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Monday, 23 December, 2024
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SYL मुद्दे पर आगे क्या? खट्टर बोले- ‘SC को पंजाब के रवैये से अवगत कराएंगे’, अपनी बात पर अड़े मान

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के साथ बैठक के बाद, खट्टर ने पंजाब पर SC के फैसले को नहीं मानने का आरोप लगाया. मान ने कहा कि उनके पास हरियाणा को देने के लिए एक बूंद भी पानी नहीं है.

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गुरुग्राम: दशकों से विवादित, सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के पेचीदा मुद्दे को हल करने के लिए उम्मीद के मुताबिक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अपने पंजाब समकक्ष भगवंत मान के साथ बैठक बुधवार को बेनतीजा रही.

इस मुद्दे पर पंजाब के लंबे समय से चले आ रहे स्टैंड को दोहराते हुए मान ने बैठक के बाद कहा कि राज्य के पास हरियाणा के साथ साझा करने के लिए ‘एक बूंद पानी नहीं है’. दूसरी ओर, खट्टर ने कहा कि पंजाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर रहा है. उन्होंने दिल्ली और चंडीगढ़ में संवाददाताओं से कहा, ‘हम पंजाब के रवैये के बारे में शीर्ष अदालत को सूचित करेंगे.’ मान ने कहा कि पंजाब सरकार भी शीर्ष अदालत के समक्ष राज्य के हितों की रक्षा करेगी.

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर पर चर्चा के लिए बुधवार को अहम बैठक केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बुलाई थी, जिसमें इस मुद्दे को 19 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया.

छह सितंबर को पिछली सुनवाई के दौरान, SC ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जल शक्ति मंत्रालय के तत्वावधान में बैठक करके इस मुद्दे को हल करने के लिए कहा था. इससे पहले, खट्टर और मान के बीच 14 अक्टूबर को हुई एक और मुलाकात बेनतीजा साबित हुई थी.

1966 में प्रस्तावित, हरियाणा को पंजाब से बाहर किए जाने से पहले, सतलुज यमुना लिंक सतलुज और यमुना को जोड़ने वाली 211 किलोमीटर लंबी नहर है, जहां हरियाणा में नहर का 90 किलोमीटर का हिस्सा 1980 तक पूरा हो गया था, वहीं पंजाब में शेष 121 किलोमीटर का हिस्सा रुका हुआ है.


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सुप्रीम कोर्ट को पंजाब के रवैये से अवगत कराएंगे: खट्टर

खट्टर ने बुधवार को बैठक के बाद आरोप लगाया, ‘बैठक में कोई आम सहमति नहीं बन सकी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला एसवाईएल के निर्माण के लिए है, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके प्रशासनिक अधिकारियों की टीम इस मुद्दे का कोई हल निकालने के लिए तैयार नहीं थी.’

पंजाब सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार करने का आरोप लगाते हुए, जिसमें 2004 में पंजाब विधानसभा द्वारा पारित पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट को अवैध घोषित किया गया था, खट्टर ने कहा कि मान अभी भी हरियाणा को पानी के अपने हिस्से से वंचित करने के लिए उसी कानून का हवाला दे रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम पंजाब के रवैये से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएंगे. इस मुद्दे पर अदालत जो भी फैसला करेगी, हम उसे स्वीकार करेंगे.’

पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 और केंद्र सरकार के 24 मार्च 1976 के आदेश का हवाला देते हुए, खट्टर ने कहा कि रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी में से हरियाणा को 3.5 एमएएफ (मिलियन एकड़-फीट) पानी आवंटित किया गया था. खट्टर ने कहा, हालांकि, एसवाईएल नहर के पूरा न होने से हरियाणा में केवल 1.62 एमएएफ पानी रह जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि इस पानी की अनुपलब्धता के कारण दक्षिणी हरियाणा में भूजल स्तर में काफी कमी आई है. खट्टर ने कहा कि एसवाईएल नहर का निर्माण नहीं होने के कारण हरियाणा के किसानों को सिंचाई के लिए महंगे डीजल और बिजली के नलकूपों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, जिससे हर साल 100-150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.

उन्होंने दावा किया कि लगभग 10 लाख एकड़ भूमि जो इस पानी से सिंचित की जा सकती थी, अब अनुपयोगी पड़ी है. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि नहर का काम पूरा नहीं होने से हरियाणा को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न का नुकसान होता है. खट्टर ने कहा, ‘इस कृषि उपज का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये है.’


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पंजाब पानी बांटने का जोखिम नहीं उठा सकता : मान

पंजाब के सीएम भगवंत मान ने हालांकि स्पष्ट रूप से कहा कि उनके राज्य के पास हरियाणा के साथ साझा करने के लिए पानी की एक बूंद भी नहीं है.खट्टर से मुलाकात के बाद मान ने कहा, ‘हमारे 150 ब्लॉकों में से 78 प्रतिशत से अधिक अत्यधिक अंधेरे क्षेत्र में हैं – जहां भूजल औसत स्तर से नीचे है – भूजल में कमी के कारण, इसलिए पंजाब किसी अन्य राज्य के साथ अपना पानी साझा करने का जोखिम नहीं उठा सकता है.’

मान ने यह भी कहा कि जिस समय नहर के लिए ‘पंजाब विरोधी समझौता’ किया गया था, उस समय राज्य को 18.56 एमएएफ पानी मिल रहा था, जिसे अब घटाकर 12.63 एमएएफ कर दिया गया है. उन्होंने दावा किया कि हरियाणा को सतलुज, यमुना और अन्य नदियों से 14.10 एमएएफ पानी मिल रहा है, जबकि पंजाब को केवल 12.63 एमएएफ पानी मिल रहा है.

मान ने कहा कि सतलज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के बजाय अब इस परियोजना की कल्पना ‘यमुना सतलुज लिंक (वाईएसएल)’ के रूप में की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि सतलुज पहले ही सूख चुका है और इसमें से एक ‘पानी की एक बूंद’ साझा करने का कोई सवाल ही नहीं है, उन्होंने कहा, इसके बजाय गंगा और यमुना नदियों के पानी को सतलुज के माध्यम से पंजाब में आपूर्ति की जानी चाहिए.

उन्होंने इस तथ्य पर खेद व्यक्त किया कि जलवायु परिवर्तन के कारण 25 वर्षों के बाद समझौते की समीक्षा की जाएगी, दुनिया भर में जल समझौतों में एक खंड है, उन्होंने कहा कि इस तरह के खंड के बिना एसवाईएल समझौता एकमात्र अपवाद है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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