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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतपद्मावती जैसी वीरकथाओं के बिना, हम राजपूत एक बुद्धिमानी-रहित हारे लोगों का समूह भर रह जाएंगे

पद्मावती जैसी वीरकथाओं के बिना, हम राजपूत एक बुद्धिमानी-रहित हारे लोगों का समूह भर रह जाएंगे

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राजपूतों की शौर्य गाथाएं ही कुछ ऐसी हैं, जो उनकी हार को भी स्वीकार्य दिखाती हैं और जब उनकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाए जाते हैं तो लगता है कि उनके जीवन के सबसे सुनहरे दिन बीते चुके हैं।

मशहूर अमेरिकन एनिमेटेड फिल्म टॉय स्टोरी में बज़ लाइटईयर नाम का किरदार है, जो अंतरिक्ष यात्री के पुतले के रूप में है। वह कहानी के अन्य किरदारों को बताता है कि वह उड़ सकता है, जबकि वास्तव में ऐसा संभव नहीं है। यह साबित करने के लिए वह ऊंचाई से छलांग लगाता है तो थोड़ी देर हवा में रहने के बाद वह नीचे गिर जाता है, लेकिन वह खुद को संभाल लेता है और इस ढंग से दिखाता है कि लोग इसे सच समझने लगते हैं और कहानी के अन्य किरदार उससे प्रभावित हो जाते हैं। वह उड़ सकता है इसमें कुछ गड़बड़ है। ऐसा चरवाहे वुडी डॉल को लगता है। वह समझ जाता है कि यह स्टाइल के साथ गिर रहा है और लोग समझ रहे हैं कि यह उड़ रहा है।

मेरे अनुसार, हम राजपूतों की यही विशेष प्रतिभा है। मेरे बचपन में मैंने प नाम वाले कई राजपूतों की शौर्य गाथाओं को सुना है। पृथ्वीराज चौहान, पन्नाधाय, रानी पद्मिनी, महाराणा प्रताप। इन सभी कहानियों का अंत रोमांच से भरपूर था। हार से होने वाला अपमान सहने की बजाए उन्होंने सामने आने वाली कितनी ही चुनौतियों का सामना किया तथा मौत को पूरी वीरता के साथ गले लगाया था।

लेकिन वे स्टाइल के साथ पराजित होने वाले लोग जरूर थे। पृथ्वीराज चौहान हराए गए, उन्हें अंधा कर दिया गया और मोहम्मद गौरी के सामने लाया गया। लेकिन उन्होंने अपना धनुष शत्रु की ओर घुमाया, उस घृणास्पद अावाज का अचूक अनुसरण करके एक ही बाण से गौरी को नीचे गिरा दिया। पन्ना धाय ने राजकुमार को बचा लिया, अपना बेटा गंवा दिया। महाराणा प्रताप हल्दी घाटी में हार गए, लेकिन उन्होंने कभी समर्पण नहीं किया। रानी पद्मिनी और चित्तौड़गढ़ की महिलाओं ने जौहर किया। गुलामी और अपमान से मौत उनके लिए बेहतर थी।

राजपूतों का मान रौंगटे खड़े करने वाला है। यह विशाल रोमन साम्राज्य के खिलाफ छोटे से गोलिश गांव, बड़े फारसी साम्राज्य के खिलाफ 300 स्पार्टन्स की सेना के संघर्ष का मिश्रण है। इस सबको बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ मसाले के साथ परोसा गया है। रोमांच से भरपूर स्टाइल के साथ हारना, सिनेमाई अंदाज में कही ये कहानियां उन लोगों को दिलासा देती हैं जिन्हें कहानियां सुनने के लिए जीना है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि फिल्म शोले में ठाकुर बलदेव सिंह एक ठाकुर हैं। लहूलूहान होकर भी न झुकने वाला और कौन हो सकता है? हार भले जाए लेकिन टूटे नहीं और जिसमें बदला लेने के लिए एक आग अंदर निरंतर धधक रही हो?

मेरा मानना है कि कोई भी मजदूरी पर पलने वाला गुलाम जो आखिरकार अपने घृणास्पद मालिक को उंगली दिखाता है और नौकरी छोड़कर स्टैंडअप कॉमेडियन बनता है या रीवर-राफ्टिंग कैंप खोल लेता करता है, वह भीतर के राजपूत को ही अभिव्यक्त कर रहा होता है।

नतीजे जाए भाड़ में, यह खास राजपूत विचार है। इसलिए वो कभी पीछे नहीं हटता। उसी तरह है उन शत्रुअों से लड़ना जो है ही नहीं। और बेशक, खुल्लमखुल्ला जो करना है कर डालना भी राजपूत शैली है। हमारी दादी ने हमें बताया था कि राजपूत चालाक और कुटील नहीं होते हैं (मुसलमानों की तरह) न ही सांसारिकता में डूबे होते हैं (पंजाबी की तरह)। भारतीय सेना में बड़ी संख्या में राजपूत सैनिक काम कर रहे हैं लेकिन प्रमुख पदों पर राजपूत बहुत कम हैं, क्यों? क्योंकि हम बॉस को भी जो जी में आए कह देते हैं और इसलिए हमें पदोन्नति नहीं मिलती हैं या हम युद्ध में मारे जाते हैं, क्योंकि हम बहुत बुद्धिमान नहीं हैं। या हम युद्ध में मर जाते हैं। शायद हम भी बहुत स्मार्ट नहीं हैं (बिना वैकल्पिक योजना के सीधे भिड़ जाना ही आमतौर पर हमारी ‘रणनीति’ होती है)। शायद हम गरम दिमाग के और बेवकूफ हैं लेकिन, यह ठीक है, यहां तक कि गर्व करने लायक है।

हम बहादुर हैं और बहादुरी पर कोई समझौता नहीं हो सकता।

मुझे याद है मेरी दादी ने एक राजपूत कहानी सुनाई थी, जब हम उनके बिस्तर के चारों ओर इकट्‌ठा हो जाया करते थे। यह कोई ऐसा राजपूत राजा था जो युद्ध से वापस लौट आया था, क्योंकि वह लड़ने से बहुत डरता था। उनकी दब्बू पत्नी हमेशा लंबे घूंघट में रहती थी और निगाहें नीची करके रहती थी। स्वाभाविक था कि वह अपने पति की तो आलोचना नहीं कर सकती थी मगर रात में जब खाना तैयार हो रहा था तो वह रसोई में गई और रसोइये को लोहे के बर्तनों को टकराकर इतनी आवाज करने के लिए डांटा।

वह अपने सौम्य स्वर में कहती हैं,‘ क्या आप नहीं जानते कि मेरे पति को धातुओं के टकराने की आवाज से डर लगता है?’ यह सुनकर राजा का चेहरा शर्म से लाल हो गया और वह घोड़े पर सवार होकर रणभूमि में लौट जाता है। और मारा जाता है। और रानी सती हो जाती है। कितना सुखद (राजपूतों के लिए) अंत!

एक और राजपूत राजा की कहानी है, इतनी ही खौंफनाक जो प्रेम में डूबे, हनीमून में मस्त राजा के बारे में है, जो अपनी पत्नी को सुहागरात की शय्या पर छोड़कर युद्ध पर नहीं जाना चाहता। वह बार-बार उसे जाने को कहती है, कहती है कि वह कर्तव्य पथ से भटके नहीं, और आखिरकार वह जाने लगता है- लेकिन फिर प्रवेश द्वार पर रुक जाता है अौर संदेश भेजता है कि वह उसे ‘सेनानी’ (कोई ऐसी निशानी जो युद्ध में पहनी जा सके ताकि प्रेयसी की याद रहे) भेजे। इस वीरता रहित, बहाने बनाने वाले लिजलिजे व्यक्ति से आज़ीज आकर रानी अपना सिर काट देती है ताकि संदेशवाहक रक्तरंजित सिर सेनानी के रूप में राजा को दे दे।

हां, अब कुछ बेहतर है इस भयानक तोहफे को देखकर राजा होश में आता है और उसे अपना वास्तविक कर्तव्य याद आता है। राजा उसके बालों से सिर को गर्दन में बांध लेता है और घोड़े पर सवार होकर रणभूमि में चला जाता है। मुझे याद नहीं कि बाद में क्या होता है। मुझे लगता है शायद वह मारा जाता है। बेशक, वीरतापूर्वक। ये वे कहानियां हैं, जो हमने दादीमां के पास बैठकर सुनी हैं।

यही वजह है कि लोग जब हमारी इन किंवदंतियों की विश्वनीयता पर सवाल उठाते हैं तो हमारे जोधपुरी इतने क्यों उत्तेजित हो जाते हैं, जैसा कि वर्तमान में रानी पद्‌मिनी की किंवदंती को लेकर हो रहा है। देखिए, राजपूतों की सारी पराजय इसलिए स्वीकार्य हो जाती हैं, क्योंकि उनके साथ मौत का सामना होते समय उनके द्वारा दिखाए अद्‌भुत शौर्य की गाथाएं होती हैं। उन कथाओं का छिद्रान्वेषण कीजिए, उन्हें गौण बताइए या सवाल उठाइए या उन्हें ऐसी कल्पना बताकर खारिज कर दीजिए, जो खुद को सांत्वना देने के लिए गढ़ी गई हैं ; और तब हम सिर्फ…काफी हद तक पराजित समूह भर रह जाते हैं, शानदार दिन बीत चुके हैं, ढहते किलों का ढेर और चलाने के लिए कुछ डेंटिंग-पेंटिग मैकेनिंक का बिज़नेस।

सिर्फ ऐसे उदास लोगों का समूह जो बहुत बुद्धिमान नहीं है, सिर्फ स्टाइल के साथ खेत रहना जानते हैं।

इसलिए हे लोगो, कृपा करके हमारे वीरों की सच्चाई पर संदेह मत कीजिए। हमारे पास जो कुछ है, वही तो है।

अनुजा चौहान दोज प्राइसी ठाकुर गर्ल्स, बैटल फॉर बिट्‌टोरा और जोया फैक्टर किताब की लेखिका हैं।

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