‘फिर से पैदा हुआ’ सिख कट्टरपंथी और भगोड़ा, अमृतपाल सिंह संधू 14 दिनों से फरार है. अमृतपाल ने पंजाब में तूफान की तरह प्रवेश किया लेकिन हवा के हल्के झोंके की तरह गायब हो गया. फरवरी में अजनाला पुलिस स्टेशन पर अपने हिंसक हमले के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने के उनके कायरतापूर्ण कृत्यों – जिसके लिए उसे बदनाम और शर्मिंदा किया गया है – और मार्च में कानून से दूर भागने ने एक छोटे अपराधी के रूप में उसकी स्थिति को फिर से स्थापित किया है.
दुबई में अपने परिवार के ट्रांसपोर्ट बिजनेस के लिए काम करने वाले प्रतीकात्मक रूप से गैर-अनुयायी सिख (Non-Adherent Sikh) सोशल मीडिया कार्यकर्ता से “भिंडरावाले 2.0” (जैसा कि मीडिया द्वारा नामित) के रूप में केवल सात महीनों में उसके तेजी से बढ़ने और मृतप्राय हो चले खालिस्तान मूवमेंट के नेतृत्व करने में राजनीतिक और खुफिया साजिश की बू आती है. 1970 के उत्तरार्ध से लेकर 1990 के दशक के मध्य तक सामाजिक-धार्मिक हिंसक अशांति का डर देश पर छाया हुआ है.
मैं अमृतपाल के तेजी से हुए उत्थान और पतन का विश्लेषण कर रहा हूं और उस आधार पर सुझाव दे रहा हूं कि पंजाब की समस्याओं को कैसे समाधान किया जाए-
अमृतपाल सिंह का उत्थान और पतन
मीडिया ने अमृतपाल को शुरुआत में ही खत्म करने के बजाय उसकी काफी बड़ी छवि बनाई. खोजी पत्रकारिता के माध्यम से इस ढोंगी के खोखलेपन को उजागर करने के बजाय, मीडिया ने उसे अपना कद बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान किया. समाचार संगठनों ने पंजाब की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों पर ध्यान केंद्रित करके समर्थन हासिल करने में उनकी मदद की.
इनमें नदी के पानी का बंटवारा, कृषि संकट, नशीली दवाओं की लत, सिख धर्म के पुनरुत्थान की आवश्यकता, धर्मांतरण की रोकथाम और “बंदी सिखों” (आतंकवादी कृत्यों के लिए जेल की लंबी सजा काट रहे सिख) की रिहाई या क्षमा जैसे मुद्दे शामिल हैं. इसके बाद अमृतपाल ने यह कहते हुए खालिस्तान आंदोलन को हिंदुत्व विचारधारा से जोड़कर आगे बढ़ना शुरू किया, कि अगर एक हिंदू राष्ट्र हो सकता है, तो एक सिख राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता है?
उसके पास दमदमी टकसाल के 14वें जत्थेदार (प्रमुख) जरनैल सिंह भिंडरावाले का करिश्माई और मंत्रमुग्ध करने वाला व्यक्तित्व नहीं है. अमृतपाल को सिख धार्मिक शास्त्रों का केवल अल्पविकसित ज्ञान है और यह दमदमी टकसाल जैसी सुस्थापित धार्मिक संस्था का उत्पाद नहीं है.
उसके पास राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक असंतोषों के आधार पर जनसमूह बनाने का समय भी नहीं था जैसा कि भिंडरावाले ने 1977 से 1982 तक किया था. कुल मिलाकर, वह “कौमी शहीद” भिंडरावाले के कल्ट का लाभ लेने वाला एक कट्टरपंथी ऐक्टर/अभिनेता है.
दीप सिद्धू और अमृतपाल सिंह का उदय 26 नवंबर 2020 से 9 दिसंबर 2021 तक चलने वाले किसानों के आंदोलन से हुआ. प्रतीकात्मक रूप से एक गैर-अनुयायी सिख (Non-Adherent Sikh) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पूर्व समर्थक दीप अपने भाषणों के जरिए सुर्खियों में आया बटोरीं, जिसमें उसने न केवल कठोर कृषि कानूनों के बारे में बल्कि उन अन्य समस्याओं के बारे में भी सवाल उठाया जिनसे पंजाब परेशान था.
वास्तव में, दीप एक कट्टरपंथी था जिसे वास्तविक किसानों ने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था. लेकिन जल्द ही उसे रेडिकल डायस्पोरा लोगों द्वारा हाथों-हाथ ले लिया गया जो हमेशा भिंडरावाले 2.0 की तलाश में रहते हैं. दूसरी ओर, किसान आंदोलन को खालिस्तान के पुनरुत्थान से जोड़ने के लिए एक सुनियोजित राजनीतिक अभियान चलाया जा रहा था, जिसने आगे चलकर फूट पैदा की.
किसानों और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर दीप ने 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर खालसा का झंडा (निशान साहिब) फहराने का आयोजन किया. उसे गिरफ्तार किया गया और छोड़ दिया गया इसके बाद उसे फिर से गिरफ्तार किया गया और फिर से जमानत पर छोड़ दिया गया. आश्चर्यजनक रूप से, उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत आरोप नहीं लगाया गया. दीप सिद्धू की लोकप्रियता आसमान छूने लगी और इस बात को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया कि कौन उसका समर्थन कर रहा है.
राज्य की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं को उजागर करने और हल करने के लिए उसने सितंबर 2021 में वारिस पंज-आब दे का गठन किया, जिसे आमतौर पर वारिस पंजाब दे (डब्ल्यूपीडी) नाम से जाना जाता है. संस्था को दिसंबर 2022 में रजिस्टर करवाया गया था और जो चंदा स्वीकार कर सकती थी.
फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में अपनी मौत से पहले दीप ने खालिस्तान समर्थक विचारधारा के लिए जाने जाने वाले शिरोमणि अकाली दल-अमृतसर (SAD-A) को अपना समर्थन देने की भी घोषणा की थी. नतीजतन, एसएडी-ए ने पिछले साल संगरूर लोकसभा उपचुनाव जीता, जो 1999 के बाद पहली चुनावी जीत थी. दीप की मौत ने कट्टरपंथियों से एक उभरता हुआ सहारा छीन लिया, जिससे उत्तराधिकारी की तलाश शुरू हो गई- और चुनाव के रूप में अमृतपाल का नाम सामने आया.
WPD प्रमुख बनने से पहले, अमृतपाल दुबई में रहता था और सोशल मीडिया पर सक्रिय रूप से किसानों और कट्टरपंथियों का समर्थन करता था. वह किसानों के आंदोलन में शारीरिक रूप से भी शामिल हुआ, लेकिन कथित तौर पर उसके अति-कट्टरपंथी विचारों और प्रतिद्वंद्वी होने के कारण, दीप उसकी आलोचना करता रहा, जिसके बाद वह दुबई लौट आया. कट्टरपंथी लोगों, पंजाब के कट्टरपंथियों और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) द्वारा उसकी पहचान खालिस्तान आंदोलन के संभावित नेता के रूप में की गई थी. मार्च 2022 की शुरुआत में, SAD-A ने कथित तौर पर अमृतपाल को WPD का नया प्रमुख घोषित किया, और उसे कथित तौर पर ISI द्वारा ओरिएंटेशन के लिए जॉर्जिया भेजा गया.
अमृतपाल अगस्त 2022 में भारत आया और आनंदपुर साहिब में अमृत पान करने के बाद अमृतधारी सिख बन गया. सितंबर में, भिंडरावाले के गांव रोडे में औपचारिक रूप से उसका तिलक किया गया. इसके बाद उसने भिंडरावाले की स्टाइल की नकल करनी शुरू कर दी, और जल्द ही कट्टरवाद के लिए एक जनाधार बनना और मजबूत होना शुरू हो गया. उसने जुलाई 2022 में दीप सिद्धू के वारिस पंज-आब दे की नकल करके इसी नाम से एक संगठन बनाया. यह संगठन भी चंदा लेता था उसके परिवार वालों द्वारा ही इसे नियंत्रित किया जाता था.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के सहयोग से उसने अमृत प्रचार यात्रा भी निकाली. यहां, उसने सिखों को अमृतधारी सिख बनाया और उनसे पूर्ण रूप से सिख सिद्धांतों का पालन करने का आग्रह किया. उसके भाषण दिन-ब-दिन उग्र होते गए और मीडिया ने उसकी छवि बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
पंजाब में लोकप्रिय धारणा यह थी कि अमृतपाल सिंह “एजेंसी दा बंदा है (शाब्दिक रूप से – एक एजेंसी द्वारा प्रायोजित एक व्यक्ति)”. पंजाब में “एजेंसी” शब्द का तात्पर्य सरकार और उसकी खुफिया एजेंसियों से है.
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अमृतपाल क्यों नहीं पकड़ा गया?
तार्किक रूप से तो अमृतपाल ने जिस दिन भारत में कदम रखा था उसी दिन से उसे देश के खुफिया राडार पर होना चाहिए था और एनएसए के तहत उस पर मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए था – या जब उसने खालिस्तान के निर्माण की खुले तौर पर वकालत की थी उसके बाद उसे निश्चित रूप से गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी संगठनों और गैंगस्टरों की जांच के लिए 2022 और 2023 में पंजाब में कई छापेमारी की थी. अमृतपाल सिंह को क्यों बख्शा गया जबकि मीडिया स्पष्ट रूप से कह रहा था कि भिंडरावाले 2.0 बनने की प्रक्रिया में है?
जनता की धारणा यह है कि छोटे राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह की नीतियों को बढ़ावा दिया गया क्योंकि पंजाब में कट्टरपंथ/खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा देने से राज्य सरकार की आलोचना होगी जो कि दूसरी पार्टियों के लिए चुनावी लाभ में परिवर्तित हो सकता है. अनुभवहीन आप सरकार भिंडरावाले की पृष्ठभूमि और 2015 के बरगारी बेदबी (गुरु ग्रंथ साहिब अपमान) मामले को देखते हुए प्रतिक्रिया के डर से निष्क्रिय हो गई थी. इस कार्यवाही को विपक्ष भी बड़े चाव से देखता रहा. इस मामले में बदनाम शिरोमणि अकाली दल (SAD) और उसकी आभासी धार्मिक शाखा, SGPC ने अमृतपाल को मौन समर्थन दिया.
इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अमृतपाल अभी तक केवल वर्क इन प्रोग्रेस था. उसके सलाहकार-आईएसआई, कट्टरपंथी डायस्पोरा, और राजनीतिक रूप से SAD-A एक जनाधार बनाने पर जुटे हुए थे. केवल 10-15 साधारण दागे जाने वाले लाइसेंसी हथियारों की बरामदगी को देखते हुए, मिलिशिया को खड़ा करना कल्पना करने जैसा ही था. ऐसा लगता है कि पैसे के अलावा, आईएसआई ने उसे कोई ठोस समर्थन नहीं दिया है.
देखने में तो अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोलना, जो इस पूरी कहानी में काफी महत्त्वपूर्ण था, एक आवेगपूर्ण कार्रवाई थी जिसने अमृतपाल की शक्ति और दबदबे को प्रदर्शित किया. हालांकि, मेरा विचार यह है कि यह एक सुनियोजित कार्रवाई थी, ताकि पुलिस को जवाबी कार्रवाई के लिए मजबूर किया जा सके और 13 अप्रैल 1978 की घटना की तरह की स्थिति पैदा की जा सके, जहां अमृतसर में निरंकारी के साथ झड़प में भिंडरावाले के 13 अनुयायी मारे गए थे. यह काफी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी जिसने पंजाब में अशांति पैदा कर दी थी और जिसकी वजह से भिंडरावाले को काफी प्रसिद्धि मिली थी.
आगे का रास्ता
एक बार फिर, मैं दोहराता हूं कि पंजाब में खालिस्तान को कोई समर्थक नहीं है. कुछ लोग इस बात पर मेरा मजाक बना सकते हैं लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि भिंडरांवाले ने भी यहां तक कि सबसे खराब समय में भी, कभी खालिस्तान की मांग नहीं की. हालांकि, 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक पंजाब का रक्तरंजित इतिहास देश को याद है.
हर आंदोलन या आपराधिक कृत्य को खालिस्तान के लिए कट्टरपंथियों की करतूत माना जाता है. उदाहरण के लिए भाजपा द्वारा कृषि कानूनों के शांतिपूर्ण विरोध को भी खालिस्तान के लिए आंदोलन के रूप में बताने की कोशिश – जिसे मुख्यधारा की मीडिया और पार्टी के समर्थकों द्वारा भी व्यापक रूप से प्रचारित किया गया. दिसंबर 2021 में फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई दुर्भाग्यपूर्ण चूक के बाद भी यही दोहराया गया. पंजाब की घटनाओं को सनसनीखेज बनाने में टीवी मीडिया सबसे ज्यादा गैर-जिम्मेदाराना रहा है. बहुत कम पत्रकारों ने पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की निष्पक्ष जांच की है. दीप सिद्धू और अमृतपाल का उदय सिक्खों के साथ पराएपने का व्यवहार किए जाने का प्रत्यक्ष परिणाम था.
पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है इसलिए यहां सामाजिक आर्थिक अशांति के लिए वे सारे घटक मौजूद हैं. 1970 से 1990 के दशक तक सीमित औद्योगीकरण लेकिन सापेक्षिक रूप से समृद्धि वाला एक कृषि प्रधान राज्य अब गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. जोतें कम हो गई हैं, और खेती अलाभकारी हो गई है. बेरोजगारी व्याप्त है, खराब शिक्षा और नशीली दवाओं/शराब की लत ने समस्या को और बढ़ा दिया है. प्रत्येक परिवार कम से कम एक व्यक्ति को विदेश भेजने के लिए जमीन बेचता है और उनके द्वारा भेजे गए पैसे पर जीवित रहता है, जिसके बदले में विदेशों में कट्टरपंथियों के प्रभाव के प्रति ये लोग संवेदनशील हो जाते हैं.
समुदाय को धर्म परिवर्तन, डेराओं, स्वयंभू गुरुओं और उन पथभ्रष्ट युवाओं से खतरा महसूस होता है जो इसकी मान्यताओं का पालन नहीं करते हैं. बेअदबी या गुरु ग्रंथ साहिब (जिन्हें एक जीवित गुरु मानते हैं) की बेअदबी अति भावुक विषय है. जब बलात्कारियों के जेल की सजा माफ की जा रही है तो बंदी सिखों की जेल की सजा को माफ करना अन्यायपूर्ण माना जाता है.
बाकी के भारत में अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार किए जाने का जवाब “अगला हम हो सकते हैं” तर्क से दिया जाता है. सर्वोच्च धार्मिक निकाय SGPC, SAD की एक मात्र राजनीतिक शाखा बन गई है और उसने अपनी आध्यात्मिक मार्गदर्शन की जिम्मेदारी छोड़ दी है. इसकी वजह से जो शून्य पैदा हुआ है, उस पर कट्टरपंथियों ने कब्जा कर लिया है. राज्य 3.3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है, जो साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. ऋण चुकता करने और एक बड़े सब्सिडी बिल के कारण विकास के लिए बहुत कम या कोई पैसा नहीं बचता है.
पंजाब, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक खतरा है, और सभी दलों को चुनावी राजनीति से ऊपर उठकर सहयोग करना चाहिए और इसकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. राजनीतिक दलों को लोगों की नब्ज टटोलनी चाहिए और कट्टरपंथियों को विरोध और आंदोलन पर नियंत्रण करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए. SGPC को राजनीति के बजाय धार्मिक उत्थान और सिख धर्म को पुनर्जीवित करने पर जोर देना चाहिए.
कानून व्यवस्था का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए. कथित रूप से न्याय न मिलने के कारण कट्टरवाद को बढ़ावा मिलता है. अमृतपाल को जल्द से जल्द पकड़कर और पारदर्शी जांच व प्रॉसीक्यूशन को सुनिश्चित करके इस कहानी को समाप्त किया जाना चाहिए. किसी भी गैर-न्यायिक तरीके और कठोर कानूनों को लागू करने से समुदाय में उत्पीड़न की भावना ही पैदा होगी.
केंद्र सरकार को पंजाब के कर्ज को बट्टे खाते में डालने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, जो उग्रवाद के दिनों से लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है. इसके अलावा पंजाब के औद्योगीकरण के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करने और कृषि सुधारों में भी निवेश करने की आवश्यकता है. अंततः, भाजपा को हिंदुओं और सिखों के बीच सद्भावना की अपनी विचारधारा पर वापस आना चाहिए, जिसको लेकर यह पंजाब में उग्रवाद के दिनों से ही पूरी तरह से प्रतिबद्ध थी. यह समय सबको साथ लेकर चलने का है न कि अल्पसंख्यकों को कोसने का. यही राष्ट्रवाद की सच्ची परीक्षा है, बाकी सारी बातें निरर्थक हैं.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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