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Sunday, 3 November, 2024
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कुछ आईएएस के इस्तीफे पर क्यों बैठी है मोदी सरकार, जबकि दूसरों के कुछ दिनों में ही स्वीकार कर लिए गए

जनवरी से अभी तक तीन आईएएस अधिकारी सरकार के काम काज से असंतुष्ट होकर इस्तीफा दे चुके हैं, इनमें से किसी का भी इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है.

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नई दिल्ली: पिछले दस महीनों में सरकारी कामकाज से असंतुष्ट तीन भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों ने इस्तीफा दिया है. जिनके इस्तीफे को मोदी सरकार ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है. कई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इनमें शाह फैसल भी हैं जो जम्मू-कश्मीर कैडर के अधिकारी रहे हैं इन्होंने जनवरी में इस्तीफा दिया था और राजनीतिक पार्टी में जाने की तैयारी करने लगे थे.

दूसरे 2012 बैच के आईएएस अधिकारी कनन गोपीनाथन हैं. वह एजीएमयूटी कैडर (अरुणाचल प्रदेश-गोआ मिज़ोरम और यूनियन टेरीटरी कैडर) के अधिकारी थे ससीकांत सेंथिल. उन्होंने 23 अगस्त को इस्तीफा दिया था. सेंथिल, 2006 बैच के कर्नाटक कैडर के अधिकारी रहे हैं. इन्होंने 6 सितंबर को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.

फैसल अब जेएंडके पीपुल्स पार्टी के नेता हैं. वह अगस्त से सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत हिरासत में हैं. 5 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को समाप्त कर इसके विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर दिया था.

जम्मू कश्मीर कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी ने बताया, ‘फैसल को इस्तीफा दिए 10 महीनें से अधिक हो चुके है उनका इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. तकनीकी रूप से वह अब भी भारत सरकार के कर्मचारी हैं लेकिन अब वह एक नेता बन चुके हैं.


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‘आप एक अधिकारी को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार करते हैं लेकिन उसे उसके सरकारी पद से मुक्त नहीं करते इसका कोई मतलब नहीं है.’

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के अधिकारी ने कन्फर्म किया कि फैसल का इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है, आज भी ‘उसपर काम जारी’ है. अधिकारी ने कहा कि इसमें कुछ भी ‘असामान्य’ नहीं है. सरकार के इस्तीफे की प्रक्रिया में समय लग सकता है क्योंकि सतर्कता और कई प्रकार की प्रक्रियाएं हैं जिनका पालन किए जाने की आवश्यकता होती है.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘इस मामले में कुछ भी विशेष नहीं है.’

फैसल के इस्तीफे के स्टेटस को जानने के लिए दिप्रिंट ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रवक्ता को कुछ सवाल भेजे हैं लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया है. बता दें कि सरकार किसी इस्तीफे को स्वीकार करने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है.

दवाब की रणनीति

फैसल ने कश्मीर में ‘बेरोक-टोक हो रही हत्याएं’ और ‘ हिंदुत्व सेना के द्वारा भारतीय मुस्लिमों को दरकिनार किए जाने’ के विरोध में इस्तीफा दिया था. गोपीनाथ और सेंथिल का भारतीय प्रजातंत्र से ‘मोहभंग’ होना बताया था.

फैसल और गोपीनाथ दोनों को आचरण नियमों के कथित उल्लंघन के लिए अनुशासनात्मक पूछताछ का सामना करना पड़ा सकता है. क्योंकि उनपर 26 अगस्त के बाद से काम में लापरवाही का आरोप लगाया गया है.

दिप्रिंट से प्रशासनिक अधिकारी ने बताया, ‘कर्मचारियों के इस्तीफे को स्वीकार न करना सरकार की रणनीति का हिस्सा है. जिसके तहत सरकार कर्मचारी को दंडित कर सकें.’

एक आईएएस अधिकारी ने बताया, ‘जब वे चाहते हैं कि केंद्र उनके इस्तीफे को स्वीकार कर लेता है, लेकिन जब वह किसी को परेशान करना चाहता है, तो वे इन रणनीति को अपनाते हैं.’

उदाहरण के लिए अपराजिता सारंगी मामले में , ‘केंद्र ने कुछ दिनों के अंदर नो ऑब्जेक्शन जारी कर दिया था.’
सारंगी ओडिशा कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, उन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिए पिछले वर्ष आईएएस पद से इस्तीफा दे दिया था. वह इस साल भुवनेश्वर से लोकसभा चुनाव जीतीं भीं.


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2005 बैच के आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने भी पिछले साल भाजपा ज्वाइन करने के लिए इस्तीफा दिया था, उनका इस्तीफा एक हफ्ते की भीतर स्वीकार कर लिया गया. उन्होंने पद से इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद ही पार्टी की सदस्यता हासिल कर ली थी.

आईएएस अधिकारियों ने कहा कि भले ही इन अधिकारियों के इस्तीफे की प्रक्रिया में चार-पांच महीने का समय लगा हो, यह एक ‘सामान्य’ प्रक्रिया है. सरकार गोपीनाथन और सेंथिल के इस्तीफे पर बैठ सकती है और विवादों पर भी विचार कर सकती है.

गोपीनाथन ने सार्वजनिक तौर पर कश्मीर में सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर ‘मोहभंग’ होने की बात कही थी. सेंथिल ने कहा था ‘उनके लिए सरकार में एक सिविल सेवक के रूप में अपना काम जारी रखना अनैतिक होता जा रहा था, तब जब हमारे लोकतंत्र में अभूतपूर्व तरीके से समझौता करने पर मजबूर होना पड़ रहा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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