नई दिल्ली: भाजपा ने उत्तर प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी को अपनी राज्य इकाई के नए प्रमुख के तौर पर चुना है, जो पिछले माह ही अपना कार्यकाल पूरा करने वाले स्वतंत्र देव सिंह की जगह लेंगे.
पश्चिमी यूपी के मुरादाबाद के रहने वाले चौधरी यूपी में भाजपा के पहले जाट अध्यक्ष हैं. माना जा रहा है कि उन्हें प्रभावशाली जाट समुदाय को साधने की कोशिश के तहत चुना गया है, जो तबसे पार्टी से नाराज हैं, जब भाजपा-नीत केंद्र सरकार ने विवादास्पद कृषि कानूनों—जो अब निरस्त हो चुके हैं—को लागू किया था.
भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘चौधरी को चुनने का उद्देश्य जाटों को एक संदेश देना है, जो किसान आंदोलन के समय सबसे आगे रहे थे.’
इस साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जाटों को राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर रुख करते देखा गया था.
भाजपा नेता ने कहा, ‘यद्यपि भाजपा मुस्लिम वोटों में विभाजन के कारण पश्चिमी यूपी (जिसमें जाट बेल्ट शामिल है) में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रही, फिर भी रालोद ने वहां आठ सीटें जीतीं और यहां तक कि जाट समुदाय की नाराजगी के कारण सपा ने भी अच्छा प्रदर्शन किया.’
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि ‘पश्चिमी यूपी से चौधरी को चुनकर भाजपा ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को संतुलित करने की कोशिश की है.’
उन्होंने कहा, ‘वेस्ट यूपी में हमेशा से यह शिकायत रही है कि भाजपा में पूर्वी क्षेत्र के नेताओं को ज्यादा तरजीह मिलती है.’ उन्होंने यह बात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो पूर्वांचल स्थित गोरखपुर से आते हैं; पूर्वांचल से ही नाता रखने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और मध्य यूपी स्थित हरदोई के रहने वाले दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के संदर्भ में कही.
चौधरी जाट समुदाय के चौथे ऐसे प्रतिनिधि हैं जिन्हें भाजपा की तरफ से नेतृत्व की अहम भूमिका दी गई है. उनके अलावा समुदाय के प्रमुख नेताओं में सतीश पुनिया (जिन्हें 2019 में राजस्थान प्रमुख बनाया गया था), ओ.पी. धनखड़ (जो 2020 से हरियाणा इकाई का नेतृत्व कर रहे हैं) और जगदीप धनखड़ ( जिन्हें उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने सफलतापूर्वक चुनाव जीता) शामिल हैं. गौरतलब है कि राजस्थान और हरियाणा दोनों में ही जाट समुदाय एक बड़ा वोटबैंक है.
एक तीसरे भाजपा नेता ने माना कि पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में वेस्ट यूपी में बड़ी संख्या में सीटें हासिल करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है. उन्होंने कहा, ‘हर बार (केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह पश्चिमी यूपी से अपना चुनाव प्रचार शुरू करते हैं क्योंकि भाजपा जाटलैंड पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहती है.’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 29 लोकसभा सीटें हैं.
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चौधरी को ‘पुरस्कृत’ किया गया
मुरादाबाद के कांठ निर्वाचन क्षेत्र के एक किसान परिवार से आने वाले चौधरी लो-प्रोफाइल वाले जमीनी नेता रहे हैं. वह 2017 की पहली योगी आदित्यनाथ सरकार में एक कनिष्ठ मंत्री थे और 2019 में उन्हें कैबिनेट मंत्री के तौर पर पदोन्नत किया गया.
उन्होंने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुरादाबाद में पूरी की और विश्व हिंदू परिषद में बतौर कारसेवक अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. 1989 में भाजपा में शामिल हुए और 1993 में जिला कार्य समिति सदस्य बने. 1996 से 2000 तक वह मुरादाबाद के जिलाध्यक्ष भी रहे.
1999 के लोकसभा चुनाव में चौधरी ने संभल से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा, यद्यपि वह जीतने में असफल रहे लेकिन उस समय सुर्खियों में जरूर आ गए.
जब लोकसभा सांसद रमापति राम त्रिपाठी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब चौधरी को पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय मंत्री के रूप में चुना गया और बाद में पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी बने, और 2017 तक इस पद पर रहे. वह 2016 में विधान परिषद के सदस्य बने.
चौधरी को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से निकटता के कारण जाना जाता है, जिन्होंने उन्हें तब अपने साथ ले लिया था जब खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे.
त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया, ‘चौधरी का राजनीतिक करियर बेदाग रहा है. वह भाजपा के ‘कार्यकर्ता’ रहे हैं, जो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए इस पद तक पहुंचे हैं—पहले जिलाध्यक्ष, फिर क्षेत्रीय अध्यक्ष और फिर कैबिनेट मंत्री के तौर पर.’
भाजपा के प्रदेश महासचिव गोविंद नारायण शुक्ला ने भी इसी तरह की बात कही. उन्होंने कहा, ‘चौधरी न केवल एक जमीनी नेता हैं बल्कि बतौर पंचायती राज मंत्री उन्होंने राज्य भर में स्वच्छता की स्थिति में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है. वह संगठन के व्यक्ति हैं और उन्हें अपने कार्यों के लिए पुरस्कृत किया गया है.’
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हीलिंग टच
भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि चौधरी को अध्यक्ष बनाए जाने से 2020-2021 में साल भर चले किसान आंदोलन के दौरान अलग-थलग पड़े जाटों के घावों भरेंगे, और न केवल पश्चिमी यूपी में बल्कि हरियाणा और राजस्थान में भी इस समुदाय के साथ पार्टी का टूटा संवाद फिर बहाल हो सकेगा.
इससे पहले, केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने राज्य चुनाव से भी पूर्व जाटों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की थी, जब चौधरी को पश्चिमी यूपी में शिकायतें सुनने और उन्हें दूर करने का प्रभार सौंपा गया था. उन्हें स्टार प्रचारक भी बनाया गया था. वह हरियाणा में भाजपा के सह-प्रभारी भी रहे हैं और हाल ही में उन्होंने रामपुर उपचुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित की थी.
त्रिपाठी ने बताया कि ‘चौधरी न केवल यूपी के अध्यक्ष बनने वाले पहले जाट नेता हैं बल्कि इस पद पर पहुंचे पश्चिमी यूपी के पहले नेता भी है.’
दूसरे भाजपा नेता ने कहा कि जाट बेल्ट कभी चौधरी चरण सिंह (लोकदल, और अब रालोद) का गढ़ था, लेकिन भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पार्टी की पकड़ को कमजोर कर दिया.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने 2017 के यूपी चुनाव में अपनी पकड़ बनाए रखी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन और गन्ने की कीमतों को लेकर जाटों के विरोध से उसका प्रदर्शन प्रभावित हुआ, जब बसपा ने 10 सीटें जीतीं. इसमें कई वेस्ट यूपी की थीं.’ साथ ही जोड़ा, ‘इस साल के यूपी चुनावों में किसानों के आंदोलन के कारण भाजपा को पश्चिमी यूपी की लगभग 20 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में पार्टी अब जाटों की नाराजगी दूर करने की कोशिशों में लगी है.’
दशकों से, भाजपा यूपी में ब्राह्मण नेतृत्व को काफी अहमियत देती रही है, और इसी क्रम में इस समुदाय से आने वाले माधव त्रिपाठी, कलराज मिश्रा, रमापति राम, लक्ष्मीकांत वाजपेयी और महेंद्र नाथ पांडे जैसे नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाली. इसके बाद पार्टी में कल्याण सिंह, विनय कटियार, केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह जैसी पिछड़ी जातियों के नेताओं का बोलबाला रहा.
भाजपा के एक नेता ने कहा लेकिन अब, ‘पार्टी ने कई राज्यों में जाट नेतृत्व को बढ़ाने का फैसला किया है.’ नेता ने कहा, ‘अभी संजीव बाल्यान पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के एकमात्र नेता हैं और किसानों के विरोध के दौरान उन्हें उनके गुस्से का सामना करना पड़ा था.’
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