चंडीगढ़/नई दिल्ली: एक ‘धमकी’, कुछ गर्मागर्मी और फिर एक छूट—केंद्रीय उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल और अपने मंत्रियों के बीच गुरुवार को दो घंटे तक चली कुछ इसी तरह की एक सुपर-चार्ज बैठक के बाद पंजाब आखिरकार इस सीजन में खाद्यान्न खरीद के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीडी) के लिए तैयार हो गया.
पंजाब में रबी खरीद का सीजन शनिवार को शुरू हो गया था लेकिन किसानों के भुगतान के तरीके को लेकर गुरुवार तक दोनों पक्षों के पक्षों के बीच टकराव जारी रहा. पंजाब जहां आढ़तियों या कमीशन एजेंटों के माध्यम से भुगतान की मौजूदा प्रणाली को ही जारी रखने के पक्ष में था, वहीं केंद्र सरकार ऑनलाइन शिफ्ट करने और किसानों को सीधे भुगतान किए जाने पर जोर दे रही थी. अन्य राज्यों में भी खाद्यान्न विपणन की यह व्यवस्था प्रभावी हुई है.
पंजाब ने अपनी तरफ से यह साफ करने की कोशिश की कि स्थानीय कृषि ढांचे में आढ़तियों की अहम भूमिका है, वे किसानों को कर्ज आदि भी मुहैया कराते हैं. राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल की अगुवाई में गोयल से मिले पंजाब के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि आढ़ती स्थानीय कृषि अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग हैं, और उनके माध्यम से ही किसानों को भुगतान किए जाने की परंपरा रही है.
लेकिन केंद्र सरकार, जो डीबीटी को पारदर्शिता बढ़ाने वाला और बिचौलियों द्वारा किसानों के शोषण पर रोक लगाने का साधन मानती है, इस तर्क पर राजी नहीं थी.
बादल ने शुक्रवार को दिप्रिंट को बताया, ‘गोयल इस तर्क से बिल्कुल सहमत नहीं थे और एक से ज्यादा बार उन्होंने हमसे कहा कि ऐसी स्थिति में भारत सरकार पंजाब से कोई अनाज नहीं खरीदेगी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘दरअसल, उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि यदि पंजाब भुगतान की अपनी व्यवस्था को बरकरार रखना चाहता है तो उसे खुद ही खरीद भी करनी चाहिए और अपने खुद के बनाए नियमों का पालन करना चाहिए. उन्होंने बदलाव लागू करने के लिए और समय देने के हमारे अनुरोध को भी खारिज कर दिया.’
बहस के लिए कोई गुंजाइश न बचने पर आखिरकार पंजाब का प्रतिनिधिमंडल इस पर तैयार हो गया. बैठक से जुड़े घटनाक्रम से अवगत पंजाब सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम केंद्र को खरीद प्रक्रिया से बाहर रखने का जोखिम नहीं उठा सकते.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘हमारे मंत्री ने पीयूष गोयल और उनकी टीम को समझाने की पूरी कोशिश की. लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. यहां तक कि वह पंजाब के खाद्य मंत्री भारत भूषण आशु (पंजाब प्रतिनिधिमंडल में शामिल) से खासे नाखुश भी लग रहे थे. उन्होंने न्यूज रिपोर्ट की उन बातों के बारे सुनाना शुरू कर दिया जो आशु ने गोयल के खिलाफ कही थीं.’
बादल ने कहा कि उन्होंने केंद्र सरकार से राज्य के साथ उचित रवैया अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, ‘सारे पत्ते उनके पास ही थे. हमारे हाथ में कुछ भी नहीं था. मैंने गोयल को पोरस के परास्त होने के बाद किंग पोरस की महान शासक सिकंदर से हुई मुलाकात की कहानी भी सुनाई. सिकंदर ने जब पोरस से पूछा कि उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाए, तो उन्होंने कहा कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है. मैंने गोयल से कहा कि हमें भी एक शासक की तरह मानकर उसी के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए.’
दिप्रिंट ने इस बैठक के विवरण से जुड़े कुछ सवालों के साथ ईमेल और फोन के जरिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडे से संपर्क साधा लेकिन ये रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी.
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के संयुक्त सचिव एस. जगन्नाथन ने कहा, ‘पंजाब ऑनलाइन भुगतान प्रणाली लागू करने को बाध्य था…क्योंकि सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) पर अमल करते हुए कल्याणकारी योजनाओं के लिए सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले धन की सेंट्रल प्लान स्कीम मॉनीटरिंग सिस्टम के तहत सख्ती से ट्रैकिंग जरूरी है.’
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह नई व्यवस्था के तहत आगे के रास्तों या तरीकों पर चर्चा के लिए आढ़तियों से शुक्रवार को मुलाकात करने वाले हैं.
बैठक में पंजाब डीबीटी पर अपनी बात तो नहीं मनवा पाया लेकिन इसने एक और विवादास्पद नए नियम को लेकर छह महीने का समय हासिल कर लिया, जिसके तहत खाली जुताई-बुआई करने वाले वाले काश्तकार को भुगतान पाने के बाबत यह सबूत पेश करने की जरूरत होगी कि उसे एक निश्चित भूखंड पर खेती करने का अधिकार मिला हुआ है. इसे लेकर अच्छी-खासी मुश्किल खड़ी होने के आसार हैं क्योकि पंजाब के तमाम किसान मुंहजुबानी सौदों के तहत अपनी जमीन पट्टे पर खेती के लिए दे देते हैं.
बादल ने कहा कि गोयल इस शर्त को अगले छह महीने के लिए टालने पर सहमत हो गए थे.
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‘शॉर्ट नोटिस के बावजूद डीबीटी को लागू करेंगे’
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय पंजाब से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के माध्यम से गेहूं की खरीद करता है. अगले दो महीनों में पंजाब की मंडियों में लगभग 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें अधिकांश भारत सरकार द्वारा 1,975 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर खरीदा जाएगा. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने खरीद के लिए 21,650 करोड़ रुपये की क्रेडिट कैश लिमिट को पहले ही मंजूरी दे दी है.
केंद्र सरकार पिछले कुछ सालों से पंजाब में डीबीटी अपनाए जाने पर जोर दे रही थी, लेकिन इस पर विवाद तब बढ़ा जब पहले इस बदलाव का विरोध करते रहे हरियाणा ने इसे मंजूरी दे दी.
केंद्र सरकार ने जहां यह तर्क दिया है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, जहां खरीद होनी है, ने सीधे तौर पर भुगतान की व्यवस्था लागू कर दी है, पंजाब ने आरोप लगाया कि वह अपने विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए आढ़तियों को बलि का बकरा बनाना चाहती है.
डीबीटी व्यवस्था लागू करने के बाबत पूछे जाने पर पंजाब के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के सूत्रों ने कहा कि लगभग 12.5 लाख किसान, जो राज्य में गेहूं और धान की खेती कर रहे हैं, सरकार के पास ‘अनाज खरीद’ पोर्टल के माध्यम से पंजीकृत हैं. साथ ही जोड़ा कि ऐसे में विभाग शॉर्ट नोटिस के बावजूद डीबीटी लागू करने में सक्षम होगा.
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास पहले से ही किसान पंजीकृत हैं और उनके बैंक खाते पोर्टल के साथ जुड़े हैं. हम वैसे भी आढ़तियों के माध्यम से किसानों को एमएसपी का भुगतान उनके खातों में ही कर रहे थे. अब हमें सिर्फ इतना करना है कि हम उन्हें सीधे भुगतान करेंगे.’
इस बीच, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस बदलाव के मद्देनजर आढ़तियों के हितों की रक्षा के लिए एक तंत्र बनाने के बाबत शुक्रवार को आढ़तियों के प्रतिनिधियों की एक मीटिंग बुलाई है.
मुख्यमंत्री ने 1 अप्रैल को आढ़तियों से मुलाकात की थी और पूरी तरह उनके साथ खड़े रहने का दावा करते हुए कहा था कि ‘किसानों और आढ़तियों के बीच परस्पर संबंध पहले की तरह बरकरार रहेंगे.’
जाहिर बात है कि अब जबकि पंजाब सरकार डीबीटी लागू करने पर राजी हो गई है, आढ़तियों को यह फैसला रास नहीं आने वाला है.
पंजाब आढ़तिया संघ के अध्यक्ष विजय कालरा ने कहा, ‘देखते हैं कि पंजाब सरकार अब क्या प्रस्ताव रखती है.’ हम इसके मुताबिक ही अपनी अगली कार्ययोजना घोषित करेंगे.’
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‘एक महत्वपूर्ण बैठक’
बादल ने कहा कि गुरुवार को केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के साथ हुई बैठक पंजाब के लिए अन्य मामलों के लिहाज से भी खासी अहम थी.
उन्होंने कहा, ‘डीबीटी और भूमि रिकॉर्ड एकीकरण के मुद्दों के अलावा हमने अपने ग्रामीण विकास कर के करीब 800 करोड़ रुपये पर विस्तार से चर्चा की. गोयल चाहते थे कि हम इसका इस्तेमाल पूरी तरह से मंडियों के रखरखाव पर करें, जबकि हमने जोर देकर कहा कि इसका इस्तेमाल मंडियों की सड़कों, ग्रामीण अस्पतालों आदि में किया जा सकता है.’
उन्होंने कहा कि पंजाब के प्रतिनिधिमंडल ने 1,600 करोड़ रुपये के बकाये का मुद्दा भी उठाया जो 2007 से विभिन्न कारणों से अटका पड़ा है, इस पर गोयल ने इसे क्लियर कराने पर सहमति जताई.
उन्होंने कहा, ‘हमने उनसे 2019 के बाद से पंजाब के भंडारण गृहों में भरे पड़े अनाज को उठवाने का अनुरोध किया. हमने उन्हें सुझाव दिया कि अनाज सड़ जाए इससे पहले उसे भारत सरकार की कुछ विशेष कल्याणकारी योजनाओं के जरिये गरीबों को बांट दिया जाए तो बेहतर होगा.’
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