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Saturday, 8 March, 2025
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बाधाओं से जूझते हुए ऊंची उड़ान भरती हैं विमानन क्षेत्र की महिलाएं

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(सप्तर्षि बनर्जी)

कोलकाता, आठ मार्च (भाषा) विमानन क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं बाधाओं से जूझते हुए अपने सपनों को पूरा करती हैं और ऊंची उड़ान भरती हैं। यहां काम करने वाली एक ऐसी भी महिला है, जो दूरदराज के गांव से आई और वह अपने राज्य की पहली महिला पायलट हैं। वहीं, दूसरी महिला ऐसी हैं, जिन्होंने चरखी-दादरी में हुई विमान दुर्घटना और आईसी-814 अपहरण के कठिन समय के दौरान नयी दिल्ली हवाई अड्डे पर परिचालन का कार्यभार संभाला था।

इस क्षेत्र में काम करने वाली एक महिला को अपनी मनचाही नौकरी करने के लिए अपने डेढ़ महीने के बच्चे को न चाहते हुए भी घर पर छोड़कर जाना पड़ता है। हालांकि, इनके मन में यह अटूट विश्वास है कि वह एक दिन जरुर अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना देंगी।

उक्त महिलाओं का जन्म स्थान और पालन-पोषण अलग-अलग था, लेकिन फिर भी उनका एक ही लक्ष्य रूढ़िवादिता को तोड़ना और देश के विमानन क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना था।

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विमानन क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं ने ‘पीटीआई-भाषा’ से अपने जीवन की कहानियों को साझा किया।

बरनाली विश्वकर्मा नामक महिला ‘एयरपोर्ट ऑपरेशन कंट्रोल स्टाफ’ (एओसीएस) में एक कार्यकारी हैं। यह विभाग यात्रा, यात्रियों की सुरक्षा और विमान परिचालन का प्रबंधन करता है।

उन्होंने आठ साल पहले कोलकाता हवाई अड्डे से अपने करियर की शुरुआत की थी। हालांकि, महामारी आने के कारण उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा और वह तीन साल तक कुछ नहीं कर पाई थीं।

इस दौरान उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया और इसके बाद आने वाली चुनौतियों से उबरने पर ध्यान दिया। इस बीच, उन्हें उनके गृह नगर में विमानन कंपनी इंडिगो में फिर से शामिल होने का अवसर मिला तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इसे स्वीकार कर लिया।

बरनाली विश्वकर्मा ने कहा, ‘‘यह एक कठिन निर्णय था… डेढ़ महीने के बच्चे को घर पर छोड़कर ऑफिस जाना। पहले प्रशिक्षण, फिर लंबे समय तक काम करना… इन सबसे ज्यादा भावनात्मक पल तो वह होता है जब आपको अपने बच्चे से दूर रहना पड़ता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मुझे पता है कि एक दिन इससे मेरे बच्चे का भविष्य उज्ज्वल होगा।’’

विश्वकर्मा की कहानी इस बात का उदाहरण है कि महिलाएं मातृत्व और अपने सपनों के बीच किस तरह संतुलन बना सकती हैं। वहीं, कैप्टन जूही छेत्री की कहानी सिक्किम में उनके गांव और आकाश के बीच की दूरी को पाटने का वृत्तांत साझा करती है।

उन्होंन कहा, ‘‘मेरे क्षेत्र के बच्चों के लिए विमानन क्षेत्र में करियर बनाने का सपना मानो दूर की कौड़ी जैसा है। इसका मुख्य कारण विमानन क्षेत्र में प्रवेश के लिए जरूरी संसाधनों की कमी और जानकारी का अभाव है।’’

उस समय छेत्री ने कभी नहीं सोचा था कि वह सिक्किम की पहली महिला पायलट बनेंगी और 2017 में उन्हें राज्य के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक ‘राज्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाएगा।

छेत्री को विमानन क्षेत्र में 13 साल हो गए हैं और अब वह 80 पायलट का प्रबंधन करती हैं और उन्हें प्रशिक्षण देती हैं।

इसी तरह निवेदिता दुबे नामक महिला की कहानी बिल्कुल अलग है। वह उस समय इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की हवाई अड्डा प्रबंधक थीं जब साल 1996 में चरखी-दादरी में विमान दुर्घटना हुई थी और इसके ठीक तीन साल बाद आतंकवादियों द्वारा आईसी-814 विमान को ‘हाईजैक’ कर लिया गया था।

दुबे, साल 2023 में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के पूर्वी क्षेत्र की क्षेत्रीय कार्यकारी निदेशक (आरईडी) बनने वाली पहली महिला थीं और उन्हें कोलकाता में क्षेत्रीय मुख्यालय में तैनात किया गया था।

दुबे ने कहा, ‘‘अपने करियर की शुरुआत में मुझे कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें चरखी-दादरी में हुई विमान दुर्घटना और आईसी-814 विमान के हाईजैक के बाद विमान संबंधी आपात स्थितियों का प्रबंधन करना शामिल था। इन कठिन दिनों के दौरान मिले अनुभव ने मुझे दबाव में भी धैर्य बनाए रखने, त्वरित एवं रणनीतिक निर्णय लेने की मेरी क्षमता को और मजबूत किया।’’

दुबे ने दावा किया कि उन्होंने इन दोनों घटनाओं के दौरान आपातकालीन नियंत्रण कक्ष संभाला था।

उन्होंने सफल करियर बनाने की आकांक्षा रखने वाली युवा महिलाओं को यह संदेश दिया कि वह मजबूत सहायता प्रणाली और मजबूत नेटवर्क बनाएं तथा बड़े सपने देखें।

दुबे ने कहा, ‘‘हम (महिलाएं) एक-दूसरे की समस्याओं को पुरुषों से बेहतर समझ सकती हैं। खुद का ध्यान रखें, अपनी क्षमताओं को बढ़ाती रहें और सीखती रहें। मैंने आज तक सीखना जारी रखा है।’’

भाषा प्रीति संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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