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सोमवार, 16 जून, 2025
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हरियाणा की महत्वाकांक्षी गोरखपुर न्यूक्लियर प्लांट प्रोजेक्ट अब तक रफ्तार क्यों नहीं पकड़ पाया?

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री खट्टर ने 2,800 मेगावाट की परियोजना के लिए नई समय-सीमा की घोषणा की है, जो अब अपने मूल लक्ष्य से एक दशक पीछे चल रही है.

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गुरुग्राम: उत्तर भारत और हरियाणा के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट—गोरखपुर हरियाणा अनु विद्युत परियोजना (GHAVP)—का काम एक बार फिर टल गया है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि चार में से पहले दो 700 मेगावाट यूनिट अब केवल 2031 में शुरू हो पाएंगे.

यह नई समय-सीमा पहले के लक्ष्य 2020-21 और बाद के 2028 के अनुमान की तुलना में काफी देरी को दिखाती है. यह इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में आ रही दिक्कतों को भी उजागर करती है.

खट्टर ने शनिवार को मीडिया को बताया कि यह 2,800 मेगावाट का प्लांट दो चरणों में शुरू होगा: पहले 1,400 मेगावाट 2031 तक, और बाकी के 1,400 मेगावाट 2032 तक. उन्होंने देरी की वजह रेतीली ज़मीन और तकनीकी जटिलताओं को बताया। साथ ही कहा कि न्यूक्लियर पावर प्लांट बनने में आमतौर पर 13 साल लगते हैं.

यह घोषणा खट्टर और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की शनिवार को फतेहाबाद ज़िले के गोरखपुर में GHAVP के दौरे के दौरान की गई. यह प्रोजेक्ट न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है.

खट्टर ने एक्स पर लिखा, “आज फतेहाबाद, हरियाणा में माननीय मुख्यमंत्री श्री नायाब सैनी के साथ उत्तर भारत के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट—गोरखपुर हरियाणा अनु विद्युत परियोजना (GHAVP)—की प्रगति की समीक्षा की.”

उन्होंने आगे कहा, “यह महत्वाकांक्षी परियोजना न केवल हरियाणा और उत्तर भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करेगी, बल्कि भारत की स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा के लक्ष्य को भी मज़बूती देगी.” उन्होंने बताया कि यह परियोजना भारत के 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य के अनुरूप है.

इस प्रोजेक्ट की लागत जो 2014 में करीब 23,502 करोड़ रुपये आंकी गई थी, अब बढ़कर 42,000 करोड़ रुपये हो गई है. हरियाणा को इस प्लांट से बनने वाली बिजली का 50 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा, जबकि बाकी केंद्र सरकार को जाएगा. आसपास के गांवों के विकास कार्यों के लिए 80 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं.

चुनौतियों से घिरा प्रोजेक्ट

GHAVP, जिसे भारत की न्यूक्लियर एनर्जी महत्वाकांक्षा की रीढ़ की तरह देखा गया था, शुरू से ही कई मुश्किलों का सामना कर रहा है. मई 2023 तक, राज्य सरकार की एक समीक्षा के अनुसार, ज़मीन मजबूत करने का काम 74 प्रतिशत पूरा हो चुका था और एंड शील्ड्स और स्टीम जनरेटर जैसे जरूरी उपकरण साइट पर पहुंच चुके थे. उस समय अनुमान लगाया गया था कि यह प्लांट जून 2028 तक शुरू हो जाएगा.

अब आई ताज़ा देरी से यह समयसीमा और आगे बढ़ गई है, जिससे भारत की ऊर्जा जरूरतों के बीच इस प्रोजेक्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं.

इस प्रोजेक्ट के निदेशक जीवेंद्र कुमार जैन और चीफ़ इंजीनियर (सिविल) एच.के. निगोतिया ने दिप्रिंट के फोन कॉल्स का जवाब नहीं दिया.

फतेहाबाद ज़िले के बीजेपी अध्यक्ष परवीन जौरा, जो खट्टर और सैनी के साथ प्रोजेक्ट साइट पर गए थे, ने शनिवार को दिप्रिंट को बताया कि खट्टर ने इस प्रोजेक्ट की प्रगति और आ रही चुनौतियों पर विस्तार से बातचीत की.

जौरा ने कहा, “अधिकारियों ने खट्टर को बताया कि ग्राउंड फ्लोर तक का सिविल वर्क सबसे मुश्किल काम था क्योंकि इसे मजबूत बनाना ज़रूरी था. लेकिन स्थानीय मिट्टी रेतीली होने की वजह से इंजीनियरों को दिक्कत आई. हालांकि अधिकारियों ने ये भी बताया कि अब ग्राउंड फ्लोर तक का सिविल वर्क पूरा हो गया है और अब काम की गति तेज़ होगी.”

गोरखपुर गांव में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने का विचार 1984 में आया था, जब यह इलाका हिसार ज़िले में आता था. जुलाई 1997 में फतेहाबाद को अलग ज़िला बनाया गया और गोरखपुर को इस प्रोजेक्ट के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि यह भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित था और मुआवज़े के ज़रिए ज़मीन लेना आसान माना गया.

अक्टूबर 2009 में केंद्र सरकार ने इस 2,800 मेगावाट के न्यूक्लियर प्लांट को शुरुआती मंज़ूरी दी, जिसके बाद अप्रैल 2010 में न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) ने हिसार में प्रोजेक्ट ऑफिस खोला. ज़मीन अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती साबित हुआ। सरकार ने गोरखपुर और आस-पास के कजलहेड़ी गांव से 1,313 एकड़ ज़मीन ली, लेकिन स्थानीय किसानों ने इसका कड़ा विरोध किया.

2011 में जापान के फुकुशिमा न्यूक्लियर हादसे ने इन विरोधों को और बढ़ा दिया। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और पूर्व सेना प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री जनरल (रिटायर्ड) वी. के. सिंह—जो अब मिजोरम के राज्यपाल हैं—ने सुरक्षा और विस्थापन को लेकर सवाल उठाए.

यह आंदोलन 2012 के अंत तक चला, जब किसानों को 46 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवज़ा पैकेज दिया गया और उनकी मांगें मानी गईं.

NPCIL ने 2011 में अपने स्टाफ और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के लिए रिहायशी परिसर बनाने के मकसद से बडोपल गांव में 186 एकड़ ज़मीन खरीदी. लेकिन स्थानीय विरोध हुआ क्योंकि इससे काले हिरण के रहवास को खतरा था, और जून 2018 में NPCIL को यह योजना रद्द करनी पड़ी.

इन सभी मुश्किलों के बावजूद प्रोजेक्ट आगे बढ़ता रहा और 13 जनवरी 2014 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसका शिलान्यास किया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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