नई दिल्ली: ‘असुरक्षित गवाहों’ (वल्नरेबल विटनेसेस) के लिए अदालतों में अपनी गवाही दर्ज कराने के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाने हेतु गठित एक समिति की अध्यक्षता करने से लेकर अब निलंबित किये जा चुके टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीटीएफआई) के संचालन का कार्यभार संभालने वाले पैनल की अध्यक्षता करने तक – जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दिसंबर 2020 में सेवानिवृत्त होने के बाद से ही लगातार व्यस्त रहीं हैं.
9 दिसंबर, 1958 को जन्मीं न्यायमूर्ति मित्तल दिल्ली के लेडी इरविन स्कूल और लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन की पूर्व छात्र हैं.
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की और साल 1981 में एक वकील के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया था. उन्हें जुलाई 2004 में दिल्ली उच्च न्यायालय की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, और दो साल से भी कम समय के अंदर, फरवरी 2006 में, उनकी स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की पुष्टि कर दी गई थी. बाद में, उन्हें 14 अप्रैल, 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
दिल्ली उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में 12 साल का अर्सा बिताने के बाद, वह अगस्त 2018 में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं.
9 दिसंबर, 2020 को उनके सेवानिवृत्त होने के बाद से बीते 17 महीनों के दौरान न्यायमूर्ति मित्तल को ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (बीसीसीसी) – गैर-समाचार सामान्य मनोरंजन चैनलों के लिए इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र, स्व-नियामक निकाय – का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें कम-से-कम दो मामलों में मदद के लिए बुलाया है – पहला, पूरे देश में असुरक्षित गवाह बयान केंद्र (वल्नरेबल विटनेस डेपोज़िशन सेंटर्स) बनाने के लिए, और दूसरा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों के मध्य गठित एक हाउसिंग सोसाइटी में हो रहे मरम्मत कार्यों पर उठे विवाद के मद्देनजर.
‘असुरक्षित गवाहों’ की सुरक्षा
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में, न्यायमूर्ति मित्तल ने दिल्ली में ट्रायल कोर्ट के लिए ‘वल्नरेबल विटनेस कोर्ट प्रोजेक्ट’ का नेतृत्व किया, जिसके कारण सितंबर 2012 में भारत के पहले ऐसे कोर्ट रूम का उद्घाटन दिल्ली में किया गया और ऐसे दूसरा कोर्ट रूम सितंबर 2013 में उद्घाटित हुआ.
इसलिए, जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में सभी उच्च न्यायालयों में ऐसे ही बयान केंद्रों (डेपोज़िशन सेंटर्स) के निर्माण के लिए एक समिति का गठन किया, तो इस काम लिए के लिए वह उसकी सबसे अच्छी पसंद थी. इस पैनल को असुरक्षित गवाहों के लिए ऐसे ‘बयान केंद्रों’ के प्रबंधन के लिए आवधिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों हेतु एक मॉड्यूल भी तैयार करना है.
शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति मित्तल को इस समिति के अध्यक्ष के रूप में भी नियुक्त किया और साथ ही असुरक्षित गवाहों द्वारा प्रदान किए गए साक्ष्यों को रिकॉर्ड करने के लिए एक ‘सुरक्षित और बाधा मुक्त वातावरण’ सुनिश्चित करने हेतु सुविधाओं की स्थापना के महत्व को भी दोहराया. इसके अलावा, इसने ‘असुरक्षित गवाह’ की परिभाषा का विस्तार करते हुए दिशा-निर्देश जारी किए, ताकि इसे उम्र और लिंग दोनों आधार पर निरपेक्ष बनाया जा सके.
उसी आदेश में, देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि न्यायमूर्ति मित्तल का कार्यकाल शुरू में दो साल की अवधि के लिए होगा. अदालत ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के साथ-साथ राज्यों के महिला और बाल विकास विभागों को भी निर्देश दिया कि वे न्यायमूर्ति मित्तल के साथ समन्वय करें और उन्हें सभी प्रकार की सहायता प्रदान करें.
इसमें आगे कहा गया है, ‘सभी उच्च न्यायालय इस समिति के अध्यक्ष के परामर्श के साथ सभी हितधारकों के उचित प्रशिक्षण और विकास की सुविधा के लिए इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को सूचीबद्ध करेंगे.’
पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने ‘असुरक्षित गवाह’ की परिभाषा का विस्तार किया और पहली बार इसमें ऐसे गवाहों को शामिल जो सिविल केसेस (दीवानी मामलों) में साक्ष्य दर्ज करवाते हैं, जैसे कि पारिवारिक मामले, और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) द्वारा सुने गए मामले जिनमें भगोड़े और अपराधी किशोर शामिल हैं. यह कदम समिति के अध्यक्ष के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष न्यायमूर्ति मित्तल द्वारा पेश की गई नवीनतम रिपोर्ट के आधार पर उठाया गया था.
यह भी पढ़ें : बीथोवन, पुनर्जन्म, पारसी धर्म: पूर्व SC जज रोहिंतन मिस्त्री का यूट्यूब पर नया अवतार
कॉलेज के वॉलीबॉल स्टार से लेकर रिटायरमेंट के बाद के टेबल टेनिस तक
अपनी मातृ संस्था (एल्मा मेटर) लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन में न्यायमूर्ति मित्तल की खेलों में गहरी रुचि थी और वह कॉलेज की ‘स्पोर्ट्स प्रेजिडेंट’ भी थीं. साथ ही, वह वॉलीबॉल में दिल्ली जूनियर टीम की कप्तान भी रही थीं.
इस साल फरवरी में, न्यायमूर्ति मित्तल एक बार फिर से खेल की दुनिया में वापसी करती दिखीं मगर इस बार एक अलग क्षमता के साथ. दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें टीटीएफआई के मामलों का प्रबंधन करने के लिए बनाई गई प्रशासकों की समिति (कमेटी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेटर्स – सीओए) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया. टीटीएफआई देश में टेबल टेनिस से जुड़े मामलों की प्रशासकीय संस्था है, जिसे फरवरी 2022 में निलंबित कर दिया गया था. इस समिति में वरिष्ठ अधिवक्ता चेतन मित्तल और पूर्व एथलीट एसडी मुदगिल भी शामिल हैं.
टीटीएफआई को टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्रा द्वारा दायर एक याचिका पर हुई जांच के बाद निलंबित कर दिया गया था. बत्रा ने पिछले साल तब कोर्ट की शरण ली थी जब उन्हें एशियाई टेबल टेनिस चैंपियनशिप के लिए इस वजह से टीम में नहीं चुना गया था, क्योंकि वह सोनीपत में आयोजित एक राष्ट्रीय शिविर से अनुपस्थित रही थीं.
बत्रा ने यह भी आरोप लगाया था कि राष्ट्रीय कोच सौम्यदीप रॉय ने उन पर उनके अपने एक निजी प्रशिक्षु (प्राइवेट ट्रेनी) के पक्ष में एक ओलंपिक क्वालीफायर मैच ‘जानबूझकर हार जाने‘ के लिए ‘दबाव’ बनाया था.
पिछले महीने, न्यायमूर्ति मित्तल की अध्यक्षता में सीओए ने हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका में दावा किया था कि एक निजी संस्था और टीएफएफआई के बीच 2015 के जिस वाणिज्यिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, वह ‘कानूनी विसंगतियों’ से भरा हुआ था, टीएफएफआई के अधिकारों को कमजोर कर रहा था और इस खेल संघ को आर्थिक नुकसान भी पहुंचा रहा था.
बीसीसीसी से ‘सुप्रीम टावर्स’ तक
सेवानिवृत्त होने के दो महीने से भी कम समय के भीतर ही न्यायमूर्ति मित्तल को जनवरी 2021 में बीसीसीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. वह सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश विक्रमजीत सेन के बाद इस संस्था की पहली महिला अध्यक्ष बनीं.
पिछले साल जुलाई में, जब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों के मध्य गठित एक सहकारी हाउसिंग सोसाइटी के नोएडा सेक्टर 99 स्थित अपार्टमेंट की मरम्मत और पुनरुद्धार के संबंध में विवाद पैदा हुआ, तो शीर्ष अदालत ने इसमें हस्तक्षेप करने और सुप्रीम टावर्स अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के सदस्यों के बीच एक बैठक की अध्यक्षता करने के लिए न्यायमूर्ति मित्तल की ओर रुख किया. न्यायमूर्ति मित्तल ने अगस्त में अदालत के समक्ष इसके बारे में एक रिपोर्ट पेश की थी.
पिछले महीने, जब अदालत को यह बताया गया कि मरम्मती के कार्यों के समझौते के संबंध में उसके द्वारा दिए गए आदेश अभी भी निष्पादित किए जाने बाकी हैं, तो अदालत ने इस मामले का कार्यभार संभालने और उस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए पार्टियों के बीच एक बैठक बुलाने के लिए एक बार फिर से न्यायमूर्ति मित्तल की मदद ली.
सेवानिवृत्ति से पहले और बाद में मिले पुरस्कार
न्यायमूर्ति मित्तल को उनके कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर कानूनी व्यवस्था में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया था.
साल 2018 में, उन्हें केंद्र सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हालांकि वह उस वक्त दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थीं और एक सिटिंग जज (कार्यरत न्यायाधीश) के रूप में यह पुरस्कार स्वीकार करने के अपने फैसले के लिए उन्हें कड़ी आलोचना का सामना भी करना पड़ा था.
साल 2019 में, उन्हें आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बीबी हरिचंदन और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक द्वारा कैपिटल फाउंडेशन नेशनल अवार्ड्स के दौरान जस्टिस पीएन भगवती पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. यह ‘न्याय तक पहुंच’ और ‘असुरक्षित गवाह बयान परिसर’ (वल्नरेबल विटनेस डेपोज़िशन कॉम्प्लेक्स) को डिजाइन करने के लिए न्यायिक नवाचार (जुडिशियल इनोवेशन) की दिशा में उनके द्वारा किये गए न्यायिक कार्य को दी गई मान्यता के रूप में था.
यह सिलसिला उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी जारी है. पिछले साल, वह 2021 के लिए अर्लाइन पैच ग्लोबल विजन पाने वाली पहली भारतीय जज बनीं. यह घोषणा साल 2016 में इस पुरस्कार की स्थापना करने वाली संस्था ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ विमेन जज’ द्वारा की गई थी.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : कौन हैं गुरुग्राम की पूर्व पार्षद निशा सिंह, जिन्हें 2015 में अतिक्रमण स्थल पर भीड़ को उकसाने का दोषी पाया गया?