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Saturday, 21 December, 2024
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कौन हैं अनुप्रिया पटेल, जिनकी नाराज़गी के आजकल चर्चे हैं?

अनुप्रिया पटेल यूपी में एनडीए का कुर्मी चेहरा हैं, लेकिन सरकार में आने के बाद से उनकी सामाजिक न्याय की योद्धा वाली छवि धूमिल हुई है. अब वे क्या करेंगी?

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दिल्ली के राजनीतिक हलके में चर्चा है कि अनुप्रिया पटेल आजकल नाराज़ हैं. उन्होंने तय कर लिया है कि जब तक बीजेपी उनकी पार्टी की मांगों को नहीं मान लेती और उन्हें ‘उचित सम्मान’ नहीं मिलता, वे यूपी सरकार के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाएंगी. इस क्रम में गाज़ीपुर में यूपी सरकार के जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री गए थे, उसमें भी अनुप्रिया पटेल ने हिस्सा नहीं लिया, जबकि इस कार्यक्रम में उन्हें बुलाने के लिए बीजेपी के कई नेता लगे थे.

अनुप्रिया पटेल नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद की सबसे कम उम्र की मंत्री हैं. उनके पास स्वास्थ्य मंत्रालय के राज्यमंत्री का कार्यभार है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय को कैबिनेट मंत्री जय प्रकाश नड्डा ही चलाते हैं. जो काम बच जाता है उसे दूसरे राज्य मंत्री अश्विनी चौबे संभाल लेते हैं. अनुप्रिया पटेल के पास मंत्रालय में कोई काम नहीं है.

दिल्ली में स्वास्थ्य मंत्रालय के मुख्यालय निर्माण भवन में उनका बेहद शानदार ऑफिस है, लेकिन इस ऑफिस में फाइलें कम ही आती हैं. अगर वे अपने चुनाव क्षेत्र के किसी मरीज़ को एम्स इलाज के लिए भेजती हैं, तो उन्हें सहायता अक्सर नहीं मिलती, क्योंकि एम्स सीधे कैबिनेट मंत्री के अधीन है. लेकिन चूंकि वे सरकार में सबसे अच्छी इंग्लिश बोलने वाली मंत्रियों में हैं, इसलिए देशी-विदेशी डेलिगेशन से मिलना हो या किसी टेक्निकल सेशन में भाषण देना, सरकार उन्हें याद कर लेती है.

आखिर असली अनुप्रिया पटेल कौन है? उन्हें इतना राजनीतिक महत्व क्यों मिलता है? वे क्या हैं? एक अतिमहत्वाकांक्षी राजनेता या राजनीति के दुर्लभ संयोग का परिणाम? एक जातीय नेता या सामाजिक न्याय की योद्धा? एक स्वार्थी, मतलबी, अवसरवादी व्यक्ति या अपने स्वाभिमान के लिए संघर्षरत स्त्री? क्या वे एक ऐसी नेता है, जिन्हें वक्त और हैसियत से पहले बहुत कुछ मिल गया है और इसकी वजह से उनमें अहंकार आ गया है? या फिर वे लंबे संघर्ष की पथिक हैं, और बीच में ही वे भटककर एक ऐसी सरकार में शामिल हो गई हैं, जिनसे उनकी विचारधारा नहीं मिलती?

अनुप्रिया पटेल के बारे में दिल्ली के पावर सर्किल में कम ही जानकारी है. यूपी की राजनीति को पुराने समय से जानने वाले लोग जानते हैं कि वे प्रमुख कुर्मी नेता रहे सोनेलाल पटेल की पुत्री हैं. सोनेलाल पटेल बसपा में सक्रिय रहे और बाद में उन्होंने अपना दल का गठन किया. लेकिन वे कभी कोई चुनाव जीत नहीं पाए. उनकी छवि पिछड़ों-दलितों के लिए संघर्ष करने वाले नेता की रही. 2009 में एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया.

तब तक अनुप्रिया पटेल ने राजनीति में आने के बारे में सोचा भी नहीं था. लेकिन पिता की स्मृति सभा में उनके भाषण से इस बात का एहसास हो गया कि यूपी की राजनीति को एक प्रखर वक्ता मिलने वाला है. इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले अनुप्रिया पटेल की दिल्ली में उपस्थिति कम थी. उन्होंने 2012 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव रोहनियां सीट से जीता था. ये सीट उस वाराणसी लोकसभा सीट का हिस्सा है, जहां से नरेंद्र मोदी ने पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता था. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अनुप्रिया पटेल ने अपना राजनीतिक ट्रैक बदला और बीजेपी के खेमे में शामिल हो गईं. इसके लिए उनकी काफी आलोचना होती है और उन्हें अवसरवादी और सत्ता की लालची तक कहा गया.

2014 में वे मिर्ज़ापुर से लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली आती हैं और देखते ही देखते सबसे कम उम्र की केंद्रीय मंत्री बन जाती हैं. ये एक चौंकाने वाली घटना मानी जाती है, क्योंकि मंत्री पद के बड़े-बड़े दावेदारों के बीच किसी ने सोचा भी नहीं था कि वे मंत्री बन जाएंगी. अब वे दिल्ली के लुटियंस ज़ोन की सबसे बड़ी कोठियों में से एक टाइप-8 के 5, सफदरजंग रोड के विशाल बंगले में रहती हैं.

दिल्ली अनुप्रिया पटेल को नहीं जानती थी. लेकिन अनुप्रिया पटेल दिल्ली को जानती हैं. इस शहर से उनका पुराना रिश्ता रहा है. उनकी पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी के सबसे एलीट कॉलेजों में से एक लेडी श्रीराम कॉलेज से हुई है. उन्होंने नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी से एमए किया. हालांकि बाद में उन्होंने कानपुर के एक संस्थान से एमबीए भी किया. शिक्षा प्राप्त करने के दौर में वे राजनीति से दूर ही रहीं. वे बताती हैं कि – ‘पिता चाहते थे कि हम चारों बहनें उच्च शिक्षा हासिल करें. उन्होंने हमारी शिक्षा को बाकी तमाम चीज़ों से ऊपर रखा.’

अनुप्रिया पटेल की पहचान सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वाली नेता की रही है. 2013 में यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर उन्होंने काफी संघर्ष किया और इस दौरान उन्हें तीन बार गिरफ्तार भी किया गया. ये एक ऐसा समय था, जब यूपी सरकार उनकी सभाओं को विफल करने के लिए तमाम कोशिशें कर रही थीं. उन पर दर्ज किए गए कई मुकदमे अब भी चल रहे हैं. अनुप्रिया पटेल की शिकायत रही है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, पिछड़ों को उनकी आबादी के अनुपात में राजकाज में हिस्सा नहीं मिलता है.

अब सरकार में होने के कारण उनकी आंदोलनकारी छवि कमज़ोर हुई है. अपने मंत्रालय में वे सामाजिक न्याय का कोई काम नही कर पाती हैं. सरकार में होने के कारण और सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत की वजह से उनकी आवाज़ में वो पहले वाली तेज़ी भी नहीं है. लेकिन उन्होंने सामाजिक न्याय के सवालों को उठाना बंद नहीं किया है. जातिवार जनगणना हो या न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण या ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा देने की मांग, वे अपनी आवाज़ संसद और बाहर भी उठाती रही हैं. उनकी पार्टी ने यूपी के थानों में होने वाली नियुक्तियों में सामाजिक विविधता का ध्यान रखने की मांग उठाई. इसके अलावा केंद्र में पिछड़ा वर्ग मंत्रालय के गठन की मांग भी अनुप्रिया पटेल करती रही हैं.

अनुप्रिया पटेल अब यहां से आगे अपना राजनीतिक सफर कैसे तय करती हैं, ये इस बात से तय होगा कि उनके पास राजनीतिक विकल्प क्या हैं और वे उन विकल्पों को आजमाने के लिए कितना साहस दिखाती हैं. क्या वे अपनी विचारधारा और अपनी राजनीति के बीच तालमेल बिठा पाएंगी?

नज़र रखिए इस युवा नेता पर.

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