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Thursday, 19 December, 2024
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3 कारण- सरकार क्यों भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज़ को लेकर असमंजस में है

ऐसा लगता है कि सरकार-सेना में तालमेल नही है. एक औपचारिक एनएसएस के माध्यम से अपने विरोधियों को मंशा बताना तो दूर की बात है, बलों को कोई औपचारिक निर्देश नहीं दिया गया लगता है.

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29 दिसंबर 2022 को, पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, या एनएसएस के न होने और आवश्यकता को लेकर अफसोस जताया. चौथे जनरल केवी कृष्णा राव मेमोरियल लेक्चर देते हुए उन्होंने कहा, ‘थियेटराइजेशन कोई अंत नहीं है, यह केवल एक अंत का साधन है. उस अंत को पहले राष्ट्रीय रक्षा रणनीति के रूप में स्पेशिफाइड किया जाना चाहिए. बदले में उस रक्षा रणनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से बाहर निकलना होगा. जब तक कोई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति नहीं होती है, तब तक केवल थिएटराइजेशन के बारे में बात करते रहना वास्तव में जल्दबाजी होगी.’

लगभग 2 साल पहले 4 मार्च 2021 को तत्कालीन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अनिवार्यता पर एक वेबिनार में मुख्य भाषण देते हुए ट्रांसफार्मेशन पर इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे: ‘कुछ महत्वपूर्ण कदम जिन्हें हमें उठाने की आवश्यकता है उनमें राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को परिभाषित करना, उच्च रक्षा रणनीतिक मार्गदर्शन, उच्च रक्षा और परिचालन संगठनों में संरचनात्मक सुधार शामिल है.’

यह एक सैन्य सिद्धांत है कि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक निर्देश एनएसएस के रूप में आने चाहिए, जो पूरी तरह या आंशिक रूप से सार्वजनिक डोमेन में रखी जा सकती है या नहीं. देश के दो सबसे महत्वपूर्ण सैन्य नेताओं द्वारा दिए गए ये बयान, जो हमारे सशस्त्र बलों के ट्रांसफार्मेशन के लिए जिम्मेदार थे और जिनके कार्यकाल दो साल तक एक ही समय में थे, हमें हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में क्या बताते हैं?

पहला, न तो भारत की एनएसएस है और न ही विस्तृत राजनीतिक निर्देश किसी भी रूप में दिए गए हैं. रक्षा मंत्रालय के नौकरशाह शांति और युद्ध की स्थिति में राजनीतिक निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए गूढ़ (गुप्त) और अस्पष्ट वन लाइनर्स के रूप में सशस्त्र बलों के पाले में गेंद डालने के लिए कुख्यात हैं.

दूसरा, सशस्त्र बलों के ट्रांसफॉर्मेशन की प्रक्रिया, जिसमें त्रि-सेवा एकीकरण और थिएटराइजेशन न तो अनिवार्य शर्त है, न ही सरकार के स्वामित्व या औपचारिक रूप से निगरानी में है, लेकिन यह सशस्त्र बलों के लिए छोड़ दिया गया है. तीसरा, एनएसएस या औपचारिक राजनीतिक निर्देशों के अभाव में, सशस्त्र बल खुद सुधारों के लिए अंतर-सेवा संघर्ष को हल करने की पहल रोकने में विफल रहे हैं, जिसके लिए अनुभव के तौर पर राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है.

ऐसा लगता है कि सरकार-सेना के बीच तालमेंल नहीं है. एक औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) के माध्यम से अपने विरोधियों को अपनी मंशा बताना तो दूर, सशस्त्र बलों को कोई औपचारिक निर्देश भी नहीं दिए जाते हैं.


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एनएसएस क्यों जरूरी है?

एनएसएस एक राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय शक्ति के विभिन्न उपकरणों – राजनयिक, सूचनात्मक, सैन्य और आर्थिक – को आगे बढ़ाने और बाहरी और आंतरिक खतरों से अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए एक व्यापक और बेहद अहम ढांचा है. यह एक स्पष्ट दृष्टि है कि कैसे एक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए लगा रहता है और राज्य के सभी अंगों, विशेष रूप से इसके सैन्य साधन को मार्गदर्शन प्रदान करता है, जो ‘संपूर्ण सरकार’ के दृष्टिकोण को दर्शाता है. प्रचलित सामरिक वातावरण के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार एनएसएस की समीक्षा की जाती है.

लोकतंत्रों में, एनएसएस के बगैर क्लासीफाइड वाले भागों को आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय मामलों में मित्र और शत्रु को स्पष्ट संकेत भेजने के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा जाता है. और घरेलू मामलों में, जनता को आश्वस्त करने और राजनीतिक विपक्ष के दबावों को दूर करने के लिए. क्रियान्वित हिस्से को वर्गीकृत (क्लासीफाइड) रखा गया है. ज्यादातर वैश्विक शक्तियां – संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान और अब यहां तक कि शांतिवादी जापान – की एक औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति या नीति है.

एनएसएस राष्ट्रीय रक्षा नीति (एनडीपी) का मार्ग प्रशस्त करता है, जिसमें निर्दिष्ट (तय) राष्ट्रीय रक्षा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए योजना और प्रबंधन शामिल है. यह ढांचा तैयार करता है, जो एनएसएस को योजना, प्रबंधन और कार्यान्वयन के संदर्भ में सैन्य उपकरण के विकास और निरंतर सुधार से जोड़ता है. एनडीपी सशस्त्र बलों की क्षमताओं का निर्माण करने के लिए रक्षा बजट का सबसे बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित करता है. राष्ट्रीय सैन्य रणनीति (एनएमएस) एनएसएस और एनडीपी दोनों द्वारा निर्देशित है और सैन्य उपकरण के वास्तविक इस्तेमाल से संबंधित है.

भारत में एनएसएस क्यों नहीं है?

इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि बाद की सरकारें औपचारिक एनएसएस और एनडीपी को औपचारिक रूप देने में उदासीन रही हैं. लिहाजा, सैन्य उपकरण बेहतर रूप से विकसित और प्रयुक्त (लागू) नहीं हो पाए. ‘हमने सशस्त्र बलों को खुली छूट दी है,’ बल प्रयोग के लिए निर्देशों का मानक है. विभिन्न सरकारी समितियां – कारगिल समीक्षा समिति, मंत्रियों के समूह की रिपोर्ट, नरेश चंद्र समिति, शेखतकर समिति – और सरकार द्वारा प्रायोजित थिंक टैंक एक औपचारिक एनएसएस की आवश्यकता के लिए अपनी सिफारिशों को लेकर एकमत हैं. अप्रैल 2018 में खुद मौजूदा सरकार ने एनएसए अजीत डोभाल की अध्यक्षता वाली पुनर्गठित रक्षा योजना समिति को एनएसएस तैयार करने का निर्देश दिया था.

बेशक, एक कार्यात्मक दृष्टिकोण है जो संकट के समय अधिक खास हो जाता है जैसा कि अप्रैल 2020 से हमारी उत्तरी सीमाओं पर चीन के साथ टकराव से स्पष्ट है. हमारे पास रक्षा मंत्री का ऑपरेशनल डायरेक्टिव भी है जो ऑपरेशनल प्लानिंग, स्टॉकिंग का आधार प्रदान करता है, और सशस्त्र बलों के लिए लोगों की जरूत, प्रशिक्षण हर पांच साल में जारी किया जाना चाहिए. इसे 2009 के बाद से संशोधित नहीं किया गया है.

सरकार की आशंकाएं तीन वजहों से हैं. पहली चिंता यह है कि एक घोषित एनएसएस भारत के अपने संभावित विरोधियों के साथ संबंधों को खराब कर देगा और हमारे सहयोगियों से निपटने के लिए पिच को भी बिगाड़ देगा. हमारे प्रमुख विरोधियों – चीन और पाकिस्तान – ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है. वे हमारे अंतरराष्ट्रीय तौर-तरीकों पर दबाव डालने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष साधनों का इस्तेमाल करते हैं, उनके द्वारा दावा किया जाने वाले हमारे क्षेत्र पर कब्जा करने का अपना इरादा छुपा कर नहीं रखते हैं, और छद्म युद्धों समेत सीमाओं पर युद्ध के निचले स्तर पर बड़े पैमाने पर सैनिकों का इस्तेमाल करते हैं.

संबंधों को और बिगाड़ने के लिए आखिर क्या बचा है? वे संभावित नहीं बल्कि वास्तविक विरोधी हैं जिनके साथ हम ‘ग्रे जोन युद्ध‘ में लगे हुए हैं जिसमें एक सीमित युद्ध के बढ़ने की स्पष्ट संभावना है. अस्पष्ट क्यों हों और क्यों न औपचारिक रूप से उन्हें बताएं कि एनएसएस के माध्यम से हम उनसे कैसे निपटेंगे? औपचारिक रूप से हमारा इरादा एक हतोत्साहित करने वाले के तौर पर कार्य करेगा.

भारत के दोस्त और दुश्मन अच्छी तरह जानते हैं कि देश कभी भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता नहीं त्यागेगा, सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं होगा और राष्ट्रीय हित इसके रवैये को तय करेंगे. एनएसएस में इन सबका औपचारिक रूप से प्रदर्शन करने से केवल विश्वसनीयता बढ़ेगी.

दूसरी आशंका यह है कि एनएसएस राष्ट्रीय हितों, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरों के संबंध में, सरकार के निर्णय लेने के लचीलेपन को कम करने वाला है. एनएसएस कोई ब्लैक एंड व्हाइट दस्तावेज नहीं है, जिसका सख्ती से पालन किया जाए. यह केवल सिद्धांत निर्धारित करता है और ढांचा प्रदान करता है. यह लचीलापन बनाने के लिए काफी रचनात्मक तौर से लिखा जाता है. इसके अलावा, यह कोई पवित्र नहीं है और आवश्यकतानुसार समीक्षा की जा सकती है.

अंतिम लेकिन कम से कम सरकार को आशंका नहीं है कि एनएसएस खुद पर जवाबदेही डालेगा, विशेष रूप से रक्षा तैयारियों, क्षेत्रीय अखंडता और आतंकवाद का मुकाबला करने के संबंध में. यह एक भ्रम है. एनएसएस सरकारी नीति को केवल पारदर्शिता, स्पष्टता और विश्वसनीयता प्रदान करेगा. यह अपारदर्शिता, राजनीतिक अंध राष्ट्रीयता, बयानबाजी और आडंबर है जो जनता की उम्मीदों को आसमान तक पहुंचाती है.

जब गुब्बारा ऊपर जाता है, तो सरकारें घबराकर या तो युद्ध में फंस जाती हैं जैसा कि नेहरू ने 1962 में किया था या एक काफी व्यावहारिक नीति की व्याख्या करने के लिए सैनिकों की बहादुरी/बलिदान का सहारा लेने पर मजबूर हो जाती हैं जैसा कि मोदी ने पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बाद किया था. दरअसल, रक्षा तैयारियों के संबंध में एनएसएस सरकार पर जवाबदेही डालेगा. लेकिन यह जनता को भी स्पष्ट करेगा कि हम अपने मौजूदा संसाधनों से क्या कर सकते हैं और क्या नहीं.


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आगे का रास्ता

हमारे विरोधियों के खिलाफ आक्रामक और टकराववादी रणनीति के एक चरण के बाद वर्तमान सरकार ने ‘रणनीतिक संयम’ अपनाने के लिए अच्छा किया है, जैसा कि बड़ी पारंपरिक ताकतों, परमाणु सशस्त्र देशों के बीच होना चाहिए व जिनके साथ हम अशांत सीमाएं साझा करते हैं, हालांकि, यह सुनिश्चित होना चाहिए कि सीमाओं पर चल रहे टकरावों को हैंडल करने के लिए सैन्य रणनीति की समीक्षा तत्काल होनी ताकि हमारे सैनिक गहलवान जैसी स्थिति में दोबारा न आए और भारत को बार-बार शर्मिंदगी का सामना न करना पड़ें.

अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी, हम राष्ट्रीय हितों के लिहाज से रणनीतिक स्वायत्तता की अपनी पारंपरिक नीति पर वापस लौट आए हैं. भारत एक ध्रुव के रूप में राष्ट्रों के बीच अपना सही स्थान लेने के लिए तैयार है. एनएसएस केवल औपचारिक रूप देगा जो सरकार पहले से ही कर रही है, और स्पष्टता व विश्वसनीयता प्रदान करेगी. सशस्त्र बलों के ट्रांसफार्मेशन के लिए, यह एक अनिवार्यता है और जितनी जल्दी हम इसे औपचारिक रूप देंगे, उतना ही अच्छा होगा.

लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. विचार व्यक्तिगत हैं.

(लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. उनका ट्विटर हैंडिल @rwac48 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)\

(संपादन : इन्द्रजीत)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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