अब सिनेमा के दर्शकों की खैर नहीं, राजनीति वहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ने वाली. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की चुनावी जंग टीवी के पर्दे पर तो अकसर चलती ही रहती है, मगर इस बार सिनेमाई पर्दे का भी चुनावीकरण हो गया है.
चुनावी मौसम जो आ गया है. बहुत दिनों से चर्चा सुनी थी कि नरेंद्र मोदी पर बायोपिक बन रही है. आज खबर आई है कि यह 12 अप्रैल को रिलीज होनेवाली है. इस नारे या डेडलाइन के साथ–देशभक्ति ही मेरी शक्ति है. आप तो जानते हैं कि नरेद्र मोदी प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ बहुत बड़े चुनाव वैज्ञानिक भी है. पिछले चुनाव में उन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर चुनाव जीता था. इस बार उन्होंने चुनाव के लिए फिल्मों को बनाने परंपरा शुरू की है, उसके जरिये चुनाव जीतना चाहते है. ‘नोट भी दो वोट भी दो’ का यह फंडा अच्छा है. कुछ दिनों बाद आलिया और रणवीर सिंह की फिल्म की चर्चा करने के बजाय लोग यह चर्चा करते मिलेंगे कि मोदी की बायोपिक अच्छी है या राहुल गांधी की. जल्दी ही राहुल गांधी पर भी बायोपिक आ रही है. मोदी की बायोपिक को लेकर राजनीतिक जंग शुरू हो गई है. कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने मोदी के बायोपिक पर बैन लगाने की मांग की. यही चाहिए होता है किसी भी फिल्म को कंट्रोवर्सी और मुफ्त पब्लिसिटी. जहां तक स्टार पॉवर का सवाल है मोदी से बड़ा स्टार कौन हो सकता है.
मोदी अपनी योजनाओं का प्रचार अपने भाषणों में तो करते ही है. मगर उस पर कई फिल्में भी बनवा चुके है. ‘टॉयलेट– द प्रेमकथा’ पहले ही आ चुकी है. इसके अलावा ‘बेटी बचाओ–बेटी पढाओं’ का भी कई फिल्मों में जिक्र हो गया है. जब मोदी योजनाओं के प्रचार को लेकर इतने सचेत हो तो चुनाव के मौके पर कैसे चूक सकते हैं. निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ 15 मार्च 2019 को रिलीज़ हुई है. यह फिल्म खुले में शौच के सामाजिक मुद्दे पर आधारित है. फिल्म को रोम फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया, जहां उसकी जमकर सराहना हुई. फिल्म की कहानी झुग्गी में रहने वाले एक लड़के के बारे में है, जो अपनी मां के लिए शौचालय बनवाना चाहता है.
जमाना बदल गया है और जमाने के साथ चुनाव प्रचार भी बदल गया है. पहले लोग चुनाव में उम्मीदवार उतारते थे. अब फिल्में भी उतारी जा रहीं हैं . पहले लोग गली-गली नारे लगाते हुए चुनाव प्रचार करते घूमते थे. सभाएं होती थी. चुनावी रैलियां भी. इस बार इसमें एक नया ट्रेंड जुड़ रहा है. चुनाव प्रचार के लिए फीचर फिल्मों का इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रचार के लिहाज से अब तक कई फीचर फिल्में रिलीज हो चुकी हैं . जनवरी महीने में ही चार बायोपिक फिल्में चुनाव को ध्यान में रखकर रिलीज़ हुई हैं. उनके पीछे एक राजनीतिक मकसद है. आखिर फिल्में दर्शकों की सोच को प्रभावित करती है. चुनाव के लिए सोच को प्रभावित किया जा रहा है.
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कुछ दिनों पहले खबर आई है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीवन पर बायोपिक बनने जा रही है. इस फिल्म का नाम ‘माय नेम इज रागा’ होगा. राहुल गांधी पर बनने वाली इस फिल्म का टीजर भी यूट्यूब पर रिलीज कर दिया गया है. फिल्म में उनके बचपन से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक की पूरी कहानी दिखाई जाएगी. इस फिल्म में राहुल गांधी के महत्वपूर्ण पहलुओं को भी दिखाया गया. फिल्म में राहुल गांधी के पॉलिटिकल विवादों को भी दिखाने की कोशिश की गई. फिल्म में एक्टर अश्विनी कुमार राहुल गांधी की भूमिका निभा रहे हैं, जबकि हिमंत कपाडिया पीएम नरेंद्र मोदी के रोल में नजर आएंगे. और निर्देशक है ‘कामसूत्र’ और ‘डैडी यू बास्टर्ड’ जैसी फ़िल्मों के निर्देशक रुपेश पॉल, बकौल निर्देशक, यह फ़िल्म राहुल गाँधी के महिमा-गान के लिए नहीं है. बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो विपत्तियों से भरी ज़िंदगी पर विजय पाकर अजेय हो जाता है. उनके अनुसार यह ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिस पर लगातार हास्यास्पद रूप से अटैक किया जाता रहा है. जानकारों का कहना है कि अभी तक राजीव गांधी के फिल्म की कहीं कोई चर्चा नहीं थी. अचानक फिल्म बनना इसलिए शुरू हुआ क्योंकि पिछले कुछ समय से मोदी की बायोपिक बनने की चर्चा जोरों पर थी. इसलिए मोदी की बायोपिक के जवाब में कांग्रेस समर्थकों द्वारा यह राहुल की बायोपिक बनाई जा रही है.
सबसे बड़ी बात यह है कि राहुल को हालातों के शिकार की तरह पेश करने के लिए इंदिरा गांधी की हत्या वाले दृश्य में उन्हें भी ख़ून से लथपथ दिखाया गया है. इसके बाद 14 वर्ष की उम्र में गुड्डों से खेलने वाले राहुल गांधी बड़े हो जाते हैं और उन्हें जबरन कांग्रेस की कमान देने की क़वायद शुरू हो जाती है. फाइलों का अध्ययन करती सोनिया गांधी और राहुल की बातचीत से पता चलता है कि राहुल जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, लेकिन सबकी कोशिश यही है कि उन्हें किसी तरह कांग्रेस का नेतृत्व दिया जाए. राहुल गांधी की इस फिल्म के टीजर में देखा जा सकता है कि इंदिरा गांधी को गोली लगने के बाद वो अपने पिता राजीव गांधी से बड़ी मासूमियत से पूछते नजर आ रहे हैं कि क्या आपको भी गोली मार दी जाएगी. राजीव गांधी उनके इन बातों को सुनकर स्तब्ध रह जाते हैं. टीजर में यह भी देखा जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी से कहते हैं कि अब समय आ गया है जब तुम जिम्मेदारी संभालो.. ‘माई नेम इज़ रागा’ अप्रैल में रिलीज़ होनी है, यानी लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिनों पहले.
नरेंद्र मोदी पर तो पहले से फिल्म बन रही है. ओमंग कुमार के निर्देशन में मोदी पर बनी फिल्म का फर्स्ट लुक लॉन्च हो गया है. मूवी में विवेक ओबेरॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोल में दिखेंगे. करीबन 2 साल बाद विवेक किसी बॉलीवुड फिल्म में नजर आएंगे. लेकिन फर्स्ट पोस्टर सामने आने के बाद विवेक के लुक पर बहस छिड़ गई है. फिल्म में मोदी की पत्नी जशोदाबेन का किरदार बरखा विष्ट नामक अभिनेत्री निभा रही है.
सोशल मीडिया पर एक सेक्शन ऐसा भी है जिन्हें विवेक ओबेरॉय पीएम मोदी के लुक में बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहे हैं. वे एक्टर को ट्रोल कर रहे हैं. उनका मानना है कि इस रोल के लिए परेश रावल को चुना जाना चाहिए था. इस तरह मोदी के प्रशंसकों में ही जंग शुरू हो गई. ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ को विवेक ओबेरॉय के पिता सुरेश ओबेरॉय और संदीप सिंह ने प्रोड्यूस किया है. मूवी को 23 भाषाओं में रिलीज किए जाने की खबर है. फिल्म का बजट करीब 200 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. हो सकता है राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी पर बन रही फिल्में साथ-साथ रिलीज हों वैसे भी चुनाव के लिए कम समय रह गया है.
हर शुक्रवार फार्मूला फिल्में परोसने वाले बॉलीवुड को पिछले कुछ समय से अचानक बायोपिक का चस्का लग गया है. कुछ राजनीतिक दल चुनाव के मौसम में चुनाव प्रचार के लिए इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. वैसे इसमें बाजी भाजपा ही मार रही है. कांग्रेस ने तने दूर की सोची ही नहीं. जनवरी में ही अबतक चार बायोपिक प्रदर्शित हो चुके है ,चुनाव तक कई और आनेवाले है. पहले लगा था कि कहीं भाजपा वालों का यह नया चुनावी हथकंड़ा तो नहीं है. मगर अब लगता है कि कई पार्टियां फिल्मों का अपनी बात वोटरों तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. इसके साथ यह भी सवाल उठने लगा है कि क्या ये राजनीतिक बायोपिक चुनावी लाभ पहुंचाने में कहां तक सफल होंगे. वैसे अभी चुनाव के लिए फिल्मों के इस्तेमाल के सिलसिले में जो हिन्दी फिल्में सामने आ रही है उनकी शुरूआत होती है-`एक्सीडेटल प्राइमिनिस्टर`से.
11 जनवरी को रिलीज हुई यह फिल्म कांग्रेस सरकार के दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को बेनकाब करने की कोशिश है. यह फिल्म दिखाती है कि मनमोहन सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों की कठपुतली मात्र थे. स्वतंत्र रूप से कोई फैसले नहीं ले पाते थे. इसके साथ रिलीज़ हुई ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ मोदी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में थी, जिसे विपक्ष फर्जीकल स्ट्राइक कहता है. यह फिल्म यह दिखाने की कोशिश है कि मोदी सरकार किस तरह साहसी निर्णय लेने की क्षमता रखती है.
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‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म में तो साफ-साफ भाजपा हाथ नजर आता है. भाजपा के आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर एकाउंट से फिल्म के ट्रेलर को साझा किया गया. दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं ने अनुपम खेर अभिनीत फिल्म ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को अपनी पार्टी के ख़िलाफ़ भाजपा का दुष्प्रचार क़रार दिया. फिल्म ने प्रोपेगैंडा करने की कोशिश की है मगर यह कोशिश पूरी तरह असफल हो गई. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब पर आधारित पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के राजनीतिक जीवन पर बनी इस फिल्म ने ट्रेलर रिलीज होने के बाद जैसा हो-हल्ला मचाया गया था फिल्म में वैसा कुछ भी नहीं है. साफ शब्दों में कहें तो बेहद ही कमजोर फिल्म है. फिल्म में वही है, जैसा लगभग उस समय सरकार को लेकर धारणा थी. फिल्म में सोनिया गांधी पर निशाना साधा गया है. सत्ता के दो केंद्र हैं, पीएम पर एक परिवार का पार्टी का दबाव है, गठबंधन की मजबूरियां हैं. इसके साथ ही-‘उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक’ भी रिलीज़ हुई. फिल्म पाकिस्तान के खिलाफ भारत के द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर है. ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ कई हफ्तों से बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है और 250 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर चुकी है.
इस फिल्म का How’s the Josh? डायलाग काफी फेमस हो रहा है. मगर इसके साथ रिलीज़ हुई एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर का तो बाक्स ऑफिस पर एक्सीडेंट हो गया। बहुत कम कमाई हुई.
कंगना रनौत की रानी झांसी पर बनी फिल्म ‘मणिकर्णिका’ को भाजपा के एजंडे का हिस्सा माना जा रहा है. इस फिल्म के हर सीन में कंगना हैं. अगर यह फिल्म किसी भी वजह से देखी जानी चाहिए तो वह केवल इसका रानी लक्ष्मीबाई पर आधारित होना और उनकी भूमिका में कंगना रनौत का जानदार अभिनय है. भाजपा इसमें अपना एजेंडा इस तरह लायी है कि रानी युद्ध के मैदान में ‘हर हर महादेव’ का उद्घोष कर फिरंगियों पर टूट पड़ती हैं. बॉक्स आफिस पर भी यह फिल्म ठीकठाक रही, अबतक 100 करोड़ की कमाई कर चुकी है.
शिवसेना के नेता संजय राउत निर्मित ‘ठाकरे’ विशुद्ध प्रोपेगेंडा फिल्म है, जो बाल ठाकरे का महिमागान करती है. यह फिल्म हिंदी के साथ-साथ मराठी में भी बनाई गई है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय एक बार फिर उम्दा है. उन्होंने परदे पर बाल ठाकरे को जिंदा कर दिया है, भले ही वृत्तचित्र रूपी इस फिल्म में वह रोचकता नहीं है जो दर्शकों को बांध कर रख पाए.
दक्षिण भारत में भी वोट के लिए बायोपिक बन रहे हैं. गैर-कांग्रेसवाद के मसीहा और तेलुगु फिल्मों के सुपरस्टार और आंध्रप्रदेश के पूर्व सीएम एनटी रामाराव की बायोपिक की चर्चा पिछले काफी समय से चल रही थी. 9 जनवरी को इस फिल्म को बड़े स्तर पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रिलीज कर दिया गया. फिल्म में एनटीआर का रोल उनके बेटे नंदमूरि बालकृष्णा ने निभाया है. इस फिल्म के जवाब में लक्षमीज एनटीआर बनी है. लक्ष्मी पार्वती एनटीआर की दूसरी बीवी थी. उसका मानना है कि चंद्रबाबू ने एनटीआर से की पीठ में छुरा घोपा. इस कारण इस फिल्म के निर्माता रामगोपाल वर्मा एक बार फिर से विवादों में आ गए हैं. इस फिल्म में दिखाया गया है कि तेलुगूदेशम के नेता चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटी रामा राव को धोखा दिया था. ऐसी फिल्में चुनाव के समय में विवाद पैदा करेंगी ही. लोगों को चुनावी चकल्लस का पूरा मजा भी देंगी.
इन दिनों जहां देखों वहां बायोपिक की चर्चा सुनाई देती है. हर किसी पर बायोपिक बन रही है, हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर भी बायोपिक बनी है. चुनाव के समय राजनीतिज्ञों पर बनी फिल्में ज्यादा प्रदर्शित की जाती हैं. इन फिल्मों का असली मकसद तो प्रचार है, उसमें ये फिल्में कितना सफल हो पाती है यह तो वक्त ही बताएगा. अभी तो सिर्फ यही कहा जा सकता है, लगे तो तीर नहीं तो तुक्का.
(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं। पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं )