नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा पैदा नहीं किया, बल्कि वैश्विक द्वंद्वों के बीच आज भी वह विश्व कल्याण की ही सोचता है। साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा कि देश सिख गुरुओं के आदर्शों पर चल रहा है।
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर लाल किले पर आयोजित एक समारोह में शिरकत करने के बाद अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वर्ष 2047 में देश जब अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारत ऐसा हो जिसका सामर्थ्य दुनिया देखे और जो दुनिया को नई ऊंचाई पर ले जाए।
उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक संघर्षों के बीच भी पूरी स्थिरता के साथ शांति के लिए प्रयास करता है। उनका इशारा यूक्रेन पर रूसी हमले की ओर था।
प्रधानमंत्री मोदी ने सिख गुरुओं की परंपराओं की सराहना करते हुए कहा कि सैकड़ों साल की गुलामी से भारत की आजादी को उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा से अलग नहीं किया जा सकता है।
मोदी ने सिख समुदाय के लिए अपनी सरकार के प्रयासों का हवाला देते हुए कहा कि गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों के बलिदान की याद में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के तौर पर मनाने का निर्णल लिया गया। उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून ने पड़ोसी देशों से भारत आए सिख परिवारों और अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त किया है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने करतारपुर साहिब गलियारे का निर्माण कर ‘गुरु सेवा’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। मोदी ने कहा, ‘‘हमारी सरकार ने पटना साहिब और गुरु गोविंद सिंह से जुड़े अन्य स्थानों के लिए रेल सुविधाओं का आधुनिकीकरण भी सुनिश्चित किया है।’’
प्रधानमंत्री ने भरोसा जताया कि सिख गुरुओं के आशीर्वाद से भारत अपने गौरव के शिखर तक पहुंचेगा और देश जब अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा तो एक नया भारत दुनिया के सामने होगा।
इस अवसर पर मोदी ने गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया।
इस समारोह में प्रधानमंत्री करीब एक घंटे रहे और देश के विभिन्न हिस्सों से आए रागी और बच्चों द्वारा प्रस्तुत ‘‘शबद कीर्तन’’ को उन्होंने बड़े ही गौर से सुना।
उन्होंने कहा कि यह लाल किला कितने ही अहम कालखण्डों का साक्षी रहा है, जिसने गुरु तेग बहादुर की शहादत को भी देखा है और देश के लिए मरने-मिटने वाले लोगों के हौसलों को भी परखा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरु तेग बहादुर के बलिदान ने भारत की अनेक पीढ़ियों को अपनी संस्कृति की मर्यादा की रक्षा व उसके मान-सम्मान के लिए जीने और मर-मिट जाने की प्रेरणा दी है।
उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी-बड़ी सत्ताएं मिट गईं, बड़े-बड़े तूफान शांत हो गए लेकिन भारत आज भी अमर खड़ा है, आगे बढ़ रहा है।’’
प्रधानमंत्री ने गुरु तेग बहादुर के बलिदान के प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब का उल्लेख किया और कहा उस समय देश में मजहबी कट्टरता की आंधी आई थी और धर्म को दर्शन, विज्ञान और आत्मशोध का विषय मानने वाले हिंदुस्तान के सामने ऐसे लोग थे, जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेग बहादुर के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेग बहादुर ‘हिन्द दी चादर’ बनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा नहीं पैदा किया और तमाम वैश्विक द्वंद्वों के बावजूद आज भी वह पूरे विश्व के कल्याण के लिए सोचता है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत विश्व में योग का प्रचार करता है तो पूरे विश्व के स्वास्थ्य व शांति की कामना करता है। अब भारत विश्व के कोने-कोने तक पारंपरिक चिकित्सा का लाभ पहुंचाएगा और लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने में अहम भूमिका निभाएगा। आज का भारत वैश्विक द्वंद्वों के बीच में पूरी स्थिरता के साथ शांति के लिए प्रयास करता है और काम करता है। भारत अपने देश की रक्षा व सुरक्षा के लिए उतनी ही दृढ़ता से खड़ा है।’’
प्रधानमंत्री ने देशवासियों से स्थानीय उत्पादों पर गर्व करने का आह्वान करते हुए कहा कि अब एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो उसमें पूरे विश्व की प्रगति का लक्ष्य सामने रखते हैं। हमें एक ऐसा भारत बनाना है, जिसका सामर्थ्य दुनिया देखे। जो दुनिया को नई ऊंचाई पर ले जाए। देश का विकास… देश की तेज प्रगति… यह हम सब का कर्तव्य है। इसके लिए सब के प्रयास की जरूरत है।’’
इस अवसर पर गुरु तेग बहादुर जी के जीवन को दर्शाने वाला एक भव्य लाइट एंड साउंड शो भी दिखाया गया।
यह कार्यक्रम नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के उपदेशों को रेखांकित करने पर केंद्रित है।
गुरु तेग बहादुर ने विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।
उन्हें मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर कश्मीरी पंडितों की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए मार डाला गया था। उनकी पुण्यतिथि 24 नवंबर हर साल शहीदी दिवस के रूप में मनाई जाती है।
दिल्ली में गुरुद्वारा शीश गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज उनके पवित्र बलिदान से जुड़े हैं। उनकी विरासत इस राष्ट्र के लिए एकजुटता की एक महान शक्ति के रूप में कार्य करती है।
भाषा
शोभना वैभव
वैभव
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