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Friday, 19 April, 2024
होमदेशकौन हैं गुरुग्राम की पूर्व पार्षद निशा सिंह, जिन्हें 2015 में अतिक्रमण स्थल पर भीड़ को उकसाने का दोषी पाया गया?

कौन हैं गुरुग्राम की पूर्व पार्षद निशा सिंह, जिन्हें 2015 में अतिक्रमण स्थल पर भीड़ को उकसाने का दोषी पाया गया?

निशा सिंह ने विदेश में पढ़ाई की और 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले वे कॉरपोरेट क्षेत्र में नौकरी करती थीं. उन्हें सात साल जेल की सजा सुनाई गई है.

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नई दिल्ली: गुरुग्राम की पूर्व नगर पालिका पार्षद निशा सिंह को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाने वाली एक स्थानीय अदालत ने कहा है कि उनकी उपस्थिति ही 2015 में सेक्टर 47 की झाड़सा बस्ती में एक अतिक्रमण विरोधी अभियान के बाद भड़की ‘हिंसा का एकमात्र कारण’ थी.

कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘जिस क्षण निशा सिंह को मौके से हटाया गया, भीड़ चुप हो गई थी.’

गौरतलब है कि 2015 में हिंसा की घटना के सिलसिले में पूर्व पार्षद को 16 अन्य लोगों के साथ पुलिसकर्मियों और सरकारी अधिकारियों की एक टीम पर हमला करने के लिए भीड़ को उकसाने के आरोप में दोषी ठहराया गया है. इस घटना में कम से कम 15 पुलिस अधिकारी घायल हो गए थे क्योंकि उन पर और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के सदस्यों पर कथित तौर पर पेट्रोल बम और एलपीजी सिलेंडर फेंके गए थे.

इस मामले में दोषी करार दी गई 10 महिलाओं में निशा सिंह भी शामिल हैं, इन सभी को सात साल जेल की सजा सुनाई गई है. वहीं, सात पुरुष दोषियों को 10 साल की सजा सुनाई गई है.

पूर्व पार्षद ने विदेश में पढ़ाई की है और अपनी उम्र के तीसरे दशक में राजनीति में कदम रखने से पहले उन्होंने कॉरपोरेट क्षेत्र में करियर बनाया था. वह 2014 में आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुईं.

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इन 17 आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया, जिसमें धारा 148 (दंगा करना, घातक हथियारों से लैस होना), 186 (लोक सेवक के सार्वजनिक कार्य करने में बाधा डालना), 325 (जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना), 332 (लोकसेवक को उसके कर्तव्यों से रोकने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना), 333 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना), 353 (लोक सेवक को उसका कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल), और 436 (घर आदि को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक का इस्तेमाल करना) आदि धाराएं शामिल हैं. हालांकि, उन्हें धारा 307 (हत्या के प्रयास) के तहत बरी कर दिया गया था.

इनके अलावा, निशा को धारा 114 (अपराध के दौरान उकसाने के लिए) के तहत भी दोषी ठहराया गया था.


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कॉरपोरेट क्षेत्र की नौकरी से लेकर आप तक

मुंबई यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद निशा ने 2005 में लंदन बिजनेस स्कूल से एमबीए किया. फिर वह भारत लौट आई और गूगल का हिस्सा बनीं. उन्होंने कुछ समय के लिए सीमेंस के साथ भी काम किया लेकिन अंततः राजनीति में कदम रखने का फैसला किया.

2011 में बतौर निर्दलीय गुरुग्राम नगर निगम (एमसीजी) का चुनाव लड़ा और वार्ड नंबर 30 से पार्षद चुनी गईं. 2014 में निशा सिंह आप में शामिल हो गईं.

हिंसा की इस घटना के एक साल बाद यानी 2016 तक उन्होंने पार्षद के तौर पर कार्य किया.

2017 में, आप नेता आतिशी ने उन्हें ‘दिल्ली में आंगनवाड़ी सुधारों के पीछे की ताकत’ के तौर पर संदर्भित किया था.

सुनवाई के दौरान निशा ने कोर्ट को बताया कि उनके पति विदेश में रहते हैं और उसके पिता का देहांत हो चुका है, जिसकी वजह से अपनी मां, ससुराल वालों और स्कूल जाने वाले दो बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उन पर ही है.

2015 में आखिर हुआ क्या था

लोक अभियोजक प्रदीप कुमार की तरफ से अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मोना सिंह की अदालत में पढ़ी गई केस डायरी के मुताबिक, हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा)—अब अब हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी)—की एक टीम 15 मई, 2015 को कुछ पुलिसकर्मियों के साथ झाड़सा पहुंची. इसे वहां पूर्व में ध्वस्तीकरण अभियान के तहत ढहाए गए अवैध अतिक्रमण का मलबा हटाना था.

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, जब हुडा के अधिकारी मौके पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि निशा सिंह अतिक्रमणकारियों की भीड़ को उकसा रही थीं. अधिकारियों ने बताया कि भीड़ ने उन पर और पुलिस अधिकारियों पर भी हमला करने की धमकी दी और जल्द ही पथराव शुरू कर दिया.

अभियोजन पक्ष ने आगे दावा किया कि एक समय पर भीड़ ने उन पर पेट्रोल बम और एलपीजी सिलेंडर भी फेंके, जिससे आग लग गई. इस दौरान ड्यूटी मजिस्ट्रेट और 15 पुलिस अधिकारी घायल हो गए.

‘फोन से मतदाताओं को भड़काना शुरू किया होगा’

निशा सिंह के मामले में कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह जानने की कोशिश की कि क्या अधिकारी उनके द्वारा भड़काई गई भीड़ के हाथों घायल हुए थे.

अभियोजन पक्ष ने 33 गवाहों से जिरह की, जिनमें छह मुकदमे के दौरान मुकर गए. एक गवाह, जो एक पुलिस अधिकारी था, ने दावा किया कि निशा ‘लगातार और मौखिक तौर पर भीड़ को प्रशासन के खिलाफ अधिक हिंसा और हमलों के लिए भड़का रही थीं.’

एक अन्य ने दावा किया कि निशा की सब-इंस्पेक्टर रानी देवी के साथ हाथापाई हो गई, जिससे सब-इंस्पेक्टर की अंगुली टूट गई.

वही, निशा सिंह के वकीलों ने दलील दी कि जब भीड़ ने कथित तौर पर अधिकारियों पर पत्थर फेंकने शुरू किए तब वह वहां मौजूद नहीं थीं और वह आधे घंटे बाद ही मौके पर पहुंचीं. उन्होंने यह दावा भी किया कि निशा सिंह का मोबाइल फोन छीन लिया गया था और पुलिस ने उनके मेडिको-लीगल जांच के अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया जबकि वह भी घायल हो गई थीं.

हालांकि, अदालत ने उनके तर्क को खारिज कर दिया और कहा, ‘…नगर पार्षद के नाते उस क्षेत्र के अपने मतदाताओं की मदद करने की उनकी व्यग्रता, जहां सरकारी कर्मचारी सरकारी भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाने पहुंचे थे, यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि आरोपी निशा सिंह वहां पर मौजूद थीं और जो कुछ भी कर रही थी, उसके लिए उन्होंने कानूनी/गैरकानूनी हर तरीका अपनाया.’

कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही पथराव शुरू होते वक्त निशा वहां मौजूद नहीं थी, लेकिन यह माना जा सकता है कि ‘अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को खुश करने’ के लिए उन्होंने ‘फोन पर ही उन्हें उकसाना शुरू कर दिया होगा.’

इसके अलावा, फोटोग्राफिक और वीडियोग्राफिक सबूतों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि निशा ‘लगातार प्रशासन के खिलाफ नारे लगा रही थीं.’

अदालत ने आगे कहा, ‘जैसे ही निशा सिंह को मौके से हटाया गया, भीड़ चुप हो गई थी.’ इससे पता चलता है कि निशा सिंह की उपस्थिति ही ‘हिंसा का एकमात्र कारण’ थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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