नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में एक वर्ष पूरा करने वाले न्यायमूर्ति एनवी रमण ने न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण न्यायिक और प्रशासनिक निर्णय लिए। इन निर्णयों में कथित पेगासस जासूसी मामले की जांच, शीर्ष अदालत में एक बार में तीन महिलाओं सहित नौ न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों में 126 न्यायाधीश की नियुक्ति तथा कोविड-19 महामारी के दौरान भी अदालतों का निर्बाध संचालन शामिल है।
न्यायमूर्ति रमण ने 24 अप्रैल 2021 को 48वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी। उन्हें पेगासस स्पाइवेयर मामले और लखीमपुर खीरी हिंसा की स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने तथा प्रौद्योगिकी व न्यायिक तंत्र का व्यापक उपयोग कर महामारी के दौरान शीर्ष अदालत के कामकाज को सफलतापूर्वक सुनिश्चित करने का श्रेय दिया जाता है।
न्यायमूर्ति रमण ने न्यायमूर्ति एसए बोबडे से मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया था, जिनके कार्यकाल में शीर्ष अदालत ने महामारी के प्रकोप के बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही शुरू की थी।
शीर्ष अदालत को 17 नवंबर 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद एक भी न्यायाधीश नहीं मिला था। जब न्यायमूर्ति रमण ने सीजेआई का पदभार संभाला था, तब शीर्ष अदालत में नौ और उच्च न्यायालयों में लगभग 600 रिक्तियां थीं।
न्यायमूर्ति रमण ने पिछले साल जून में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ अपनी पहली बातचीत में नियुक्तियों के लिए नाम मांगे। उनके प्रयासों और कॉलेजियम में सहयोगियों को साथ लेने के सामूहिक नेतृत्व कौशल के कारण उच्चतम न्यायालय में नौ रिक्तियां पिछले साल अगस्त में एक बार में भरी गईं। उनमें से तीन महिला न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना देश की पहली महिला सीजेआई बनेंगी।
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश पद के लिए कुल 192 उम्मीदवारों की सिफारिश की गई थी और इनमें से 126 को पहले ही नियुक्त किया जा चुका है और अब तक की गई सिफारिश में लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं के नाम हैं।
न्यायमूर्ति रमण के प्रयासों से तेलंगाना उच्च न्यायालय की पीठ की संख्या 24 से बढ़कर 42 हो गई है।
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नवरम गांव के एक कृषक परिवार से ताल्लुक रखने वाले मृदुभाषी न्यायमूर्ति रमण 26 अगस्त 2022 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
अपने कार्यकाल की शुरुआत में प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के साथ सीबीआई निदेशक का चयन करने के लिए चयन समिति का हिस्सा रहे सीजेआई ने शीर्ष अदालत के फैसले को लागू किया था, जिसके कारण एसके जायसवाल को जांच एजेंसी के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।
राजद्रोह और इससे जुड़े कानून के दुरुपयोग पर गौर करते हुए सीजेआई ने केंद्र को नोटिस जारी किया और औपनिवेशिक काल के दंडात्मक प्रावधान की आवश्यकता पर सवाल उठाया, जिसका इस्तेमाल स्वतंत्रता सेनानियों को सताने के लिए किया जाता था।
भाषा अमित पारुल
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