चेन्नई, तीन मई (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई एसोसिएशन अदालतों में अपने सदस्यों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, जब तक कि वे कमजोर तबके से ना हों।
कई फैसलों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति डी कृष्णकुमार ने कहा कि तमिलनाडु सर्वे ऑफिसर्स यूनियन (सेंट्रल) अपने महासचिव के जरिये सदस्यों का उच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
याचिका के जरिये राजस्व आपदा प्रबंधन विभाग के 26 मार्च 2000 के एक आदेश को अवैध एवं अमान्य करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता की दलीलों को स्वीकार करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि सभी फैसलों का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि कोई एसोसिएशन, चाहे वह पंजीकृत हो या नहीं हो, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने सदस्यों की ओर से सिर्फ तभी एक रिट याचिका दायर कर सकता है, जब वे खुद गरीबी, दिव्यांगता या सामाजिक या आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में हों, जिन्हें कमजोर तबका माना जाता है।
अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में यह रिट याचिका एसोसिएशन के सदस्यों की ओर से दायर की गई और याचिकाकर्ता के एसोएिशन के सदस्य सर्वे एंड सेटलमेंट विभाग के कर्मचारी हैं, जिन्हें गरीब, दिव्यांग या वंचित वर्ग नहीं माना जा सकता जो व्यक्तिगत रूप से इस अदालत का रुख नहीं कर सकते हों।
न्यायाधीश ने कहा कि इस अदालत का यह मानना है कि सरकारी आदेश को चुनौती देने का याचिकाकर्ता के एसोसिएशन को कोई अधिकार नहीं है और यह रिट याचिका स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है तथा खारिज की जाती है।
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भाषा सुभाष दिलीप
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