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आज के चित्रित कार्टून में, साजिथ कुमार गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर एक झूला पुल के ढहने की ओर इशारा करते हैं – 7 महीने के मरम्मत कार्य के बाद इसे जनता के लिए फिर से खोलने के चार दिन बाद- जिसमें 135 लोगों की जान चली गई – रिपोर्टों के अनुसार, नगरपालिका द्वारा ‘फिटनेस प्रमाणपत्र’ जारी करने से पहले पुल को फिर से खोल दिया गया था.
नाला पोनप्पा मोरबी पुल ढहने में घायल हुए लोगों से मिलने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के सरकारी अस्पताल के दौरे से पहले GMERS अस्पताल की हालत को रातोंरात ठीक करने को दर्शाते हैं.
मोरबी पुल ढहने का जिक्र करते हुए, संदीप अध्वर्यु ने उन रिपोर्टों पर टिप्पणी करते हैं, जिसमें बताया गया है कि औपनिवेशिक युग के इस पुल का नवीनीकरण करने वाली कंपनी ओरेवा दीवार की घड़ियां बनाती है.
आलोक निरंतर कुछ टीवी समाचार आउटलेट्स की इसलिए आलोचना करते हैं वह मोरबी पुल के ढहने के लिए स्थानीय लोगों जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, बजाय कि इसका नवीनीकरण करने वाली कंपनी के अधिकारियों के बिना ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ इसे फिर से शुरू करने को दोष देने के.
ई.पी. उन्नी ने भी मोरबी में हुई त्रासदी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह पुल ब्रिटिश काल का है, जो बताता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसके ढहने के लिए दोषी नहीं ठहरा सकती.
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