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Wednesday, 6 November, 2024
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होंडा से निकाले गए मजदूरों ने कहा- कंपनी के लिए जीवन लगा दिया, फिर भी हमारा भविष्य दांव पर

गुरुग्राम के मानेसर में होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया के 2,500 से अधिक मजदूर 4 नवंबर से ही प्रदर्शन कर प्रबंधन द्वारा गैरकानूनी तरीके से निकाले जाने का विरोध कर रहे हैं.

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मानेसर (गुरुग्राम): 28 वर्षीय दीपक 15 दिनों से पैंरों में संक्रमण से पीड़ित हैं, बांयें पैर में कई फोड़े और फुंसियों का जख़्म तो भर रहा है लेकिन नौकरी की चिंता सताने लगी है. ईलाज में अभी तक 7 हज़ार रुपये खर्च हो चुके हैं. बड़े भाई खेती करते हैं लेकिन घर चलता है दीपक की कमाई से जिस पर इन दिनों संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

दीपक मानेसर में होंडा फैक्ट्री की इंजन असेंबली लाइन पर 7 वर्षों से काम कर रहे हैं. साथियों को नौकरी से निकाले जाने के खिलाफ परिसर के अंदर ही प्रदर्शन करने वाले मजदूरों में वह भी थे. 14 दिनों तक अपर्याप्त व दूषित खाना खाने, फर्श पर सोने और गंदगी की वजह से उनके अलावा 80-90 मजदूर बीमार हो गए थे. ज्यादातर इस समय भी प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि कुछ अभी ईलाज करवा रहे हैं.

कान्ट्रैक्ट मजदूरों के प्रदर्शन को स्थायी कर्मचारियों का भी समर्थन प्राप्त है. स्थायी मजदूरों का चार्टर ऑफ डिमांड भी 18 महीनों से लटका हुआ है. मजदूरों के हड़ताल के कारण भारत में जापान के राजदूत केंजे हिरामात्सू ने मानेसर में होंडा के हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय से आग्रह किया है कि वह मामले के निपटारे के लिए हरियाणा सरकार से कहे.

गुरुग्राम के मानेसर में होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया के 2,500 से अधिक मजदूर 4 नवंबर से ही प्रदर्शन कर प्रबंधन द्वारा गैरकानूनी तरीके से निकाले जाने का विरोध कर रहे हैं. ज्यादातर मजदूर 8 से 10 वर्ष पुराने हैं फिर भी ठेकेदारों के मातहत हैं. यहां मजदूरों को 11 महीने के अनुबंध पर ही रखने के बाद 3 से 15 दिनों के अंदर फिर से ज्वाइन करा दिया जाता है. ज्वाइन करने के बाद ठेकेदार फर्म के साथ ही ईपीएफ व ईएसआईसी के नंबर भी बदल जाते हैं. आरोप है कि उनके कागजातों में जानबूझकर छेड़छाड़ की जाती है जिससे उन्हें ईपीएफ व ईएसआईसी की सुविधा लेने में परेशानी होती है. कंपनी तीन फर्मों के जरिए मजदूरों की भर्ती करती है- होंडा सुकमा संस एंड एसोसिएटस, केसी इंटरप्राइजेज और कमल इंटरप्राइजेज.

यह सारी कवायद मजदूरों के स्थायी किये जाने के दावे को कमजोर करने के लिए होती है. जिसका नतीजा है कि वर्षों काम करने के बाद भी मजदूर स्थायी नहीं हैं. प्रदर्शन कर रहे मजदूरों ने बताया कि पिछले 4 वर्षों से उनकी मजदूरी में किसी तरह की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है.

अगस्त से ही प्रबंधन ने 50-100 की संख्या में मजदूरों को निकालना शुरू कर दिया था और 3 महीन के अंदर ज्वाइन कराने के आश्वासन के बाद भी ऐसा नहीं किया. 17 अक्टूबर को 50 मजदूर सुबह काम करने पहुंचे तो पता चला कि उन्हें निकाल दिया गया है. जब उन्होंने जानना चाहा कि दोबारा कब बुलाया जाएगा तो कोई ठोस जवाब नहीं मिला. विरोध में मजदूर भूख हड़ताल पर चले गए लेकिन इस दौरान वह पहले की तरह ही काम करते रहे. मजदूर कृष्णा खेड़ी का कहना है ‘हम प्रबंधन तक केवल अपनी नाराजगी पहुंचाना चाहते थे.’


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21 अक्टूबर को प्रबंधन, यूनियन के पदाधिकारियों के बीच हुई बातचीत के बाद मजदूरों ने हड़ताल समाप्त कर दी. तय किया गया कि कंपनी दीवाली तक किसी मजदूर को नहीं निकालेगी. पर निकाले गए 600 मजदूरों के ज्वाइनिंग पर सहमति नहीं बन पाई.

4 नवंबर को कंपनी ने ऑटो सेक्टर की मंदी का बहाना बनाकर गेट पर एक नोटिस चस्पा कर दिया कि नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी माह तक जिन मजदूरों की रिलीविंग होनी थी उनका नवंबर महीने में ही कर दिया जा रहा है. 5 नवंबर को कंपनी के गेट पर भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात कर दिया गया. सुबह की शिफ्ट में काम पर जा रहे 300 मजदूरों को गेट पर ही रोक दिया गया. इसके विरोध में काम कर रहे 1,500 मजदूर अंदर और बाहर करीब 1,000 मजदूर प्रदर्शन पर बैठ गए.

परिसर के अंदर प्रदर्शन कर रहे मजदूरों को खाने में जानबूझकर ऐसी वस्तुएं दी गईं जो स्वास्थ्य के अनुकूल ना हों. मजदूरों तक खाना पहुंचाने की भी मनाही थी, बाहर प्रदर्शन कर रहे मजदूरों ने कोशिश की लेकिन वह एकाध बार ही सफल हो सके.

14वें दिन होंडा यूनियन, ट्रेड यूनियन काउंसिल और श्रम विभाग की टीम के आश्वासन पर अंदर प्रदर्शन कर रहे मजदूर भी बाहर आ गए. तब से ही कंपनी के बाहर खाली पड़े मैदान में दिन-रात मजदूरों का प्रदर्शन जारी है. श्रम विभाग की टीम ने मजदूरों को विश्वास दिलाया था कि वह दो दिनों के अंदर समझौता करवा देगी.

‘नौकरी छिन गई तो हम कहां जाएंगे’

8 वर्षों से काम करने वाले मजदूर बंटू शर्मा कहते हैं, ‘जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय कंपनी को दे दिया, अब हमारा भविष्य दांव पर लगा है. यदि नौकरी छिन गई तो हम कहां जाएंगे? हमारे पास पीछे हटने का विकल्प नहीं बचा है. 19 नवंबर को मजदूरों के प्रतिनिधि दल ने हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से मुलाकात कर उन्हें मामले से अवगत कराते हुए उचित कार्रवाई की मांग की. आश्वासन तो मिला लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ.

22 नवंबर को मजदूरों ने रैली निकालकर डीसी कार्यालय को ज्ञापन सौंपा. 27 नवंबर को मजदूरों ने गुरुग्राम से जिला सचिवालय तक बाइक रैली निकाली. एसडीएम ने ज्ञापन लेकर औपचारिकता पूरी की लेकिन अभी तक किसी कार्रवाई की सूचना नहीं है.

होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, होंडा मोटर कंपनी लिमिटेड जापान की सहायक कंपनी है. देश में कंपनी ने पहला प्लांट सन 1999 में गुरुग्राम के मानेसर में लगाया था. होंडा दो पहिया वाहनों की दूसरी सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है. देश में इसकी 4 फैक्ट्रियां मानेसर के अलावा राजस्थान, बंगलुरु और गुजरात में हैं. जाहिर है बिना मजदूरों के श्रम के ऐसा मुमकिन नहीं था. मजदूर मुकेश ने बताया कि ‘अपनी मेहनत से कंपनी को आगे बढ़ाया, अब हमें दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंका जा रहा है.’

ऑटो इंडस्ट्री कांन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के शाम मूर्ति कंपनी के नियुक्ति प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा करते हैं, ‘प्रबंधन मजदूरों से ऑपरेटर का काम लेता है लेकिन कागजों में हेल्पर ही दिखाया जाता है, लंबे समय तक नियमित प्रकृति के तकनीकी काम करने के बाद भी इन्हें परमानेंट नहीं किया जाता, यह श्रम कानूनों का उलंघन है.’


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प्रबंधन ने मानेसर प्लांट की उत्पादकता को बाकी की तुलना में कम बताते हुए कम उत्पादकता के कारण यहां प्रति उत्पाद की लागत भी अधिक बताया था. लेकिन मजदूर इससे इत्तेफाक नहीं रखते. होंडा यूनियन के कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध कहते हैं, ‘मंदी के दौरान कंपनी के कुल उत्पादन में गिरावट होती है. जबकि कंपनी के अन्य 3 फैक्ट्रियों में क्षमता के अनुसार उत्पादन हो रहा है. मानेसर में ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है.’

वह बताते हैं कि ‘कंपनी का पहला प्लांट होने की वजह से यहां पर बड़ी संख्या में पुराने मजदूर हैं. जिनका वेतन अपेक्षाकृत दूसरे प्लांटों के मजदूरों से अधिक है. प्रबंधन इनकी जगह सस्ती दर पर नये मजदूरों को रखना चाहता है. एक कारण यह भी है कि यहां पर परमानेंट मजदूरों और ठेका मजदूरों के बीच एकता है जिससे प्रबंधन मनमानी नहीं कर पाता.’

गुरुग्राम के डिप्टी लेबर कमीश्नर अजय पाल डूडी ने कहा, ‘इस प्रदर्शन के लिये हड़ताल शब्द का इस्तेमाल उचित नहीं. मजदूरों को गैर कानूनी तरीक़े से निकाला गया या नहीं इसे निर्धारित करने का अधिकार हमारे पास नहीं है. हमारा काम दोनों पक्षों के बीच समझौता कराना है. हम लगातार कोशिश कर रहे हैं और उसी दिशा में बातचीत आगे बढ़ रही है.’

मंदी का तर्क भी मजदूरों के गले नहीं उतर रहा है. अक्टूबर महीने में हीरो मोटो कॉर्प के बाद होंडा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा. कंपनी ने 4,87,782 यूनिट बिक्री की जो सितंबर माह से 7 फीसदी अधिक है. हालांकि नवंबर महीने में बिक्री में करीब 5 फीसदी की गिरावट हुई है लेकिन यह तब है जब होंडा की सबसे पुरानी फैक्ट्री में उत्पादन ठप्प था.

होंडा यूनियन के संगठन सचिव जालिमदर बताते हैं, ‘यदि प्रबंधन ने हमारी मांगें नहीं मानी तो सभी ठेका मजदूरों को इस लड़ाई से प्रत्यक्ष तौर पर जोड़ा जाएगा, यदि जरूरत पड़ी तो पूरे गुड़गांव में चक्का जाम किया जाएगा.’

2 दिसंबर को कंपनी ने मजदूरों को हिसाब चुकता करने का ऑफर दिया था. कंपनी ने बकाया वेतन के अलावा प्रति वर्ष 15,000 रुपये की दर से भुगतान करने की बात कही. लेकिन मजदूर प्रति वर्ष 1,00,000 रुपये की दर से भुगतान की मांग पर डटे रहे और प्रबंधन के ऑफर को ठुकरा दिया.

होंडा के इंडस्ट्रियल रिलेशन मैनेज़र सुनील दहिया से जब इस पूरे मसले पर बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

मजदूरों की मांगें

रिलीविंग के नाम पर मजदूरों को नौकरी से निकाला जाए. अभी तक निकाला गया है उन्हें वापस लिया जाए.
सेवाओं के बदले मजदूरों को प्रति वर्ष 1,00,000 रुपये की दर से भुगतान किया जाए.
मंदी के नाम पर छंटनी बंद हो.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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