नई दिल्ली: यमन के हूती विद्रोहियों ने इस सप्ताह कहा कि वे इज़रायल के खिलाफ युद्ध में शामिल हो रहे हैं, जिससे पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष को आगे और तेज होने की आशंका बढ़ गई है.
हूती एक विद्रोही समूह है जो युद्धग्रस्त यमन के अधिकांश उत्तरी हिस्से को नियंत्रित करता है और बड़े पैमाने पर शिया इस्लाम के ज़ायदी संप्रदाय से ताल्लुक रखता है.
2014 में हूतियों द्वारा यमन की राजधानी सना पर कब्ज़ा करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमन सरकार के दक्षिण में अदन में चले जाने के बाद से ही यमन एक बड़े गृहयुद्ध की चपेट में है.
चल रहे नागरिक संघर्ष को दो बड़ी क्षेत्रीय शक्तियों सुन्नी-बहुसंख्यक सऊदी अरब और शिया-नेतृत्व वाले ईरान के बीच कुख्यात छद्म युद्ध के एक और रंगमंच के रूप में देखा गया है.
जबकि विद्रोहियों को कथित तौर पर ईरान का समर्थन प्राप्त है, सऊदी अरब सरकार हूतियों से लड़ने वाले गठबंधन को अपना समर्थन दे रही है.
हूती समुह और सउदी के बीच बातचीत के साथ-साथ रियाद और तेहरान के बीच चीन की मध्यस्थता के चलते तनाव में सुधार के संकेत मिल रहे हैं.
हालांकि, कुछ मामलों को छोड़कर अप्रैल 2022 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से हुए संघर्ष विराम के बाद से यमन में पहले के अपेक्षाकृत शांति थोड़ी-बहुत कायम हुई है.
लेकिन इज़रायल-हमास युद्ध ने क्षेत्र में तनाव को फिर जन्म दे दिया है.
सउदी कथित तौर पर इज़रायल पर हूती के मिसाइल हमलों के प्रयास को रोकने में अमेरिका के साथ शामिल हो गया है. 1948 में गठन के बाद से यहूदी राज्य इज़रायल को साउदी द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है.
हूती कौन हैं?
हूती ज़ायदिस हैं जो शिया अल्पसंख्यक समुदाय का एक हिस्सा है, जिसका नाम ज़ायद इब्न अली से लिया गया है. ज़ायद इब्न अली खलीफा अली के परपोते, पैगंबर मुहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे, जो शिया इस्लाम में पहले इमाम के रूप में माने जाते हैं.
ज़ायदी समुदाय यमन की कुल आबादी का 35 प्रतिशत हिस्सा हैं.
हूती उत्तर-पश्चिमी सादाह प्रांत से ताल्लुक रखते हैं, जो मुख्य रूप से ज़ायदी शिया इस्लाम को मानने वाला इलाका माना जाता है.
हूती विद्रोह की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी, जो सऊदी प्रभाव की बढ़ती प्रतिक्रिया के खिलाफ शुरू किया गया था.
कहा जाता है कि दोनों पक्षों के बीच गहरी परस्पर निर्भरता है, लेकिन फिर भी सऊदी अरब के साथ यमन के संबंध पिछले कई सालों से तनावपूर्ण रहे हैं.
दुश्मनी की शुरुआत 1934 में मानी जाती है – सऊदी अरब साम्राज्य के गठन के दो साल बाद – जब यमन ने सीमा विवाद को लेकर अपने उत्तरी पड़ोसी देश के साथ युद्ध की घोषणा की थी. युद्ध खत्म संबंधी मुद्दों के समाधान हेतु हुई एक संधि के बाद हुई.
सऊदी अरब को आठ साल के यमन गृह युद्ध में एक प्रॉक्सी प्लेयर भी माना जाता था, जो 1962 में इमाम अहमद की मृत्यु के बाद शुरू हुआ था, जब उनके बेटे के नेतृत्व वाली राजशाही को सशस्त्र बलों के कुछ हिस्सों ने उखाड़ फेंका था, जिन्होंने इस क्षेत्र को ‘यमन’ घोषित कर दिया था.
जबकि मिस्र ने गणतंत्र की ओर से हस्तक्षेप किया, सउदी राजघरानों के समर्थन में आगे आए.
उस समय, यमन के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से अलग-अलग थे, बाद वाले 1967 तक ब्रिटिश नियंत्रण में थे. स्वतंत्रता के बाद, दक्षिण वाले को पहले ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ यमन’ नाम दिया गया था, लेकिन इसे 1969 में कम्युनिस्ट तख्तापलट के बाद ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ यमन’ के रूप में जाना जाने लगा.
1978 में, एक सैन्य अधिकारी अली अब्दुल्ला सालेह ने उत्तरी यमन में राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला.
1990 में, यमन अरब गणराज्य और पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ यमन ने घोषणा की कि वे एक साथ आएंगे और एक नए यमन गणराज्य का गठन करेंगे.
उसी साल, जब यमन ने इराक के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को मंजूरी देने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, तो सऊदी अरब ने अपने निवास विशेषाधिकारों को निलंबित करके कम से कम 3,50,000 यमनी प्रवासी श्रमिकों को निष्कासित कर दिया.
सऊदी अरब की कार्रवाई अगस्त 1990 में इराक द्वारा अपने पड़ोसी देश कुवैत पर आक्रमण करने से उपजी थी, जिसके कारण फारस की खाड़ी युद्ध हुआ.
मध्य पूर्व में अमेरिका की विदेश नीति पर ध्यान केंद्रित करने वाले अमेरिकी थिंक टैंक वाशिंगटन इंस्टीट्यूट के एक विश्लेषण के अनुसार, “धन की कमी और बेरोजगारों के चलते यमन में बड़ी सामाजिक आर्थिक समस्याएं पैदा हुई, जो आज भी देश को परेशान कर रही हैं.”
1994 में, यमन एक और गृह युद्ध में फंस गया जब दक्षिणी अलगाववादी आंदोलन करने वाले और गणतंत्र की सरकार के बीच युद्ध शुरू हुआ.
इन्हीं परिस्थितियों में उत्तरी यमन में सऊदी वहाबीवाद के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए हूती आंदोलन शुरू हुआ.
इस आंदोलन की स्थापना 1993 से 1997 तक संसद सदस्य रहे हुसैन बदरेद्दीन अल-हूती ने की थी.
अल-हूती सालेह के बड़े आलोचक थे – जिन्हें एक मजबूत नेता के रूप में वर्णित किया गया था – इन आरोपों पर कि उनकी सरकार अमेरिका और इज़रायल के साथ बहुत करीब से गठबंधन कर रही थी और 2000 के दशक की शुरुआत में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लिए समर्थकों को एकजुट करना शुरू कर दिया था.
2004 में सुरक्षा बलों द्वारा अल-हूती की हत्या के बाद छह साल तक युद्ध छिड़ गया, जो बढ़ते-बढ़ते सऊदी अरब भी पहुंच गया, जब 2009 में सऊदी के एक सीमा रक्षक बल के जवान को हूती लड़ाकों ने मार डाला था.
हूतियों ने अरब स्प्रिंग के कारण शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद यमन में फैली अराजकता के बीच अपना पैर जमा लिया, क्योंकि वहां के नागरिक सरकारी भ्रष्टाचार और गरीबी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे.
आख़िरकार वे 2014 में राजधानी पर नियंत्रण हासिल करने में कामयाब रहे.
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ईरान की भागीदारी
अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के 2021 के पेपर के अनुसार, “ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स-कुद्स फोर्स ने हुती विद्रोहियों को प्रशिक्षण और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों, समुद्री लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले हथियार और टेक्नोलॉजी के साथ साथ एक बड़ा शस्त्रागार दिया है.” इसमें दावा किया गया कि विस्फोटक से भरे यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन), बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइलें, मानव रहित समुद्री वाहन (यूएमवी), और अन्य हथियार और प्रणालियां भी विद्रोहियों को ईरान से मिली थी.
इसमें आगे कहा गया है कि यह आकलन “1 जनवरी 2016 से 20 अक्टूबर 2021 के बीच खाड़ी में सऊदी अरब के खिलाफ, यमन के भीतर और अन्य चीजों पर हुए 4,103 हूती हमलों” के विश्लेषण पर आधारित था.
बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अक्टूबर 2016 में कहा था कि अप्रैल 2015 से शुरू होने वाली 18 महीने की अवधि में, अमेरिकी नौसेना ने यमन में हुती विद्रोहियों को हथियार देने के लिए जा रही पांच ईरानी जहाजों को रोक दिया था.
2018 में, संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि ईरान ने हूती विद्रोहियों को “प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से” मिसाइलों की आपूर्ति करके हथियार प्रतिबंध का उल्लंघन किया था.
उसी साल अमेरिका और सऊदी अरब ने यमन और अफगानिस्तान में आतंकवादियों के लिए तैनात किए गए ईरानी हथियारों के कई साक्ष्य भी प्रदर्शित किए. हालांकि, ईरान ने दावों का खंडन किया है और कहा है कि यह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन होगा.
2019 में, यमन पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के पैनल ने एक रिपोर्ट में कहा कि हैती विद्रोही तेजी से उन्नत ड्रोन तकनीक तक पहुंच प्राप्त कर रहे थे. पैनल ने आगे कहा कि विद्रोही कामिकेज़ ड्रोन तक का इस्तेमाल कर रहे थे.
यमन में ‘युद्ध अपराध’
युद्ध के कारण यमन में बड़ी तबाही हुई है, जिससे कई मानवीय तबाही मची है.
संयुक्त राष्ट्र के यमन विशेषज्ञों ने कहा है कि उसके पास “यह मानने का उचित आधार है कि संघर्ष के पक्षों ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का गंभीर उल्लंघन किया है और जारी रख रहे हैं. जिनमें से कुछ युद्ध अपराध की श्रेणी में आ सकते हैं.”
विश्व निकाय का अनुमान है कि संघर्ष के चलते “देश का 80 प्रतिशत हिस्सा भोजन और बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहा है”.
(संपादन: ऋषभ राज)
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