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Saturday, 20 April, 2024
होमदेश‘इस्लामवादियों के खुद को आक्रमणकारियों से जोड़ने तक’ अतीत को खंगालना जारी रहेगा- इस सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या छापा

‘इस्लामवादियों के खुद को आक्रमणकारियों से जोड़ने तक’ अतीत को खंगालना जारी रहेगा- इस सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या छापा

पिछले कुछ दिनों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने खबरों और सामयिक मुद्दों को किस तरह कवर किया और क्या टिप्पणियां, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: आरएसएस से संबद्ध पत्रिका ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर एक संपादकीय में लिखा है कि हम ‘तब तक अतीत को खंगालते रहेंगे जब तक इस्लामवादी अपनी पहचान को बाबर और औरंगजेब जैसे आक्रमणकारियों के साथ जोड़ना बंद नहीं कर देते.’

इसके अलावा, आजाद हिंद फौज के निर्माण में वीर सावरकर की कथित भूमिका और हिंदुत्व से ही भारतीय संविधान की ‘नींव तैयार होना’ कुछ ऐसे विषय हैं जो पिछले सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस में सुर्खियों में छाए रहे.

ऑर्गनाइजर के संपादकीय में केतकर ने तर्क दिया कि ‘ऐतिहासिक सच्चाई विरूपित’ किए जाने की वजह से ही आज लोगों को ज्ञानवापी मस्जिद समेत तमाम मुद्दों से संबंधित तथ्यों का पता लगाने के लिए अदालतों पर निर्भर होना पड़ रहा है.

केतकर लिखते हैं, ‘इस्लामी आक्रमणकारियों के अदालती रिकॉर्ड उनकी आक्रामकता और विनाशकारी मानसिकता का परिचय देने के लिए पर्याप्त हैं. क़ुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर औरंगजेब तक ने मूर्तिपूजा की विचारधारा के साथ-साथ काशी की सभ्यता और आध्यात्मिक विरासत नष्ट करने के अथक प्रयास किए थे. उस समय भी उसे बचाने और फिर से बहाल करने के लिए निरंतर संघर्ष और प्रयास किए गए थे.’

संभवत: एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी के औरंगाबाद में औरंगजेब के मकबरे की यात्रा करने और एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बाबरी मस्जिद के विध्वंस की निंदा वाली टिप्पणी के संदर्भ में केतकर ने लिखा, ‘इस्लामवादी, जो सांप्रदायिक कट्टरपंथियों के धार्मिक हमले के सबसे बड़े शिकार हैं, को अपने पूर्वजों के उत्पीड़क कृत्यों पर गर्व महसूस होता है. औरंगजेब के मकबरे के प्रति श्रद्धा दर्शाना और बाबरी मस्जिद का राग आलापना इतिहास को नकारने का एक अमानवीय तरीका है.’

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केतकर ने आगे लिखा, जाति और नस्लीय वर्चस्ववादियों की तरह धार्मिक वर्चस्ववादियों को भी परस्पर सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ये स्वीकारने की जरूरत है कि ‘आक्रमणकारियों ने हिंदू सभ्यता के प्रतीकों को चोट पहुंचाई थी.’

उन्होंने लिखा, ‘जब तक इस्लामवादी खुद को आक्रमणकारियों से जोड़ना और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी ऐतिहासिक गलतियों पर पर्दा डालना बंद नहीं कर देते, अतीत को खंगालने की ललक जारी रहेगी. सभ्यतागत मूल्यों को मान्यता देने और अतीत की गलतियों को सुधारने की दिशा में कदम उठाया जाना स्वाभाविक है.’

‘ऑटो मोड पर चल रही अर्थव्यवस्था’

दक्षिणपंथी पत्रकार हरिशंकर व्यास ने अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि यह ‘ऑटो-मोड’ में चल रही है.

व्यास ने एक ऑनलाइन हिंदी न्यूज पेपर नया इंडिया में लिखा, ‘यह नीचे जा रही है. सभी जानते हैं कि इसे और ज्यादा लुढ़कने से रोकने के लिए और जोर लगाना होगा, लेकिन इसकी जरूरत महसूस नहीं की जा रही क्योंकि आम आदमी अर्थव्यवस्था की स्थिति पर ध्यान नहीं दे रहा. उसकी सारी रुचि तो मध्यकालीन भारत में की गई गलतियों को सुधारने के काम पर केंद्रित है.’

उन्होंने कहा कि जहां जीएसटी और आयकर संग्रह रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, वहीं अर्थव्यवस्था—समग्र तौर पर—गड्ढे में जा रही है.

उन्होंने लिखा, ‘ऐसा लगता है कि जो कुछ हो रहा है उसके पीछे कोई योजना है. क्योंकि अगर इसके पीछे कोई योजना नहीं होती तो हर पैमाने पर अर्थव्यवस्था की गिरावट से सरकार दहशत में होती. लेकिन सरकार दहशत का कोई संकेत नहीं दिखा रही है और शायद यह मान रही है कि यह लंबे समय तक इसी तरह ऑटो-मोड में चलती रहेगी. लेकिन आगे क्या होगा ये तो भगवान ही जानता है.’


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सावरकर और आजाद हिंद फौज

विनायक दामोदर सावरकर की जयंती (28 मई) से पहले आरएसएस से संबद्ध हिंदी पत्रिका पांचजन्य ने मनोचिकित्सक डॉ. नीरज देव का एक लेख प्रकाशित किया जिसमें दावा किया गया कि सावरकर ने आजाद हिंद फौज (आईएनए) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि नेताजी बोस ‘उनसे बेहद प्रभावित’ थे.

लेख में कहा गया है, ‘जब सावरकर 15 वर्ष के थे, तब उन्हें यह अहसास हुआ कि जंग के बिना आजादी संभव नहीं है. कुछ साल पहले, प्रोफेसर कपिल कुमार (इतिहासकार) को आजाद हिंद फौज के कई सैनिकों के पत्र मिले थे जिसमें उन्होंने बताया था कि बैरिस्टर सावरकर के आग्रह पर ही वे आईएनए में शामिल हुए थे.’

इसमें आगे बताया गया कि नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर एक किताब में सावरकर के साथ अपनी मुलाकात का जिक्र भी किया है और यह भी बताया है कि सावरकर लगातार यह सोचते रहे थे कि हिंदुओं को भारत में ब्रिटिश सेना में शामिल होकर कैसे हथियार प्रशिक्षण मिल सकता है.

लेख में सुभाष चंद्र बोस को जून 1944 में एक रेडियो कार्यक्रम के दौरान ये कहते उद्धृत किया गया, ‘जब गुमराह राजनीतिक सोच और दूरदृष्टि के अभाव में कांग्रेस के तमाम नेता भारतीय राष्ट्रीय सेना के सभी सैनिकों को भाड़े के सैनिकों के रूप में धिक्कार रहे हैं, यह जानकर खुशी होती है कि वीर सावरकर निडर होकर भारत के युवाओं को सशस्त्र बल में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.’

लेख में आगे कहा गया है, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बातचीत के दौरान सावरकर ने उन्हें भारत से बाहर यात्रा करने और उस समय ब्रिटेन के विरोधियों, जैसे जर्मनी, इटली, जापान आदि की मदद से उस पर (ब्रिटिश साम्राज्य) हमला करने की सलाह दी थी. साथ ही, उन्होंने नेताजी को रास बिहारी बोस का एक पत्र भी दिखाया जिसमें उन्होंने जापान में उनकी तरफ से बनाई जा रही एक सेना के बारे में सूचित किया था. वह (सावरकर) उन्हें (सुभाष चंद्र बोस) यह बताना भी नहीं भूले कि वह ऐसी सेना का नेतृत्व कर सकते हैं, क्योंकि वह और रास बिहारी तो बूढ़े हो चुके हैं.’

अप्रवासी मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल करना

इंडिया टुडे के लिए एक ओपिनियन पीस में आरएसएस विचारक और भाजपा के पूर्व नेता राम माधव ने लिखा कि अप्रवासी मुसलमानों का समान नागरिकों के तौर पर समाज की मुख्यधारा में शामिल करना एक ऐसा सवाल है जिसका आज कई देश सामना कर रहे हैं.

उन्होंने लिखा, ‘बढ़ती अराजकता, सड़क पर हिंसा और गैंगस्टरवाद, मदरसों और अरबी स्कूलों की बढ़ती संख्या, अरबी में बोलने की बढ़ती जिद, सिर से पैर तक बुर्का पहनना और सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पढ़ना आदि ऐसे कृत्य हैं जिन्हें पश्चिम में तमाम लोग जानबूझकर राष्ट्र-राज्य की विचारधारा की अवहेलना किए जाने के तौर पर देखते हैं.’

राम माधव ने लिखा, ‘यह सब तमाम यूरोपीय देशों में प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी राजनीति को बढ़ावा दे रहा है. लेकिन इस्लामवादी और उनके समर्थक समानता के मसले को सुलझाने के इच्छुक नहीं है. इसके बजाये, वे प्रतिक्रिया को जेनोफोबिया या इस्लामोफोबिया कहते हैं.’

उन्होंने आगे तर्क दिया कि ‘उत्पीड़न की राजनीति के नाम पर इस्लामी समाज को समस्या की गंभीरता पर ध्यान देने की जरूरत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’

‘हिंदुत्व है संविधान की नींव’

आरएसएस के पदाधिकारी और लेखक राजीव तुली ने दैनिक जागरण के लिए एक लेख में लिखा कि हिंदुत्व ने ही ‘भारतीय संविधान की नींव तैयार की है’

भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्यों में स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, लोकतंत्र, प्रकृति के प्रति सम्मान, प्राकृतिक संसाधन और अन्य चीजें शामिल हैं. इन सांस्कृतिक सभ्यतागत मूल्यों की उत्पत्ति हिंदू संस्कृति के बुनियादी मूल्यों से हुई है, जो दुनिया की सबसे पुरानी समृद्ध सभ्यता है.

तुली ने लिखा, ‘भारतीय संविधान का मूल आधार हिंदुत्व है, जो केवल मानवतावाद और मानवता है.’

उन्होंने लिखा कि संविधान में उल्लेखित ‘भारत’ नाम हिंदू पौराणिक कथाओं के उपाख्यानों से लिया गया है.

श्रीलंका की मदद

स्वदेशी जागरण मंच की मासिक पत्रिका स्वदेशी पत्रिका के एक संपादकीय में कहा गया है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद करने से भारत को ‘चीन के चंगुल में फंसे श्रीलंकाई लोगों का सद्भाव हासिल होगा और वह पड़ोसी देश को एक बार फिर विकास के रास्ते पर ले जाने में मददगार बन सकता है.’

लेख में यह सुझाव भी दिया गया कि भारत सरकार को श्रीलंका को मानवीय और वाणिज्यिक सहायता प्रदान करनी चाहिए, और सतत विकास के लिए एक कार्ययोजना बनाने में इस द्वीप राष्ट्र की मदद करनी चाहिए.

स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध है.

एबीवीपी का नजरिया

आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अपनी मासिक पत्रिका छात्र शक्ति में एक लेख में अपने राजनीतिक नजरिये को कुछ इस तरह समझाया—एबीवीपी का मानना है कि उसकी प्रमुख भूमिका किसी भी पार्टी का हिस्सा बने बगैर सकारात्मक कार्यों को अंजाम देने की है.

इसमें कहा गया है, ‘राजनीतिक दल और राज्य सत्ता के बीच संबंधों के संदर्भ में एबीवीपी का नजरिया शुरू से ही अलग रहा है. उसका मानना है कि यद्यपि सरकारी तंत्र के माध्यम से देश निर्माण आवश्यक और स्वाभाविक है, लेकिन देश के लिए काम करने का यही एकमात्र तरीका नहीं है.’ साथ ही कहा गया कि एबीवीपी ने कभी ‘सैद्धांतिक तौर पर राजनीतिक दल बनने की राह पर आगे बढ़ने के बारे में नहीं सोचा.’

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


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