नयी दिल्ली, 27 अप्रैल (भाषा) केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के विवादास्पद मुद्दे को समग्र व्याख्या के लिए संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए।
केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि संविधान पीठ को भेजने के 2017 के आदेश को महज पढ़ने से समझा जा सकता है कि अनुच्छेद 239एए के सभी पहलुओं के लिए जरूरी संदर्भ शर्तों की व्याख्या की जरूरत है।
मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘उक्त संदर्भ का संवैधानिक महत्व इस तथ्य से पता चलता है कि दिल्ली के लिहाज से विधायिका और मंत्रिपरिषद के लिए संविधान के 69ए संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 239एए लागू किया गया। इस तथ्य के मद्देनजर इसका महत्व और बढ़ जाता है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी भी है और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के शासन मॉडल में स्थायी रूप से केंद्र सरकार को केंद्रीय भूमिका निभानी होगी, भले ही विधानसभा या मंत्रिपरिषद हों।’’
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली शामिल हैं। मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘इस वजह से अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिए प्रदत्त शासन के मॉडल को दिल्ली एनसीटी के लिए उचित नहीं समझा जाता है और एक उचित शासन मॉडल सुझाने के लिए बालकृष्णन समिति का गठन किया गया था जो केंद्र की भूमिका की जरूरत को संतुलित कर सकती है और उसी समय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को मंच प्रदान कर सकती है।’’
सॉलिसीटर जनरल ने दलील दी कि दिल्ली एनसीटी की विधानसभा के विधायी अधिकारों के संबंधों में सूची 2 की प्रविष्टि 41 को लेकर विवादों पर फैसले को रोकने वाले विषय पर जब तक इतने या अधिक न्यायाधीशों की पीठ फैसला नहीं करती, विवाद पर प्रभावी तरीके से निर्णय नहीं लिया जा सकता।
भाषा वैभव पवनेश
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