भारतीय वायु सेना ने हाल ही में 21 मई को एक मिग-21 बाइसन हादसे में अपना एक युवा जांबाज गंवा दिया. 27 मई को नंबर 23 स्क्वाड्रन- जो कि खुद को ‘पैंथर्स’ कहती है- ने कमांडिंग ऑफिसर के नेतृत्व में बेस पर एक ‘मिसिंग मैन’ फॉर्मेशन वाली उड़ान भरी. इसके दो कारण थे. एक जान गंवा देने वाले दिवंगत योद्धा का सम्मान करना और दूसरा एक परंपरा को निभाना.
परंपरा यह है कि किसी जानलेवा हादसे के बाद स्क्वाड्रन में पहली उड़ान कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) खुद ही संचालित करते हैं- जो यह संदेश देता है कि स्क्वाड्रन को अपने मृत साथी का दुख है लेकिन जीवन को चलते रहना चाहिए और स्क्वाड्रन को अपने निर्धारित कार्यों पर लौटना चाहिए. यह विशेष पैंथर मिशन एक मायने में खास अहमियत रखता है. फॉर्मेशन में उड़ान भरने वाले खुद एयर चीफ मार्शल आर.के.एस भदौरिया थे, जो सर्विस में सबसे सीनियर पैंथर भी हैं. यह श्रद्धांजलि अर्पित करने में सीओ और स्क्वाड्रन के वायुकर्मियों का साथ देने के अलावा एक ऐसे विमान के प्रति उनके भरोसे को भी दर्शाता है, जिसकी साख पिछले कुछ वर्षों में बहुत अच्छी नहीं रही है.
निश्चित तौर पर सीओ उस परंपरा को साकार कर रहे थे कि मोर्चे पर नेतृत्व करने में कमांडिंग ऑफिसर आगे रहते हैं.
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कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका
एविएशन का दायरा बढ़ रहा है और कंप्यूटिंग पॉवर, एयरोडायनॉमिक्स और इंजन टेक्नोलॉजी में प्रगति के कारण फ्लाइट लाइन में नए और शानदार हवाई जहाज नज़र आने लगे हैं. तमाम प्रगति के बावजूद सैन्य उड्डयन को परिभाषित करने वाली कुछ परंपराएं पहले की तरह जारी हैं. और, इन परंपराओं को कायम रखने में किसी फ्लाइंग यूनिट के शीर्ष सदस्य यानि कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका अहम होती है.
क्रू रूम में बैठी नई पीढ़ी के लिए यह ‘ओल्ड मैन’ (जो जल्द कोई महिला हो सकती है) यूनिट के अपने पूर्वकर्मियों के खून-पसीने (शाब्दिक संदर्भ में) से लिखे इतिहास की विरासत आगे बढ़ा रहा है. कोई चाहे जितना भी चाह ले हादसे तो होते ही हैं और दुर्भाग्यवश कुछ के नतीजे बहुत घातक होते हैं.
जब किसी यूनिट में कोई ‘जानलेवा’ हादसा होता है तो इस क्षति को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. वह व्यक्ति जिसके साथ आपने पिछली रात बार में बैठकर ड्रिंक लिया था, या जो सॉर्टी से पहले फॉर्मेशन ब्रीफिंग के दौरान आपके अगल-बगल ही बैठा था या फिर आपका वह दोस्त जिसके साथ आप नेशनल डिफेंस एकेडमी में ट्रेनिंग के दौरान रोल या फ्रंट रोल किया करते थे, जा चुका होता है. यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसे कोई भी कमांडिंग ऑफिसर अपनी निगरानी में तो नहीं होने देना चाहता है लेकिन कुछ को इसका सामना करना ही पड़ता है. वे कमांडिंग ऑफिसर भाग्यशाली होते हैं जिनका पूरा कार्यकाल बिना किसी हादसे के बीत जाता है.
कभी-कभी फ्लाइंग ट्रेनिंग देने वाले संस्थान, जहां नौसिखिये महिला-पुरुषों को प्रशिक्षित किया जाता है, हादसों का सामने करते हैं. यहां, मनोबल बनाए रखने के लिए उन्हें प्रेरित करना बहुत जरूरी होता है. नियमित औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सबसे पहले जो किया जाता है वह यह है कि फ्लाइट इंस्ट्रक्टर सभी फ्लाइट कैडेट को उड़ान के लिए ले जाते हैं. जिससे उनका भरोसा विमान पर बना रहे और वे समझें कि विमान स्वाभाविक रूप से सुरक्षित है. यह युवाओं के मन में इस विचार को भी अच्छी तरह बैठा देता है कि किसी साथी को खो देने के बाद भी शो मस्ट गो ऑन.
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विमान के प्रति भरोसा जगाना
कुछ विमान हैं जिनकी ‘साख’ ऐसी बन गई है, जो उनके असुरक्षित होने को लेकर सुगबुगाहट की वजह बनती है. यह अस्वीकार्य है. किसी भी पायलट, चाहे महिला हो या पुरुष, को अपने विमान के उड़ान योग्य होने और उसकी क्षमताओं पर पूरा भरोसा होना चाहिए.
मुझे याद है कि 1984 में मैं तांबरम (चेन्नई) में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर कोर्स कर रहा था, तब किसी दूसरे स्टेशन पर एक हादसा हो गया, जिसमें ट्रेनर विमान किरण ठीक से राइट-हैंड स्पिन नहीं कर पाया और पायलट को इजेक्ट करना पड़ा. उस समय किरण के साथ यह टैग चस्पा था कि राइट हैंड स्पिन करने में यह असुरक्षित है. इसे दूर करने के उद्देश्य से निर्देश आया कि किरण के उड़ान भरने में सक्षम होने का भरोसा बहाल करने के लिए हम सभी प्रशिक्षुओं को उड़ान में राइट साइड के ‘चार टर्न’ स्पिन करने होंगे. निश्चित तौर पर सबसे पहले मुख्य प्रशिक्षक एक ट्रेनी अधिकारी के साथ इसका अभ्यास करने गए और फिर हमने उनका अनुकरण किया. यहां मुख्य मुद्दा यह है कि विमान के प्रति भरोसा जगाने के लिए सबसे पहले हमारे लीडर ने आगे आकर टीम का नेतृत्व किया.
एक विमान जिसे अक्सर ही गैर-भरोसेमंद होने का टैग मिला है, वो मिग-21 ही है. दिप्रिंट के स्नेहेश एलेक्स फिलिप ने अपने लेख में साख को लेकर विवाद पर कवरेज की है, लेकिन हाल में पैंथर्स फॉर्मेशन में एयर चीफ मार्शल भदौरिया के उड़ान भरने ने यही दर्शाया कि वायुसेना में कमांड पोजिशन पर रहने वाले अधिकारी हमेशा आगे आकर नेतृत्व संभालते हैं. आखिरकार भारतीय वायुसेना का तो नीति वाक्य ही ‘टच द स्काई विद ग्लोरी ’ है.
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पोस्ट स्क्रिप्ट: बीते दौर की बात करें तो दो दशक पहले भी मिग-21 इसी तरह विश्वसनीयता के संकट से गुजर रहा था. तब तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.वाई. टिपनिस ने वही किया जो एक कुशल नेता करता है. वे बरेली एयर फोर्स स्टेशन पहुंचे और उन्होंने मिग-21 में उड़ान भरी!
(लेखक भारतीय वायु सेना के रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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