अडाणी की कंपनियों पर हिंडेनबर्ग रिपोर्ट का इस समूह ने जिस तरह जवाब दिया है (उसने रिपोर्ट के कुछ मुद्दों का ही जवाब दिया) उस पर आपको यकीन हो या नहीं, इस समूह की कंपनियों के शेयरों की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की जा चुकी है और शुक्रवार तक तो वे धड़ाम से गिरने के कगार तक पहुंच गई थीं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि समूह की अग्रणी कंपनी अडाणी एंटरप्राइजेज़ के शेयरों की कीमत उसके पब्लिक ईशू, जो मंगलवार तक खरीद के लिए उपलब्ध होगी, की ‘फ्लोर प्राइस’ से भी नीचे चली गई.
अब इस ईशू को संभालने के लिए अडाणी समूह को इसकी ‘मांग कीमत’ कम करनी पड़ेगी (जिसे 20 फीसदी तक ही घटाया जा सकता है), लेकिन शेयर कीमत और गिरती है तो यह भी काफी नहीं होगा.
संभव है कि यह ईशू नाकाम ही हो जाए. न केवल यह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के लिए परेशानी वाली बात होगी, बल्कि यह उन्हें ही नहीं व्यापक शेयर बाजार को भी और झटके देगी.
इससे पहले मंदड़ियों (बियर) ने 1980 के दशक के शुरू में तेजी से उभरते विवादास्पद व्यवसायी पर हमला बोला था जब दलालों के एक गुट को रिलायंस के शेयर की कीमत जरूरत से ज्यादा रखी गई महसूस हुई थी.
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कंपनी के प्रमोटर थे सख्त धीरूभाई अंबानी, जो खुद शेयर बाजार के कोई मामूली खिलाड़ी नहीं थे. उन्होंने तुरंत ‘फ्रेंड्स ऑफ रिलायंस’ को इकट्ठा किया, जिसमें ज़्यादातर विदेशी थे, और जवाबी हमला बोल दिया था जिसके कारण मंदड़ियों को भारी कीमत चुकानी पड़ी.
रिलायंस के शेयर तो ऊपर चढ़े लेकिन उनकी स्थिति डांवाडोल हो गई. इसके बाद शेयर बाजार के किसी खिलाड़ी ने उनसे फिर पंगा लेने की कोशिश नहीं की.
इस बार अंतर यह है कि अडाणी के शेयर पिछले कुछ वर्षों से असाधारण रूप से चढ़ने के बाद पिछले कुछ महीनों से गिर रहे थे. 2022 में इस समूह की कंपनियों के शेयर अपने शिखर पर थे लेकिन इसके बाद उनमें 35 से 45 फीसदी तक की गिरावट आ गई.
शुक्रवार को घाटा सबसे चरम पर पहुंच गया. सीमित पब्लिक होल्डिंग वाली कंपनी को नीची ट्रेडिंग टर्नओवर के बावजूद कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है.
यह एक जोखिम है लेकिन यह धीरूभाई के बरअक्स अडाणी के बचाव कार्य की ओर भी संकेत करता है.
एक समस्या यह है कि समूह की कंपनियों का प्रदर्शन ऐसा नहीं है कि उसका बखान किया जा सके. उदाहरण के लिए, अडाणी एंटरप्राइजेज़ की कमाई तीन साल तक सपाट रहने के बाद 2021-22 में 75 फीसदी बढ़ गई लेकिन उसका शुद्ध मुनाफा उस साल गिर गया और वह बिक्री के 1.5 फीसदी से भी कम हो गया.
इसकी सात सूचीबद्ध कंपनियों में से छह का कुल टैक्स-पूर्व मुनाफा मार्च 2022 तक के वर्ष में थोड़ा गिर गया. अडाणी पावर अपवाद थी, जिसकी कमाई में मामूली वृद्धि हुई मगर मुनाफा तीन गुना बढ़ा.
जिन कंपनियों का मूल्य उनकी कमाई से 300-600 गुना ज्यादा आंका जाता हो उनकी वित्तीय स्थिति ऐसी रहने की उम्मीद नहीं की जाती.
ऐसे आंकड़े कई गुना वृद्धि करने की संभावना वाली छोटी स्टार्ट-अप कंपनियों के हों तो समझा जा सकता है लेकिन पूंजीखोर इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यवसाय में लगी कंपनियों के लिए नहीं. केवल अडाणी पावर (पी.ई. अनुपात 12) और अदानी पोर्ट्स (पी.ई. अनुपात 27) का ही वास्तविक मूल्यांकन किया गया है.
इससे पहले किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी का इस तरह मूल्यांकन किया गया था तो वह थी अनिल अंबानी की रिलायंस पावर, जब 2008 में उसकी पब्लिक इशू की इसी तरह जरूरत से ज्यादा कीमत रखी गई थी. और हम उसकी आगे की कहानी जानते हैं.
खबरें बताती हैं कि इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर मूल्यांकन और समूह की मामूली प्रदर्शन इसलिए विस्तृत जांच से बचा रहा क्योंकि अडाणी के अधिकतर शेयरों के बारे में कम ही ब्रोकिंग हाउस शोध करती हैं, हालांकि समूह की कुछ कंपनियां मुख्य शेयर बाजार सूचकांक में शामिल हैं.
ग्रीन इनर्जी से लेकर रक्षा उपकरण, सेमी-कंडक्टर तक उत्पादन करने; और बंदरगाहों से लेकर हवाई अड्डों और सीमेंट कंपनी के लिए जगह और अब क्रिकेट फ्रेंचाइज़ भी हासिल करने की नयी परियोजनाओं की ताबड़तोड़ घोषणाओं के कारण शायद एक मुश्किल और गतिशील निशाना सामने था. या इक्विटी पर शोध करने वालों को राजनीतिक पहुंच वाले समूह की वित्तीय स्थिति में गहरे झांकने में शायद परेशानी महसूस होती होगी.
अब जायज सवाल यह है कि शेयर बाजार के रेगुलेटर और जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? पिछले दो साल से ऐसी खबरें आती रही हैं जिनमें उन मसलों का जिक्र होता रहा है जिनका जिक्र हिंडेनबर्ग रिपोर्ट में भी किया गया है. कुछ जांच भी शुरू की गई थी मगर ऐसा लगता है कि वे ठप हो चुकी हैं.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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