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Friday, 29 March, 2024
होमदेश700 साल पहले कहां से हुई थी 'ब्लैक डेथ' की उत्पत्ति? वैज्ञानिकों ने किया इस रहस्य को सुलझाने का दावा

700 साल पहले कहां से हुई थी ‘ब्लैक डेथ’ की उत्पत्ति? वैज्ञानिकों ने किया इस रहस्य को सुलझाने का दावा

पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित एक जर्मन अध्ययन के अनुसार दुनिया की सबसे घातक महामारी, मध्ययुगीन बुबोनिक प्लेग, का कारण बनने वाले बैक्टीरिया की उत्पत्ति मध्य यूरेशिया में हुई थी.

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बेंगलुरू: जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने डीएनए सीक्वेन्सिंग (अनुक्रमण) का उपयोग करते हुए दर्ज किए गए इतिहास की सबसे घातक महामारी, मध्ययुगीन बुबोनिक प्लेग की उत्पत्ति के बारे में खोज कर ली है.

‘ब्लैक डेथ’ के रूप में कुख्यात तथा 1346 और 1353 के बीच यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका में फैलने वाला यह प्लेग मानव इतिहास में दर्ज बड़े संक्रामक रोग प्रकरणों में से एक था और इसने दुनिया की आबादी को काफी कम कर दिया था.

जहां कई अध्ययनों ने इससे होने वाली मौत को 25 मिलियन के आसपास बताया गया है, वहीं कई अनुमान बताते हैं कि मरने वालों की संख्या 200 मिलियन तक हो सकती है.

हालांकि इस प्लेग के प्रसार (फैलाव) और लक्षणों को काफी सावधानीपूर्वक डॉक्युमेंट किया गया है और इसके वैश्विक प्रभाव को भी व्यापक रूप से समझा गया है, मगर इसकी उत्पत्ति- पहला विशेष बॅक्टीरियम स्ट्रेन और जहां यह सब शुरू हुआ था- अब तक एक रहस्य बनी हुई है.

अब एक जर्मन शोध दल ने 14वीं शताब्दी में इस बीमारी से मरने वाले सात व्यक्तियों का डीएनए विश्लेषण किया है और मूल जीवाणु यर्सिनिया पेस्टिस (वाई पेस्टिस), जो इस बीमारी के लिए जिम्मेदार था, के स्ट्रेन की सीक्वेन्सिंग की है. इसके निष्कर्ष, जिनकी सहकर्मियों द्वारा-समीक्षा (पियर-रिव्यूड) की गई है, इस बुधवार को ब्रिटिश वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर‘ में प्रकाशित हुए.

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इस अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि इस प्लेग की उत्पत्ति मध्य यूरेशिया में, संभवतः आधुनिक किर्गिस्तान के तियान शान क्षेत्र में हुई थी.

कब्रों को खोदकर निकाले गए डीएनए के पिछले अनुवांशिक विश्लेषणों ने संकेत दिया था कि इस प्लेग के लिए निश्चित रूप से जीवाणु वाई पेस्टिस का एक स्ट्रेन ही जिम्मेदार था.

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस बैक्टीरिया के चार प्रमुख लीनीयेजस (वंशक्रमों) की पहचान की गई है और नवीनतम अध्ययन के अनुसार इनके वंशज आज भी चूहों में पाए जा सकते हैं.

इस शोध के लेखकों का कहना है कि हालांकि इसके मौजूदा स्ट्रेन्स की पहचान कर ली गई है, मगर इस प्लेग जीवाणु के विकासवादी क्रम का ऐतिहासिक रिकॉर्ड इस बारे में हुए अनुसंधान के बड़े पैमाने पर यूरोसेंट्रिक फोकस के कारण गायब है.

हालांकि, वैज्ञानिक यह जानते हैं कि यह एक विविधीकरण वाली घटना (डाइवर्सिफिकेशन इवेंट) से गुजरा है जिससे इसके वर्तमान लीनीयेजस की उत्पत्ति हुई है.


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कब्रों में ढूंढे जा रहे हैं सवालों के जवाब

इसकी उत्पत्ति का पता लगाने के लिए, शोध दल इस प्लेग के फैलने के सबसे पहले उल्लेख वाले स्थान- मध्य एशिया- में वापस गया. तियान शान क्षेत्र में मरने वाले लोगों के रिकॉर्ड ने शोधकर्ताओं को किर्गिस्तान के इस्सिक-कुल झील में मध्ययुगीन कब्रों की पड़ताल करने के लिए प्रेरित किया.

पुरातत्व संबंधी अभिलेखों से संकेत मिलता है कि 1338 और 1339 के बीच यहां के आस-पास की कब्रों में बहुत अधिक संख्या में लोग दफन हुए थे और कई कब्रों पर लगे पत्थरों (ग्रेवस्टोन) में मृत्यु के कारण का ज़िक्र ‘महामारी’ के रूप में किया गया था.

लेखकों ने यहां दफन किए गए सात व्यक्तियों के पुरातात्विक, ऐतिहासिक और आनुवंशिक डेटा की तुलना की. उन्होंने तीन नमूनों में वाई. पेस्टिस जीवाणु पाया और यह भी मालूम किया कि वे सभी एक ही प्रकार के थे.

आगे के विश्लेषण से यह पता चला कि यह स्ट्रेन बुबोनिक प्लेग स्ट्रेन्स का एक सामान्य पूर्वज था, जिसे तब के बाद से पहचान लिया गया है और यह आज भी चूहों में मौजूद है.

टुबिंगन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता और इस अध्ययन की प्रमुख लेखक मारिया स्पायरौ ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘हमने पाया कि किर्गिस्तान के प्राचीन स्ट्रेन इस बड़े पैमाने पर हुए डाइवर्सिफिकेशन इवेंट के नोड पर स्थित हैं. दूसरे शब्दों में, कहें तो हमने ब्लैक डेथ के स्रोत वाल स्ट्रेन का पता लगा लिया और हमें इसकी सही तारीख (वर्ष 1338) भी पता है.’

पुरातात्विक आंकड़ों ने यह भी खुलासा किया है कि इस क्षेत्र में विविध समुदाय के लोगों की आबादी वाले समुदाय थे जो आपस में मिलते-जुलते थे और यह 14वीं शताब्दी में यूरेशिया में होने वाले व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था.


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इसका घातक प्रसार और उसके कारण मची उथल-पुथल

बुबोनिक प्लेग को सबसे पहले मध्य एशिया में लोगों के संक्रमित होने के रूप में दर्ज किया गया था. जिसके बाद यह दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया में फैल गया और वहां से उत्तरी अफ्रीका के माध्यम से उत्तरी यूरोप में फैलते हुए यह अंततः साइबेरिया तक पहुंच गया. इस रोग का फैलाव भूमि और समुद्री व्यापार मार्गों से हुआ.

जैसे-जैसे इसने वैश्विक जनसंख्या में लाखों की संख्या में कटौती की, इसका प्रभाव पूरी दुनिया में आर्थिक और सामाजिक उथल-पुथल के रूप में महसूस किया गया.

बड़े पैमाने पर दर्ज की गयी मृत्यु दर के परिणामस्वरूप शेष बची जीवित आबादी के बीच श्रम की काफी अधिक मांग हुई. इसके फलमस्वरूप, कुछ दशकों बाद, समृद्धि के युग की शुरआत हुई और इसने ‘अन्वेषण के युग‘, जो 1400 के दशक में शुरू हुआ और यूरोप में 1600 के दशक तक जारी रहा, के लिए एक आधार स्थापित किया.

हालांकि, इसके कई तात्कालिक हानिकारक प्रभाव भी थे.

चूंकि इस प्लेग की उत्पत्ति और इसके प्रसार की व्याख्या नहीं की जा सकी थी, इसलिए इसकी वजह से समुदायों के बीच जबरदस्त नागरिक अशांति और संघर्ष हुए. अन्य संक्रमण और बीमारियां फैल जाने की वजह से पूरे यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका में कई बड़े शहर अवसाद मे घिर गये. जनसंख्या की वृद्धि दर में भी गिरावट आई और वैश्विक स्तर पर अकाल और कुपोषण में वृद्धि हुई.

यूरोप में, इसकी वजह से किसानों और श्रमिकों की रक्षा करने वाले कानूनों और इनोवेशन्स (नवाचार) में वृद्धि हुई, जिसके बाद उपनिवेशवाद की शुरुआत होने के साथ-साथ अगले दशकों और शताब्दियों में धन का प्रवाह तेज हुआ.

हालांकि, एशियाई और अफ्रीकी देशों पर इस प्लेग के प्रभावों का दस्तावेजीकरण और अध्ययन काफी कम किया गया है क्योंकि अनुसंधान के क्रम में सारा फोकस ऐतिहासिक रूप से यूरोप पर ही केंद्रित रहा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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