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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअफगानिस्तान में ISKP के खिलाफ अमेरिकी ड्रोन हमले में पाकिस्तान से ‘गुप्त मदद’ की झलक क्यों है

अफगानिस्तान में ISKP के खिलाफ अमेरिकी ड्रोन हमले में पाकिस्तान से ‘गुप्त मदद’ की झलक क्यों है

अभी इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अमेरिकी ड्रोन किस बेस से संचालित हो रहे हैं. पाकिस्तान का कहना है कि वह ‘अमेरिकी सेना की वापसी के बाद सीमा पार आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए सीआईए को अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा.’

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नई दिल्ली: अमेरिका की तरफ से पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में कथित तौर पर इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) के सदस्यों को निशाना बनाकर दो ड्रोन हमले किए जाने के बाद से यह सवाल बना हुआ है कि अमेरिकी सशस्त्र मानवरहित एरियल व्हीकल (यूएवी) कहां से उड़ान भर रहे थे.

अब जबकि अफगानिस्तान में सभी सैन्य ठिकानों—यहां तक कि जिनका इस्तेमाल अमेरिकी करते थे—पर तालिबान का कब्जा हो चुका है, भारतीय रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के साथ-साथ विदेशी विश्लेषकों को भी संदेह को तालिबान की वापसी का अभिशाप माने जा रहे आईएसकेपी के खिलाफ अमेरिकी ड्रोन हमलों को पाकिस्तान का गुप्त समर्थन मिला है.

अभी इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पाई है कि ड्रोन किस बेस से संचालित हो रहे हैं.

पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर कह चुका है कि वह ‘अमेरिकी बलों के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद सीआईए को सीमा पार आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए अपनी भूमि पर स्थित ठिकानों का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा.’ मीडिया आउटलेट एक्सियोस को दिए एक इंटरव्यू में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने जून में कहा था कि पाकिस्तान ‘अपनी जमीन पर सीआईए या अमेरिकी विशेष बलों को फिर जमने की अनुमति नहीं देगा.’

सूत्रों के मुताबिक, भले ही ड्रोन पाकिस्तान से संचालित न हो रहे हों, लेकिन उन्हें अफगानिस्तान पहुंचने के लिए उसके हवाई क्षेत्र से उड़ान भरनी होगी. उन्होंने कहा कि एकमात्र विकल्प ईरान है, और साथ ही जोड़ा कि अमेरिकी संचालन के लिए तेहरान का समर्थन मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता है.

ड्रोन हमलों के लिए कथित तौर पर एक सशस्त्र अमेरिकी ड्रोन एमक्यू-9 रीपर का इस्तेमाल किया गया, जो हवा से जमीन पर मार करने वाली 114 हेलफायर मिसाइलों को ले जाने में सक्षम है. ड्रोन नेवादा, लास वेगास से नियंत्रित किए जा रहे हैं. हालांकि, अफगानिस्तान में हमले के लिए उसे आसपास के किसी क्षेत्र से संचालित किए जाने की आवश्यकता है.

रीपर्स को अलग से ले जाया जा सकता है और बाकी पूरा सिस्टम सी-130 हरक्यूलिस या किसी बड़े विमान में दुनिया में कहीं भी ले जाया जा सकता है.

इसके उड़ान भरने के ठिकाने कतर, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात या पाकिस्तान में होने की अटकलें हैं.

इसमें से एक कतर स्थित अल-उदीद एयरबेस है जो यूएस सेंट्रल कमांड फॉरवर्ड, यूएस एयर फोर्स सेंट्रल कमांड फॉरवर्ड और यूएस स्पेशल ऑपरेशंस कमांड सेंट्रल कमांड फॉरवर्ड का मुख्यालय भी है.

हालांकि, सूत्रों का कहना है कि सभी बातों पर विचार करने के बाद पाकिस्तान को लेकर अटकलों में सबसे ज्यादा दम लगता है.

पाकिस्तानी अखबार डॉन ने मई में एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से खबर दी थी कि पाकिस्तान अमेरिकी अभियानों के लिए हवाई और जमीनी मदद देना जारी रखेगा.


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‘पाकिस्तान जो कहता है, उसकी बातों पर मत जाइए’

सूत्रों ने कहा कि रीपर्स से दागी गई मिसाइलों की रेंज सबसे अच्छी स्थिति में अधिकतम 20 किलोमीटर है.

एक सूत्र ने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि अमेरिकी सशस्त्र ड्रोन को लंबी दूरी की मिसाइलों के विपरीत अपने लक्ष्य के करीब से संचालित किए जाने की जरूरत होगी, जिसे किसी युद्धक जहाज या फिर शिप से दागा जा सकता हो.’

सूत्रों ने आगे कहा कि भले ही पाक प्रधानमंत्री इमरान खान कह चुके हैं कि वह अमेरिकियों को पाकिस्तानी ठिकानों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देंगे, फिर भी अमेरिका गुप्त व्यवस्था के तहत उनका इस्तेमाल कर सकता है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘कोई भी देश यह स्वीकारने वाला नहीं है कि वे अमेरिकियों के अपना बेस इस्तेमाल करने दे रहे हैं. इसलिए, पाकिस्तान जो आधिकारिक तौर पर कह रहा है, उस पर मत जाइए. कई गुप्त व्यवस्थाएं की जाती हैं. पाकिस्तान के लिए तो अल्लाह, आर्मी और अमेरिका ही सब कुछ हैं. वे हमेशा रास्ता निकाल लेते हैं.’

सूत्रों ने कहा कि सबसे ज्यादा संभावित स्थानों में बलूचिस्तान स्थित शम्सी और झोब एयरफील्ड और सिंध का जैकबाबाद बेस शामिल हैं.

एक तीसरे सूत्र ने कहा कि अगर कोई ड्रोन कतर या ओमान—दोनों जगहों पर अमेरिकियों के पास विशेष सैन्य ठिकाने हैं—से भी उड़ान भरता है तो उसे अफगानिस्तान पहुंचने के लिए पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करना होगा.

सूत्रों ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के ऊपर से उड़ान भरना ईरान के रास्ते कतर और अफगानिस्तान के बीच हवाई दूरी की तुलना में लंबा मार्ग है, जो लगभग 1,900 किलोमीटर है.

तीसरे सूत्र ने कहा, ‘कतर से उड़ान भरते समय दो विकल्प होते हैं. इसमें सबसे छोटा है ईरान के ऊपर से उड़ान भरकर अफगानिस्तान पहुंचना. हालांकि, न तो ईरानी ही इसकी अनुमति देंगे और न ही अमेरिकी इसका जोखिम लेंगे क्योंकि ये ड्रोन रडार की नजर में आ सकते हैं और उन्हें मार गिराया जा सकता है. दूसरा विकल्प है फारस की खाड़ी के रास्ते अरब सागर पहुंचना और लक्ष्य को निशाना बनाने के लिए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करना.’

अमेरिकी वायु सेना के अनुसार, एमक्यू-9 में 1,300 एलबीएस ईंधन रखने में सक्षम बाहरी ईंधन टैंक जोड़कर इसकी मारक क्षमता को बढ़ाया गया है.

हालांकि, रीपर्स के पास 35 घंटे से अधिक उड़ान भरने की क्षमता है, वे बेहद कम स्पीड 200 नॉट (370 किमी/घंटा) से उड़ान भरते हैं. पूरे भार के साथ ड्रोन हाई स्पीड में बहुत लंबी दूरी की यात्रा नहीं कर सकते हैं.

सूत्रों ने बताया कि इसे देखते हुए हवा में रहने के दौरान किसी भी तरह की जटिलता के मद्देनजर संभावित आपात लैंडिंग की व्यवस्था करने की जरूरत है.

एक चौथे सूत्र ने कहा, ‘यह बात तो सच है कि पाकिस्तान प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ड्रोन हमलों में मदद करता रहा है. चूंकि ये हमले तालिबान नहीं बल्कि आईएसकेपी को निशाना बनाकर किए जा रहे हैं, इसलिए पाकिस्तानियों और तालिबान के लिए आंखें मूंद लेना आसान है.’

अमेरिका कथित तौर पर अफगानिस्तान में अपने आतंकवाद-रोधी अभियानों के संभावित लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल के लिए मध्य एशियाई देशों से भी बातचीत कर रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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