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Friday, 3 May, 2024
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कैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा लड़कों का क्लब बन कर रह गई है

केंद्रीय सरकार में 88 सचिव रैंक के अधिकारियों में से केवल 11 महिलाएं हैं. राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के स्तर पर 32 मुख्य सचिवों में से केवल एक महिला है.

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नई दिल्ली : 14 अक्टूबर तक भारत सरकार में काम करने वाली महिला सचिवों की संख्या केवल 12 थी. जो 13 प्रतिशत से भी कम है. मंगलवार को नरेंद्र मोदी सरकार ने स्कूली शिक्षा सचिव रीना रे को उनके मूल कैडर में वापस भेज दिया है.

रीना रे मूलत: यूटी (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम, केंद्र शासित प्रदेशों) कैडर की 1984 बैच की आईएएस अधिकारी हैं. वह 2021 में सेवानिवृत्त होने वाली हैं.

स्कूली शिक्षा सचिव रे को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पीएमओ के साथ नीतिगत मुद्दों पर कथित मतभेद के बाद पद से हटाया गया है, वह नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों में जगह बनाने वाली कुछ महिला आईएएस अधिकारियों में से एक थीं.

केंद्र सरकार में 88 सचिव रैंक के अधिकारी – महिलाएं केवल 11

इस पर विचार करें: केंद्र सरकार में 88 सचिव रैंक के अधिकारियों में केवल 11 महिलाएं हैं. प्रीति सूदन, सचिव, स्वास्थ्य विभाग और विजय ठाकुर सिंह, सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय जैसे कुछ महत्वपूर्ण विभागों में हैं. जबकि ज्यादातर अन्य महिला अधिकारी मत्स्य पालन, आधिकारिक भाषाओं, विकलांगता या युवा मामले जैसे विभागों के मंत्रालयों में तैनात हैं.

जून 2019 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर और उससे ऊंचे स्तर वाले 700 अधिकारियों में से केवल 134 महिलाएं थीं. जो कि 19.14 प्रतिशत हैं.

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दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार संयुक्त सचिव के रूप में शामिल होने के लिए सरकार द्वारा लैटरल एंट्री के तहत चयनित एकमात्र महिला ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.


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राज्य स्तर पर भी संख्या प्रोत्साहित नहीं करती है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 32 मुख्य सचिवों में से केवल हरियाणा की आनंदी आनंद अरोरा एक महिला हैं. पुलिस के महानिदेशकों में भी कर्नाटक की नीलमणि राजू एकमात्र महिला आईपीएस अधिकारी हैं.

अरिंदम मुख़र्जी के द्वारा इन्फोग्राफिक । दिप्रिंट

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड फाइनेंस में प्रोफेसर लेखा चक्रवर्ती ने कहा, भारत में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई है. लेकिन, नौकरशाही में महिलाओं की भागीदारी ‘बेहद कम’ है.

चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि सिविल सेवाओं में कुछ वजह है. जिससे महिलाओं की राह कठिन हो गयी है.

उन्होंने कहा, ‘नौकरशाही में आत्म-प्रचार और अनौपचारिक नेटवर्क बनाने की क्षमता जैसे गुण बहुत महत्वपूर्ण हैं जहां कुशल महिलाएं जगह नहीं बना पाती हैं. पुरुषों के समान वहां कई कुशल महिलाएं हैं, लेकिन एक कुशल आदमी और एक कुशल महिला की यात्रा बहुत अलग होती है.

उन्होंने कहा, ‘सिविल सेवाओं में महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है, यह सुनिश्चित करने के लिए एक समाधान हो सकता है कि कम से कम अधिक कुशल महिलाएं पहले पायदान पर नौकरशाही में प्रवेश करें.’

सभी महिलाएं शीर्ष पर जगह नहीं बना पाती हैं

1982 बैच की आईएएस अधिकारी अरुणा शर्मा, जो पिछले साल केंद्रीय इस्पात सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुईं, उन्होंने कहा, आप महिला अधिकारियों को कम देखते हैं. इसका प्रमुख कारण यह है कि महिला अधिकारियों का प्रशासनिक सेवाओं में आने का अनुपात कम होना. उदाहरण के लिए मेरे बैच में कुल 140 आईएएस अधिकारियों में से सिर्फ 14 महिलाएं थीं.

शर्मा ने जोर देते हुए कहा कि सरकार में पोस्टिंग और पदोन्नति के मामले में महिलाओं को किसी दुश्मनी का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन कुछ इससे सहमत नहीं हैं.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद की दौड़ में शामिल एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रीना मित्रा को कथित तौर पर एक तकनीकी खामी को लेकर दरकिनार कर दिया गया था. इसके तुरंत बाद उन्होंने इस ‘पक्षपात’ के बारे में लिखा, जो कि नौकरशाही में महिलाओं के खिलाफ काम करता है.

उन्होंने लिखा, ‘मैं देश के प्रमुख जांच निकाय के प्रमुख के चयन के लिए सभी मापदंडों पर योग्य थी. मैं वास्तव में सीबीआई में अनुभव सहित सभी चार आवश्यक मानदंडों को पूरा करने वाली सबसे वरिष्ठ अधिकारी थी.’ हालांकि, एक आसान सी चयन प्रक्रिया में सिर्फ एक दिन की देरी से मैं दौड़ से बाहर हो गई.’

एक अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन ने कहा, ‘मित्रा का अनुभव अपवाद होने से बहुत दूर है. महिलाओं की उच्च स्तर वाली पोस्टिंग में पूर्वाग्रह रहता है.’

उदाहरण के लिए मेरे करिअर के दौरान, ‘मैंने देखा कि बहुत सारी महिलाओं को कैबिनेट सचिव पद के लिए दरकिनार कर दिया गया था. जब वे पर्याप्त रूप से योग्य थीं.’

स्वतंत्र भारत में कोई भी महिला कैबिनेट सचिव के पद तक नहीं पहुंची है.

रघुनंदन ने कहा, ‘इस सरकार में किसी को लगता है कि चीजें बेहतर होंगी, क्योंकि सरकार ने महिलाओं को रक्षा, विदेश मंत्रालय, वित्त, आदि जैसे मंत्रालयों में मंत्री नियुक्त किया है. लेकिन, ऐसा लगता है कि वे राजनीतिक रूप से परंपरा को तोड़ रहे हैं पर प्रशासनिक स्तर पर ऐसा नहीं हो रहा है.


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शर्मा का तर्क है कि शीर्ष स्तर पर महिलाओं के न पहुंचने का प्रमुख कारण उनका शुरुआती दौर में प्रशासनिक सेवाओं में कम संख्या में आना है.

जबकि, पिछले कुछ वर्षों में यूपीएससी द्वारा चुनी जाने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है, यह पिछले तीन वर्षों में भी औसतन 24 प्रतिशत ही रहा है.

इस वर्ष यूपीएससी द्वारा लिए गए 759 सिविल सेवकों के नए बैच में सिर्फ 182 महिलाएं थीं. 2017 बैच में, जब 990 सिविल सेवकों को चुना गया था, तब सिर्फ 240 महिलाएं थीं. 2016 में कुल 1,099 उम्मीदवारों को चुना गया था तब केवल 253 महिलाएं थीं.

10 पुरुषों में से केवल 3 महिलाएं यूपीएससी का विकल्प चुनती हैं

आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि यूपीएससी में कोई पक्षपात नहीं होता है. लेकिन हमने समय के साथ देखा है कि पुरुषों की तुलना में कम महिलाएं सिविल सेवाओं का विकल्प चुनती हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है, परीक्षा में शामिल होने वाले प्रत्येक 10 पुरुषों में से केवल तीन महिलाएं होती हैं.

रघुनंदन ने यह भी कहा कि पिछले कुछ दशकों में पितृसत्तात्मक सोच में ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को शादी के बाद सिविल सेवा छोड़ देनी चाहिए, लेकिन यह ऐसे पूर्वाग्रह के लोगों का समूह है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पसंद करने वाली महिलाओं की एक बड़ी संख्या को एक कैरिअर के विकल्प के रूप में पेश करता है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि इसी तरह का ही पक्षपात यहां होता है. लेकिन, सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर सकती है कि महिलाओं को बढ़ावा मिले. ऐसा कुछ है जो कोई भी करने को तैयार नहीं है.’

नाम न बताने की शर्त पर एक युवा महिला आईएएस अधिकारी ने कहा कि सिविल सेवा अब भी महिलाओं के लिए एक लोकप्रिय कैरिअर का विकल्प नहीं है.

‘हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां लड़कियों को उनके माता-पिता द्वारा शिक्षित किया जा रहा है, लेकिन जब नौकरियों की बात आती है तो उन्हें करिअर का विकल्प चुनने की शर्त होती है ताकि वे काम और परिवार के बीच संतुलन स्थापित कर सकें. ऐसी अपेक्षा नहीं कि समाज केवल सभी पुरुषों से है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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