अग्निवीरों की ट्रेनिंग 2 जनवरी, 2023 को तीनों सेनाओं में शुरू हुई. अग्निवीरों के चार साल के कार्यकाल का पूरी तरह से उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, सेना ने 31 सप्ताह का प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाया, जिसमें 10 सप्ताह का बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण (बीएमटी) और 21 सप्ताह का एडवांस्ड मिलिट्री ट्रेनिंग (एएमटी) शामिल है, जो कि आर्म/सर्विस और ट्रेड संबंधित है. इसके बाद यूनिटों में छह सप्ताह का ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण दिया जाएगा. पहले के प्रशिक्षण मॉडल में, विभिन्न आर्म्स और सेवाओं के लिए बीएमटी 15 सप्ताह का था और एएमटी 6 से 18 महीने का.
ट्रेनिंग के समय को घटाने को आलोचकों ने अग्निपथ योजना की मुख्य कमियों में से एक माना है. ट्रेनिंग की समयसीमा घटाकर परिचालन दक्षता में आ रही गिरावट दूर करने के लिए सेना ने कैसे योजना बनाई है? ट्रेनिंग की गुणवत्ता में सुधार के लिए और क्या किया जा सकता है?
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मौजूदा ट्रेनिंग सिस्टम की खामियां
सेना के 15 सप्ताह के मौजूदा बीएमटी और 6-18 महीने की अवधि के एएमटी में लंबे समय से बदलाव की जरूरत थी. यह एक पुरातन पद्धति पर आधारित था जिसमें आधुनिक प्रशिक्षण सहायक सामग्री और सिमुलेटर का बहुत कम या कोई उपयोग नहीं हो रहा था. बीते वर्षों में की गई कई सिफारिशों के बावजूद, सुधारों को लागू नहीं किया गया. प्रशिक्षण के लिए सिस्टम का एप्रोच, जिसका पालन सभी आधुनिक सेनाओं द्वारा किया जाता है, को लागू नहीं किया गया था. साथ ही यह भी ठीक से परिभाषित नहीं किया गया कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अग्निवीर क्या करने में सक्षम हो पाएगा और इसे किस प्रक्रिया से गुजर कर (टर्मिनल और इनेबलिंग ऑब्जेक्टिव्स) पूरा किया जाएगा. बिना काम के विषयों को हटाए बिना दूसरे विषयों को जोड़ा गया. प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के बजाए ड्रिल, थ्योरी और अकादमिक शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया गय. फायरिंग और फील्ड क्राफ्ट, जो कि युद्ध के लिए सबसे जरूरी होते हैं, उसके स्टैंडर्ड काफी खराब थे.
तकनीकी हथियारों/सेवाओं, आर्टिलरी, एयर डिफेंस और मैकेनाइज्ड फोर्सेज में एएमटी की तुलना में ट्रेड के मुताबिक ट्रेनिंग की तकनीकी प्रकृति के कारण थोड़ी बेहतर थी लेकिन खराब कार्यप्रणाली और सिमुलेटर की कमी अभी भी बनी हुई है. इन्फैंट्री के लिए एएमटी, जो युद्ध में सबसे अधिक दुर्गमता का सामना करता है, ऊपर उद्धृत सभी कमियों से जूझ रहा है. यह व्यवस्था अब रेजीमेंटेशन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है. बमुश्किल औसत मानक हासिल कर लिए गए और युवा सैनिकों को यूनिट्स में फिर से ट्रेनिंग दी जाती है.
यूनिट्स/फॉर्मेशन में स्थिति कोई बेहतर नहीं थी. रीफ्रेशर/कॉन्टिन्यूटी ट्रेनिंग सिस्टम एप्रोच पर आधारित नहीं है और ऑपरेशनल और शांतिकाल की प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के कारण भी प्रभावित होता है. प्रशिक्षण सहायक सामग्री और सिमुलेटर का अभाव और भी स्पष्ट है. अग्निपथ योजना के आलोचकों ने कहा कि एक सैनिक को पूरी तरह से प्रशिक्षित होने में 5-6 साल लगते हैं. अभी की ट्रेनिंग देने के तरीके को देखते हुए, मेरे पास असहमत होने का कोई कारण नहीं है. और अंतिम रूप से परिणाम औसत से खराब ही रहेगा.
एक किस्सा मेरी बात को साबित कर देगा. 1997 में, आर्मी ट्रेनिंग कमान ने सिस्टम एप्रोच ट्रेनिंग पर एक असाधारण दूरदर्शी प्रशिक्षण नोट तैयार किया. इसकी मंशा मौलिक रूप से प्रशिक्षण के दृष्टिकोण को बदलने की थी. 1998-99 में, एक कोर के ब्रिगेडियर जनरल स्टाफ के रूप में, मैंने इसे सफलतापूर्वक लागू किया. हालांकि, जल्द ही हर कोई इसके बारे में भूल गया और फिर से वही स्थिति बन गई. 2003 में, सैन्य प्रशिक्षण महानिदेशक के रूप में, मैंने सभी कमानों को प्रोग्रेस और उनके विचार बताने के लिए ऐसा ही एक नोट भेजा. लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं हो पाया. आर्मी ट्रेनिंग कमान सहित सभी कमान, जो तब तक इस बारे में भूल गए थे कि इस कंसेप्ट को लाने वाले वही थे, जवाब आया कि यह एक अच्छा विचार था जिसे लागू करने की जरूरत है.
एक आर्मी कमांडर के रूप में, मैंने 2008 में इन्फैंट्री रंगरूटों के प्रशिक्षण में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए सेना के लिए एक अध्ययन किया. जिसके बाद, ट्रेनिंग के लिए सिस्टम एप्रोच अपनाया गया लेकिन पूरी तरह से नहीं. प्रशिक्षण की अवधि को 36 सप्ताह से घटाकर 30 सप्ताह कर दिया गया था, जो अब के मानक से एक सप्ताह कम है. सिमुलेटर, मॉडर्न ट्रेनिंग सामग्री और शिक्षण पद्धति को लेकर कुछ नहीं हुआ.
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सेना के सुधार प्रशिक्षण कार्यक्रम का मूल्यांकन
बीएमटी के दस सप्ताह और एएमटी के 21 सप्ताह मेरे विचार से पर्याप्त हैं और अधिकांश आधुनिक सेनाओं के लिहाज से भी सही है. हालांकि, इसके सफल होने के लिए, यह एथिकल वैलिडेशन के साथ सिस्टम्स एप्रोच पर आधारित होना चाहिए और सभी हथियारों और सामरिक स्थितियों के लिए आधुनिक प्रशिक्षण सहायक और सिमुलेटर से लैश होना चाहिए.
प्रशिक्षण व्यावहारिक होना चाहिए और फील्ड क्राफ्ट/रणनीति/प्राथमिक चिकित्सा के लिए ‘कैसे करें’ और हथियारों के लिए ‘कैसे उपयोग करें’ पर आधारित होना चाहिए. इंस्ट्रक्शनल स्टाफ को मनोवैज्ञानिक ओरिएंटेशन से गुजरना चाहिए और बैरकों में कोई दुर्व्यवहार और सजा नहीं होनी चाहिए. अधीनता के जरिए ट्रेनिंग की चली आ रही संस्कृति प्रशिक्षुओं को हतोत्साहित करती है, जो कि बंद होनी चाहिए.
ट्रेनिंग के दौरान प्रेरणा एक बहुत ही जरूरी कारक है. चूंकि ज्यादातर अग्निवीरों को सक्रिय परिचालन और उग्रवाद-विरोधी क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा और उन्हें तैनात किया भी जाना चाहिए, इसलिए पंचलाइन यह होनी चाहिए- ‘ऐसे समझकर ट्रेनिगं करें कि जैसे आपकी जिंदगी इस पर निर्भर है’. युद्धकालीन भर्ती प्रशिक्षण के लिए यह प्रेरणा रही है और ज्यादातर युद्ध भी ऐसे ही सैनिकों द्वारा जीते गए. यूक्रेनी सेना भी यही काम कर रही है.
कुछ टेक्निकल ट्रेड्स के लिए 21 सप्ताह का एएमटी अपर्याप्त हो सकता है. ऑन-जॉब-ट्रेनिंग द्वारा इसे आंशिक रूप से दूर किया जा सकता है. क्योंकि सालाना तौर पर एक यूनिट में शामिल होने वाले अग्निवीरों की संख्या अपेक्षाकृत कम होगी. एक बार जब अग्निवीर चार साल के बाद नियमित हो जाएंगे, तो उनके कौशल को एडवांस्ड कोर्स के जरिए बेहतर बनाया जा सकता है, जैसा कि अभी भी हो रहा है.
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सेना ने क्या किया और आगे क्या किया जा सकता है?
अखिल भारतीय योग्यता आधारित भर्ती/चयन प्रणाली ने जरूर भर्ती में सुधार किया है. भले ही भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता कक्षा 10 और 10+2 को निर्धारित किया गया हो, लेकिन बड़ी संख्या में उच्च योग्यता वाले (तकनीकी स्नातकों सहित), औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से डिप्लोमा धारक और अपेक्षाकृत उच्च ईक्यू वाले व्यक्तियों को भर्ती किया गया है. यह प्रशिक्षण के समय को कम करने, प्रौद्योगिकी के अनुकूलन और अकादमिक ट्रेनिंग के समय में कमी लाने में मदद करेगा.
प्रशिक्षण के लिए सिस्टम एप्रोच को अपनाया गया. 500 सिमुलेटर शामिल किए गए हैं और फास्ट-ट्रैक रूट के माध्यम से और खरीदे जा रहे हैं. स्वदेशी रूप से विकसित कॉम्बैट वेपन ट्रेनिंग सिम्युलेटर सभी प्रकार के इलाकों में अलग-अलग सामरिक स्थितियों में सभी हथियारों की सिम्युलेटेड फायरिंग को सक्षम बनाता है. यह सिम्युलेटर गेम चेंजर है. अत्याधुनिक प्रशिक्षण सहायता भी शुरू की गई है. ट्रेनिंग एक गहन प्रकृति का है. सिम्युलेटर और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग ने लंबे समय से चले आ रहे सैद्धांतिक प्रशिक्षण को बदल दिया है. एएमटी के दौरान वाहन, हथियार प्रणालियों और सामरिक सिमुलेटरों का भी व्यापक उपयोग किया जा रहा है.
प्रेरणा भारतीय सेना की ताकत रही है. अग्निवीरों को प्रेरित करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास किया जाना चाहिए. अधीनता के जरिए ट्रेनिंग देना सेना में हमेशा से रहा है. ऐसा दृष्टिकोण नेतृत्व के विकास के अनुरूप नहीं है. इस समस्या को दूर करने के लिए सांस्कृतिक परिवर्तन की जरूरत है.
आधुनिक शिक्षण विधियों के जरिए ट्रेनर को ट्रेनिंग देने की जरूरत है. प्रशिक्षकों को अपने खुद के पिछले अनुभव को दोहराने से बचने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण की भी जरूरत है.
ट्रेनिंग में बदलाव, जैसा कि अग्निवीरों के लिए शुरू किया गया है, को यूनिट्स और फॉर्मेशन तक बढ़ाया जाना चाहिए. यूनिट्स के भीतर रीफ्रेशर और कॉन्टिन्यूटी ट्रेनिंग व्यक्तिगत और सामूहिक प्रशिक्षण दोनों के लिए एक वार्षिक प्रक्रिया है. सिमुलेटर और आधुनिक प्रशिक्षण सहायक सामग्री की शुरुआत की जरूरत है. कोर/डिवीजन बैटल स्कूल, जहां इस तरह के सभी प्रशिक्षण दिए जाते हैं, में अत्याधुनिक सुविधाएं होनी चाहिए. ऑपरेशनल/काउंटर इंसर्जेंसी/हाई एल्टीट्यूड एरिया के लिए इंडक्शन ट्रेनिंग कराने वाले बैटल स्कूल पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
गैर-कमीशन अधिकारियों और जूनियर कमीशंड अधिकारियों के लिए समर्पित अकादमियों को सेना द्वारा दुरुस्त किया जाना चाहिए. मौजूदा पाठ्यक्रमों की क्षमता सीमित है और यूनिट प्रमोशन कैडर्स बस सब-स्टैंडर्ड है.
अग्निपथ योजना की बाध्यताओं ने सेना को ट्रेनिंग को लेकर अपने दृष्टिकोण को बदलने का मौका दिया है. यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि इस अवसर का पूरा फायदा कांसेप्ट के तौर पर लिया गया है. चुनौती अब सफल बनाने के लिए इसे लागू करने की और इसे फील्ड फॉर्मेशन तक ले जाने की है. मुझे कोई संदेह नहीं है कि यह एप्रोच पूरी स्थिति को बदलने वाला होगा.
(लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा दी है. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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