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Friday, 19 April, 2024
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कर्नाटक की उस जज को SC लाने में क्यों नाकाम रहा कॉलेजियम, जो देश की पहली महिला CJI बन सकती थी

कॉलेजियम के दो सदस्यों का मानना था कि जस्टिस नागरत्ना को लाने के लिए वरिष्ठता क्रम में कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ए.एस. ओका की अनदेखी नहीं की जानी चहिए.

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नई दिल्ली: देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे के नेतृत्व वाला सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम उनकी सेवानिवृत्ति से पहले कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी नागरत्ना को शीर्ष अदालत में लाने की सिफारिश के लिए सहमति बनाने में नाकाम रहा था. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है. जस्टिस नागरत्ना को एलीवेट कर सुप्रीम कोर्ट में लाना खासा मायने रखता है क्योंकि अगर अभी ऐसा किया जाता है तो वह देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं.

हालांकि, सूत्रों के अनुसार उच्चाधिकार प्राप्त इस पैनल के दो सदस्यों का मानना था कि जस्टिस नागरत्ना को लाने के लिए वरिष्ठता क्रम में कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ए.एस. ओका की अनदेखी नहीं की जानी चहिए.

पूर्व सीजेआई बोबडे के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एलीवेशन के लिए संभावित नामों पर चर्चा करने के लिए कॉलेजियम की चार बैठकें बुलाई गई थी. पैनल में मौजूदा सीजेआई न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना के अलावा जस्टिस आर.एफ. नरीमन, यू.यू. ललित और ए.एम. खानविलकर शामिल थे.

विचार-विमर्श के लिए संभावित प्रमुख नामों में एक जस्टिस नागरत्ना का भी था जो हाई कोर्ट के 82 न्यायाधीशों में से एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं, जो कि सुप्रीम कोर्ट लाए जाने पर 9 फरवरी 2027 को भारत के सीजेआई के रूप में जस्टिस सूर्य कांत की उत्तराधिकारी बन सकती हैं. तब वह 29 अक्टूबर 2027 तक पद संभालेंगी.

इस मामले में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कॉलेजियम के दो सदस्य इस पक्ष में नहीं थे कि जस्टिस ओका की वरिष्ठता की अनदेखी की जाए, जो मुख्य न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में पहले स्थान पर हैं. उन्हें अगस्त 2003 में बाम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और मई 2019 में वह कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने.

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लेकिन बोबडे ने सुझाव नहीं स्वीकारा और इस रुख पर कायम रहे कि भविष्य में सीजेआई के पद के लिए संभावित उम्मीदवार होने को देखते हुए जस्टिस नागरत्ना को एलीवेट किया जाना चाहिए.

बोबडे ने यह भी कहा कि 23 अप्रैल को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद ही जस्टिस ओका का एलिवेशन किया जाना चाहिए.

एक सूत्र ने बताया, ‘उनकी राय में सुप्रीम कोर्ट में बाम्बे हाई कोर्ट का पर्याप्त प्रतिनिधित्व था क्योंकि उनके समेत चार सिटिंग जज उसी कोर्ट से रहे हैं.’

चूंकि कॉलेजियम की सभी चार बैठकें गतिरोध के कारण बिना निर्णय के रही, इससे नागरत्ना के एलीवेशन का मौका आने में देरी हुई है.


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जस्टिस नागरत्ना को शीर्ष कोर्ट लाने का विरोध

जस्टिस ओका अखिल भारतीय रैंकिंग में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश है, जबकि नागरत्ना की रैंकिंग 33 है. हालांकि, वह मौजूदा समय में ओका के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट की सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं और इस समय उनके हाई कोर्ट से केवल दो सुप्रीम कोर्ट जज हैं.

अतीत में उनकी उम्मीदवारी का विरोध इस वजह से भी किया गया था क्योंकि उन्हें एलीवेट करके सुप्रीम कोर्ट लाए जाने से 32 न्यायाधीशों के वरिष्ठता क्रम का उल्लंघन होगा. सुप्रीम कोर्ट में लाए जाने के लिए उनमें से 19 चीफ जस्टिस और कुछ वरिष्ठतम जजों के नाम विचाराधीन हैं.

हालांकि, ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें मुख्य न्यायाधीशों की रैंक से नीचे वाले न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट में लाया गया है. हाल के उदाहरणों में कर्नाटक हाई कोर्ट से जस्टिस एस.ए. नजीर और दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना शामिल हैं. दोनों शीर्ष अदालत में नियुक्ति से पहले 14 साल तक अपनी-अपनी हाई कोर्ट में सेवारत रहे हैं.

ऊपर उद्धृत सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘सुप्रीम कोर्ट के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई लिखित नियम नहीं हैं. आम तौर पर वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को इस तरह की नियुक्तियों का मापदंड माना जाता है.’

नागरत्ना के नाम पर आपत्ति की एक और वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाई कोर्ट से तीन जज पहले से ही थे. हालांकि, उनमें से एक जस्टिस मोहन शांतनगौडर का हाल ही में निधन हो चुका है और अब इस हाई कोर्ट से केवल दो जज बचे हैं.

हालांकि, जस्टिस नागरत्ना के लिए आठ महीने लंबी अवधि के लिए बतौर सीजेआई काम करने का मौका धूमिल हो सकता है, अगर गुजरात हाई कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस और वरिष्ठता सूची में पांचवा स्थान रखने वाले जस्टिस विक्रम नाथ को उनसे पहले सुप्रीम कोर्ट ले आया जाता है.

यदि ऐसा होता है, तो वह एक महीने के लिए— 23 सितंबर 2027 से 29 अक्टूबर 2027 तक ही सीजेआई का पद संभाल पाएंगी. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में कोई भी न्यायाधीश केवल 65 वर्ष की आयु तक सीजेआई का पद संभाल सकता है.


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सुप्रीम कोर्ट में केवल एक महिला जज

सूत्रों के अनुसार, सीजेआई रमन्ना के नेतृत्व वाला नया कॉलेजियम जस्टिस नागरत्ना के नाम पर फिर से पुनर्विचार करेगा, खासकर यह देखते हुए कि इसके दो सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि समय आ गया है कि भारत की शीर्ष अदालत में और महिला न्यायाधीश हो और एक महिला प्रधान न्यायाधीश हो.

कॉलेजियम में अब जस्टिस नरीमन, ललित, खानविलकर और डी.वाई. चंद्रचूड़ शामिल हैं. जस्टिस खानविलकर और चंद्रचूड़ दोनों बाम्बे हाई कोर्ट से हैं.

सुप्रीम कोर्ट की दो महिला जजों— जस्टिस आर.ए. भानुमति और इंदु मल्होत्रा के आठ महीने में एक-एक कर के रिटायर होने के बाद अब शीर्ष अदालत में केवल एक महिला जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी रह गई हैं, जो अगले साल सेवानिवृत्त होने वाली हैं.

मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट में 34 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले केवल 28 जज हैं.

पिछले 71 वर्षों के इतिहास में शीर्ष अदालत में केवल आठ महिला जज रही हैं. इसमें से पहली महिला जज जस्टिस फातिमा बीवी को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 39 साल बाद यहां लाया गया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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