नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को गाजियाबाद की पूर्व जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) निधि केसरवानी को दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे और ईस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेस-वे के लिए जमीनों के अधिग्रहण में कथित अनियमितताओं के आरोप में निलंबित कर दिया.
मणिपुर काडर की 2004 बैच की आईएएस अधिकारी केसरवानी फिलहाल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं और राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान में निदेशक के पद पर तैनात हैं. उन्होंने इंटर-काडर डेप्युटेशन पर रहते हुए 13 अक्टूबर 2011 से 13 अक्टूबर 2017 तक गाजियाबाद के डीएम के पद पर काम किया था.
सीएम ऑफिस ने ट्वीट किया कि ये निलंबन ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस’ के अनुरूप था. ट्वीट में आगे कहा गया कि आदित्यनाथ ने आदेश दिया है कि विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए मामले को केंद्र सरकार के पास भेजा जाए.
उसमें आगे कहा गया कि दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और ये भी कहा गया कि ‘नियुक्ति विभाग के एक सेक्शन ऑफिसर और रिव्यू ऑफिसर को भी जांच रिपोर्ट के बाद मामले को देरी से देखने पर निलंबित किया जाएगा’, जबकि ‘उप-सचिव के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की जाएगी’.
भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति के अनुरूप #UPCM @myogiadityanath ने तत्कालीन जिलाधिकारी गाजियाबाद को निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही शुरू करने हेतु प्रकरण भारत सरकार को संदर्भित करने के आदेश दिए हैं।@UPGovt @spgoyal@navneetsehgal3 @sanjaychapps1 @74_alok pic.twitter.com/EL7riTdTPC
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) May 4, 2022
अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल ने दिप्रिंट को बताया, ‘निधि केसरवानी की स्थिति और एक्सप्रेस-वे परियोजना के निर्माण की जानकारी का फायदा उठाकर, उनके रिश्तेदारों ने सस्ते दामों पर जमीनें खरीद लीं और बाद में उन्हें कहीं अधिक ऊंचे दामों पर यूपी सरकार को बेच दिया’.
सहगल ने आगे कहा कि केसरवानी के निलंबन के विषय पर वो केंद्र सरकार के जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.
दिप्रिंट ने इस मामले पर ई-मेल के जरिए केसरवानी से उनकी टिप्पणी मांगी है. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
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क्या हैं आरोप
2017 में गाजियाबाद जिले में पड़ने वाले डासना, नाहल और कुशालिया के 23 किसानों के समूह ने उत्तर प्रदेश सरकार में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गाजियाबाद मजिस्ट्रेट अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए जमीनें खरीदीं और उन्हें करीब छह गुने दामों पर राज्य सरकार को बेच दिया. उनका दावा था कि ये काम परियोजना की अधिसूचना जारी होने के बाद किया गया इसलिए ये नियमों का उल्लंघन था. दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे की अधिसूचना 2012 में जारी की गई थी.
आरोप ये लगाया गया कि अधिकारियों ने किसानों से करीब 1,700 रुपए और 1,800 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीनें खरीदीं और उन्हें करीब 7,000 रुपए और 8,000 रुपए प्रति मीटर की दर पर सरकार को बेच दिया.
हिंदुस्तान टाइम्स में 2017 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों एक्सप्रेसवेज़ के भूमि अधिग्रहण की जांच करने वाले, तब के मेरठ डिवीज़नल कमिश्नर प्रभात कुमार ने कहा था कि अपने रिश्तेदारों के नाम पर जमीनें खरीदकर अधिकारियों ने करीब 20 करोड़ रुपए बनाए थे.
8,346 करोड़ रुपए की लागत से बना 74 किलोमीटर लंबा दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पिछले साल अप्रैल से चालू है. ये प्रोजेक्ट लगातार खबरों में था चूंकि किसान विरोध कर रहे थे और इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए उनसे खरीदी गई जमीन का बढ़ा हुआ मुआवज़ा मांग रहे थे.
135 किलोमीटर लंबे छह लेन के ईस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेस-वे का उदघाटन, जो 4,417.89 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया था, 26 मई 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.
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निधि केसरवानी का इंटर-काडर तबादला
निधि केसरवानी का इंटर-काडर तबादला राज्य सरकार की सहमति से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में था, जिसमें किसी अधिकारी के एक काडर से दूसरे काडर में तबादले का आदेश जारी किया जाता है.
इंटर-काडर तबादले आमतौर पर तब किए जाते हैं जब दो आईएएस अधिकारी आपस में शादी कर लेते हैं और उनमें से एक अधिकारी, होम काडर को छोड़कर, अपने पति-पत्नी के काडर में तबादले का अनुरोध करता है. काडर के अंदर की तैनातियां राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती हैं.
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