मुम्बई: बंबई उच्च न्यायालय ने पूर्व अदाकारा से छेड़खानी के मामले में दोषी की सजा पर रोक लगाते हुए कहा कि महिला को भले ही कम जानकारी हो लेकिन जब एक पुरुष उसे स्पर्श करता है या देखता है तो उसे उसकी मंशा की जानकारी होती है.
न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण दिसम्बर 2017 में एक घरेलू उड़ान में एक पूर्व अभिनेत्री के साथ छेड़छाड़ करने के अपराध में दोषी ठहराये गये 41 वर्षीय व्यापारी विकास सचदेव की उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिसमें उन्होंने मामले में अपनी दोषसिद्धि और तीन साल की सजा को चुनौती दी है.
अदालत ने मंगलवार को सचदेव की याचिका स्वीकार करते हुए उसकी सजा पर फैसला आने तक रोक लगा दी.
सत्र अदालत ने 15 जनवरी, 2020 को विकास सचदेव को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला पर उसकी शीलता को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था. पीड़िता घटना के वक्त नाबालिग थी.
सचदेव को मामले में तीन साल की सजा सुनाई गई थी.
सत्र अदालत ने उसी दिन सचदेव को जमानत दे दी थी और उसकी सजा को तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया था.
इस व्यवसायी ने 20 फरवरी को उच्च न्यायालय में दायर अपनी अपील में दावा किया था कि निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराने में गलती की है.
सचदेव के वकील अनीकेत निकम ने मंगलवार को उच्च न्यायालय से कहा कि उनके मुवक्किल को गलत दोषी ठहराया गया है अगर उसका पैर भी पीड़िता को लगा था तो भी यह गलती हो सकती है और इसमें उसको उत्पीड़ित करने की कोई मंशा नहीं थी.
इस पर न्यायमूर्ति चव्हाण ने पूछा कि सचदेव के पैर और हाथ उसकी सीट से आगे क्यों थे.
न्यायमूर्ति चव्हाण ने कहा, ‘एक महिला को भले ही कम पता हो लेकिन उसे समझ में सब आता है. यह एक प्राकृतिक उपहार है… छूना…देखना… एक पुरुष को यह समझ नहीं आता लेकिन एक महिला को उसके पीछे की मंशा समझ आ जाती है.’
न्यायमूर्ति ने कहा कि केवल पीड़िता ही आरोपी व्यक्ति की मंशा के बारे में बता सकती है. एक आरोपी यह कभी नहीं मानेगा कि उसने गलत मंशा से छुआ था.
उन्होंने कहा, ‘सचदेव ‘बिजनेस क्लास’ में यात्रा कर रहे थे, जहां बहुत जगह होती है तो फिर अपने पैर और हाथ दूसरे की सीट पर क्यों रखे?’
जब सचदेव के वकील ने तर्क दिया कि महिला ने इसकी शिकायत चालक दल के सदस्यों से नहीं की और मुस्कुराते हुए विमान से उतरी, इसपर अदालत ने कहा कि ऐसा कोई फार्मूला नहीं है कि महिला ऐसी घटनाओं पर कैसा व्यवहार करे या प्रतिक्रिया दे.
हालांकि, पीठ ने सचदेव की याचिका स्वीकार करते हुए उसे निचली अदालत से सुनाई गई सजा पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगा दी.
अदालत ने कहा कि निकट भविष्य में याचिका पर सुनवाई की गुंजाइश नहीं है और चूंकी याचिकाकर्ता को दी गई सजा की अवधि कम है, इसलिए यह सजा स्थगित रहेगी.
अदालत ने सचदेव को 25,000 रुपये का एक नया बॉन्ड भरने और सत्र अदालत को बताए बिना मुम्बई से बाहर ना जाने का भी निर्देश दिया है.