंत्रिमंडल में शामिल हो सकता है. यहां तक कि मुख्यमंत्री का पद भी संभाल सकता है. अगर वो ऐसा नहीं कर पाते हैं तो संविधान के अनुसार ‘वो मंत्री नहीं रख सकते हैं’.

ठाकरे के पास 28 मई तक एमएलए या एमएलसी बनने का समय है और उन्हें भरोसा है कि वो विधान परिषद के लिए निर्वाचित हो जाएंगे. 26 मार्च को एमएलए द्वारा नौ एमएलसी को चुनना था लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण चुनाव को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.

उसके बाद राज्य कैबिनेट ने 9 अप्रैल को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को विधान परिषद में ठाकरे को मनोनीत करने की सिफारिश भेजी थी.

संविधान के अनुच्छेद 171 राज्यपाल को कुछ निश्चित संख्या में विधान परिषद में सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार देता है. मनोनीत सदस्य ‘साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा: जैसे मामलों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति होना चाहिए.’

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वर्तमान में दो राकांपा विधायकों के इस्तीफे के कारण दो पद रिक्त हैं जो पिछले साल के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे. लेकिन कोश्यारी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, और इन दोनों नामित सदस्यों का कार्यकाल 6 जून को समाप्त होने वाला है.


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दिप्रिंट से बातचीत में संवैधानिक विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति नहीं जताई कि क्या राज्यपाल को ठाकरे को नामित करना चाहिए. उन्होंने मुख्यमंत्री के पास उपलब्ध अन्य विकल्पों के बारे में भी बताया.

तीन विकल्प

संविधान विशेषज्ञ और पूर्व लोकसभा सेक्रेटरी जनरल सुभाष कश्यप ने दिप्रिंट को बताया कि ठाकरे के सामने तीन विकल्प मौजूद हैं.

पहला, राज्यपाल उन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करें. छह महीने के भीतर विधायिका के सदस्य बनने की प्रक्रिया को ये पूरी करेगा.

कश्यप ने कहा, ‘दूसरा विकल्प जो मैं समझता हूं वो इस्तीफा दें और कुछ दिन बाद फिर से चुन लिए जाएं ताकि छह महीने की अवधि फिर से शुरू हो जाए.’

लेकिन ये दोनों विकल्प, उनके विचार में, ‘संवैधानिक औचित्य के खिलाफ हैं और अप्रत्यक्ष रूप से संविधान द्वारा निषिद्ध की हुए चीजों को अप्रत्यक्ष तौर पर करने जैसा होगा.’

ऐसा ही कदम 1995 में पंजाब में लिया गया था. कांग्रेस के सदस्य तेज प्रकाश सिंह ने छह महीने की अवधि के अंत में इस्तीफा दे दिया था और फिर से 1996 में चुन लिए गए थे. 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि, यह गलत, अवैध, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है. लेकिन तब तक विधानसभा का समय खत्म हो गया था जिस कारण तेज प्रकाश इससे प्रभावित नहीं हुए.

ठाकरे के लिए तीसरा विकल्प कश्यप ने बताया, ‘राज्यपाल किसी और को केयरटेकर मुख्यमंत्री नियुक्त कर दें.’

उन्होंने कहा, ‘संविधान में एक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है, लेकिन किसी को भी राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सकता है, राज्यपाल के निर्देश के अधीन … इसलिए उसे अंतरिम अवधि के लिए नियुक्त किया जा सकता है, और कुछ समय बाद, ठाकरे दोनों सदनों में से एक के लिए निर्वाचित हो सकते हैं और मुख्यमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त हो सकते हैं.’

‘ठाकरे को नामित करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं’

हालांकि लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य ने कहा कि ठाकरे को विधान परिषद के लिए मनोनीत करने के लिए किसी प्रकार की कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है.


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आचार्य ने उन रिपोर्टों का उल्लेख किया जिनमें दावा किया गया था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 151ए ने इस नामांकन में बाधा के रूप में काम किया है, क्योंकि यह कार्यकाल 6 जून को समाप्त हो रहा है. यह प्रावधान कहता है कि यदि ‘रिक्ति के संबंध में एक सदस्य का कार्यकाल एक वर्ष से कम है’ तो पद पर चुनाव नहीं किया जा सकता है.

लेकिन आचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि ये प्रावधान चुने हुए सदस्यों के लिए है न कि मनोनीत सदस्यों के लिए.

उन्होंने कहा कि राज्यपाल के पास ठाकरे को मनोनीत करने के अलावा ‘कोई विकल्प’ नहीं है और वो कैबिनेट की सिफारिशों के प्रति प्रतिबद्ध हैं.

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह ‘राज्यपाल का कोटा’ नहीं है बल्कि ये संविधान द्वारा निर्धारित एक आवश्यकता है.

‘राजनीतिक फायदे का समय नहीं’

संविधान विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा ने भी कहा कि ठाकरे को विधान परिषद के लिए मनोनीत करने की कैबिनट की सिफारिश को राज्यपाल को मानना चाहिए. मुस्तफा ने स्पष्ट किया कि अगर राज्यपाल ने सिफारिशों को मान लिया तो वह संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करेंगे.

कोविड-19 के कारण देश में बने ‘असाधारण स्थिति’ पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है और उद्धव ठाकरे आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं … मुझे नहीं लगता कि हमारे राजनीतिक हितों के लिए, एक संवैधानिक संकट को पैदा करना चाहिए जिसके तहत उन्हें इस्तीफा देना होगा, और एक नए नेता का चुनाव करना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘यह राजनीतिक हितों को साधने और एक और राज्य को भाजपा के हाथों में आ जाने का समय नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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