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Friday, 15 August, 2025
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जज साहब, लाइक-शेयर-सब्सक्राइब? सोशल मीडिया के ज़रिये बदल रही है युवाओं की कानून की समझ

बार काउंसिल खुश नहीं हैं. आम लोगों को कानून की जानकारी देने और अपना नाम-पहचान बनाने के बीच की सीमा धुंधली हो रही है, इसलिए वे इसे ‘गैर-नैतिक प्रचार’ मानकर कार्रवाई कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: एलिमनी (भरण-पोषण) पर बहस से लेकर डेटिंग डिस्क्लेमर तक — भारत के वकील अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनते जा रहे हैं, वह भी एक-एक रील के ज़रिये, लेकिन बार काउंसिल को ये रास नहीं आ रहा.

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के वकील उमर अली को लीजिए. वे अक्सर काले कोट में, कभी-कभी कोर्ट के कोरिडोर में खड़े होकर, हिंदी में रिश्तों से जुड़े कई कानूनी मामलों पर सलाह देते नज़र आते हैं — जैसे “गर्लफ्रेंड के भरण-पोषण के अधिकार”, सिर्फ “आई लव यू” कहने पर जेल जाने की नौबत, या फिर पत्नी के अफेयर में होने पर पति के अधिकार.

अली का इंस्टाग्राम हैंडल legal.baatein के लगभग 10 लाख फॉलोअर्स हैं, ब्लू टिक है और रिश्ते, शादी, जीवनसाथी और तलाक से जुड़े कानूनों पर लगातार वीडियो पोस्ट होते रहते हैं.

वे अकेले नहीं हैं. ऐसे दर्जनों वकील अब मज़ेदार रिलेशनशिप टिप्स, भरण-पोषण के ‘हैक’ और केस लॉ मीम्स में बांट रहे हैं. काले कोट पहनकर, कोर्ट के गलियारों में रील शूट करके, ट्रेंडिंग ऑडियो के साथ विभिन्न धाराओं को समझाते हैं.

कानूनी कंटेंट पहले कभी इतना ट्रेंड में नहीं था. प्रीनअप एग्रीमेंट से लेकर ‘आई लव यू’ जेल क्लॉज़ तक — लीगल इन्फ्लुएंसर बदल रहे हैं कि भारत का युवा कानून को कैसे समझता है.

लेकिन बार काउंसिल को यह बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा. आम जनता को कानून की जानकारी देने और खुद का ब्रांड बनाने के बीच की लकीर धुंधली होती जा रही है, इसलिए वे अब ऐसे मामलों पर कार्रवाई कर रहे हैं, जिसे वे “अनैतिक प्रचार” कहते हैं.

4 अगस्त को दिल्ली बार काउंसिल (BCD) ने नोटिस जारी कर वकीलों को चेतावनी दी कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल काम मांगने या सेवाओं का विज्ञापन करने के लिए न करें. उन्होंने इसे “अनैतिक प्रचार” और पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन बताया.

बीसीडी ने खासतौर पर “खुदभूले कानूनी इन्फ्लुएंसरों” पर चिंता जताई, जिनके पास सही योग्यता भी नहीं होती और फिर भी वे गंभीर कानूनी विषयों पर गलत जानकारी फैलाने वाला कंटेंट डालते हैं.

इससे पहले इस साल 17 मार्च को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भी इसी तरह का निर्देश जारी कर सोशल मीडिया, इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और शॉर्ट वीडियो कंटेंट के ज़रिये कानूनी विज्ञापन की कड़ी निंदा की थी.

शादी-ब्याह के झगड़े, टैक्सेशन, बौद्धिक संपदा अधिकार और प्राइवेसी राइट्स जैसे विषयों पर ग़लत जानकारी बढ़ने का हवाला देते हुए, बीसीआई ने राज्य बार काउंसिलों से Advocates Act, 1961 के तहत कार्रवाई करने की अपील की.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सह-अध्यक्ष (2019 से) और दिल्ली बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, “ये रीलें बार काउंसिल द्वारा तय पेशेवर आचार संहिता का सीधा उल्लंघन हैं. यह लोगों को लुभाने और अपने पास केस लाने के लिए आकर्षित करने के बराबर है, जो कि नियमों में मना है.”

उन्होंने आगे कहा, “बीसीआई ने सभी राज्य बार काउंसिलों को नोटिस भेजा था कि उनके पास रजिस्टर्ड सभी वकीलों को चेतावनी दें कि वे किसी भी तरह का पब्लिसिटी, विज्ञापन, इंस्टाग्राम-फेसबुक पर रील्स न डालें.”

उनके मुताबिक, नियमों के तहत वकील केवल अपना नाम, पता, फोन नंबर, ईमेल आईडी, एनरोलमेंट नंबर, एनरोलमेंट की तारीख, जिस राज्य बार काउंसिल में रजिस्टर्ड हैं उसका नाम, जिस बार एसोसिएशन के सदस्य हैं उसका नाम, पेशेवर और शैक्षिक योग्यता और किन क्षेत्रों में प्रैक्टिस करते हैं — यही जानकारी वेबसाइट और लेटरहेड पर दे सकते हैं.

उन्होंने कहा कि किसी क्लाइंट के लिए मिली सफल जमानत या स्टे ऑर्डर को पोस्ट करना भी मना है.

काले कोट और ब्लू टिक

सुप्रीम कोर्ट के वकील भी अब सोशल मीडिया के ट्रेंड में कूद पड़े हैं.

13 साल का अनुभव रखने वाले वकील अमीश अग्रवाला अपने इंस्टाग्राम हैंडल amish.adv पर अक्सर दहेज, तलाक, रेप, भरण-पोषण और लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े मामलों पर पोस्ट करते हैं. इनमें वह क्लाइंट्स की गलतियों और “पुरुषों के साथ होने वाले अन्याय” को उजागर करते हैं.

3.79 लाख से ज़्यादा फॉलोअर्स वाले अग्रवाला कभी-कभी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में हास्य ढूंढते हैं और पुरुषों तथा उनके पक्ष में केस लड़ने वाले वकीलों के लिए दार्शनिक और पेशेवर सलाह भी देते हैं.

अगर अग्रवाल पुरुषों को सलाह देने पर ध्यान देते हैं, तो एक अन्य वकील, तान्या अप्पाचु कौल, इसका दूसरा पक्ष रखती हैं. वह महिलाओं को रिश्तों, मातृत्व लाभ, टॉक्सिसिटी, प्रीनप्चुअल कॉन्ट्रैक्ट और पारंपरिक पत्नी संस्कृति पर दार्शनिक और रियल-टाइम गाइडेंस देती रहती हैं. उनके इंस्टाग्राम हैंडल yourinstalawyer के 2.41 लाख से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं.

पश्चिम बंगाल के वकील सत्याकी रॉय, जो legalbysatyaki नाम से इंस्टाग्राम अकाउंट चलाते हैं, एक मिनट में “तलाक के आधार” समझाने, हार्दिक पांड्या के तलाक केस की चर्चा करने या Narcotic and Psychotropic Substances Act, 1985 के तहत गांजा पीने के नतीजे बताने जैसे पोस्ट करते हैं — वह भी पूरी तरह बंगाली भाषा में.

रॉय का एक वीडियो — जिनके लगभग 30,000 फॉलोअर्स हैं, ब्लू टिक है और प्रोफाइल में कोलैबोरेशन डीटेल भी है — वकील के लिबास में “रिलेशनशिप एडवाइस” देता है, साथ में डिस्क्लेमर लिखा है कि यह सिर्फ मनोरंजन के लिए है. इस पोस्ट को 6,500 से ज़्यादा लाइक्स और 355 कमेंट मिले हैं.

वकील लिकिता अवारे के इंस्टाग्राम अकाउंट legalshotswithvakeel के 27,000 फॉलोअर्स हैं और वह खुद को ‘The QUEEN of Law Memes’ कहती हैं. वे लॉ स्टूडेंट्स या प्रैक्टिस कर रहे वकीलों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर ट्रेंडिंग ऑडियो के साथ नियमित वीडियो और मीम बनाती हैं.


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कानून क्या कहता है?

बार काउंसिल की इस साल की कार्रवाई पहली बार नहीं है.

जुलाई 2024 में मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले में कानूनी सेवाओं के ‘व्यावसायीकरण’ पर चेतावनी दी गई थी. इसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अपना रुख कड़ा करते हुए कानूनी विज्ञापनों पर रोक के लिए कदम बढ़ाए, खासकर उन वकीलों के खिलाफ जो Justdial, Sulekha, Quikr और Grotal जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपना नाम दर्ज कराते हैं.

इसी तरह, पंजाब और हरियाणा राज्य बार काउंसिल ने भी 31 जुलाई को एक नोटिस जारी कर सोशल मीडिया पर ‘एंडोर्समेंट’ करने से चेतावनी दी.

ऐसी अनुशासनात्मक कार्रवाई का कानूनी आधार Advocates Act, 1961 की धारा 35 और 36 में है. धारा 35 राज्य बार काउंसिल को यह अधिकार देती है कि वे वकील के आचरण की जांच कर सकें और गलती पाए जाने पर उस पर कार्रवाई कर सकें. धारा 36 बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी यही अधिकार देती है.

इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों का Rule 36 स्पष्ट रूप से वकीलों को किसी भी माध्यम से, सीधे या परोक्ष रूप से, विज्ञापन करने से रोकता है. यह नियम पेशे में आत्म-प्रचार के लंबे समय से चले आ रहे विरोध का नैतिक आधार है.

इस नियम के उल्लंघन पर Advocates Act की धारा 36 के तहत सज़ा हो सकती है — जिसमें निलंबन, नामांकन रद्द करना या चेतावनी देना शामिल है, जो गलती की गंभीरता पर निर्भर करता है.

कानूनी शिक्षा वाला कंटेंट बनाम प्रचार और विज्ञापन

सोशल मीडिया फीड पर छोटे-छोटे लीगल वीडियो अब आम हो गए हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो कानूनी खबरें फॉलो करते हैं. ऐसे में विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि कब यह कंटेंट ‘अनैतिक प्रचार’ की सीमा पार कर जाता है.

कई वकील और लॉ स्टूडेंट, जो कानूनी अधिकार, शादी के कानून और तलाक की प्रक्रिया समझाने वाली रील्स बनाते हैं, दावा करते हैं कि वे पब्लिक लीगल एजुकेशन दे रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्ष, एडवोकेट विपिन नायर ने इस मुद्दे को समझाया.

“परिभाषा के हिसाब से, विज्ञापन करना मना है. पहले डायरेक्टरी या मैगज़ीन के ज़रिये परोक्ष विज्ञापन होता था. अब इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म ने सीमाएं धुंधली कर दी हैं. व्यक्तिगत राय साझा करना अलग बात है, लेकिन जब व्यक्तिगत संपर्क विवरण फ्लैश होने लगते हैं, तो यह प्रमोशनल दायरे में आ जाता है.”

उन्होंने स्पष्ट नियम बनाने की ज़रूरत पर जोर दिया और सुझाव दिया कि बार काउंसिल के भीतर सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल बनाई जाए, जो शिकायतों की जांच करे.

SCAORA ने जुलाई के आखिरी हफ्ते में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को अपनी सिफारिशें भी सौंपीं. इसमें कोर्टरूम की कार्यवाही के वीडियो के इस्तेमाल पर चिंता जताई गई और शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया कि वह कोर्टरूम की तस्वीरों और वीडियोज़ को सोशल मीडिया पर काम पाने के मकसद से इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी करे.

लेकिन नायर ने कहा कि CJI केवल सुप्रीम कोर्ट परिसर से जुड़े दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं, राष्ट्रीय स्तर पर नियम बनाने के लिए बार काउंसिल को सक्रिय होकर कदम उठाने होंगे.

कई वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजकर कोर्ट परिसर के भीतर कंटेंट बनाने और सुरक्षा में संभावित समझौते की ओर ध्यान खींचा, क्योंकि यह क्षेत्र हाई-सिक्योरिटी जोन है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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