scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमदेशहरियाणा के जींद उपचुनाव में नेता नहीं, सांड लड़ रहे हैं!

हरियाणा के जींद उपचुनाव में नेता नहीं, सांड लड़ रहे हैं!

टीवी पर देखें तो हरियाणा का जींद ब्रह्मांड हो गया है और वहां के नेता ब्रह्मांड-रक्षक, लेकिन लोकल अखबार पढ़ें तो लगेगा कि जींद में सांडों की लड़ाई हो रही है.

Text Size:

देश में आनेवाले दो-तीन महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं जबकि आठ महीने बाद हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होंगे. पर अभी हरियाणा के जींद विधानसभा सीट में उपचुनाव हो रहे हैं. क्योंकि जींद से इनेलो के विधायक श्री हरिचंद मीढ़ा का अगस्त 2018 में निधन हो गया था. कई महीनों तक उपचुनाव को टाला गया लेकिन चुनाव की मांग के साथ कुछ लोगों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया उसके बाद अब यहां चुनाव कराया जा रहा है.

राजनीति के सेमीफाइनल के रेफरी जींद के सांड हैं

इस उपचुनाव को भी पिछले हर चुनाव की तरह ही लोकसभा का सेमीफाइनल बताया जा रहा है. इस बीच एक बात जो किसी भी राजनीतिक पार्टी का मुद्दा नहीं है वह है सांड। यहां के लोगों की बड़ी समस्या सांडों की लड़ाई है. सीट, वोट और जाति के कैलकुलेशन में लोग ये भूल रहे हैं कि जींद वाकई में सांडों के आतंक से ग्रसित है और मरहूम विधायक हरिचंद मीढ़ा को 2009 में दो सांडों ने घायल किया था कि वो कभी इससे उबर नहीं सके और लंबी बीमारी के बाद उनकी मृत्यु हुई. कांग्रेस के नेता संदीप सांगवान को भी सितंबर 2018 में सांडों ने मारा था. यहां सांड दस-पंद्रह साल से आतंक मचा रहे हैं.

राजनीति समाज की समस्या से कितनी कटी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सारे राजनेता जाति में उलझे हुए हैं, कोई ये नहीं कह रहा कि जींद की जनता को सांडों से मुक्त करायेंगे.

कर्मभूमि सबकी लेकिन काम किसी ने नहीं किया

जींद हरियाणा का सबसे पुराना जिला कहा जाता है. यह हरियाणा का हार्टलैंड और जाटलैंड भी है. रोहतक से महज साठ किलोमीटर दूर इस जिले की हालत हरियाणा के पिछड़े जिलों महेंद्रगढ़-नारनौल से भी बदतर है. अगर मोटा-मोटी देखें तो इस जींद शहर की मुख्य तीन-चार दिक्कतें हैं. सबसे बड़ी समस्या है रोड और सांड. इन समस्याओं की तरफ ध्यान खींचने के लिए अख़बारों में समय-समय पर कार्टून और खबर आती रहती है लेकिन इसके बावजूद इस शहर की हालत पिछले दस-पंद्रह सालों से जस की तस बनी हुई है।

इनेलो, जननायक पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं कि जींद उनकी कर्मभूमि रही है. अब इसके लिए काम किया जाएगा. लेकिन कर्मभूमि की बात का माखौल तब उड़ता नज़र आता है जब किसी पार्टी के पास इस सीट से चुनाव में उतारने के लिए कोई प्रत्याशी नहीं दिखाई देता. ऐसे में इनेलो से विधायक रहे डॉ. हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को बीजेपी ने अपनी तरफ से मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस पार्टी ने अपने नेशनल प्रवक्ता, ट्विटर और टीवी पर चौबीसों घंटे मौजूद रहने वाले कैथल विधानसभा सीट से वर्तमान विधायक रणदीप सुरजेवाला को उतारा है। सुरजेवाला ने एक उपचुनाव से ही अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की थी. जींद में 2005 के बाद कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में रहा है. 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को यहां से बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा था. 2014 में कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गई थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जननायक जनता पार्टी ने इस सीट से दिग्विजय चौटाला को खड़ा किया है. इनेलो की तरफ से उमेद रेढू लड़ रहे हैं. बाकी राजकुमार सैनी ने अपनी अलग पार्टी गठित कर ली है. परिवार से बागी हुए दुष्यंत चौटाला ने अपने छोटे भाई पर दांव लगाया है तो वयोवृद्ध नेता ओमप्रकाश चौटाला जेल से निकलने वाले हैं और लोगों को दुष्यंत पर उनके करारे स्टेटमेंट का इंतजार है.

2016 के जाट आंदोलन के बाद यहां के समीकरण बदल गये हैं

हरियाणा के पत्रकार महेंद्र सिंह ने बताया कि फरवरी 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के बाद यहां का पूरा समीकरण जाति आधारित हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के दिनों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि वैसा ही माहौल है. महेंद्र के मुताबिक मनोहर लाल खट्टर की राजनीति भजनलाल की तरह की है और वो अपनी सरकार आनेवाले चुनाव में भी बचा ले जा सकते हैं.

इस विधानसभा सीट को जाट बनाम नॉन जाट वाली पॉलिटिक्स की प्रयोगशाला बना दिया गया है. जाटों के बाद यहां सबसे अधिक संख्या पंजाबी और वैश्य समाज की है. करीब 1.70 लाख वोटर वाली इस सीट में 55 हजार वोटर जाट हैं. ऐसे में भाजपा को छोड़कर अन्य तीन प्रमुख पार्टियों ने जाटों पर ही दांव लगाना उचित समझा है. दिलचस्प बात यह है कि जाट बहुल इस सीट पर 1972 के बाद कोई जाट विधायक नहीं बना है, न तो कभी भाजपा का ही खाता खुला.

भाजपा की बात करें तो अगस्त 2014 में सर छोटूराम के वंशज चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से 42 सालों का पुराना संबंध तोड़कर राज्यसभा छोड़ी और जींद की ही रैली में अमित शाह के सामने भाजपा में शामिल हो गए. वर्तमान में स्टील मंत्री हैं और जींद क्षेत्र में कोई उद्योग नहीं ला सके हैं.

जींद के लोग जितने सांडों से नाराज हैं, उतने ही नेताओं से

जींद के लोगों से बात करने पर ये नहीं पता चलता कि जनता किस नेता से खुश है. रणदीप सुरजेवाला के नाम पर लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं। लोगों का साफ-साफ कहना है कि वो सोशल मीडिया के नेता हैं, विधानसभा में ही चार-पांच बार ही आए हैं. कैथल से विधायक होने पर यहां से क्यों लड़ रहे हैं. वहीं एक व्यक्ति ने बताया कि दिग्विजय चौटाला के नामांकन पत्र में शैक्षिक योग्यता बारहवीं पास बताई जा रही है. जबकि क्षेत्र में हल्ला किया गया है कि दिग्विजय विदेश से पढ़ाई कर लौटे हैं और वकील हैं.

वहीं नौकरियों में धांधली के आरोप में जेल गये ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र और बागी दुष्यंत चौटाला के चाचा अभय चौटाला ने मई 2018 में कहा था कि  वह सरकार में आए तो अपने कार्यकर्ताओं को ही नौकरी देंगे. उनके इस बयान के बाद खूब किरकिरी हुई थी।

दिल्ली के मुखर्जीनगर में तमाम हरियाणवी लड़के हरियाणा सिविल सर्विसेज की तैयारी करते मिल जाएंगे जो पांच-पांच साल तक परीक्षा का इंतजार कर रहे हैं ताकि उनकी इनेलो सरकार आ जाए. हरियाणा राज्य की नौकरियों में धांधली बहुत बड़ा मुद्दा रही है हमेशा से. मनोहर लाल खट्टर की इस मामले में काफी तारीफ हो रही है कि पहली बार मेरिट के आधार पर नौकरियां मिल रही हैं. महिलाएं भी कह रही हैं कि भाई, इब पैसे तै ना भरती होगा छोरा, पढ़ाना पड़ैगा.

छोरा सांड से बचैगा, तभी भरती होगा

एक अनुमान के मुताबिक जींद की सड़कों पर पांच हजार से ज्यादा सांड-गाय घूम रहे हैं. हालांकि हरियाणा के ताऊ थोड़ी फेंक के भी बताते हैं पर सांडों से मार खाने की खबरों से वहां के अखबार भरे रहते हैं. कई सालों से ये सिलसिला चला आ रहा है. चुनाव हो रहे हैं. नेता भी सांडों से मार खा रहे हैं. सड़के टूटी पड़ी हैं. गुस्से में अच्छी सड़कें भी तोड़ दी जाती हैं. बाकी सांड खुद तोड़ देते हैं. पर किसी नेता को ये दिखाई नहीं दे रहा. हर मौत के बाद कोई ना कोई वादा कर देता है कि दस दिन में शहर को सांडमुक्त बनायेंगे, पर ये वादा तभी याद आता है जब फिर से सांड किसी को पीट देता है.

कभी-कभी तो लगता है कि जींद के मुख्य मतदाता सांड हैं.

(लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

share & View comments