(सुमीर कौल)
नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) लाल किले के पास 10 नवंबर को चलती कार में हुए बम विस्फोट के साथ सामने आए ‘सफेदपोश’ आतंकी मॉड्यूल में शामिल डॉक्टरों का कट्टरपंथ की ओर झुकाव 2019 से ही सोशल मीडिया मंच के जरिये शुरू हो गया था। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
जांच से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि अब तक की जांच से सीमा पार आतंकवाद की रणनीति में ऐसे बदलाव का संकेत मिला है, जो काफी चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि इस रणनीति के तहत पाकिस्तान और दुनिया के अन्य हिस्सों में बैठे आतंकी आकाओं द्वारा उच्च शिक्षित पेशेवरों को पूरी तरह से डिजिटल माध्यमों का सहारा लेकर आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार किया जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि आतंकी मॉड्यूल के सदस्यों, जिनमें डॉ. मुजम्मिल गनई, डॉ. अदील राठेर, डॉ. मुजफ्फर राठेर और डॉ. उमर-उन-नबी शामिल थे, को शुरू में सीमा पार के आकाओं ने फेसबुक और ‘एक्स’ जैसे सोशल मीडिया मंचों पर सक्रिय पाया था।
उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों को तुरंत ‘टेलीग्राम’ पर निजी ग्रुप में जोड़ा गया और यहीं से उन्हें बरगलाना शुरू किया गया। आतंकी मॉड्यूल के सदस्यों ने हमलों को अंजाम देने के लिए संवर्धित विस्फोटक उपकरण (आईईडी) बनाने का तरीका सीखने के लिए यूट्यूब का भी खूब इस्तेमाल किया।
पूछताछ के दौरान विश्लेषण किए गए ‘डिजिटल फुटप्रिंट’ से पता चला कि इनके मुख्य संचालक ‘उकासा’, ‘फैजान’ और ‘हाशमी’ हैं। अधिकारियों ने बताया कि ये तीनों भारत के बाहर से अपनी गतिविधियां चला रहे थे और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी नेटवर्क से जुड़ी जानकारियों में अक्सर इनके नाम सामने आते हैं।
अधिकारियों ने बताया कि भर्ती किए गए डॉक्टरों ने शुरू में सीरिया या अफगानिस्तान जैसे संघर्ष क्षेत्रों में आतंकवादी समूहों में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन बाद में उनके आकाओं ने उन्हें भारत में ही रहने और भीतरी इलाकों में कई विस्फोट करने के लिए कहा।
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर इस ‘सफेदपोश’ आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया। इससे जांचकर्ता फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय पहुंचे, जहां से 2900 किलोग्राम विस्फोटक बरामद हुआ।
वर्ष 2018 के बाद से, सोशल मीडिया पर कट्टरपंथ फैलाने के तरीके में आतंकवादी समूहों द्वारा रणनीतिक बदलाव देखा गया है। ये आतंकवादी समूह डिजिटल मंचों के जरिए लोगों की भर्ती करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि पुख्ता सुरक्षा उपायों के कारण प्रत्यक्ष और आमने-सामने की बातचीत मुश्किल होती जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक, एक बार जब भर्ती होने के इच्छुक लोगों की पहचान हो जाती है, तो उन्हें ‘टेलीग्राम’ जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप पर निजी ग्रुप में जोड़ दिया जाता है, जहां उन्हें अत्यधिक मनगढ़ंत सामग्री दिखाई जाती है, जो अक्सर कृत्रिम मेधा (एआई) से बने वीडियो होते हैं।
क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने का काम सौंपे जाने से पहले, भर्ती लोगों को वर्चुअल प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें आसानी से उपलब्ध यूट्यूब ट्यूटोरियल शामिल होते हैं।
‘वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क’ और फर्जी पहचान वाली आईडी का व्यापक उपयोग इन आतंकवादी नेटवर्क को पकड़ में आने से बचने में मदद करता है, जो एन्क्रिप्टेड संचार के लिए ‘टेलीग्राम’ और ‘मैस्टोडॉन’ जैसे मंचों का उपयोग करते हैं।
भाषा
शफीक नरेश
नरेश
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