scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतराष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीति से इतर अब 'सहकारी क्षेत्र' पर अमित शाह की नज़र

राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीति से इतर अब ‘सहकारी क्षेत्र’ पर अमित शाह की नज़र

शाह और प्रधानमंत्री मोदी की सहकारी क्षेत्र में दिलचस्पी जाहिर है कि राजनीति के खेल का हिस्सा है. सहकारी क्षेत्र में 30 करोड़ देशवासी जो जुड़े हुए हैं.

Text Size:

अमूमन अमित शाह का नाम गृह मंत्रालय में कामकाज के उनके तौर-तरीकों या उनकी राजनैतिक रणनीतियों और उस पर अमल के मामले में बातचीत में उछल आता है. लेकिन सहकारिता मंत्रालय के मुखिया के नाते उनका राजकाज भी कम खास नहीं है और उसकी राजनैतिक संभावनाओं के लिए भी महत्व है. दशकों से भारतीय राजनीति में सहकारिता क्षेत्र को पैसों के घालमेल, राजनीति और विकास के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, ताकि लोगों तक पहुंच बनाई जा सके और अपनी पार्टी की राजनीतिक पैठ बढ़ाई जा सके. नए मंत्रालय की गतिविधियों के मद्देनजर यह साफ है कि शाह का नया प्रेम सहकारी क्षेत्र है.

आजादी के बाद से ही भारत का सहकारिता क्षेत्र अपने समाजवादी और लोकतांत्रिक मूल्यों का वाहक रहा है और समावेशी विकास के मॉडल को ऐसे आगे बढ़ाता रहा है, जिसकी पैठ बाकी किसी की नहीं रही है. देश के सबसे नए केंद्रीय मंत्रालय, सहकारिता मंत्रालय में कोई विजिटर रूम नहीं है और 500 से भी कम आधिकारी-कर्मचारी हैं और करीब 900 करोड़ रु. का बजट है, फिर भी सबसे महत्वाकांक्षी और व्यस्त मंत्रालयों में एक है. आखिरकार उसका काम रक्षा, वित्त से लेकर कपड़ा नरेंद्र मोदी सरकार के सभी मंत्रालयों को छूता है.

कृषि भवन में स्थित यह मंत्रालय आठ लाख प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसायटी (पीएसी), हजारों जिला और राज्य सहकारी समितियों के जरिए देश के विशाल शासन-प्रशासन के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए उस पर विचार विमर्श कर रहा है.

पीएसी के लिए योजना

शाह ने हाल ही में हर गांव, कस्बे और शहर में पहुंच के एजेंडे के साथ ज्ञानेश कुमार को सहकारिता मंत्रालय का सचिव बनाया है. संस्था के करीबी सूत्रों ने दावा किया कि शाह पीएसी के आधुनिकीकरण को तेज करना चाहते हैं और देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ इफ्को और अमूल जैसी स्थापित सहकारी संस्थाओं की कानूनी अड़चनों को दूर करना चाहते हैं.

सूत्रों के मुताबिक, मोदी सरकार पीएसी के कारोबार का दायरा बढ़ाना चाहती है, उसके टर्नओवर में इजाफा करना चाहती है और उसे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, कर्ज वितरण योजना (आइएसएस), फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और खाद तथा बीज वितरण का नोडल एजेंसी बनाना चाहती है. केंद्र की मंशा यह भी है कि पीएसी इस क्षेत्र में सार्वजनिक बैंक का एकाधिकार तोड़े.

कई सुधारों के बाद मोदी सरकार 400 से अधिक केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं, परियोजनाओं और सेवाओं के लिए पीएसी को आखिरी समांतर ढांचा बनाना चाहती है. दिलचस्प यह है कि पूंजीपतियों को मदद करने का आरोप झेलने वाली मोदी सरकार सहकारिता को शासन की रीढ़ बनाना चाहती है.

मौजूदा हालत में सब नहीं तो कई पीएसी नाकारा, गोरखधंधे में लिप्त और भारी राजनैतिक असर में हैं. इसलिए सही दिशा में पहला कदम यह होगा कि उन्हें पारदर्शी बनाया जाए. प्राथमिक, जिला और राज्य सहकारिता बैंकों में निवेश तभी होगा, जब वे डिजिटल हों. इसके जरिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और यहां तक कि सचिव ज्ञानेश कुमार भी दिल्ली में बैठे सहकारी मंडलियों में कर्ज और जमा राशि का पता लगा सकेंगे.

पिछले हफ्ते 29 जून को मोदी मंत्रिमंडल ने फैसला किया कि 63,000 पीएसी को 2,516 करोड़ रु. की लागत से कंप्यूटरीकरण किया जाएगा, जिससे 13 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होगा. 8.5 लाख सदस्यों वाले भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष दिलीप संघाणी ने कहा, ‘हम आधुनिक बन रहे हैं. हम प्राइमरी क्रेडिट सोसायटीज को 17 भाषाओं में साफ्टवेयर मुहैया कराएंगे. आपको याद रखना है कि हमारा फायदा कभी निजी हाथों में नहीं जाता.’


यह भी पढ़ें: तीस्ता सीतलवाड़ के साथ गिरफ्तार किए गए IPS आरबी श्रीकुमार ‘इसरो’ से ‘गुजरात दंगों’ तक कैसा रहा है सफर


सहकारिता क्षेत्र का नया अवतार

सहकारिता क्षेत्र से अमित शाह का यह पहला सबक नहीं है. वे ’90 के दशक में गुजरात के गुजरात के सहकारी क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. वे सुर्खियों में तब आए, जब वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट सहकारिता बैंक के चेयरमैन बने, जो (भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से) दिवालिएपन की कगार पर था. लेकिन उन्होंने जल्दी ही उसे राज्य में सबसे मुनाफे वाले सहकारी बैंकों में बदल दिया. वे कामयाब सहकारी संस्थाओं के कल-पुर्जे, स्थानीय अर्थव्यवस्था और दलगत राजनीति में उसके फायदों से बखूबी वाकिफ हैं. सहकारी संस्थाओं पर कब्जा का मतलब है उस ‘भीड़’ तक पहुंच, जिससे नेताओं को खासा लगाव है.

सो, शाह देश में सहकारी क्षेत्र को नया अवतार देने के लिए हड़बड़ी में हैं. मंत्रालय ने हाल ही में आधुनिकीकरण की अपनी कोशिशों के लिए स्थानीय भाषाओं में वेब पोर्टल लॉन्च किया. उसने पहली बार राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार करने के लिए एक लाख से अधिक सहकारिता सदस्यों के लिए राष्ट्रीय कानक्लेव का भी आयोजन किया. राष्ट्रीय सहकारिता यूनिवर्सिटी भी आने वाली है. सहकारिता में विभिन्न स्तरों पर मैनेजरों की ट्रेनिंग का व्यापक कार्यक्रम भी चल रहा है. सहकारिता क्षेत्र के लिए कई कानूनी संशोधन भी किए जाएंगे, ताकि सरकार उन्हें कारोबार देने के लिए अधिक जोखिम उठा सके.

एक मायने में, सहकारिता क्षेत्र सरकार को प्यारा हो गया है. तीन लाख नए पीएसी  बनाने को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गयी है, जो अर्थव्यवस्था और रोजगार में बढ़ोतरी के लिए बड़ा कदम है. इनमें आधे लक्ष्य भी पूरे हो गए तो जिला स्तर की अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा होगा.

केंद्र पहले ही शक्कर क्षेत्र से कुछ टैक्स हटा चुका है, मैट 18 से 15 फीसदी कम कर चुका है और सहकारी संगठनों से सरचार्ज 12 फीसदी 7 फीसदी कर चुका है.


यह भी पढ़ें: उलझे तारों ने उदयपुर हत्याकांड को तासीर के हत्यारे, पेरिस के नाइफमैन को ‘उकसाने’ वाले समूह से जोड़ा


लक्ष्यों पर नजर

प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की सहकारी क्षेत्र में दिलचस्पी जाहिर है कि राजनीति के खेल का हिस्सा है. सहकारी क्षेत्र में 30 करोड़ देशवासी जुड़े हुए हैं. महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक इसके अग्रिम मोर्चे पर हैं. केरल और उत्तर प्रदेश जैसे कई दूसरे राज्य भी अपने सहकारी क्षेत्र को व्यापक बनाने की जोरदार कोशिश कर रहे हैं. पीएसी संस्थाओं का सालाना टर्नओवर करीब 8 लाख करोड़ रु. है. शहरी सहकारिता बैंकों का कारोबार करीब 5 लाख करोड़ रु. बैठता है.मोदी सरकार डिजटलीकरण के सहारे गांव से लेकर शहर सहकारी क्षेत्र को 30 लाख करोड़ रु. पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.सरकार चाहती है कि सहकारी क्षेत्र कमाई और रोजगार के मामले में कॉर्पोरेट क्षेत्र को होड़ दे.

गुजरात के सबसे पुराने और बड़े कृषि और ग्रामीण जमीन विकास बैंकों में एक 2.75 लाख किसानों की सदस्यता वाले खेती बैंक के चेयरमैन डोलार कोटेचा ने कहा, ‘पीएसी एकमात्र ऐसी संस्थाएं हैं जिनके पास सरकार के समांतर ढांचा है. हाल में हमने अपने सदस्यों को दुर्घटना बीमा के मद में 50,000 रु. वितरित किया. हम इसे महज 30 दिन में बांट देंगे. सहकारिता क्षेत्र के जरिए कोई सरकार अपनी योजनाओं पर अमल के लिए पीएसी का इस्तेमाल कर सकती है.’

दूध, मूंगफली, शक्कर, फल, सब्जियां और खाद सहकारिता संस्थाओं के अलावा ‘सहकार से समृद्धि’ नारे के तहत नए विचार उभर रहे हैं. सरकारी इस्तेमाल के लिए सामग्री, चेहरे के मास्क, मछली मारने के जाल और सैनिकों के लिए टोपियां मुहैया कराने वाले सहकारी स्टार्ट अप उनमें कुछ हैं.

अमित शाह ने 29 मई को गुजरात में पंचामृत डेयरी के आयोजन में कहा, ‘मैं सहकारिता मंत्री के नाते कहूंगा कि सहकारिता मंत्रालय के जरिए मोदी जी के नेतृत्व में अगले पांच वर्ष में इस क्षेत्र में बड़ी क्रांति आने वाली है.’

अगर आप अमित शाह के इस बयान में भारतीय जनता पार्टी का साफ-साफ फायदा पढ़ पा रहे हैं, तो आप एकदम सही हैं.

(शीला भट्ट दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार हैं. यहां व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी मसले पर मोदी और भागवत के विचार मिलते हैं लेकिन इस पर संघ परिवार में क्या चल रहा है


share & View comments