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शनिवार, 26 अप्रैल, 2025
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योगी राज: यूपी में आवारा पशुओं की आफत से किसान परेशान, पुलिस व अधिकारी हैरान

पहले जिलाधिकारियों को 10 जनवरी तक इंतजाम करने के थे निर्देश, अब 31 जनवरी तक जेलों में रखने के दिए हैं निर्देश.

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लखनऊ: यूपी में सरकार, किसान व आम जनता इन दिनों आवारा पशुओं के कहर से त्रस्त है. खास तौर पर किसानों में इनके लेकर काफी आक्रोश है. सरकार की ओर से समाधान करने के लिए निर्देश पर निर्देश और तारीख पर तारीख दी जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में फसल की बर्बादी से परेशान किसान पशुओं को स्कूल व सरकारी कार्यालयों में बंद कर रहे हैं तो वहीं शहरी इलाकों में लोग जिलाधिकारी से लेकर महापौर तक से इस समस्या के समाधान की गुहार लगा रहे हैं.

पिछले दिनों सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कांजी हाउस का नाम बदलकर गो-संरक्षण केंद्र रखने और 10 जनवरी तक आवारा पशुओं को गो-संरक्षण केंद्रों में पहुंचाने का निर्देश दिया था. इसके बाद ज़िलाधिकारियों द्वारा तमाम कोशिशें भी की गईं, लेकिन समाधान नहीं निकला. अब योगी सरकार ने एक नया तरीका ढूंढ़ा है. जानकारी के मुताबिक सड़कों पर घूमने वाली गायों को जेल भेजने की तैयारी की जा रही है, जहां पर मौजूद बंदी इनकी देखभाल करेंगे. इस व्यवस्था के तहत जेल की खाली ज़मीनों पर बाड़े बनाए जाएंगे और इनका नाम गो सेवा केंद्र रखा जाएगा.


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..तो क्या जेल में रहेंगे आवारा पशु

सूत्रों के मुताबिक कमिश्नर के स्तर पर मंडल में अधिकारियों को ज़मीन तलाशने के निर्देश दिए हैं. इस मामले में कमिश्नर ने कहा कि 31 जनवरी तक सभी जेलों में जानवरों को रखने का इंतज़ाम किया जाए. इसके लिए सभी जेल अधीक्षकों से जेल में खाली ज़मीन का ब्यौरा भी मांगा गया है. वहीं जानवरों की देखभाल जो भी कैदी करेंगे उन्हें मेहनताना भी दिया जाएगा.

परेशान ग्रामीण मजबूरन निकाल रहे अजीबोगरीब समाधान

यूपी के अलीगढ़, आगरा, जौनपुर, लखीमपुर खीरी, आज़मगढ़, मेरठ, अमरोहा, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, समेत कई ज़िलों के किसान गायों के फसल बर्बाद करने से बेहद परेशानी में हैं.

मैनपुरी में नाराज़ किसानों ने प्राथमिक स्कूल और खंड विकास अधिकारी के कार्यालय पर आवारा पशुओं को बंद कर दिया. कुछ ऐसा ही हाल दूसरे ज़िलों का भी है.

अलीगढ़ के तहसील इगलास क्षेत्र में आवारा पशुओं से गुस्साए लोगों ने पूरे इलाके से आवारा पशुओं को खदेड़-खदेड़कर एकत्रित किया. सैकड़ों की तादात में जुटे ग्रामीणों ने राह ​में मिलने वाले सभी पशुओं को एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बंद कर दिया. इसके बाद नज़दीकी गांवों के ग्रामीण भी आवारा पशुओं को लेकर यहां पहुंचने लगे. आवारा पशुओं को स्वास्थ्य केंद्र में लाकर छोड़ने का पता जब संबंधित अधिकारियों को लगा तो वे हैरान रह गए. इसके बाद अधिकारियों ने आवारा पशुओं को टप्पल स्थित गौशाला में भिजवाया.

अमेठी की गौरीगंज तहसील के पछेला गांव में छुट्टा पशुओं से परेशान ग्रामीणों ने सबको खदेड़कर प्राथमिक स्कूल में बंद कर दिया. इससे स्कूल में शिक्षण कार्य प्रभावित होता देख प्रधानाध्यापक ने मामले की सूचना अफसरों को दी तो हड़कंप मच गया. आनन-फानन में एसडीएम, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी व बीईओ ने मौके पर पहुंचकर पशुओं को रानीगंज स्थित आश्रय स्थल पहुंचाया. इसके बाद अफसरों ने प्रधानाध्यापक की तहरीर पर अज्ञात ग्रामीणों के खिलाफ केस दर्ज कराया है. सुबह स्कूल पहुंची प्रधानाध्यापक निशा कश्यप ने शिक्षण कार्य प्रभावित नहीं हो, इसके लिए उच्चाधिकारियों को सूचना दी. प्राथमिक स्कूल में मवेशियों को बंद करने के साथ ही शिक्षण कार्य प्रभावित होने की सूचना से हड़कंप मच गया.

ऐसा ही नज़ारा हापुड़ में देखने को मिला. हापुड़ के पिलखुवा में किसानों ने करीब 100 आवारा पशुओं को प्राथमिक विद्यालय में बंद कर दिया. किसानों ने आवारा घूम रहे आवारा पशुओं को एक-एक कर प्राथमिक विद्यालय में बंद कर दिया और प्रशासन के खिलाफ जमकर हंगामा किया. यह देखते ही शिक्षक भी दंग रह गये. उन्होंने मामले की जानकारी बीएसए समेत शिक्षा विभाग को दी. पिलखुवा क्षेत्र के गांव गालंद में आवारा पशुओं से परेशान किसानों ने 100 की संख्या में आवारा पशुओं को प्राइमरी विद्यालय में बंद कर दिया और साथ ही गुस्साए किसानों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी कर हंगामा किया.

प्रधान के घर ले जाकर छोड़ दिए पशु

गाज़ियाबाद के इनायतपुर गांव के लोगों ने पशुओं को अपने प्रधान के घर में ही बंद कर दिया है. किसानों का कहना है ये लोग जनप्रतिनिधि हैं और यही आवारा पशुओं की समस्या का हल ढूंढे़ं, क्योंकि आवारा पशुओं का आतंक ऐसा है कि एक साथ-साथ बीघे के बीघे खेत चट कर जा रहे हैं. किसानों का कहना है कि आवारा पशुओं से तंग आकर बड़े-बूढ़ों ने पंचायत की ओर से तय किया कि इन्हें सरकारी इमारतों और जनप्रतिनिधियों के यहां बंद किया जाए.

संभल में धनारी थाने में थाना प्रभारी ने आवारा पशुओं को पकड़कर थान में ही बांध दिया. वह इसे गौ पालन का तरीका बताते हैं.

ये नज़ारा लखनऊ-झांसी फोरलेन का है. सड़क पर दौड़ते गाय के झुंड से वाहन चालकों को बेहद परेशानी होती है. रोज़ाना ही आवारा पशु इस फोरलेन पर घूमते रहते हैं. लखनऊ से झांसी की ओर से जाने वाले वाहनों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है.

रायबरेली के हसनपुर गांव के निवासी अनुराग कहते हैं, ‘हमारे गांव में लगभग 500 बीघा खेती की ज़मीन है. पिछले दिनों हमारी आधी से ज़्यादा फ़सल आवारा पशु चौपट कर चुके हैं. अब ऐसे में हम क्या करें. रात-रात भर रखवाली करनी पड़ रही है.

आवारा पशु पकड़ने में जुटे अधिकारी

सीएम के आदेश के बाद कई अधिकारी एक्टिव मोड पर हैं, लेकिन असल समस्या ये है कि जानवर पकड़ कर कहां ले जाया जाए. राजधानी लखनऊ में एक ही बड़ी गोशाला है जो कि कान्हा उपवन के नाम से जानी जाती है, लेकिन अब सरकार ने लखनऊ के इंदिरा नगर में आउटर एरिया में राधा के नाम से भी एक गोशाला बनवाई है. जिसमें करीब 500 गाय रखी जा सकती हैं, लेकिन आवारा पशुओं की संख्या इससे कहीं अधिक है.

नगरपालिका के कर्मचारी व पुलिसकर्मी भी गायों के पीछे भाग-भाग कर उनको पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. बड़ी मुश्किल से पकड़ तो लेते हैं फिर उनको गाड़ी में ले जाना भी एक बड़ी चुनौती साबित होता है. राजधानी लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में यही हाल है.

लखनऊ के सरोजिनी नगर खंड विकास अधिकारी मुनेश चंद्र की अगुवाई में शहीद पथ के अर्जुनगंज, सरसावा, अंसल व लखनऊ एयरपोर्ट के इर्द-गिर्द आवारा पशुओं को पकड़ा गया है. लेकिन 10 जनवरी की मियाद खत्म होने के बाद भी आवारा पशु राजधानी की सड़क पर घूमते दिख जाएंगे.

पशु कैसे बन गए आफत

साल 2017 में यूपी का सीएम बनते ही योगी आदित्यनाथ ने स्लॉटर हाउस पर सख्ती का आदेश सुना दिया था. उनका आदेश मिलते ही अफसरों ने स्लॉटर हाउस पर शिकंजा तो कस दिया, पर बेसहारा और अनुत्पादक पशुओं की देखभाल की कोई प्रभावी योजना नहीं बना सके. इस कारण बेसहारा पशु तेज़ी से बढ़ने लगे. ये फसलों को नुकसान पहुंचाने लगे और सड़क दुर्घटनाओं के कारण बने. फिर इन आवारा पशुओं के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा. गोकशी से जुड़े मामलों में कई गिरफ्तारियां भी हुईं, जिससे लोगों में और भी ज़्यादा भय बढ़ गया. उनके पास अब पशुओं को कहीं ले जाकर बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा.

गोसेवा आयोग में खाली पड़ा अध्यक्ष पद

योगी सरकार में 2017 जून माह में सेवानिवृत्त आईएएस राजीव गुप्ता को उप्र गो-सेवा आयोग का अध्यक्ष नामित किया था. गुप्ता, अध्यक्ष, उप्र गो-सेवा आयोग को मुख्य सचिव के स्तर का दर्जा भी दिया गया था. उनका एक साल का कार्यकाल खत्म हो चुका है, जिसके बाद से नया अध्यक्ष अभी तक नामित नहीं किया गया. तब ये पद खाली है. आयोग का फोन भी नहीं मिलता. इस विभाग के पास अपने अधिकारी कर्मचारी नहीं हैं. पशुपालन विभाग के अधिकारी ही आयोग से संबंद्ध होकर काम करते हैं. आयोग के एक अफसर बताते हैं, ‘पिछड़ा वर्ग आयोग समेत अन्य कई संस्थाओं के पास खर्च के लिए एक स्वतंत्र बजट होता है. ये आयोग अपने कर्मचारियों की नियुक्ति भी स्वयं करते हैं, लेकिन गो सेवा आयोग को सिर्फ दिखावे की संस्था बना कर रख दिया है.’ इसको लेकर पशु कल्याण मंत्री एसपी सिंह बघेल ने कुछ महीने पहले एक अंग्रेज़ी अखबार से बातचीत में कहा था कि मुख्यमंत्री को गो सेवा आयोग की मौजूदा परिस्थितियों से अवगत करा दिया गया है.

गौशालाओं को अधिक बजट की जरूरत

यूपी में फिलहाल 514 रजिस्टर्ड गोशालाएं हैं. निजी संस्थाओं से संचालित इन गोशालाओं में गोवंशीय पशुओं को रखने के साथ ही रोगी पशुओं को रखने और इलाज की व्यवस्था भी है. लखनऊ के जानकीपुरम इलाके में नगर निगम से संचालित श्री लक्ष्मण गोशाला में 600 से अधिक गायें हैं. गायों के भोजन और अन्य व्यवस्था करने के लिए नगर निगम की ओर से प्रति गाय 40 रुपए मिलते हैं, जबकि एक गाय को दिनभर में कम से कम चार किलो भूसे की ज़रूरत होती है, जो 80 रुपए में मिलता है.

बता दें कि योगी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश के 16 नगर निगमों में गौशालाओं के लिए 17 करोड़ रु. का प्रावधान किया है. पिछले वित्तीय वर्ष में मंडी शुल्क पर एक प्रतिशत सेस से मिलने वाली राशि से 39 गौशालाओं को सात करोड़ रुपए से अधिक भरण-पोषण अनुदान दिया गया.

एंबुलेस सेवा शुरू, लेकिन टोल फ्री नंबर नहीं कर रहा काम

सरकार बनने के कुछ महीनों के भीतर घायल गोवंश को तुरंत चिकित्सा सेवा मुहैया कराने के लिए एम्बुलेंस सेवा भी शुरु की गई थी. यह एंबुलेंस सेवा मनरेगा मजदूर कल्याण संगठन के सहयोग से चलाई जा रही है. इस एंबुलेंस में एक पशु चिकित्सक के साथ उसका सहायक मौजूद रहेगा. एक गो सेवा टोल फ्री नंबर 18001035307 भी जारी किया है, जिसके ज़रिये आम लोग ऐसी गायों की मदद कर सकते हैं. लेकिन जब दिप्रिंट संवाददाता ने ये नंबर मिलाया तो इस पर किसी से संपर्क नहीं हो पाया. अगर कहीं कोई गाय बीमार है या फिर किसी वजह से चोटिल या घायल हो जाती है तो इसकी सूचना इस नंबर पर दी जा सकती थी.

सरकार के पुराने निर्देश

2017 में अक्तूबर माह में प्रदेश सरकार ने सर्वाधिक दूध उत्पादक और सबसे ज़्यादा देसी गाय रखने वालों के लिए ‘नंद बाबा पुरस्कार्य शुरू करने की घोषणा की. इन दोनों पुरस्कारों की राशि क्रमशः 50 हजार और एक लाख रुपए निर्धारित की गई. सबसे बड़े दूध उत्पादक को मिलने वाले गोकुल पुरस्कार की राशि डेढ़ लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख की गई.

वहीं नवंबर, 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेसहारा गोवंश के संरक्षण के लिए प्रदेश के सभी जिलों में एक-एक बड़ी गौशाला खोलने की घोषणा की. इनका संचालन आम जनता की समितियों से किया जाना तय हुआ. इन गौशालाओं के निर्माण के लिए प्रत्येक जिले को 1.2 करोड़ रुपए दिए जाने का प्रावधान किया गया. वहीं अक्तूबर, 2018 में दुग्ध विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने प्रदेश में देसी गाय के दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दुग्ध उत्पादकों को पांच रुपए प्रति लीटर प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की. प्रदेश में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों की संख्या भी पांच हज़ार से बढ़ाकर छह हज़ार की गई.

सरकार द्वारा दिए गए हाल के आदेश

गौरतलब है कि पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ ने कांजी हाउस का नाम बदलकर गो-संरक्षण केंद्र रखने और 10 जनवरी तक आवारा पशुओं को गो-संरक्षण केंद्रों में पहुंचाने का निर्देश दिया था. सीएम ने गोवंश के संरक्षण के लिए सभी ज़िलाधिकारियों को ये निर्देश दिए थे. सीएम ने गो-संरक्षण केंद्रों में पशुओं के चारे, पानी और सुरक्षा की व्यवस्था किए जाने के भी आदेश दिए थे.

विपक्षी दलों ने इस पर निशाना साधा है

अंशु अवस्थी, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस कहते है कि योगी सरकार ‘गाय के नाम पर वसूली कर रही है… पिछले 20 महीनों में गाय की सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ नहीं किया. ‘


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सेस भी वसूलेगी सरकार

योगी कैबिनेट की बैठक में सरकार ने गो कल्याण सेस लगाने को मंजूरी दी थी. जिसका इस्तेमाल प्रदेश में सड़क पर घूमने वाले आवारा पशुओं के लिए आश्रय स्थल बनाने में किया जाएगा. इन आश्रयों के लिए फंड विभिन्न विभागों से ही लिया जाएगा, इनमें एक्साइज आइटम पर 0.5 फीसदी, 0.5 फीसदी टोल टैक्स यूपी एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी की तरफ से, 2 फीसदी मंडी परिषद की तरफ से इस फंड में डाला जाएगा.

सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि योजना के तहत हर ज़िले के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में गौ आश्रय स्थल बनेंगे, यहां कम से कम 1000 आवारा पशुओं के देखभाल की व्यवस्था होगी. अब जनता को उम्मीद है कि शायद सेस वसूलकर सरकार इस मामले का कुछ हल निकाल सके. फिलहाल तो सरकार अपने ही आदेशों को लागू करने को लेकर उलझती नजर आ रही है.

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