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Thursday, 25 April, 2024
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‘मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार’- पर्यावरण के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं अगले 10 साल

विश्व पर्यावरण दिवस 2021 का थीम 'इकोसिस्टम रीस्टोरेशन' रखा गया है. इस बार पाकिस्तान इसे होस्ट कर रहा है.

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प्रतिष्ठित पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा को हमारे बीच से गए हुए अभी करीब 15 दिन ही हुए हैं लेकिन इस दौरान पर्यावरण से जुड़े कई गंभीर मुद्दे एक बार फिर हमारे सामने सवाल उठाने लगे हैं.

बहुगुणा की मृत्यु से कुछ दिन पहले ही भारत के कई राज्यों को अरब सागर से उठे चक्रवात ताउते की मार झेलनी पड़ी और उनके जाने के चंद रोज़ बाद ही बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान यास का भी सामना करना पड़ा. विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण अरब सागर में ज्यादा तूफान बन रहे हैं.

पर्यावरण के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम हर साल चलाए जाते हैं. जिसका सिर्फ एक ही मकसद है- पर्यावरण को बचाना.

1970 के दौरान हिमालय की वादियों में एक नारा गूंजा करता था, जिसे सुंदरलाल बहुगुणा ने और भी लोकप्रिय कर दिया. वो कहते थे-

क्या हैं जंगल के उपकार
मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार
जिंदा रहने के आधार

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हवा, पानी, मिट्टी और जंगल हमारे जीवन के मुख्य आधार हैं. इन्हें नुकसान भी लोगों ने ही पहुंचाया है और इसके संरक्षण के लिए भी लोग ही संघर्ष कर रहे हैं. पर्यावरण का सीधा संबंध लोगों से है, उनके अधिकारों और शांति से है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय तौर पर भी पैरिस जलवायु समझौते  से लेकर अतीत में स्टॉकहोम कन्वेंशन  के प्रयास किए गए.

इन बातों की चर्चा हम विश्व पर्यावरण दिवस के मद्देनज़र कर रहे हैं. इसके मद्देनज़र दिप्रिंट पर्यावरण से जुड़े कुछ मसलों पर नज़र डाल रहा है.

बंगाल के ग्रामीण इलाके का एक दृश्य | फोटो: दिप्रिंट/ ट्विटर | @madhuparna_N

इकोसिस्टम रीस्टोरेशन (पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली)

विश्व पर्यावरण दिवस 2021 का थीम ‘इकोसिस्टम रीस्टोरेशन‘ है. इस बार पाकिस्तान इसे होस्ट कर रहा है. हर साल एक नए थीम के साथ विश्व के अलग-अलग देश इस दिवस को होस्ट करते हैं. 2011 और 2018 में भारत ने भी इसे होस्ट किया है.

ये साल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र 2021 से लेकर 2030 को ‘इकोसिस्टम रीस्टोरेशन ‘ दशक के तौर पर मनाएगा जिसके तहत दुनियाभर में कई कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जिसका एकमात्र लक्ष्य होगा पर्यावरण को बचाना.

पर्यावरणविद वेंकेटेश दत्त ने दिप्रिंट को बताया, ‘रीस्टोरेशन बहुत ही जरूरी है और बहुत दिनों के बाद हमारा ध्यान इकोसिस्टम पर गया है.’

उन्होंने बताया, ‘सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल्स को पूरा करने के लिए जरूरी है कि हम इकोसिस्टम रीस्टोरेशन पर बात करें.’ सस्टेनेबल डेवलेपमेंट के तहत संयुक्त राष्ट्र ने 17 लक्ष्य निर्धारित किए हैं जिसे 2030 तक पाने का लक्ष्य रखा गया है.

दत्त कहते हैं, ‘आर्थिक संकट के जो कारण हैं वो इकोलॉजी संकट से जुड़े हुए हैं. आर्थिक विकास का फाउंडेशन इकोलॉजी में ही है.’

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की थी. ‘ओनली वन अर्थ ‘ के स्लोगन के तहत 1974 में पहले कार्यक्रम का आयोजन किया गया. तब से लेकर हर साल नए थीम के साथ दुनियाभर में ये मनाया जाता है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता है.


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भारत की भूमिका

इकोसिस्टम रीस्टोरेशन की महत्ता को लोगों तक पहुंचाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय लगातार ट्विटर के जरिए मुहीम चला रहा है. एक ट्वीट में मंत्रालय ने बताया कि भारत का फॉरेस्ट कवर 7,12,249 स्कायर किमी. हो गया है जो कि पूरे देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.67% है. पर्यावरण दिवस के मद्देनज़र ट्विटर पर फिल्म स्टार भी रीस्टोरेशन की मुहीम चला रहे हैं.

चीन के बाद भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और वैश्विक स्तर पर चल रहे पर्यावरण संरक्षण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है. लेकिन अगले एक दशक में इकोसिस्टम रीस्टोरेशन में भारत की क्या भूमिका हो सकती है, इस पर पर्यावरणविद वेंकेटेश दत्त ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत ने अपना पोजिशन स्पष्ट किया हुआ है. हमारा कार्बन फुटप्रिंट अन्य दूसरे विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है. भारत का पर कैपिटा एमिशन भी काफी कम है.’

उन्होंने कहा, ‘आने वाले समय में भारत को विकास के लिए ज्यादा कार्बन एमिशन की जरूरत होगी लेकिन हम अपनी कूटनीति के जरिए दुनिया को ये बता सकते हैं कि कम से कम संसाधन और कार्बन फुटप्रिंट को कम करके भी आगे बढ़ा जा सकता है.’

गौरतलब है कि 2020-21 के बजट में पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले साल के मुकाबले 230 करोड़ रुपए की कटौती की है. इस बारे में जानने और आने वाले समय में मंत्रालय द्वारा किए जाने वाले प्रयासों के बारे में जानने के लिए दिप्रिंट ने केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो को कॉल करने की कोशिश की लेकिन उनके दफ्तर की तरफ से कहा गया कि वो जवाब देने के लिए उपलब्ध नहीं हैं.

बजट कटौती पर दत्त कहते हैं, ‘हमें अपने विकास को सही दिशा देने की जरूरत है. लेकिन साथ ही पर्यावरण पर और भी पैसा खर्च किया जाना चाहिए.’


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पर्यावरण और मानवाधिकार

पर्यावरण को बचाने और इसके संरक्षण की लड़ाई लंबे समय से चल रही है. इसके लिए समय-समय पर कवायत तेज भी होती रही है. इसी के परिणाम के तौर पर नेट जीरो और पैरिस जलवायु समझौते को देखा जा सकता है.

पर्यावरण और मानवाधिकार का सीधा संबंध है. सभी मनुष्य जीवन के लिए पर्यावरण पर निर्भर हैं. एक स्वस्थ, स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण मानव जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है जितना की उसके जीवन, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता का अधिकार. बिना स्वस्थ पर्यावरण के हम अपनी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते.

हाल के सालों में मानवाधिकार और पर्यावरण को काफी बड़े स्तर पर जोड़कर देखा जा रहा है. इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय तौर पर अकादमिक अध्ययन भी काफी तेजी से हो रहे हैं. लेकिन अभी भी काफी कुछ है जिसका उत्तर ढूंढना अभी बाकी है.

पर्यावरण को मूलभूत मानवाधिकर के तौर पर विश्व के कई देशों ने अपने संविधान में जगह दी है. बीते कई दशकों में अदालतों ने भी अपने फैसलों में इसे संवैधानिक अधिकार के तौर पर दर्ज किया है. एक रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों ने पर्यावरण के अधिकार को मान्यता दी है वहां पर्यावरण के सूचकांक बेहतर हुए हैं.

उदाहरण के तौर पर 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में डच सुप्रीम कोर्ट ने उरगेंडा फाउंडेशन बनाम स्टेट ऑफ नीदरलैंड्स में डच सरकार को फटकार लगाते हुए कार्बन उत्सर्जन कम करने और वैश्विक तौर पर जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करने को कहा था.

लेकिन विडंबना है कि जब विश्व के कई देशों ने पर्यावरण को एक अधिकार के तौर पर जगह दी है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र ने इसे अब तक मान्यता नहीं दी है.

लेकिन मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण को जोड़ने वाले स्टॉकहोल्म कन्वेंशन के जब 2022 में 50 साल पूरे हो जाएंगे, तो उसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र से ये उम्मीद की जा सकती है कि वो पर्यावरण को एक अधिकार के तौर पर मान्यता दे.

उत्तराखंड के मसूरी से दिखतीं हिमालय की चोटियां | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

भारत और पर्यावरण

विश्व का एक बड़ा और महत्वपूर्ण देश होने के नाते पर्यावरण संरक्षण को लेकर सबकी नज़रें भारत पर टिकी रहती हैं. लेकिन भारत में विकास की रफ्तार की तेजी के कारण पर्यावरण को काफी नुकसान भी पहुंच रहा है. हालांकि पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर अदालत ने कई ऐतिहासिक फैसले भी दिए हैं.

भारत में पर्यावरण को बचाने के लिए कई आंदोलन हुए हैं और इसकी एक प्रेरणादायक विरासत रही है. सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट और अन्य लोगों के नेतृत्व में उत्तराखंड में हुए चिपको आंदोलन के बारे में हर कोई जानता है.

इसके बाद 90 के दशक में टिहरी में चल रहे बांध प्रोजेक्ट को बचाने का भी एक लंबा संघर्ष रहा. हालांकि सरकार ने इसे नहीं रोका और इसके कारण टिहरी क्षेत्र को प्राकृतिक तौर पर काफी नुकसान पहुंचा.

कुमाऊं विश्वविद्यालय में इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर रीतेश शाह ने दिप्रिंट से कहा, ‘उत्तराखंड में कई जगहों पर जब ‘मैती आंदोलन‘ शुरू हुआ, तो वो लोगों में काफी प्रसिद्ध हुआ.’ मैती का मतलब मायका होता है. जब किसी भी लड़की की शादी होती है तब वो एक पेड़ लगाती है. उत्तराखंड में ये काफी प्रचलित है.

उन्होंने कहा, ‘अपने स्तर पर पर्यावरण को बचाने की काफी कोशिशें हो रही हैं.’ कोविड के कारण पर्यावरण से जुड़े आंदोलन पर क्या फर्क पड़ा है, इस पर प्रोफेसर शाह ने कहा, ‘इन एक-दो सालों में तो ज्यादा असर नहीं पड़ा है.’

उन्होंने कहा, ‘सुंदरलाल बहुगुणा का व्यक्तित्व बहुत बड़ा था और उन्होंने पर्यावरण को लोगों के लिए एक चिंता का विषय बनाया. उन्होंने काफी लोगों को प्रभावित किया है. उनकी परंपरा को लोग आगे बढ़ा रहे हैं.’

गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से होकर गुजरने वाली नर्मदा नदी पर बांध परियोजनाओं के खिलाफ भी लंबे समय से आदिवासी, किसान, पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ता नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत विरोध करते रहे हैं. इस आंदोलन का नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर लंबे समय से करती रही हैं. लेकिन फिर भी सरकारों ने नर्मदा पर कई बड़े-बड़े बांधों का निर्माण किया जिसका खामियाजा वहां के लोगों को झेलना पड़ रहा है.

नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े और स्वतंत्र पत्रकार रोहित शिवहरे ने दिप्रिंट से कहा, ‘बांध बनने से एक पूरा समाज प्रभावित हुआ है. नर्मदा नदी को बचाने के लिए ये पूरा आंदोलन चलाया गया था, विस्थापन की समस्या उसके बाद सामने आई है.’

इसी साल फरवरी में उत्तराखंड के तपोवन में ग्लेशियर के टूटने के कारण भी भारी तबाही मची. एनटीपीसी के प्रोजेक्ट को भारी नुकसान पहुंचा और 100 से ज्यादा लोगों की मौत भी हुई.

इसके अलावा इस साल उत्तराखंड के जंगलों में भी आग लगने की घटना सामने आई जिसने हजारों एकड़ जंगल को तबाह कर दिया. लगातार बढ़ते तापमान और मानव जनित कारणों के कारण ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो मनुष्य के साथ पर्यावरण को भी प्रभावित करती हैं.


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कोविड महामारी और पर्यावरण

कोरोना महामारी के कारण हुए बदलावों का असर पर्यावरण पर भी पड़ा है. इस वैश्विक महामारी के कारण दुनिया भर के देश प्रभावित हुए और कई मुल्कों में लगे लॉकडाउन और प्रतिबंधों के कारण पर्यावरण पर सकारात्मक और नकारात्मक बदलाव, दोनों होता दिखा.

इस दौरान देखा गया कि वायु की गुणवत्ता, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण में काफी कमी आई है. भारत में गंगा नदी इसका उदाहरण है जिसमें देखा गया कि कई जगहों पर इसका जल स्तर बढ़ा और उद्योगों का गंदा पानी न जाने के कारण पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ. लेकिन महामारी ने कुछ नकारात्मक प्रभाव भी दिए हैं. इस बीच मेडिकल वेस्ट के डिस्पोसल की गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

वेंकेटेश दत्त कहते हैं, ‘कोरोना काल में प्रकृति कुछ हद तक रीस्टार्ट हुई है और इस दौरान हमें सबक मिला है कि पर्यावरण को खुश रखे बिना हम अर्थव्यवस्था को खुशहाल नहीं रख सकते.’

अर्थव्यवस्था को मानवीय पहलू से जोड़ते हुए दत्त कहते हैं, ‘हमें विकास के नए पैमाने ढूंढने होंगे. जीडीपी से इतर जाकर कुछ इंडेक्स बनाने होंगे. ह्यूम डेवलेपमेंट इंडेक्स (एचडीआई) भी संजीदगी से पर्यावरण की बात नहीं करता है. इसलिए हमें ह्यूमन वेलफेयर इंडेक्स बनाने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘ये तय करना होगा कि हमें जीडीपी किस कीमत पर चाहिए. विकास की वजह से पर्यावरण को जो विनाश हो रहा है उसका आंकलन नहीं हो पा रहा है.’

भारत में पर्यावरण और प्रकृति के पैरोकारों में महात्मा गांधी को नहीं भुलाया जा सकता. उन्होंने अपनी जीवन में पर्यावरण के महत्व को कई बार समझाया. उन्होंने कहा था, ‘प्रकृति हर मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है, किंतु किसी एक भी मनुष्य के लोभ को पूरा करने की इसमें क्षमता नहीं है.’

बीते कुछ सालों में पर्यावरण में आ रहे बदलावों को ही हम देख लें और उसके दुष्परिणामों पर गहन विचार करें तो हमें इसके संरक्षण की दिशा में एक समाधान मिल सकता है. वरना आने वाले सालों में तबाही का मंजर और भी बुरा हो सकता है. इसलिए मानवीय लोभ के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना बंद करना होगा और अपने स्तर पर काम शुरू करना होगा.


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