नई दिल्ली: एक बड़े घटनाक्रम में लॉस एंजिल्स में एक अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने बुधवार को पाकिस्तान में जन्मे कनाडा नागरिक और मुंबई में 26/11 आतंकी हमलों के मुख्य साज़िशकर्ता, तहव्वुर राणा की वैयक्तिक रूप से ‘प्रत्यर्पण सुनवाई’ निर्धारित कर दी, जिससे उसे संभावित भारत लाने का रास्ता साफ हो सकता है.
तहव्वुर के प्रत्यर्पण के सिलसिले में भारत सरकार के आग्रह पर पहली सुनवाई लॉस एंजिलिस में मजिस्ट्रेट जज जैकलीन चूलजियान कोर्ट में भारतीय समय के अनुसार शुक्रवार आधी रात के बाद 2 बजे होगी.
खबरों के अनुसार, अमेरिकी सरकार ने इस हफ्ते दो बार भारतीय दस्तावेज़ों का एक सीलबंद सेट जांच के लिए कोर्ट के समक्ष पेश किया.
रक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये एक बड़ा घटनाक्रम है कि कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए रखा है. ये तहव्वुर के प्रत्यर्पण की दिशा में एक कदम है’.
इससे एक साल पहले अमेरिकी अधिकारियों ने पिछले साल जून में राणा को फिर से गिरफ्तार किया था.
तहव्वुर ने एक मई को जेल अधिकारियों के सामने अनुकंपा के आधार पर एक याचिका पेश की थी, जिसमें कहा गया था कि वो कोविड-पॉज़िटिव था. उसे रिहा कर दिया गया लेकिन भारत के आग्रह पर दो दिन बाद फिर गिरफ्तार कर लिया गया, जिसने 1997 में दस्तखत किए गए द्विपक्षीय प्रत्यर्पण समझौते के प्रावधानों का हवाला दिया था.
भारत ने जालसाज़ी और विश्वास के आपराधिक उल्लंघन के आरोप में राणा के प्रत्यर्पण की मांग की थी, चूंकि उसने कथित रूप से अमेरिका में अपनी इमीग्रेशन फर्म का इस्तेमाल ऐसे दस्तावेज़ तैयार करने के लिए किया था, जिनका इस्तेमाल 26/11 मास्टरमाइंड डेविड हेडली ने मुंबई के अपने रेकी के दौरों के दौरान किया था.
दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के वरिष्ठ अधिकारियों ने अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात करके, राणा के प्रत्यपर्ण की मांग उठाई थी. फिर जनवरी 2019 में तत्कालीन राज्यमंत्री (विदेश मामले) वीके सिंह ने संसद को बताया था कि भारत अमेरिकी अधिकारियों को राज़ी करने की कोशिश कर रहा था कि 26/11 की साज़िश रचने वाले व्यक्तियों को प्रत्यर्पित किया जाए.
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कौन है राणा?
तहव्वुर हुसैन राणा , जिसने पाकिस्तान सेना में डॉक्टर के तौर पर अपना करियर शुरू किया था, 1997 में कनाडा चला गया और तीन साल बाद उसने शिकागो में इमीग्रेशन का व्यवसाय शुरू कर दिया. 2009 में उसे पहली बार 26/11 हमलों की साज़िश रचने के आरोप में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया.
हालांकि अमेरिकी अभियोजक 26/11 आतंकी मामले में उसकी सहभागिता को साबित नहीं कर सके लेकिन उन्होंने ये ज़रूर स्थापित कर दिया कि राणा ने 2008 में मुंबई हमलों के लिए पाकिस्तान-स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सामग्री के साथ सहायता उपलब्ध कराई और फिर डेनमार्क में हत्या में मदद की, जिसमें एक डेनिश अखबार मॉर्गनाविज़ेन जाइलैंड्स-पॉस्टन के कर्मचारियों के सर कलम करने की एक योजना भी शामिल थी.
2013 में राणा को 14 साल की जेल की सजा सुनाई गई और डेनमार्क आतंकी साज़िश को सामग्री के साथ सहायता करने तथा यही सहायत लश्कर-ए-तैयबा को भी पहुंचाने के आरोप में पांच साल की पर्यवेक्षित रिहाई भी दी गई.
उसे 9 जून 2011 को दोषी करार दिया गया था. राणा को सज़ा सुनाते हुए अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज हैरी लेनेनवेबर कहा: ‘ये यकीनन एक कायरतापूर्ण साज़िश थी’.
अमेरिकी न्याय विभाग के 2013 के एक दस्तावेज के अनुसार पता चला था कि राणा ने 2005 के अंत से लेकर अक्टूबर 2009 तक लश्कर को मटीरियल सपोर्ट मुहैया कराई थी.
दस्तावेज़ में कहा गया, ‘लश्कर ने योजना बनाकर मुंबई में नवंबर 2008 में हमले किए, जिनमें 160 से अधिक लोगों की जान गई, जिनमें छह अमेरिकी नागरिक थे. इसके बाद उन्होंने डेनमार्क में पैगंबर मोहम्मद साहब का कार्टून छापने के बदले की कार्रवाई के तौर पर आतंकी हमले की साज़िश तैयार की. राणा को मुंबई हमलों के लिए मटीरियल सपोर्ट मुहैया कराने की साज़िश के आरोप से बरी कर दिया गया’.
अमेरिकी न्याय विभाग ने ये भी कहा कि मुकदमे के दौरान ये साबित हो गया कि राणा ने हेडली और दूसरे आतंकवादियों को अमेरिका में अपने ठिकाने से महत्वपूर्ण सहायता मुहैया कराई थी, ये जानते हुए कि वो विदेश में हमलों की योजना बना रहे थे.
मुकदमा चलाए गए कुल आठ अभियुक्तों में राणा उन दो अभियुक्तों में से एक था, जिन्हें दोषी ठहराया गया था.
मार्च 2010 में हेडली ने आतंकवाद से जुड़े 12 आरोपों में अपना दोष स्वीकार किया था, जिनमें मुंबई में छह अमेरिकी नागरिकों की हत्याओं में सहायता और बढ़ावा देने का आरोप शामिल था.
राणा को एनआईए की दिसंबर 2011 में दाख़िल उस चार्जशीट में भी एक मुख्य आरोपी बनाया गया, जो मुंबई हमले में शामिल होने के मामले में हेडली और नौ अन्य अभियुक्तों के खिलाफ दायर की गई थी.
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राणा ने ‘लंबे समय से दोस्त’ डेविड हेडली की कैसे सहायता की
अमेरिकी दस्तावेज़ के अनुसार अक्टूबर 2009 में गिरफ्तारी के बाद दिए गए एक बयान में तहव्वुर हुसैन राणा ने ये भी स्वीकार किया कि उसे मालूम था कि लश्कर एक आतंकी संगठन था और हेडली ने उन ट्रेनिंग कैंपों में हिस्सा लिया था, जो संगठन पाकिस्तान में चलाता था.
हेडली ने भी बयान दिया था कि उसने 2002 से 2005 के बीच पांच अलग-अलग मौकों पर ट्रेनिंग कैंपों में शिरकत की थी.
दस्तावेज़ के अनुसार, ‘2005 के अंत में हेडली को लश्कर के सदस्यों की ओर से निगरानी के लिए भारत जाने के निर्देश मिले, जो उसने पांच बार किया, जिसके अंत में तीन साल बाद मुंबई हमले हुए, जिनमें 160 से अधिक लोगों की जानें गईं और सैकड़ों लोग घायल हुए’.
उसमें आगे कहा गया, ‘2006 की शुरुआती गर्मियों में हेडली और लश्कर के दो सदस्यों ने उसकी निगरानी गतिविधियों के कवर के तौर पर मुंबई में एक इमीग्रेशन ऑफिस खोलने पर चर्चा की’.
अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, हेडली ने बयान दिया कि वो शिकागो गया और वहां उसने राणा को, जो उसका ‘लंबे समय से दोस्त’ था, जबसे वो पाकिस्तान में हाई स्कूल में साथ पढ़ा करते थे, उसके काम के बारे में सलाह दी कि उसे ‘भारत में संभावित निशानों का पता लगाना था’.
दस्तावेज़ में कहा गया, ‘हेडली को राणा की मंज़ूरी मिल गई, जो शिकागो और दूसरी जगहों पर फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज़ का मालिक था, कि वो अपनी गतिविधियों के कवर के तौर पर मुंबई में फर्स्ट वर्ल्ड का एक ऑफिस खोल सकता था’.
उसमें कहा गया, ‘हेडली के बयान, ई-मेल्स और उसके बयान की पुष्टि करने वाले अन्य दस्तावेज़ों के अनुसार, राणा ने फिर फर्स्ट वर्ल्ड से जुड़े एक व्यक्ति को कागजात तैयार करने का निर्देश दिया, जो हेडली की कवर स्टोरी का समर्थन करते हों और भारत का वीज़ा हासिल करने के बारे में हेडली को सलाह दी’.
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डेनमार्क साज़िश में भूमिका
अमेरिकी दस्तावेज़ में कहा गया कि डेनमार्क आतंकी साजिश के लिए हेडली ने बयान दिया कि 2008 में उसकी मुलाकात कराची में लश्कर-ए-तैयबा के एक सदस्य से हुई थी और उसे कोपनहेगन और आरहस में जाइलैंड्स-पोस्टन के दफ्तरों की निगरानी करने का निर्देश दिया गया था.
हेडली ने ये भी कहा कि 2008 के आखिर और 2009 के शुरू में तहव्वुर हुसैन राणा के साथ मुंबई में हमले के लक्ष्यों की निगरानी की समीक्षा करने के बाद उसने राणा को डेनमार्क में हमले की योजना के बारे में सलाह दी.
दस्तावेज में कहा गया, ‘हेडली को राणा की मंज़ूरी और सहायता मिल गई, कि वो फर्स्ट वर्ल्ड के नुमाइंदे के तौर पर अपनी पहचान बना सकता था और अखबारों में फर्स्ट वर्ल्ड के लिए विज्ञापन देने में झूठी दिलचस्पी दिखाने के बहाने अखबार के दफ्तरों तक पहुंच बना सकता था.
उसमें आगे कहा गया, ‘ट्रायल के सबूतों के अनुसार, हेडली और राणा ने बिज़नेस कार्ड्स बनवाए, जिनमें हेडली को इमिग्रेशन लॉ सेंटर का प्रतिनिधि बताया गया था, जो फर्स्ट वर्ल्ड का बिज़नेस नाम था’.
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