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Wednesday, 15 May, 2024
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जहां पतियों का उपनाम लगाने पर पाबंदी है, और कैसे आखिरी नाम पर दुनिया भर में अलग-अलग कानून हैं

SC ने पिछले सप्ताह एक बच्चे को अपने सौतेले पिता का नाम दिए जाने के पक्ष में फैसला सुनाया. दिप्रिंट नज़र डालता है कि आख़िरी नाम पर चल रही बहस विभिन्न देशों में कैसे अलग अलग रंग ले सकती है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को फैसला सुनाया कि जो महिला अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी करती है, उसे अपने मृत पति से पैदा हुए बच्चे का उपनाम उसके जैविक पिता से बदलकर, सौतेले पिता के नाम पर रखने का आधिकार है.

एससी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसने फैसला दिया था कि उस बच्चे के साथ जैविक पिता का उपनाम रहने दिया जाए, जिसकी मां ने बच्चे का आख़िरी नाम अपने नए पति के नाम पर रख लिया था.

कोर्ट ने कहा था, ‘उपनाम केवल वंश का सूचक नहीं है और उसे सिर्फ इतिहास, संस्कृति और वंश के संदर्भ में ही नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि ज़्यादा महत्वपूर्ण वो भूमिका है जो ये सामाजिक वास्तविकता के मामले में निभाता है, जिसके साथ ही बच्चों के अंदर अपने एक ख़ास वातावरण में रहने का अहसास भी मायने रखता है’. उसने कहा कि बच्चे की ‘प्राकृतिक संरक्षक’ होने के नाते, मां को बच्चे के उपनाम का फैसला करने का अधिकार है.

पिछले साल उपनामों पर दिए गए इसी तरह के एक फैसले में, दिल्ली एचसी ने एक पिता की याचिका को ख़ारिज कर दिया था, जिसने कोर्ट से हस्तक्षेप की दरखास्त करके ये सुनिश्चित करने की कोशिश की थी, कि उसकी बेटी उसका उपनाम इस्तेमाल करे, अपनी मां का नहीं.

‘अगर नाबालिग बेटी मां के उपनाम से ख़ुश है, तो आपको क्या परेशानी है?’ जस्टिस रेखा पाली ने वकील से ये सवाल करते हुए, याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उसमें ‘कोई दम नहीं है’. उन्होंने कहा था, ‘हर बच्चे को अपनी मां का उपनाम इस्तेमाल करने का अधिकार है’.

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भारत में, आख़िरी नाम पर बहस आमतौर से इस बात पर होती है कि किसी विवाहित महिला को शादी से पहले का अपना उपनाम इस्तेमाल करना चाहिए, या पति का उपनाम लेना चाहिए.

दिप्रिंट आख़िरी नाम से जुड़े कुछ क़ानूनों, और कुछ छोटी-छोटी साधारण जानकारियों पर एक नज़र डालता है.


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‘शादी से पहले का नाम या पति का नाम’- क्या कहते हैं दूसरे देश

भारत में बहुत सी महिलाएं सामान्य रूप से अपने पति का आख़िरी नाम इस्तेमाल करती हैं, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कुछ देशों में इस प्रथा को ग़ैर-क़ानूनी समझा जाता है.

कनाडा के क्यूबेक प्रांत में सभी महिलाओं को क़ानूनन अपने शादी से पहले के नाम को रखना होता है. क्यूबेक के प्रांतीय क़ानून में महिलाओं के लिए शादी के बाद पति का नाम ‘लेने’ की मनाही है.

हालांकि, फ्रांस में भी इसी तरह का क़ानून है- महिलाएं क़ानूनी तौर पर शादी के बाद अपने नाम नहीं बदल सकतीं– लेकिन ‘सामाजिक और बोलचाल के उद्देश्यों से’ दोनों जीवन साथी एक दूसरे के उपनाम ‘स्वीकार’ कर सकते हैं.

बेल्जियम और इटली दोनों में महिलाओं के लिए शादी के बाद अपने पहले के नाम को बदलने या हटाने की मनाही है. लेकिन इटली में, महिलाएं अपने ख़ुद के नाम के साथ पति का उपनाम ‘जोड़’ सकती हैं.

नीदरलैण्ड्स में, महिलाओं को हमेशा उनके शादी से पहले के नाम से पहचाना जाता है. उन्हें अपने पति का नाम अपनाने की अनुमति है, लेकिन अधिकारिक दस्तावेज़ों में वो ऐसा नहीं कर सकतीं.

अमेरिका में, विवाहित महिलाएं तय कर सकती हैं कि वो अपना पहले का नाम रखेंगी, या अपने पति का नाम अपनाएंगी. लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं में शादी के बाद भी, अपना पहले का नाम बनाए रखने का चलन बढ़ रहा है.

इस बीच, पिछले साल ही जापान की शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था, कि पति-पत्नियों के लिए अलग अलग उपनामों का क़ानूनी और आधिकारिक प्रावधान न होना, असंवैधानिक नहीं था.

आख़िरी नाम की पीड़ा

पारिवारिक नामों से जुड़ी बातचीत कभी कभी दूसरे रूप भी ले सकती है, जैसे कि फिल्मी सितारों के बच्चों पर आरोप लगाया जाता है कि वो बॉलीवुड के कथित भाई-भतीजावाद का फायदा उठाते हैं.

ऐसे मामले भी देखने में आए हैं जब लोगों को लगा है कि उन्हें उनके उपनामों की वजह से निशाना बनाया जा रहा है, या ग़लत समझा जा रहा है.

बॉलीवुड अभिनेता अर्जुन कपूर ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा, ‘अगर आपको मेरा सरनेम या मेरा चेहरा पसंद नहीं है, तो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता. अगर उसके लिए आप मुझसे नफरत करें या उस पर लिखने लगें, तो मैं उसे कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं?’

इस बीच इंग्लैण्ड में, जब प्रिंस विलियम के पिता प्रिंस चार्ल्स राजा बन जाएंगे, तो उनके तीन बच्चों- जॉर्ज, शार्लोट और लुइस- के नाम बदल जाएंगे और वो प्रिंस ऑफ वेल्स हो जाएंगे. उसके बाद तीनों बच्चे वेल्स को आख़िरी नाम के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. अभी वो कैम्ब्रिज उपनाम लगाते हैं, जो प्रिंस विलियम की अधिकारिक उपाधि ड्यूक ऑफ कैम्ब्रिज के नाम पर है.

विलियम ने भी स्कूल में और रॉयल नेवी में सेवाएं देते हुए आख़िरी नाम वेल्स इस्तेमाल किया था, चूंकि तब उनके पिता पहले से ही प्रिंस ऑफ वेल्स की उपाधि इस्तेमाल करते थे.

इस साल मई में, ई-कॉमर्स दिग्गज अलीबाबा को कथित रूप से अरबों डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ा, जब ‘मा’ उपनाम के एक व्यक्ति को बाहरी ताक़तों के साथ संदिग्ध मिलीभगत के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था. कंपनी के संस्थापक एक चीनी व्यवसायी जैक मा हैं, और उस ख़बर से एक भ्रम पैदा हो गया था, क्योंकि दोनों के आख़िरी नामों में समानता थी.

जून में, व्यवसायी एलन मस्क की बेटी ज़ेवियर ने याचिका दायर की कि उसका नाम बदलकर विवियन जेना विलसन कर दिया जाए, चूंकि वो अपने जैविक पिता के साथ किसी भी रिश्ते से बचना चाहती हैं.

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भी पिछले साल आख़िरी नाम को लेकर अटकलबाज़ियों का हिस्सा रहीं, जब उन्होंने चोपड़ा और अपने पति निक जोनस के उपनाम, दोनों को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स से हटा दिया. अटकलों का जवाब देते हुए चोपड़ा ने इस साल जनवरी में कहा, ‘ये सोशल मीडिया है दोस्तों, बस मज़े कीजिए’.

इस बीच, इटली की एक अदालत ने इस साल मई में फैसला दिया कि बच्चों को दोनों पैरेंट्स का नाम दिया जाना चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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