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Monday, 25 August, 2025
होममत-विमतअमित शाह को 2049 तक सत्ता में रहने का भरोसा है, मगर मोदी टीम की रफ़्तार और कल्पनाशक्ति कमजोर हो रही

अमित शाह को 2049 तक सत्ता में रहने का भरोसा है, मगर मोदी टीम की रफ़्तार और कल्पनाशक्ति कमजोर हो रही

संविधान संशोधन विधेयक से लेकर मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने तक और राज्यपालों की शक्तियों पर अपने रुख तक, भाजपा ऐसा व्यवहार कर रही है मानो वह हमेशा शासन करने वाली पार्टी हो.

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अमित शाह ने 2018 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में घोषणा की थी कि पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव जीतेगी और “अगले 50 साल तक कोई बीजेपी को सत्ता से हटा नहीं पाएगा”— यानी 2069 तक.

पिछले महीने, केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार ने लोकसभा में कहा कि विपक्षी पार्टियां (विपक्ष की बेंचों पर) “अगले 20 साल तक” रहेंगी— यानी 2045 तक.

इसे 2049 मान लीजिए क्योंकि लोकसभा चुनाव 2044 में होगा. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के लक्ष्य को भी समाहित करता है.

मोदी कम से कम 2035 तक नेतृत्व में बने रहना चाहते हैं. स्वतंत्रता दिवस भाषण में उन्होंने कहा, “आने वाले 10 वर्षों में, 2035 तक, मैं इस (राष्ट्रीय सुरक्षा कवच) को बढ़ाना चाहता हूं… इसे मज़बूत करना चाहता हूं, आधुनिक बनाना चाहता हूं.” यहां “मैं” अहम है. तब उनकी उम्र सिर्फ 85 होगी. और वे जो बाइडेन से कहीं ज्यादा फिट हैं, जिन्होंने 82 साल की उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपति पद से विदाई ली. महाथिर मोहम्मद लगभग 95 साल की उम्र तक मलेशिया के प्रधानमंत्री रहे.

आप सोच रहे होंगे कि मैं गंभीर नहीं हूं. 20 या 50 साल की बातें तो सिर्फ भाषणबाज़ी होती हैं, है ना? एक पूर्व बीजेपी सांसद ने मुझे सलाह दी कि पीएम मोदी के 2035 वाले बयान को गंभीरता से न लिया जाए. “जिस दिन कोई नेता ये इशारा कर दे कि वह रिटायरमेंट के बारे में सोच रहा है, उसी दिन से लोग उसे छोड़ना शुरू कर देते हैं. राजनीति में आप ऐसा नहीं कर सकते,” उन्होंने समझाया. शायद. लेकिन अगर बीजेपी नेता सच में वही मानते हों जो कहते हैं तो?

वरना आप कैसे समझाएंगे मोदी सरकार का अचानक संविधान (130वां संशोधन) विधेयक लाना, जिसमें प्रावधान है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री अगर तीस दिनों से ज्यादा तक हिरासत या गिरफ्तारी में रहें तो वे पद से हट जाएंगे. पीएम का नाम इसमें सिर्फ दिखावे के लिए है. यह प्रस्तावित कानून सीएम और मंत्रियों को मुख्यतः केंद्रीय जांच एजेंसियों की दया पर छोड़ देता है, जिनका निष्पक्षता का रिकॉर्ड चर्चा योग्य नहीं है.

बीजेपी का ‘हमेशा’ वाला विज़न

ये केंद्रीय एजेंसियां अक्सर राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए सब कुछ करने को तैयार रहती हैं. जो सीएम और मंत्री केंद्र में सत्ताधारी पार्टी/गठबंधन से नहीं हैं, उनके पास इस प्रस्तावित कानून से डरने की वजह है। इसका इस्तेमाल हमेशा विपक्ष के खिलाफ किया जा सकता है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने हाल ही में बताया कि कैसे मनमोहन सिंह सरकार के दौरान पी. चिदंबरम ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) में संशोधन का समर्थन किया था, जिसमें निर्दोष साबित करने का भार आरोपी पर डाल दिया गया था. पवार ने सिंह से कहा था कि यह खतरनाक है. पवार ने बताया, “अगर सरकार बदल गई तो हमें भी नतीजे भुगतने होंगे. लेकिन सलाह नहीं मानी गई.”

2019 में ईडी ने पी. चिदंबरम को एक PMLA केस में गिरफ्तार किया गया. उन्हें जमानत मिलने से पहले 106 दिन जेल में रहना पड़ा.

प्रस्तावित संविधान (130वां संशोधन) विधेयक का इस्तेमाल केंद्र की कोई भी सत्ताधारी पार्टी (सिर्फ बीजेपी ही नहीं) विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने के लिए कर सकती है. तो फिर शाह या बीजेपी ऐसा कानून क्यों बनाना चाहेंगे? सबसे संभावित जवाब यही है कि बीजेपी खुद को कभी भी अपने आप को लोकसभा में विपक्ष की बेंचों पर बैठा नहीं देखती— कम से कम 2049 तक.

देखिए केंद्र का रुख जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर राज्यपालों को समयसीमा में कार्रवाई करने को कहा. केंद्र चाहता है कि राज्यों की निर्वाचित सरकारें उसके राजभवन में बैठे नामज़द लोगों की दया पर रहें. केवल वही पार्टी ऐसा सोच सकती है जिसे भरोसा हो कि वह हमेशा केंद्र में सत्ता में रहेगी.

बीजेपी का यह आत्मविश्वास और भी कई तरीकों से झलकता है— जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सरकार के नियंत्रण को खत्म करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना, विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए कथित तौर पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करना. और भी कई उदाहरण हैं.

असफल होती केंद्रीय योजनाएं और वादे

लेकिन यहां एक पेच है. टीम मोदी की रफ्तार धीमी होती दिख रही है. इस साल लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए मोदी ने कहा, “मैं अपने देश के युवाओं के लिए शुभ समाचार लाया हूं. आज, 15 अगस्त को, हम अपने देश के युवाओं के लिए 1 लाख करोड़ रुपये की योजना शुरू और लागू कर रहे हैं. आज प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना लागू की जा रही है.” वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना की घोषणा जुलाई 2024 के बजट भाषण में की थी. इसे इस साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में नए नाम के साथ पेश किया गया.

पीएम ने कौशल विकास, स्वरोजगार और बड़ी कंपनियों में इंटर्नशिप के लिए एक “बड़े अभियान” का जिक्र किया. आइए बजट भाषण में शामिल आखिरी हिस्से पर नज़र डालें—प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PMIS), जिसमें 2029 तक 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप देने का लक्ष्य है. PMIS अब तक बड़ी निराशा साबित हुई है, जिसमें कम भागीदारी और ज्यादा ड्रॉपआउट रहे हैं, जैसा कि मेरे सहयोगी उदित बुबना की जांच रिपोर्ट ने दिखाया.

पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुए पहले दौर में, सार्वजनिक और निजी कंपनियों द्वारा दी गई 1.27 लाख इंटर्नशिप स्लॉट्स में से सिर्फ 8,725 उम्मीदवारों ने ही जॉइन किया. उनमें से भी कई बाद में छोड़कर चले गए. FY25 के लिए PMIS के लिए प्रारंभ में तय किए गए 2,000 करोड़ रुपये— जिसे बाद में घटाकर 380 करोड़ रुपये कर दिया गया—में से फरवरी 2025 तक केवल 21.1 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए.

दूसरे दौर में, 1.18 लाख इंटर्नशिप अवसरों में से 17 जुलाई तक केवल 22,584 उम्मीदवारों ने ऑफर स्वीकार किए, जैसा कि सरकार ने लोकसभा में बताया. इनमें से कितनों ने वास्तव में जॉइन किया, यह अभी तक सामने नहीं आया है.

जहां तक प्रचारित स्किल इंडिया मिशन का सवाल है, आपको कार्ति चिदंबरम का दिप्रिंट में प्रकाशित लेख पढ़ना चाहिए—”स्किल इंडिया का पैसा कहां जा रहा है? यह 48,000 करोड़ रुपये का रहस्य है.”

वह कांग्रेस सांसद हैं, लेकिन उन्होंने आधिकारिक डेटा का हवाला दिया है. कौशल विकास और उद्यमिता (MSDE) मंत्रालय अब बीजेपी सहयोगी—राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी को दिया गया है. 2014 से अब तक इस मंत्रालय में कई मंत्री बदले गए—राजीव प्रताप रूडी, धर्मेंद्र प्रधान, महेंद्र नाथ पांडे, फिर से प्रधान, और अब जयंत चौधरी. इतनी प्रतिबद्धता उस स्किल इंडिया मिशन के लिए, जिसका ऐलान पीएम मोदी ने 2014 में लाल किले से किया था!

अब उनके उस साल के अन्य ऐलानों को देखिए—मेक इन इंडिया, उदाहरण के लिए. इसका लक्ष्य था 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा जीडीपी में 25 प्रतिशत करना—जो 2013-14 में लगभग 17 प्रतिशत था. इस साल अप्रैल में, वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि भारत अगले दो दशकों में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 23 प्रतिशत करने की योजना बना रहा है.

पीएम मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी वादा किया था. 2014 में लाल किले से पीएम ने सांसद ग्राम योजना का ऐलान किया था—2016 तक एक “आदर्श” गांव बनाना, 2019 तक दो और, और 2019 से 2024 तक पांच और. यह योजना गुमनामी में चली गई है. फिर था स्वच्छ भारत मिशन. यह अच्छे से शुरू हुआ था लेकिन आज लगभग भुला दिया गया है.

2015 में, पीएम मोदी ने 100 शहरों में जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया. यह मिशन इस साल समाप्त हुआ, जिसमें 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए. आप शायद उन स्मार्ट सिटी में से किसी एक में रह रहे हों, भले ही आपको पता न हो.

मोदी का इस साल का स्वतंत्रता दिवस भाषण फिर से खूब सराहा गया— “अगली पीढ़ी के सुधारों” के लिए टास्क फोर्स सबसे आशाजनक है. पता नहीं वह सचमुच इस पर अमल करेंगे या नहीं और भूमि व श्रम सुधारों पर लौटेंगे या नहीं. सरकार किसानों से जुड़े किसी भी मुद्दे पर संवेदनशील बनी हुई है—चाहे अच्छा हो या बुरा. 2015 में, मोदी ने लाल किले से चार श्रम संहिताओं की बात की थी. संसद ने इन्हें 2019-20 में पारित किया. लेकिन केंद्र ने इन्हें अभी तक अधिसूचित करने की इच्छा नहीं दिखाई है.

पुनर्गठन का समय

शनिवार को प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार “अगली पीढ़ी के सुधारों का भंडार” लागू करने के लिए तैयार है. अगर बीजेपी को 2049 तक सत्ता में रहना है तो ये सुधार सतही नहीं बल्कि ठोस होने चाहिए.

जैसा कि ऊपर बताए गए उदाहरण दिखाते हैं, मोदी की टीम थकी हुई लग रही है, कल्पनाशक्ति खो रही है या प्राथमिकताओं को सही तरीके से तय नहीं कर पा रही है. अमेरिका के 50 प्रतिशत टैरिफ से भारत के माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSMEs) पर कड़ा असर पड़ेगा. इस संकट से MSME क्षेत्र को बाहर निकालने वाले मंत्री कौन हैं? यह जीतन राम मांझी हैं, जो बिहार में चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं और अपने मंत्रालय में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे.

एक और मंत्री जिन्हें चिंतित होना चाहिए था, वे हैं राजीव रंजन सिंह, जो मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री हैं. वे भी बिहार चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं. वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह और कई अन्य की भी बात की जा सकती है. मैं तर्क के दूसरे पहलू से भी अवगत हूं। कि मंत्रालय प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और नौकरशाह चलाते हैं, मंत्री नहीं. इसलिए चिंता की जरूरत नहीं. यही मेरी बात है. वे नौकरशाह भी अब थके और कल्पनाशक्ति से खाली लगते हैं जबकि राजनीतिक कार्यकारी लगातार चुनावों में व्यस्त है. प्रधानमंत्री मोदी को अपनी टीम का पुनर्गठन करना चाहिए—मंत्रियों और नौकरशाह दोनों का.

डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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