मुश्किल वक्त कभी देर तक नहीं टिकता, सिर्फ मज़बूत लोग और सुदृढ़ संस्थान ही निरंतर बने रहते हैं. रिज़र्व बैंक के गवर्नर की इस उक्ति में मज़बूत देशों को भी शामिल किया जा सकता है. भारत एक मज़बूत और मुश्किलों से उबर जाने वाला देश है और हम निश्चित रूप से कोरोनावायरस महामारी को हराएंगे. हमें अगले कुछ हफ्तों और महीनों में कई अत्यंत कठिन चुनौतियों से पार पाना है. तथापि, हम अगले कुछ वर्षों तक कोरोना बाद की दुनिया का लाभ उठाने के लिए तैयार हैं.
कोरोना बाद की दुनिया कई कारणों से भारत के अनुकूल होगी. अचानक, बजटीय घाटे को बढ़ाना और खुलकर खर्च करना उचित माने जाने लगा है. कोरोना बाद की दुनिया में राजकोषीय संयम हमारे लिए बाध्यकारी नहीं होगा. साथ ही ब्याज दर, तेल की कीमतों और कच्चे माल (जैसे- कोयला, लौह अयस्क आदि) के मूल्यों में भारी गिरावट आई है. हमारी युवा आबादी के बीमार पड़ने का उतना खतरा नहीं है जितना जोखिम उच्च आय वाले देशों की बुज़ुर्ग आबादी को है.
भारत की सरकार मज़बूत और स्थिर है, जिसका नेतृत्व दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के हाथों में है. दुनिया के तमाम देश अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने और उसे चीन से दूर ले जाने की सोच रहे हैं. यानि संक्षेप में, नए भारत के निर्माण के लिए ये एक सुनहरा मौका है.
मौजूदा दौर में हम सब कीन्सवादी हैं. कोरोनावायरस महामारी के कारण राजकोषीय शुचिता की नीति को छोड़ना आवश्यक हो गया है क्योंकि हमारा सामना कीन्सवादी अर्थशास्त्र के अनुरूप सकल मांग में भारी कमी की स्थिति से है.
दुनियाभर के देशों ने राजकोषीय नियमों से किनारा कर लिया है और वे अर्थव्यवस्था में ठहराव से बचने के लिए बेहिचक होकर खर्च कर रहे हैं. तमाम देशों का राजकोषीय घाटा तेज़ी से बढ़ने लगा है क्योंकि सरकारें अर्थव्यवस्था को असीमित सरकारी समर्थन के उपायों पर उतर आई हैं. अमेरिका ने अपनी जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर का आर्थिक पैकेज जारी किया है, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों द्वारा दिए जा रहे अनुदान और कर्ज की मात्रा उनकी जीडीपी के 20 प्रतिशत के स्तर पर है, जबकि फ़्रांस, स्पेन और जापान ने जीडीपी के 10 से 15 प्रतिशत के बराबर धन जारी करने का इरादा व्यक्त किया है. ऐसी परिस्थितियों में, भारत के सख्त ऋण संतुलन उपायों को हमारी राह में अवरोध नहीं बनने दिया जा सकता है.
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अधिक खर्च की जरूरत है
इसके अलावा, पूंजी की लागत भी तेज़ी से कम हो रही है, जिसके कारण हमारे लिए बहुत ही कम दर पर कर्ज लेना और निवेश करना संभव बन पड़ा है. अमेरिका की 30 वर्षीय ट्रेज़री दर इस समय मात्र 1.27 प्रतिशत है, जो साल भर पहले की तुलना में आधी और ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर है. जब दुनिया की वैश्विक मानक दर इतनी कम हो, तो भारत अपने आधारभूत ढांचों और कारखानों के निर्माण के लिए बहुत सस्ती दर पर ऋण हासिल कर सकता है.
एक ओर जहां हमारे पास व्यय करने के लिए ये अतिरिक्त राजकोषीय संसाधन हैं, वहीं हमें कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट का भी लाभ मिलते रहने की उम्मीद है. पिछले कुछ हफ्तों में ही तेल की कीमतें 50-60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से गिरकर 25-30 डॉलर पर आ चुकी हैं. भारत का तेल आयात बिल लगभग 112 अरब डॉलर था, और अब उम्मीद है कि हम इस साल इस मद में करीब 50 अरब डॉलर की बचत कर सकेंगे. यह राशि 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की है. इसी तरह हम लौह अयस्क, प्राकृतिक गैस, कोयला जैसे कच्चे माल की कीमतों में 20-30 प्रतिशत की कमी देख रहे हैं. यदि हम इनकी आपूर्ति के लिए दीर्घावधि के करार कर लें तो हम अर्थव्यवस्था के विभिन्न आगत खर्चों में भारी बचत कर सकेंगे.
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भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश
हमारी युवा और स्वस्थ आबादी काम पर निकलने के लिए बेकरार है. मज़बूत शारीरिक प्रतिरक्षा क्षमता वाले युवा कोरोनावायरस से निपटने में अधिक सक्षम हैं. बुज़ुर्ग आबादी अधिक बीमार पड़ती है, बुज़ुर्गों को सांस संबंधी अस्वस्थता के कारण अस्पताल में भर्ती कराने की अधिक ज़रूरत पड़ती है और दुर्भाग्य से उनमें मौत की दर भी अधिक होती है. जबकि युवा आबादी पर इस बीमारी का खतरा अपेक्षाकृत बहुत कम है. साथ ही, भले ही वैज्ञानिक इस पर एकमत नहीं हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की गर्म जलवायु और भारतीयों में शारीरिक प्रतिरक्षा का उच्च स्तर (बीसीजी के टीके जैसे स्रोतों के परिणामस्वरूप) हमें समशीतोष्ण जलवायु वाले देशों की तुलना में कोरोनावायरस से लड़ने के अधिक सक्षम बनाता है. इस प्रकार, अपने युवा श्रमबल और उचित सोशल डिस्टेंसिंग के सहारे भारत अन्य देशों के मुकाबले अधिक शीघ्रता से अर्थव्यवस्था को दोबारा गति दे सकता है.
भारत दुनिया का विकल्प है
भारत की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता का स्तर पहले से ही ऊंचा है, जिसमें और भी बढ़ोत्तरी हो रही है. समय रहते लॉकडाउन का साहसिक फैसला करने के कारण हम महामारी के प्रसार को निर्णायक तरीके से सीमित करने में कामयाब रहे हैं, और दुनिया प्रधानमंत्री मोदी के प्रेरणादायक नेतृत्व का सम्मान करती है. इसलिए भारत उन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के स्वाभाविक गंतव्य के रूप में उभर रहा है जो अपनी अत्यधिक चीन-केंद्रित आपूर्ति श्रृंखला में विविधता और सुदृढ़ता लाना चाहती हैं. दवाई से लेकर वाहनों के कलपुर्जों और परिधानों के निर्माण तक विभिन्न सेक्टरों में सक्रिय दुनिय़ा की अनेक शीर्ष कंपनियां अब भारत में अपने उपक्रम लगाने के लिए स्थानों के चयन में जुट चुकी हैं. ऐसी खबरें हैं कि सिर्फ अमेरिका की ही 200 से अधिक कंपनियां अपने विनिर्माण केंद्रों को भारत स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं. कोरोना बाद की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को त्वरित गति से दुनिया भर से महत्पूर्ण उत्पादन सामग्री हासिल करने में सक्षम बनना बड़ेगा. इस दृष्टि से वैश्विक विनिर्माण एवं सेवा सेक्टरों का केंद्र बनने के लिए भारत की स्थिति आदर्श है.
हमारे लिए ये अवसर नए भारत के निर्माण के अपने प्रयासों को तेज़ करने का है. बेशक, हमें पहले मौजूदा संकट से जुड़ी अल्पकालिक चुनौतियों से निपटना होगा. हमें महामारी का सफलतापूर्वक नियंत्रण एवं उपचार करना होगा. हमें अत्यंत सावधानी से लॉकडाउन संबंधी रणनीतियां बनानी पड़ेगी. समाज के अत्यंत कमज़ोर वर्गों को भोजन और आय संबंधी मदद उपलब्ध करानी होगी. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों तथा बड़े उद्योगों को व्यापक स्तर पर वित्तीय और नियामक समर्थन देने की ज़रूरत पड़ेगी. हमें अपनी वित्तीय व्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों के वित्त पोषण के लिए पूंजी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी पड़ेगी. निश्चय ही ये चुनौतियां बहुत कठिन हैं. लेकिन कुछ महीनों के भीतर हमारे पास कोविड रोग के उपचार की दवाई मौजूद होगी. और, एक से दो साल के भीतर महामारी का खात्मा करने के लिए टीके मौजूद होंगे. इसलिए हमें इन परिवर्तनकारी विचारों के परीक्षण का काम शुरू कर देना चाहिए जोकि कोरोना बाद की दुनिया में हमें अपनी नैसर्गिक बढ़त का पूरा फायदा उठाने में सक्षम बना सकेंगे.
(जयंत सिन्हा संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष तथा झारखंड में हज़ारीबाग़ से लोकसभा सांसद हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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